-- मनोज कुमार
“में आई कम-इन सर?”
“यस कम इन।”
“गुड मार्निंग सर।”
“मार्निंग”
“कैन आई सिट सर?”
“ओह यस-यस प्लीज ।..................अरे तुम ? अगर तुम अपने ट्रांसफर की बात करने आए हो, तो सॉरी, तुम जा सकते हो।”
“नहीं सर मैं तो...आपके...........।”
“देखो तुम जब से इस नौकरी में हो, यहीं, इसी मुख्यालय में ही काम करते रहे हो। तुम्हारे कैरियर के भले के लिए तुम्हें अन्य कार्यालय में भी काम करना चाहिए। और गोविन्दपुर में जो हमारा नया ऑफिस खुला है , उसके लिए हमें एक अनुभवी स्टाफ की आवश्यकता थी। हमें तुमसे बेहतर कोई नहीं लगा।”
“सर मैं तो इस विषय पर बात ही नहीं करने आया। मैं तो उसी दिन समझ गया था जिस दिन ट्रांसफर ऑर्डर निकला था – कि आपने जो भी किया है मेरी भलाई के लिए ही किया है। मैं तो कुछ और ही बात करने आया हूँ।”
“ओ.के. देन ... बोलो...............।”
“सर वो,.............थोड़ा लाल बत्ती जला देते । कोई बीच में न आ जाए। ”
“देखो तुम घूम-फिर कर कहीं ट्रांसफर वाली बात तो नहीं करोगे। ”
“नहीं सर। बिल्कुल नहीं। कुछ पर्सनल है सर।”
“क्या?”
“सर मेरे पिता जी काफी बूढ़े हो गए हैं। उनकी इच्छा थी कि मैं एक गाड़ी खरीदूँ और उन्हें उस गाड़ी में इस पूरे महानगर में घुमाऊँ।”
“तो इसमें मैं तुम्हारी क्या मदद कर सकता हूँ ?”
“सर ! बस आपकी ब्लेसिंग चाहिए। आप तो इसी महीने के अन्त में सेवानिवृत होकर चले जाएंगे। सुना है आपके पास एक गाड़ी है।”
“हां है तो। वो 80 मॉडल गाड़ी हमेशा गराज में पड़ी रहती है।”
“सर उसे .....आप ............।”
“अरे बेवकूफ वो तुम्हारे किस काम आएगी। पिछले चार सालों में उसकी झाड़-पोछ भी नहीं की गई है। उसे तो कोई पांच हजार में भी नहीं खरीदेगा। उससे ज़्यादा तो उसे मुझे अपने होमटाउन ले जाने का भाड़ा लग जाएगा। मैं तो उसे यहीं छोड़................।”
“सर मैं खरीदूंगा सर। आप बीस हजार में उसे मुझे बेच दीजिए।”
“पर...................लेकिन .......गराज..........नहीं ...नहीं।”
“सर। प्जीज सर। नई गाड़ी तो मेरी औकात के बाहर है। कम से कम इससे मैं अपने माता-पिता का सपना उनके प्राण-पेखरू उड़ने के पहले पूरा तो कर लूंगा।”
“यू आर टू सेंटिमेंटल टूवार्डस योर पैरेंट्स। आई शुड रिस्पेक्ट इट। ओ.के. ... डन। आज से, नहीं-नहीं अभी से गाड़ी तुम्हारी।”
“थैंक्यू सर।... पर एक प्रॉब्लम है सर।”
“क्या?”
“आपकों तो मालूम है कि मैं गाड़ी चलाना ठीक से नहीं जानता। नया-नया सीखा हूं। अब मेरे घर, माधोपुर से तो इस ऑफिस तक का रास्ता बड़ा ठीक-ठाक है, भीड़-भाड़ भी नहीं रहती, किसी तरह आ जाऊंगा। पर सर आप तो जानते ही हैं कि गोविन्दपुर का रास्ता....................... वहां तो शायद मैं इस कार को नहीं ले जा पाऊँगा।”
“दैट्स ट्रू। ब्लडी दैट एरिया इज भेरी बैड। पूरा रास्ता टूटा-फूटा है। उस पर से भीड़ भाड़, .... यू हैव ए प्वाईंट।...............मिस जुली.......जरा इस्टेब्लिशमेंट के बड़ा बाबू को ट्रांसफर ऑर्डर वाली फाईल के साथ बुलाइए।”
“थैंक्यू सर। गुड डे सर।”
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APNA BHALA DEKHTE HI SUB FISAL JAATE HAIN
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छा लिखा है।कितनी चालाकी से लोग अपने काम बना लेते है.......
