-- परशुराम राय
कभी-कभी अकल घास चरने भी चली जाती है, मैंने सुना है, यदि बुरा न मानें आप, तो एक कदम और बढ़कर बोलूँ ? कहेंगे क्या ? उत्तर में मै सिर्फ इतना ही कहूँगा, सिर्फ इतना ही कि शायद अपने भी सुना है और उतनी देर तक "अकल मन्दे इशारा काफी" वाली कहावत को धैर्य की चहारदीवारी में सुरक्षित रखा जा सकता है । किन्तु यदि अकल मेन्डेक्स की टेबलेट्स की आदी बन जाय तब ?
तब तो मैं आपकों यही सलाह दूँगा कि आप अपनी इस लाड़ली से अपनी छाती पर सिल न मिले तो लोढ़ा ही रखकर कह दीजिए कि वह जाकर गोस्वामी तुलसी दास जी की राम कथा सुने और यदि कहीं वह अपने देश - प्रदेश की राजधानियों में भटक जाए, तब तो फिर बहुतों का कल्याण ही समझिए ।
आप समझते होंगे कि आपकी लाड़ली की इस दुर्दशा पर मैं खुश हूँ। कत्तई नहीं साहब, कत्तई नहीं । मुझे तो केवल रोना आ रहा है । यही नहीं, अपनी अश्रुसरिता में तैरते - तैरते थक गया हूँ और अब उसमें बह रहा हूँ, सिर्फ बह रहा हूँ । सूरदास जी के अन्धेपन पर विद्वत् समाज ने टीका लिखी कि "उर बिच बहत पनारे" और "कर कपोल भय कारे" से गोपियों के वियोग की पराकाष्ठा व्यंजित होती है । किन्तु उन विद्वत् टीकाकारों से आप कह दीचिए कि वे आकर मेरी दुर्दशा तो देख लें ताकि बेचारे सूरदास को विश्वास की कुर्सी मिल सके ।
कभी-कभी अकल घास चरने भी चली जाती है, मैंने सुना है, यदि बुरा न मानें आप, तो एक कदम और बढ़कर बोलूँ ? कहेंगे क्या ? उत्तर में मै सिर्फ इतना ही कहूँगा, सिर्फ इतना ही कि शायद अपने भी सुना है और उतनी देर तक "अकल मन्दे इशारा काफी" वाली कहावत को धैर्य की चहारदीवारी में सुरक्षित रखा जा सकता है । किन्तु यदि अकल मेन्डेक्स की टेबलेट्स की आदी बन जाय तब ?
तब तो मैं आपकों यही सलाह दूँगा कि आप अपनी इस लाड़ली से अपनी छाती पर सिल न मिले तो लोढ़ा ही रखकर कह दीजिए कि वह जाकर गोस्वामी तुलसी दास जी की राम कथा सुने और यदि कहीं वह अपने देश - प्रदेश की राजधानियों में भटक जाए, तब तो फिर बहुतों का कल्याण ही समझिए ।
आप समझते होंगे कि आपकी लाड़ली की इस दुर्दशा पर मैं खुश हूँ। कत्तई नहीं साहब, कत्तई नहीं । मुझे तो केवल रोना आ रहा है । यही नहीं, अपनी अश्रुसरिता में तैरते - तैरते थक गया हूँ और अब उसमें बह रहा हूँ, सिर्फ बह रहा हूँ । सूरदास जी के अन्धेपन पर विद्वत् समाज ने टीका लिखी कि "उर बिच बहत पनारे" और "कर कपोल भय कारे" से गोपियों के वियोग की पराकाष्ठा व्यंजित होती है । किन्तु उन विद्वत् टीकाकारों से आप कह दीचिए कि वे आकर मेरी दुर्दशा तो देख लें ताकि बेचारे सूरदास को विश्वास की कुर्सी मिल सके ।
लेकिन मुझे डर लग रहा है कहीं आप अपनी लाड़ली के वियोग में ठेले पर हिमालय काटकर न बेचने लग जायं । नहीं साहब, ऐसा मत कीजिएगा, कभी भी मत कीजिएगा । नहीं तो कोर्ट में महाकवि कालिदास आप पर अपनी पृथ्वी के मानदंड की मानहानि का दावा ठोंक देंगे, निश्चित ठोंकेंगे । और कहीं यदि उनकी अकल ठिकाने रही, तब तो भाई साहब, आफत ही समझिए । क्योंकि जब वे स्वर्ग से यहाँ तक के टी.ए./डी.ए.की माँग कर बैठेंगे, तो आप, आपका ठेला और आपके ठेले का हिमालय तीनों कम पड़ेंगे । बड़े मजे की बात तो यह है कि दासप्रथा के अभाव में आप तो यों ही बेकार सिद्ध हो जायेंगे ।
अजीब है – इस अकल में घास चरने का नशा भी है, साहब ।
अजीब है – इस अकल में घास चरने का नशा भी है, साहब ।
ऐसे ही एक बार विधाता की भी बुद्धि घास चरने निकल पड़ी थी । पक्षियों का सृजन – काल था । परिणाम जो हुआ, सामने है – बेचारी कोयल की कूक को गोदरेज की अलमारी में बन्द करके ताली थमा दी बसन्त को और हंस तथा बगुले की पहिचान मिला दी पानी मिले दूध में । अब आप हंस की उस दुर्दशा की कल्पना कीजिए – जब परीक्षकों की अकल भी अपने उसी पुराने धन्धे पर निकल पड़ी हो और वे शेष बचे जल को ही दूध मान लें, तब तो बेचारा हंस न तो हंस ही बन पायगा और न तो बगुला ही । इस पर यदि वह किसी फिल्मी वियोगिनी की पंक्ति दुहरा उठे – तोहरे कारन अपने देश में बलमु, हम हो गये परदेशी तो किमाश्चर्यम् । और कहीं यदि कोयल की अकल का धन्धा भी यही निकला, तब तो उस बेचारी की लुटिया ही डूब जाएगी, श्रीमान जी । क्योंकि क्षीर सागर में सोने से विष्णु को रक्तचाप की बीमारी का होना स्वभाविक है । बेचारे गरूड़ को उन्हें लेकर अश्विन कुमारों के पास जाना ही होगा । कचहरी भी खुलनी ही है । ऐसी परिस्थिति में गरूड़ को किसी न किसी को चार्ज देना ही होगा । इसके लिए महाराज गरूत्मन को काकभुशुण्डी से बढ़कर कौन योग्य मिलेगा?
