-- करण समस्तीपुरी
"आह.... भगवान करे, यजमान बढे ! दही-चूरा पर हाथ चले !! आज हमरा मन एकदम तिरपित है। बाते ऐसन है कि सुन कर आपका भी मन थई-थई हो जाएगा।
जुलमी काका याद हैं न... ! उनके बड़का बेटा बकरचन भैय्या... ? गए दिनों उनकी बारात गए रहे। वैसे नाम तो जुलमी काका ने रखा था वक्रचन्द्र लेकिन गाँव का बुरबक आदमी सब बकरचन कर दिया। बकरचन भैय्या पढ़े-लिखे में शुरूये से होशियार रहे। पोलटेकनिक पढ़ के पटना शहर में झंडा गार दिए। पूरा पी.डब्ल्यू.डी के इंजीनियरी में ई का कौनो जोर नहीं था। ऊपर से चौबीस साल के गवरू जुआन। देहाती भैंस के दूध पर पोसया देह... ऐसा लाल बिन्द कि एक सींक मार दे तो बुल से खून फ़ेंक दे।
ऐसन रूप-गुण के संपन्न कि एगो पटनिया साहेब के लड़की रीझ गयी। उहो लड़की का थी, समझिये गोरी मेम। जुल्फी कटा के गोर-नार, सिन्दुरिया ठोर और बिल्लौरी आँख पर चश्मा भी लगाती थी। हम एक बार मिलिट्री भर्ती में दौरे खातिर दानापुर गए रहे तो बकरचन भैय्या दिखा दिए रहे.... "उहे तोहरी भौजी होगी !"
भैय्या सहिये कहे रहे। पछिले लगन में दुन्नु के जोरी-बंधन हो गया। तिलक में साहेब के यहाँ से ट्रक भर के इतना समान उतरा कि जुलमी काका तो ख़ुशी के मारे जुलुम ही ढा रहे थे। सबा सौ लोग के बराती साजे। पहलेजा घाट से मोटर-नाव से पार कर घाट उतरे थे। उहाँ से साहेब गाड़ी भेजे रहे। खेप-खेप में सब बराती जनवासा पहुंचे।
ओह तोरी के... मारो जांघ में भोथहा कुल्हाड़ी... ! बारात के स्वागत का ऐसन तैय्यारी कि का बताएं...! ई विशाल सामियाना-कनात में रंग-बिरंगा बिजली से ऐसे चकचका दिए रहे कि आँखे चोंधिया जाए। पंडाल में घुसे नहीं कि एक-एक बरियाती के हाथ में शरबत का बोतले थमा दे। नकछेदिया तो एक्कहि घूंट लिया और "बाप रे... ! गला जल रहा है.... !!" कह के फ़ेंक दिया बुरबकहा। हम तो एगो बोतल इधर ख़तम कर के दोसर लाइन मे घुस कर एक और बोतल चट कर दिए।
बाजा पर गाना चल रहा था, 'रसगुल्ला घुमाई के मार गयो रे...!' हम कहे रसगुल्ला घुमाई के क्या... 'रसगुल्ला खिलाई के मार गयो रे... !' बरियाती-सरियाती सब ठाठ के हंस पड़े थे। सच्चे कौनो ऐसा पत्तल नहीं रहा जिस पर दू-चार गो सिस्पेंज और गुलाब-जामुन नहीं लुढ़क रहा हो। दही-जलेबी में तो बराती को तौल दिए थे।
बिहान होके भातखई में तो कितने लोग आये भी नहीं। खखनु राय, झुरुखन महतो और फुचाई भगत तो भर दिन लोटा लेके गाछिये अगोरे रहे... ! हरि गंगा॥ अरे गंगा से याद आया...... ओह ! दीघा घाट से मरवा के लाये थे, येह... बड़क-बड़का रोहू आ मांगुर... ! उन्ह्हूँ... ! उ का लहसुनिया गंध से अभियो नथुना फूल रहा है। दही तो ऐसन छहगर था कि काट के फ़ेंक दें तो दीवाल में सट जाए। ऊपर से जानना सब का गाली-गीत, "ई समधी भरुआ को जूता नहीं है.... !!"
लगन के घर में बड़ा उछाह रहता है। मगर बेटी बियाह के अंत में बड़ी मर्मस्पर्शी बेला आ जाती है। भातखई, चुमावन सब कुछ हुआ। अब बारी थी विदाई की। भौजी की महतारी तो कबे से सिसक रही थी। चुमावन में और कितनी संगी-बहिनपा की आँखें गीली हो गयी। मगर भौजी के मुँह तो लगन के ख़ुशी से दमक रहा था। घोघो नहीं तानी थी। रह-रह के बकरचन भैय्या भी भौजी के चन्द्रानन का दर्शन कर लेते थे। इधर चुमावन हुआ उधर मोटर वाला हरहरा दिया... !
