शनिवार, 17 अप्रैल 2010

सारे तीर्थ बार-बार गंगासागर एक बार .......भाग -दो - कपिल मुनि

पिछ्ले पोस्ट सारे तीर्थ बार बार, गंगा सागर एक बार में हमने गंगासागर तीर्थ स्थल के यात्रा की चर्चा की थी। गंगासागर तीर्थ के साथ-साथ आदि संख्‍याचार्य कपिलमुनि का नाम भी समभाव से संलग्‍न है। भागवत के अनुसार भगवान कपिलदेव विष्णु के अन्यतम अवतार थे। कर्दम प्रजापति के औरस एवं मनुकन्‍या देवहुति के गर्भ से इनका जन्‍म हुआ था। नौ कन्याओं के बाद भगवान् कपिल मुनि का जन्म हुआ । ये आजन्म ब्रह्मचारी रहे। कपिल के आविर्भाव के समय ब्रह्मा ने कर्दम से कहा था हे मुनि! आपका यह पुत्र साक्षात ईश्वर के स्वरूप हैं। स्वयं भगवान माया का रूप धारण कर कपिल के रूप में आपके यहां अवतरित हुए हैं।

पद्मपुराण के अनुसार महामुनि कपिल को सांख्ययोग का प्रणेता माना जाता है। श्रीमद्भागवत में भी इस आशय का उल्लेख है। उनका जन्म बिन्दु सरोवर आश्रम में हुआ था जो गुजरात में स्थित है। ऐसा कहा गया है कि स्‍वयं ब्रह्मा ने कहा था, सांख्‍यज्ञान का उपदेश देने के लिए परब्रह्म ने स्‍वयं भगवान के सत्त्वअंश से जन्म लिया है। गीता (1016) में भगवान श्रीकृष्‍ण कहते हैं -

सिद्धानां कपिलो मुनिः।

अर्थात सिद्धगणों के बीच प्रधान। श्‍वेताश्‍वतर (5/2) उपनिषद में भी कपिल का नाम मिलता है। श्वेताश्वर श्रुति में कपिल को वासुदेव का अवतार कहा गया है।

ग्रंथों में यह वर्णित है कि महर्षि कर्दम ने मनुकन्या देवहुति को भविष्यवाणी करते हुए बताया कि मैं जब तपस्या में लीन रहूँगा तब तुम भगवान विष्णु को पुत्ररूप में प्राप्त करोगी। वो तुम्हें परब्रह्म के तत्व को समझाएंगे और तुम्हें मुक्ति (मोक्ष) का पथ बतलाएंगे। कपिल के जन्म के पश्चात कर्दम मुनि चले गए और देवहूति को बताकर गए कि उनका पुत्र कपिल ही देवहूति का उद्धार करेगा। सांख्ययोज्ञाचार्य कपिल ने अपनी माता देवहुति को सिद्धपुर में सांख्ययोग की शिक्षा दी थी। यह स्थान गुजरात के पाटन के नज़दीक है। संसार की सृष्टि व जीवात्मा का गूढ़ रहस्य का तत्व सांख्यदर्शन में दिया है।

महर्षि कपिल ने अपनी मां को अहं का भाव, अहंकार त्याग करने की दीक्षा दी। साथ ही भक्तिमार्ग पर अनुगमन करने को कहा और मंत्र प्रदान किया। भक्ति से शरीर और ज्ञान से मन की शुद्धि होती है। इससे आत्मज्ञान की प्राप्ति होती है। जब आत्मज्ञान प्राप्त हो जाए तो लक्ष्य यानी मोक्ष की प्राप्ति हो जाती है।

देवहुति भगवान विष्णु को पुत्र रत्न के रूप में पाकर धन्य हुई। उनके द्वारा बताए गए विधि अनुसार पूजा-पाठ, जप-तप, ध्यान-योग में रम गईं। इस प्रकार अपनी मां को योग, मीमांसा, तत्व आदि की व्याख्या करने के पश्चात कपिल मुनि ने आश्रम का त्याग किया और एकाग्रचित्त होकर तपस्या करने के उद्देश्य से पाताललोक (सागरद्वीप) चले आये। यहां पर अपना आश्रम बनाया।

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अतः कपिल एवं उनके द्वारा प्रतिपादित सांख्‍यदर्शन की प्राचीनता के विषय में कोई संदेह होना उपयुक्‍त नहीं है। सांख्‍यवादियों का मानना है कि कपिलमुनि ही विश्‍व के आदि विद्वान और उपदेशक हैं। वे स्‍वयंभु ज्ञानी थे। उनका कोई गुरू अथवा उपदेशक नहीं था। सत्त्‍वज्ञान लेकर ही उनका आविर्भाव हुआ था।

सुतंरा सांख्‍ययोग को विश्‍व का आदि उपदेश माना जाता है। प्राचीन सांख्‍यवादियों के बीच आसुरि पंचशिख आदि के नाम प्रसिद्ध है। रामायण में भी उल्‍लेख है कि कपिलमुनि पाताल लोक के क्षेत्र में तपस्‍यारत थे। वाल्मीकी रचित रामायण से साबित होता है कि गंगासागर क्षेत्र ही महर्षि कपिल का आश्रम था। अतः कलुषनाशिनी सुरेश्‍वरी गंगा का सागर में मिलन और नारायणावतार महायोगी, महातपस्‍वी, आदि महाज्ञानी कपिलमुनि के आश्रम वाले क्षेत्र गंगासागर में सर्वत्र मोक्ष है – जल, थल और अंतरिक्ष में।

9 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुंदर जानकारी दी आप ने कपिल मुनि जी के बारे
    धन्यवाद

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  2. जान्कारी के लिये अनेक धन्यवाद..

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  3. आपकी जानकारी से कपिल मुनि के बारे में बहुत कुछ जाने को मिला ... धन्यवाद ...

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  4. बहुत सुन्दर पोस्ट, लेकिन फ़ॉन्ट साइज़ छोटा होने के कारण पढने में दिक्कत हो रही है. थोड़ा सा बढा लें तो दोबारा पढने का आनन्द लिया जाये.

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  5. @ वन्दना अवस्थी दुबे
    फॉंट साइज ठीक कर दिया है।

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  6. babut badiya jankari di hai aapne, sir kya aap bata sakte hai sankhya darshan ki pustak kahan se prapt ho sakti hai. kripya rakesh.graphicdesigner8@gmail.com par batane ka kast karein. m sadaiv aapka aabhari rahunga.

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