मार बढ़नी............ एहन-एहन टोटमा (झार-फूँक) के। ई कौनो बात हुआ.... ? हमारा तो देह झरकता है..... ऐसन-ऐसन बात से। धत तोरी के....... हम दुआ-सलाम भी भूल गए पित्त के मारे। राम-राम !! आप भी का कहते होंगे कैसन भुच गंवार है...... !
उ दिन का खेले ऐसन था..... कि का कहें ! हम तो फिर भी अपना गुस्सा संभाल लिए.... । आप रहते तब तो पता नहीं का से का हो जाता... । अरे उ पेठिया पर वाला चंगेरी लाल है न..... मरदे ! उ आदमी है कि पायजामा पता नहीं... ! और उ की लुगाइयो वैसने ढोलक है। आठ साल की गिरहस्थी में आधा दर्ज़न पार हो गया और आठम बार छिटखोपरी वाली का पैर फिर भारी था।
छः बेटी पर से पछिला बेटा, खुरचन साल भर का हो गया था। ई बार पटकन झा पंडी जी पहिलहिये सगुन उचार दिए थे.... "आठम संतान भगवान कृष्ण जैसे चंगेरी लाल और छिटखोपरी वाली का सारा कष्ट दूर कर देगा। ऋण-कर्जा सब चुक जाएगा..... अन्न-धन ऐसे बरसेगा कि लछमी द्वार झूलेगी... ! ई सात पुरखा को उद्धार करने वाला महा-परतापी होगा ! लेकिन एकही गड़बड़ है..... जनम से पहिलही ई को कालसरप का भयंकर जोग लग रहा है। सातम चढ़ते ग्रह नहीं कटाया तो भारी मुश्किल हो जाएगा।"
"आ...हा... हा.... जो रे देवा.... ! भगवानो कैसन निरदई होते हैं... रे बाबू... ! भविष इतना उज्जल दिए ई बालक को लेकिन ग्रह लगा दिए गर्भे में। अब कौन जतन करे रे देवा..... !" चंगेरी लाल की अम्मा सुथनिया वाली दहार मार के रो पड़ीं। छिटखोपरी वाली की आशा से चमक रही आँखों से भी गंगा-यमुना चल पड़ीं । गला भर गया था और झुकी हुई नजरें "भविष्य" पर टिक गयी थी। चंगेरी लाल माथा पर हाथ धरे टुक-टुक पंडीजी का मुँह निहार रहा था। कभी-कभी छिटखोपरी वाली से भी आँखें मिल जाती थी और दुनु जोड़ी आंख्ने फिर तारनहार पर अटक जाती।
आखिर में पटकने झा आस-भरोस दिलाये। कहे, "ऐ चंगेरी लाल ! धैरज रखो... ! सब समस्या का समाधान है। अरे समाज में लोग रहता है काहे... ? एक-दूसरे के काम नहीं आया तो धिक्कार है ऐसन समाजी को। दोहाई सतगुरु के.... ! हम अपना सारा तंतर-मंतर झोंक देंगे। कालो से लड़ कर लायेंगे ई बालक को।" पटकन झा के लाल-लाल भंगियाये आँखों से साच्छात ब्रहमतेज निकल रहा था। बेचारा चंगेरी लाल अपना माथा का गमछी खोल कर सबा रुपैय्या के साथे पंडी जी के चरण में रख दिया। छिटखोपरी वाली भी किसी तरह ठेहुनिया रोप कर पंडीजी के पैर पर आंसू गिराई। सुथनिया वाली तो पंडीजी के चरण से लिपट कर फिर लगी गला फारे, "पंडी जी ! अब हमरे कुल के उद्धार आपही के हाथ में है..... !!"
समय जाते कौन देरी.... ? छिटखोपरी वाली का सातम महीना चढ़ गया। बेचारा चंगेरी लाल कौड़ी-कौड़ी जोर का पूजा पाठ और दच्छिना का जोगार किया। अंधेरिया पख शनिचर के भरी दुपहरिया में पटकन झा पंडीजी बड़की पोखर पर पूजा शुरू कराये। हम आ रहे थे खिलहा चौरी से। धूप बहुत कड़ी थी सो पोखर के भीरा पर पीपल गाछ के छाँव में बैठ गए।
दुन्नु परानी के हाथ में पान-सुपारी देकर पंडी जी संकल्प कराये। फिर चंगेरी लाल के हाथ में काला धागा पकडाते हुए बोले, "आँख बंद कर लो और कर जोर कर ई धागा से अपनी लुगाई को पहिले नौ फेरा बांधो। हम मंतर शुरू करते हैं। अनुष्ठान के बीच में कौनो हालत में रुकावट नहीं होना चाहिए!" पंडी जी का मंतर शुरू हुआ। छिटखोपरी वाली खुरचन को गोद में लेके बैठ गयी और चंगेरिया लगा काला धागा ले कर लुगाई का फेरा लगाए।
इधर खुरचन चुप-चाप गोद से ससर गया। छिटखोपरी वाली देखी तो... मगर पूजा के बीच में बोले कैसे... ? खुरचन को आजादी मिली तो खेले लगा पोखर के पानी से। छपा....छप... ! छपा...छप !! चंगेरी लाल तो आँख मूंद कर फेरा लगा रहा था मगर छिटखोपरी वाली रह-रह कर उचक रही थी...... लेकिन बीच में बोले से ओझाई चूक जाएगा न... फिर द्वार पर लछमी कैसे झूलेगी ? कुल का उद्धार कैसे होगा ??
