-- करण समस्तीपुरी
हैलो जी ! पहिचाने नहीं...? हा..हा..हा... उ का है कि आज हमरा इस्टाइल थोड़ा बदल गया है न... । अब हमें भी जरा शहर की हवा लग गयी है। अब हम बात-बात पर खाली कहवाते कहने वाले छूछ देहाती ना रहे.. । का बताएं.... सब दिन तो गांवे में रहे। लेकिन ई दफे बड़ा दिन का छुट्टी मनाने आ गए बेंगलूर। इसको कौनो ऐसा-वैसा छुटभैय्या शहर नहीं बूझिये। बहुत बड़का शहर है... पटनो से बड़ा...। समझिये कि बम्बैय्ये के जोड़ का ... ! हे.... इन्ना बड़ा-बड़ा मकान सब है कि का बताएं ? हम तो जैसे ही टीसन से बाहर निकल के एगो मकान देखने के लिए गर्दन को उल्टा किये कि माथा का पगरिये गिर गया। इतना इस्पीड में गाड़ी सब चलता है कि आप तो देखते ही रह जाइएगा । उ तो हम थे जो कौनो दिक्कत नहीं हुआ। और दिक्कत होगा काहे... ? आपको न हम 'घर के जोगी जोगरा' लगते हैं लेकिन बेंगलूर में हमरा बहुत जान-पहचान है। बहुते आदमी चिन्हते हैं।
बड़ा दिन यहाँ सब में का बुझाएगा...। आप लोग तो खाली नामे सुनते होइएगा... कहियो बेंगलूर आइयेगा तब देखिएगा.. कैसा होता है बड़ा दिन... ! शहर-बाजार में इतना भीड़-भार रहता है.... उतना ही सजावट... और इतना बम- फटक्का सब छूटता है कि आपको दिवालीये बुझाएगा । लेकिन ई में 'शुभ दीपावली' नहीं बोलते हैं। पर्व के नाम पर भी खीचम-खींच किये रहते हैं। ई कहेगा 'मेरी क्रिसमस' तो उहो कहेगा 'मेरी क्रिसमस'। हम कहे कि ई में लड़ाई करे का क्या जरूरत है, 'न मेरी क्रिसमस... ना तेरी क्रिसमस... सबकी क्रिसमस'।
क्रिसमस के बिहाने पिलान बना सनीमा देखने का। का सनीमा-हाल सब है ... आप तो खाली लैट-हाउस, जवाहर और अप्सरा का नाम सुने होंगे । यहाँ तो मल्टीप्लेस होता है। एगो हाल में चार-चार सनीमा एक शो में चलता है। और हाल के बाहर जो भीड़ देखिएगा तो लगेगा कि सोन्ह्पुर मेला भी फेल है। और सनीमा भी लगा हुआ था बड़ा बेजोर। अमीर खान का नया सनीमा, "थ्री इडीअट्स"। बड़ी मजेदार सनीमा है। एकदम समझिये कि खान भाई और उसका दोस्त लोग हिला के रख दिहिस है। आप सोच रहे होंगे कि अंग्रेजी फिलिम में हमें क्या बुझाया होगा... ? है मरदे ! सनीमा का खाली नामे है अंग्रेजी में, बांकिये पूरा सनीमा तो हिंदिये में है। हा..हा... हा... !!
ई सनीमा में एगो अमीर खान रहता है और दू गो उका दोस्त। तीनो बड़का कमीना रहता है। लेकिन तिन्नो इंजीनियरी का पढाई करता है। उस इंजीनियरी कालेज का डायरेक्टर रहता है भारी खडूस। ई तीनो को देखना नहीं चाहता है। और अमीर खान ससुरा इतना खच्चर के गिरह कि डायरेक्टर के छोटकी बेटीए को पटा लेता है। एक बात है, ई तीनो लड़का ऊपर-झापर से शैतानी करता है लेकिन दिल का एकदम हीरा है, हीरा। और समझिये कि जरूरत पड़े तो किसी के मदद के लिए अपना जान भी दे दें।
तो सनीमा में का होता है कि वही डायरेक्टर की बड़की बेटी को प्रसव होने वाला रहता है। एकदम आखिरी टाइम। लेकिन वर्षा कहे कि हम आज छोड़ेंगे ही नहीं। आसमान फार के सो मुसलाधार बरसने लगा कि रोड सब पर भर-भर छाती पानी लग गया। और वही में डायरेक्टर की लड़किया को प्रसव पीड़ा शुरू हो गया। गाड़ी-घोड़ा कुछ नहीं। संयोग से डायरेक्टर की छोटकी बेटी डाक्टरनी थी लेकिन उहो संग में नहीं। अब डायरेक्टर साहेब परेशान। तभिये ई तिन्नो लड़का वहाँ पहुँच गया। वर्षा में उको लेके कहाँ जाए ? कालेजे में उठा-पुठा कर लाया। अब उकी डाक्टरनी बहिनिया फ़ोन और कम्पुटर पर बताये लगी... ऐसे करो। वैसे करो। इधर दबाओ। उधर से उठाओ। समझिये कि लड़का सब पढाई किहिस इंजीनियरी का और करे लगा डाक्टरी। सब कुछ किया लेकिन प्रसव नहीं हुआ। फेर उ डाक्टरनी कहिस कि 'वेकुम' देना पड़ेगा। अब अमीर खान पूछा कि "ई वेकुम का होता है जी ?" तब उ कहिस कि 'ई ऐसा-ऐसा मशीन होता है बच्चा को बाहर खीचे का।' आमीर खान कहिस, "धत तोरी के ! ई कौन बड़का बात है ? हम तो इंजीनियरी का विद्यार्थिये हैं। ई मशीन तो हम तुरते बना देंगे।"