इस पर यदि कौआ तुलसीदास की पंक्ति गा उठे "आज नाथ मैं काह न पावा" तो किमाश्चर्यम् ? बिरादरी जो ठहरी । धन्य हो जायगा न्यायालय, बाबू जी, भक्त शिरोमणि काकभुशुण्डी जैसै न्यायाधीश को पाकर । जंगल में मंगल हो जाएगा ।
देखा आप लोगों ने अकल का यह नशा ? होते सबेरे निकल जाती है । आती कब है ? जब दिन समाप्त हो जाता है ।
हा ! हा ! हा ! हा ! हा ! हँसी आ गयी, भाई । ऐसा आप न समझें कि मैं भी नशे में हूँ । तब आप कारण पूछेंगे । अच्छा होता आप इसे नशा ही मान लेते । लेकिन अच्छा रहेगा कि आप भी मेरी हँसी में सहभागी हो जायँ ।
आप भी जरा इस इतिहास के बदलते मौसम का आनन्द लें – आजकल सूर्य को एक नया शौक लग गया है – उसने पृध्वी का मन बहलाने के लिए लिंग परिवर्तन कराकर अपना बड़ा सुन्दर अबगुण्ठित स्वरूप बना रखा है । बेचारे चकवा और चकवी परेशान हैं और समय अपनी नपुंसकता की चिकित्सा कराने के लिए तांत्रिकों के घर डेरा डाले बैठा है ।
आप भी जरा इस इतिहास के बदलते मौसम का आनन्द लें – आजकल सूर्य को एक नया शौक लग गया है – उसने पृध्वी का मन बहलाने के लिए लिंग परिवर्तन कराकर अपना बड़ा सुन्दर अबगुण्ठित स्वरूप बना रखा है । बेचारे चकवा और चकवी परेशान हैं और समय अपनी नपुंसकता की चिकित्सा कराने के लिए तांत्रिकों के घर डेरा डाले बैठा है ।
इधर पूरब ने पश्चिम के कन्धे पर रामनामी दुपट्टा डालकर उसका जाप अपने हाथों में ले लिया है । उधर बेचारे भूषण की कबूतरी घोड़ी चोरी चली गयी, तब से वे औरंगजेब की कारा नाप रहे हैं । हनुमान को कालनेमि की रामकथा ने सम्मोहित कर लिया है । मकरभामिनी तक पहुँचने का योग कब आएगा, कुछ पता नहीं । तुलसी दास जी हैरान हैं । आखिर वे रामराज्य की प्रतीक्षा में कब तक बैठेंगे ? उपमन्यु प्रतिशोध की चिता पर बैठकर आचार्य धौम्य की प्रतीक्षा कर रहा है । ऐसे मौसम में यदि कृष्ण गीता से स्वर्ग – सोपान का निर्माण करें, तो किमाश्चर्यम् ?
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इति आश्चर्यम् !!
जवाब देंहटाएंAashchary janak aalekh!
जवाब देंहटाएंTHAND KE MAUSAM ME YEH LEKH PADKAR MAJA AA GAYA,ARTHATH GARMI KA EHSAS HO RAHA HAI.KIMASCHARYAM.
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर आलेख ।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंलेखक की सर्जनात्मकता उजागर होती ही है
जवाब देंहटाएंइस लेख को पढ़कर स्व० विद्यानिवास मिश्र जी की याद आ गई।
जवाब देंहटाएंवे भी बड़ी-बड़ी बातें सहज ढंग से कह जाते थे और हम आश्चर्यचकित हो बस सुनते ही रहते थे।
wah.....bahut zabardast lekh hai....aanand aaya ...badhai
जवाब देंहटाएंParshuram ji nischit roop se badhai ke hakdaar hai . Bahut Sundar.
जवाब देंहटाएंरचना अच्छी लगी ।
जवाब देंहटाएंस्रिजनशील सोच
जवाब देंहटाएंनई विचारोत्तेजक बात।
जवाब देंहटाएंअच्छा लिखा है .........
जवाब देंहटाएंKya comment dun is aalekh par..mujhe kuch samjh he ni aaya :(
जवाब देंहटाएंइतनी बढ़िया रचना पर मेरा ध्यान क्यों नही गया?
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर लिखा है आपने
बधाई!
बहुत खूब। आपकी भाषा शैली की दाद देनी पडेगी।
जवाब देंहटाएं------------------
ये तो बहुत ही आसान पहेली है?
धरती का हर बाशिंदा महफ़ूज़ रहे, खुशहाल रहे।
बेहतरीन शैली..रोचक पठन!!
जवाब देंहटाएंरचना बहुत अच्छी लगी।
जवाब देंहटाएंबेहतरीन शैली..रचना बहुत अच्छी लगी।
जवाब देंहटाएंmere liye samajhana thora kathin tha par bahut achchha laga.
जवाब देंहटाएंsunder ....
जवाब देंहटाएंsunder....
जवाब देंहटाएंmanu 'be-takhallus'