बाहर मोटर का भोपू और अन्दर जनानी सब का दहार.... ! भौजी की महतारी कहे जा रही थी, "बाबू गे... सोना के कैसे - कैसे पोसे हम...... हमरी फूल सी गुड़िया कैसे रहेगी रे बाप....! चाची-भौजी, मौसी-मामी सब गला मिल के चिग्घार रही है... मगर भौजी तो भैय्या के दुपट्टा से गठजोर करे चमक रही थी। भैय्या कुछो कान में कहे तो मुस्किया भी दी थी एक-दो बार !
जैसे ही मोटर तक पहुंची तो आई-माई का रोना और जोर पकड़ लियासब उकी देह झकझोर-झकझोर के रोये। मगर भौजी सच्चो में बहुत समझदार थी। भौजी को डर कि कहीं अल्पना मार्किट वाला ब्यूटी-पार्लर के मेहनत पर पानी और बनारसी सारी पर सिलवट न पड़ जाए। बोली, "ऐ मम्मा... ! बी केयरफुल... म़ोम ! आई विल कम सून... ! हेय... डैड... टेक केयर ऑफ़ मम्मा न... !! सी इस बिइंग सो इमोशनल..... ! वक्रचंद्र, मेरा पर्स पकड़ना यार... !"
"आहि रे बा... ! दुल्हिन के अरिजन-परिजन सब रो-रो के बेहाल हैं और ई तो अंग्रेजी बक रही है।" हमरे बगल में खड़ा फगुनी दास बोला था। हम भैय्या के बगल में सड़क गए। सच्चे...! भौजी को छोड़ के सब जानना ठुहुंक-ठुहुंक के रो रही थी। लेकिन तभिये एगो अधवयस जनानी भौजी के बहिनी को डांटते हुए बोली, "अ... दुर्र... ! काहे गला फार रही हो... ? हम लोग जिसके लिए रो-रो के आँख सुजायें उ को देखो कितने मजे से मोटर में बैठ रही है... एक बूँद आंसू तक नहीं टपकाई... ! कहता है नहीं कि जिसके लिए रोयें, उसके आँख में आंसुये नहीं... !!" इतना सुनना था कि झमेलिया थपरी बाजा के हिहिया दिया। हा...हा..हा... !
इधर बकटू झा की भी झड़ी हुई बतीसी खिल गयी। बुढौ हमरे बुझा के कहे लगे, "खे...खे...खे... ! बौआ ! बात बुझे न... ! जो हो लेकिन पटनिया लोग के बात-विचार में कौनो जोर नहीं है। देखा विदाई बेला में भी उ जनाना कैसे टिका के कह गयी, 'जिसके लिए रोयें उसके आँख में आंसुये नहीं... !' लेकिन बातो सच है। अरे सारे अरिजन-परिजन तो बकरचन की लुगाइये के लिए न रो रहे थे कि अल्हड़ जुवती है। सब दिन पटना शहर में खाई-खेली... ससुराल में कैसे बसेगी... और बहुत तरह की बात। लेकिन देखो उको... रोये का.... ? इंगरेजी बोल के हाथ हिलाई और बकरचन को थैला थमा कर मोटर में बैठ गयी। तब ठीके न कही बेचारी, 'जिसके लिए रोयें उसके आँख में आंसुये नहीं... '!"
अब उ जानना के कहवत और बकटू झा की बात आप बुझे कि नहीं लेकिन इतना बुझ लीजिये कि "जिस व्यक्ति के लिए आप हरसंभव चिंता, श्रम या शुभेच्छा कर रहे हैं और उसको खुद इस की परवाह नहीं हो तो ई कहाबत कह के आराम से बैठ जाइयेगा कि "जिसके लिए रोयें उसके आँख में आंसुये नहीं... !"
अच्छी प्रस्तुति। कई ऐसे शब्द अपने ठेठपन के साथ प्रकट हुए हैं,जो प्रयोग में कम होते जा रहे हैं।
जवाब देंहटाएंअच्छा लगा। अपने इलाके के कई शब्दों से दुबारा रूबरू होना सुखद अनुभव रहा।
जवाब देंहटाएंवाह करण जी मज़ा आ गया। लगता है विवाह-बारात का वर्णन करने के आप विशेषज्ञ हैं। ऐसा चित्र खींचे है कि लगा ऊ बियाह में हमहूं ठाढ़े हैं। का कहें आपकी लेखनी का कमाल पढ के त मन भर गया।
जवाब देंहटाएंई जो बात-कथा में हर सप्ताह एक ठो नया देसिल बयना पेश कर रहे हैं उसके लिए आपको सलाम!
आज की प्रस्तुति भी बहुत सुंदर रही .. ऐसे हालत अक्सर आ जाते हैं .. कि हम जिनके लिए रोवें .. उनके आंख में आंसू ही नहीं होते .. क्या किया जाए इस मोह ममता का !!
जवाब देंहटाएंprantiy bhasha kee mithaas alag hee hai...par kai shavd samajh ke bahar hai andaz hee lagana padta hai.....