छपा....छप....! छपा....छप... !! साल-डेढ़ साल का बच्चा का बुझे ? खुरचन को मजा आने लगा। बेचारा एक डेग पानी में और बढ़ गया। अब और मजे से हाथ-पैर पटक के लगा खेले। बीच-बीच में हों...हों.... हैय्याँ.... किये जा रहा था। राम जाने तभी क्या हुआ.... कि खुरचन चित्ते गिर पड़ा पोखर में। एक बार अक्खें...अक्खें.... कर के रोया और फिर.... ! आ... हा.... हा.... ! बेचारा निर्बोध बच्चा को लगा नाक-मुँह में पानी भरे। छिटखोपरी वाली का कलेजा मुँह को आ गया... ! उ पंडी जी के 'इरिंग-भिरिंग' के बीचे में चिल्ला दी, "खुरचन रे...... बाबू हमरा.... !!" उठ के दौर पड़ीं उधर !
उ तो संयोग कि झींगुर दास बगले में भैंस को नहला रहा था। धर-फर में चार कदम पलटा और गोता लगा के खुरचन को छाती से सटाए ऊपर हुआ। आगे छिटखोपरी वाली भागी। पीछे चंगेरी लाल और उ के पीछे पटकन झा। हम भी भीरा पर से दौरे। एकाध गो और भैंस वाला सब आ गया। झींगुर दास खुरचन को भीरा पर लेटा कर लगा पेट दबाये। बुल से पानी का धार छूटा मुँह और नाक से... ! संयोग कहिये कि नाक मुँह में बालू-कीचर नहीं गया था। फिर झपसी को पता नहीं का सुझा... खुरचन का दोनों हाथ पकड़ा लगाया चक्कर-घिरनी के तरह नचाये। दुइये मिनट में वोये... वोये.... गुर्र..... वोये....वोये की आवाज़ हुई और खुरचन के मुँह से रहा सहा पानी गाज-पोंटा के साथ निकल गया।
गाँव-टोल से भी लोग दौरे चले आये। छिटखोपरी वाली खुरचन को गोद में लिए बौआ रे... बाबू रे... कर रही थी। चंगेरी लाल गट-गट ताके जा रहा था। तब झींगुर दास का पारा गरम हो गया, "तुम लोग धिया-पुता को लेकर भी खेल करता है। ई दूध के बच्चा को पोखर पर काहे लाया और लाया तो संभाल के काहे नहीं रखा..... ?" चंगेरी लाल नौबत समझाना चाहा... "असल में होने वाले बच्चा का ग्रह वाली बात थी...... " लेकिन झींगुर दास का होंठ तो गुस्सा से फरफरा रहा था। हमको भी तैस आ गया। हम तो संभाल लिए। लेकिन झींगुर दास गरजा... "हैं ! तुम लोग नाटक करता है। 'गोद का बच्चा डूबा जाए.... पेट वाले के लिए ओझाई....' !"
अब तो ले रे तोरी के...... ! उहो बखत में सब का हंसी छुट गया। खुरचन माँ की छाती से लगे आँख मिलमिला रहा था। हम भी अपना भरास निकाले, "एकदम ठीक कहते हैं झींगुर दास। अभी जो गर्भ में है उसका कालसर्प कटवाने आये थे और गोदी के बच्चा को छोड़ दिए काल के हवाले। ई तो सच में वही बात हो गया, "गोद का बच्चा डूबा जाए.... पेट वाले के लिए ओझाई.... !"
खैर झींगुर दास के परतापे खुरचन बेचारा बच गया लेकिन चंगेरी लाल और छिटखोपरी वाली के दिमाग की बलिहारी एगो कहावत बन गया.... "गोद का बच्चा डूबा जाए.... पेट वाले के लिए ओझाई.... !" अर्थात "जो हाथ में है उसका नाश देख रहे हैं और जो होगा या नहीं होगा उसके पीछे प्राण गंवा रहे हैं।" समझे... ? तो अब आपके सामने भी कोई निश्चित को छोड़ कर अनिश्चित के पीछे भागे तो झींगुर दास का कहावत याद रखियेगा.... "गोद का बच्चा डूबा जाए.... पेट वाले के लिए ओझाई.... !"
लाजवाब!
जवाब देंहटाएंविषय को कलात्मक ढंग से प्रस्तुत करती है ।
जवाब देंहटाएंफिर से एक अच्छी प्रस्तुति.
जवाब देंहटाएंनिश्चित को छोड़ कर अनिश्चित के पीछे भागे तो झींगुर दास का कहावत याद रखियेगा.... "गोद का बच्चा डूबा जाए.... पेट वाले के लिए ओझाई....
जवाब देंहटाएंबिल्कुल .. यह तो याद रखनेवाली बात है ही !!
शान्दार पोस्ट .
जवाब देंहटाएंबहुत ही बढ़िया और शानदार प्रस्तुती!
जवाब देंहटाएंRam Ram Karan Ji...
जवाब देंहटाएंBahute khub kah gaye Jhingur das..गोद का बच्चा डूबा जाए.... पेट वाले के लिए ओझाई....
Ajkal to log pandit par inna bharosa karne lage hai ki ka kahe...kucho prob hua ni ka dore dore pandit ke pass bhage chale jate hai....khud kosis ni karenge prob solve karne ka...humko to aisan logo par pit chadh jata hai...
Aj ka e desil bayna me humko apka sujhao bahute acha laga "जो हाथ में है उसका नाश देख रहे हैं और जो होगा या नहीं होगा उसके पीछे प्राण गंवा रहे हैं।"
बहुत बढ़िया प्रस्तुति.....कहावत को बहुत सटीक कथा से समझाया.....
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