जवाब देंहटाएंwah maja aa gaya.katha bahut achi lagi.Chalaki ki bhi koi seema nahi hoti.Aapka style pasand aya.Dhanyawad...
जवाब देंहटाएंआपकी यह रचना काबिले तारिफ है । बधाई ।
जवाब देंहटाएं... बहुत खूब !!!
जवाब देंहटाएंBaat banhi gayi..haldi lagi na phitkari!
जवाब देंहटाएंWaah...lajawaab...kya ghumaya aapne katha ko...is ant ki kalpana to koi nahi kar sakta....
जवाब देंहटाएंBahut hi sundar katha...
ऎसे लोगो से बचना चाहिये, मै इन्हे मिट्ठी छुरी कहता हु, ओर जो इन के हाथ लग जाये वो जन्म भर इन्हे नही भुलता, जबाब नही आप कीऒ इस सुंदर कहानी का, कहानी की कहानी ओर सबक का सबक
जवाब देंहटाएंBahut Achi aur rochak laghu kayha.
जवाब देंहटाएंजय हो ... ब्लेसिंग किस तरह से लिया जाता है कोई इन महानुभाव से सीखे।
जवाब देंहटाएंवाह क्या जुगाड़ है
जवाब देंहटाएंब्लेसिग से उद्धार है।
संवेदनशील रचना। बधाई।
जवाब देंहटाएंहा हा.हा. भाई मनोज जी कमाल कर दिता है तुस्सी घूम फिर के ट्रान्सफर रुकवा लिया और समझो तो पुरानी गाडी जो ५००० में न बीके उसके २०,०००० हजार मानो तो घुस देने का तरिका भी लाजवाब!!!
जवाब देंहटाएंऐसे लोगों का कोई काम नहीं रुकता, ब्लेसिंग हासिल कर ही लेते हैं।
जवाब देंहटाएंसंभवत: यही बाजारवाद और नवउपनिवेशवाद का अक्स है। कुछ लोगों की रायशुमारी में इसे आधुनिक समाज की जरूरत भी माना जा सकता है। कुल मिलाकर, आपकी रचनाओं के लिए आपको साधुवाद। और क्या कहँू?
जवाब देंहटाएंWAH WAH WAH..ISKO KAHTE HAI KHUD KA B BHALA KARNA AUR SATH ME DUSRO KA BHI...
जवाब देंहटाएंक्या अंत है ... और आज कल सच भी यही है।
जवाब देंहटाएंअच्छा व्यंग है ....... चालबाजी से लोग क्या क्या करवा लेते हैं ........... बहुत अच्छा लिखा है .......
जवाब देंहटाएं"नजर से क़त्ल कर दे जो उसे समशीर कहते हैं !
जवाब देंहटाएंनिशाने पे जो लग जाए, उसी को तीर कहते हैं !!"
धन्यवाद.... !!
waah !
जवाब देंहटाएं:)
Waah...lajawaab...kya ghumaya aapne katha ko...is ant ki kalpana main nahi kar sakta....
जवाब देंहटाएंबड़ा दिलचस्प तरीका ट्रांसफर रुकवाने का
जवाब देंहटाएंIt's a Great piece. Both in terms of message and in terms of style of saying...
जवाब देंहटाएंHow selfish this human being is ... O my God !!!
Bhai Sahab Sundar khaka prastut kiya hai aapne daftar ka..........
जवाब देंहटाएंDhanyavaad.
बहुत प्रतिभावान है, ट्रांसफर रुकना ही चाहिये! :-)
जवाब देंहटाएंअफसरशाही पर इससे शालीन कटाक्ष और क्या हो सकता है!
जवाब देंहटाएंआप भी कमाल करते हैं सर!
मुफ्त में यह ग्यान सभी को दे बैठे....!!
--धन्यवाद।
kya khoob likhate ho dekhane me bhi azeeb dikhate ho
जवाब देंहटाएंsahi parvesh prastut karti laghukatha.
जवाब देंहटाएंBahut shubhkamnayen.
Very nice article
जवाब देंहटाएंThanks for sharing information
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