समय के साथ
-- मनोज कुमार
पिताजी ने कहा था – “बेटा जब बड़ा आदमी बन जाना तो अपनी आत्मकथा लिखना।” इस पदोन्नति के बाद तो गौरव काफ़ी बड़े पोस्ट पर आ गया है। काफ़ी बड़ा अधिकारी हो गया है। दो साल पहले पिताजी गुज़र गए। उनकी इच्छा पूरी करनी है। तो अब अपनी आत्मकथा लिख रहा है।
माँ ज़िन्दा है। आत्मकथा अपनी जननी से ही शुरु करता है।
माँ ने जन्म दिया। पाला, पोशा, बड़ा किया। इस लायक़ बनाया।
उफ़! इस बल्ब की रोशनी में ठीक से दिखता भी नहीं। पर्दे हटाने चल देता है। रोशनी भीतर आ गई। ज़्यादा साफ़ दिख रहा है। उसकी नज़र माँ पर पड़ती है, .. माँ सामने सड़क पार कर घर आ रही है। साथ में उसका बेटा बिट्टू भी है। उसे स्कूल से लाने गई थी। माँ उसका हाथ पकड़ रास्ता पार करा रही है। उसके बैग आदि अपने कंधे पर रख कर। उसके सिर पर माँ का आंचल है। उसे धूप न लगे। बिट्टू को कोई तकलीफ़ नहीं होने देती माँ।
गौरव को भी कहां होने देती थी कोई तकलीफ़। उसे भी तो इसी तरह उसने बड़ा किया। बड़ा बनाया। बच्चों का कितना ख़्याल रखती है माँ। समय के साथ-साथ गौरव बहुत बड़ा आदमी हो गया पर माँ... बिल्कुल भी नहीं बदली।
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सोमवार, 19 अप्रैल 2010
समय के साथ
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maa ki mahima to aprampaar hai..wo kaise badal sakti hai...
जवाब देंहटाएंhttp://dilkikalam-dileep.blogspot.com/
sashakt lekhan.
जवाब देंहटाएंyah katha sirf padh kar manan karne ke liye hai..... samay ke saath maan nahee badalee..... nahee kabhi badlegee !!!
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति....माँ कहाँ बदलती है? उसे देखने वालों की दृष्टि बदल जाती है...
जवाब देंहटाएंपर यहाँ गौरव की सोच नहीं बदली है....यही इस कहनी की सार्थकता है......इस लघु कथा के लिए बधाई ...
गौरव को भी कहां होने देती थी कोई तकलीफ़। उसे भी तो इसी तरह उसने बड़ा किया। बड़ा बनाया। बच्चों का कितना ख़्याल रखती है माँ। समय के साथ-साथ गौरव बहुत बड़ा आदमी हो गया पर माँ... बिल्कुल भी नहीं बदली।
जवाब देंहटाएंAankhen nam ho gayin..
बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंKaran Ji mai apki bato se sat pratisat shamat hun...maa jaise kal thi waise aj b hai aur kal b rahegi aur bhale he samay badalta rahe bt maa to maa he rahegee wo kabi ni badal sakti...
जवाब देंहटाएंManoj ji..ye laghukatha chhoti si hai bt bahoooooooooot pyari hai...meko maa ki yad aa gai padhkar.. Thanks
@ Rachna ji,
जवाब देंहटाएंlaghukatha chhoti hee hotee hai !
Dhanyawaad aapka kee aapne is laghu katha ko itnee gaharaaee se padha aur mahsoos kiya !!! aapke saath-saath tamaam paathakon ka bhi shukriya !!!
बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति....माँ कहाँ बदलती है? उसे देखने वालों की दृष्टि बदल जाती है...!
जवाब देंहटाएंअटल सत्य ..जैसे पूर्व से उगता है सूरज ...माँ पर कम शब्दों में लिखा गया बहुत सुंदर आलेख ....!!
जवाब देंहटाएंबेहतरीन ...।
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया सर ।
जवाब देंहटाएंसादर
माँ भला कहाँ बदलती है...?
जवाब देंहटाएंसशक्त सार्थक अभिव्यक्ति....
सादर..
हर माँ को परिभाषित करती हुई कथा, काश ! हर बेटा ऐसे ही माँ को परिभाषित कर उसकी कीमत को समझे तो फिर कुछ और ही दृश्य जो इस जगत का.
जवाब देंहटाएंअपने अन्दर हमेशा ममता का सागर समेटे हुए ......यही तो माँ है
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