जवाब देंहटाएंसंगीता जी की बात वाजिब है कि हम जिनके लिए रोवें .. उनके आंख में आंसू ही नहीं होते .. क्या किया जाए इस मोह ममता का !!
जवाब देंहटाएंऔर करण जी अपनत्व जी की बात पर ग़ौर किया जाए kai shavd samajh ke bahar hai andaz hee lagana padta hai.....(कई शब्द समझ के बाहर है अन्दाज़ ही लगाना पड़ता है)
अब ऐसे शब्द जो शिक्षामित्र जी के शब्दों में ठेठपन के साथ लिखे हैं उसका शब्दार्थ भी दे देते तो अच्छा होता।
बहुत ही बढ़िया ये देसिल बयना ...कहावत समझाने में आपका कोई जवाब नहीं....
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी प्रस्तुति। बड़ी रोचकता, सरलता और मज़ेदार प्रसंग के साथ आपने देसिल बयना / स्थानीय कहावत को प्रस्तुत किया है। आप बधाई के हक़दार हैं।
जवाब देंहटाएंबहुत ही बढ़िया ये देसिल बयना. कहावत समझाने में आपका कोई जवाब नहीं.
जवाब देंहटाएं"ऐ मम्मा... ! बी केयरफुल... म़ोम ! आई विल कम सून... ! हेय... डैड... टेक केयर ऑफ़ मम्मा न... !! सी इस बिइंग सो इमोशनल..... ! वक्रचंद्र, मेरा पर्स पकड़ना यार... !"
जवाब देंहटाएं"आहि रे बा... !
ha ha ha ha ha ha ...
pahli bar ladki ki vidai par inni hasi aa rai hai..vidai ke nam par he aankhe bhar aati hai aur Karan ji ap hai ki aj vidai par b hasa he diye....
Bahot he sandar hai aj ka to desil bayna..bahute maja aa gaya padhkar :) Hasne Hasane ke liye bahute bahute dhanyawad ....isi bat par ego bar aur hasiye dete hai...ha ha ha ha ha ha ha he he he he he
achha laga...apne chhetra ki bhasha me shadi or bidaii ka emotional drama...kuchh shabd vakai...desipane ka gehraii se ehsaas kara jate hain...aise hi likhte rahiye..
जवाब देंहटाएंशानदार प्रस्तुति..अपनी तरफ के ठेठ शब्द सुनकर बड़ा सुकूनदायी लगा.
जवाब देंहटाएंबहुत ही बढ़िया ये देसिल बयना ...कहावत समझाने में आपका कोई जवाब नहीं....
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी प्रस्तुति। अपने इलाके के कई शब्दों से दुबारा रूबरू होना सुखद अनुभव रहा।
जवाब देंहटाएंशानदार प्रस्तुति!
जवाब देंहटाएंअरे वाह बहुत शानदार- जानदार पोस्ट.
जवाब देंहटाएंबड़ी रोचकता और मज़ेदार प्रसंग के साथ आपने स्थानीय कहावत को प्रस्तुत किया है। आप बधाई के हक़दार हैं।
जवाब देंहटाएंBahot Bahot badhai karan ji
जवाब देंहटाएंApke likhe ka andaz kabile tarif hai..Bahut khub likha hai apne..Dhanyabad
मज़ा आ गया,बहुत अच्छी प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंसभी पाठकों का हृदय से आभार ! आपका प्रोत्साहन ही हमारी पूजी है !! आप पढ़ते हैं इसीलिए हम लिख पाते हैं ! अन्यथा लिख के क्या होगा..... "जिसके लिए रोयें उसके आँख में आंसू ही नहीं...!!" धन्यवाद !!!
जवाब देंहटाएंBahot he sahi kahawat hai aur kahawat ko samjjane ka tarika usse b lajawab, pahli bar is bolg par desil bayna padha aur padhkar badi prasanta hui..
जवाब देंहटाएंजीवन का सजीव वर्णन, आभार।
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गुफा में रहते हैं आज भी इंसान।
ए0एम0यू0 तक पहुंची ब्लॉगिंग की धमक।
Very Interesting and according to the present situation of the society. Thank a lot.
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंbekar time barbad kiya, ye likh ke, isi liye bihar peechhe hai... kuchh aage badhane ki baat nahi, wahi puraani bakwaas karke khush ho gaye..., kuchh naya socho jo bihar ko aage badhaye...
जवाब देंहटाएंbekar time barbad kiya, ye likh ke, isi liye bihar peechhe hai... kuchh aage badhane ki baat nahi, wahi puraani bakwaas karke khush ho gaye..., kuchh naya socho jo bihar ko aage badhaye...
जवाब देंहटाएं@ Rahul
जवाब देंहटाएंkuchh aap sujhaaye
pragati kaa rastaa dikhaaye
taki ham aap se kadam taal milaaye
@ Rahul
जवाब देंहटाएंkuchh aap sujhaaye
pragati kaa rastaa dikhaaye
taki ham aap se kadam taal milaaye