और ससुर लगा मशीन बनाए। ये लाओ, वो लाओ। और उधर उ बेचारी दरद से अधमरी बेसुध छट-पटा रही है। हमरे तो इतना गुस्सा आया कि क्या बताएं। उधर उ बेचारी प्रसव-पीड़ा से मर रही है और ई कमीना सब मशीने बना रहा है। इसी को कहते हैं कि "लंक जले तब कूप खुनाबा"। भोज के वक्त में कहीं दही जमाया जाता है ? लेकिन एक बात है। अमीर खान का दिमाग साला रॉकेट से भी फास्ट चलता था। और था पकिया इंजिनियर। झटपट में मशीन बना कर तैयार कर दिया। इतना ही नहीं... ऐन मौका पर लाइन चला गया तो चट-पट में एगो 'इनवर्टर' भी बना लिया। फेर उ बेचारी का प्रसव करवाया। तब सब का मन प्रसन्न हुआ।
लेकिन हम सोचे लगे कि उ तो अमीर खान पहिले से कुछ जोगार कर के रक्खा हुआ था तब ऐन मौका पर मशीन बना लिया। लेकिन बड़का पंडित रावण ब्रहमज्ञानी। सोचा कि बगल मे समुद्र हैये है। पानी का काम चलिए जाएगा। काहे खा-म-खा सोना के लंका को खुदवा कर मिटटी निकलवाएँ। ससुर पूरा लंका में एक्को कुआं-तालाब नहीं खुदवाया। और जब हनुमान जी लंका में आग लगा दिए तो सब घड़ा-बाल्टी लेके इधर-उधर दौड़े लगा। सब घर द्वार धू-धू कर के जलने लगा तब जा के रावण जल्दी-जल्दी कुआं खोदने का आर्डर दिया। जब तक कुआं खुनाए तब तक तो लंका-दहन हो चुका था। तभी से ई कहावत बना कि "लंक जले तब कूप खुनाबा"। मतलब कि जरूरत एकदम सिर पर सवार हो गया हो तो चले उसके समाधान का रास्ता खोजने। ऐसा नहीं होना चाहिए। रास्ता पहिले खोज के रखिये नहीं तो जरूरत के समय 'ठन-ठन गोपाल' हो जाएगा। समझे !!! आप 'लंक जले तब कूप खुनाबे' नहीं जाइयेगा।
*** ***
आने वाले वर्ष की मंगल कामनाएँ !
कथा के माध्यम से बहुत ही ख़ूबसुरती से आपने कहावत को प्रस्तुत किया है। शैली रोचक है।
जवाब देंहटाएंAaj ka desil bayna bhi lajawab raha.Dhanyawad.
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर प्रस्तुति । करणजी बधाई...
जवाब देंहटाएंखूबसूरत
जवाब देंहटाएंaag lgne par kua khudvane vali khavat
जवाब देंहटाएंko bhut hi rochakta se prstut kiya hai .
बढ़िया लगा। लंक जरे तब कूप मते खुनबाइएगा .. है .. न.. इसलिए अभीए से हैप्पी न्यू इयर का इंतजाम कर लिया जाय।
जवाब देंहटाएंआने वाला साल मंगलमय हो।
बहुत-बहुत धन्यवाद
जवाब देंहटाएंआपको नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं।
बहुत खूब, लाजबाब ! नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाये !
जवाब देंहटाएंआपकी ई पोस्ट भी हिला के रख दिहिस है।
जवाब देंहटाएं--------
संवाद सम्मान हेतु प्रविष्ठियाँ आमंत्रित।
साइंस ब्लॉगर्स असोसिएशन के पुरसकार घोषित।
बहुत खूब!
जवाब देंहटाएंनववर्ष की हार्दिक शुभकामनाये !
अब हम भी रावण वाली गलती कभी नहीं करेंगे करण जी ,लेकिन हम आपको आने वाले साल की खाली खूली शुभकामना नहीं भेजेंगे ,हमने बहुत बड़ा सा गिफ्ट आपके लिए रखा है ,जब हमारे यहाँ आईयेगा तो मिल जाएगा ही ,अच्छी चीजों के लिए थोड़ी मेहनत तो करनी पड़ेगी न
जवाब देंहटाएंनववर्ष की शुभकामनाएं...!!!
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