बुधवार, 26 मई 2010

देसिल बयना - 31 : बूरे वंश कबीर के उपजे पूत कमाल

-- करण समस्तीपुरी

गाँव-घर में एगो फकरा बड़ा प्रचलित है, 'कबीर दास के उलटे वाणी ! आँगन सूखा, भर घर पानी !!' लेकिन जो कहिये कबीर दास का सब बाते अजगुत (अद्भुत ) होता था। जो बोल दिए उका अर्थ अद्भुत ही होगा। एक बात था, कबीर दास फाकमस्ती में जीए मगर कौनो राजा-रजवारा का दरबारी नहीं खटे। केकरो ठाकुरसुहाती नहीं किये। जो कहे सो खरे-खरे। कबीर दास और उनका बेटा कमाल का एगो किस्सा सुनिए। हमको स्थल पर वाला ढकरू महंथ कहे रहे थे।


एक दिन कबीर दास का बेटा कमाल संत जी के पास बैठा। बार-बार उ कुछ पूछे का हिम्मत करे, मगर बात हलक से निकले नहीं। काबीर दास तो साधे जोगी थे। तुरत भांप गए। पूछे, "का बात है बेटा कमाल ? लगता है तुम्हारे मन में कौनो चक्करघिरनी चल रहा है ?" कमाल कुछ हरबराया। कबीर दास उको समझाए, "अरे ! हरबराओ नहीं। हम तो तुम्हारे बापे हैं। कहो-कहो...! आखिर बात का है ?"


कमाल लाजे मुरी घुमा कर बोला, "बाबू जी ! उ का है कि हम ब्याह करना चाहते हैं !" कबीर दास बोले, "धत तोरी के... ! ई कौन बड़का बात हुआ... ? कौनो लड़की-लुगाई देखा है का... ? नहीं देखा है तो देखो लो... जो जांचे-रुचे उस कर लो। इहाँ कोनो तिलक-दहेज़ आ जात-पांत का झंझट थोड़े है कि तुम हम से कहते हुए इतना घबरा रहे थे।"


कमाल फिर सामने में मुरी झुकाए बोला, "उ सब तो ठीक है बाबू जी ! मगर ब्याह करें किस से ?" कबीर दास बोले, "काहे ई धरती बालिका-बिहीन हो गयी है का... ?"


कमाल बोला, "उ बात नहीं है न... ?" कबीर दास बोले, "ई बात नहीं है... उ बात नहीं है... तो बात है का ?


कमाल बोला, "बाबूजी ! आप भी कभी-कभी जड़ खोदियाने लगते हैं... ! अरे... शास्त्र-पुराण में कहा है नहीं... और आप भी तो कहते हैं, 'औरत-औरत एक है.... सब माँ समान है।' अब आप ही बताइये कि सब माँए समान है तो ब्याह किस से करें?"


कबीर दास ठठा कर हँसे और कहे, "धर बुरबक... ! तुम तो कौनो करम का नहीं निकला... !" और फिर एगो दोहा गढ़ दिए,


"बूरे वंश कबीर का उपजे पूत कमाल !


आधा तो कबीरा हुआ, आधा हुआ कमाल !!"


ढकरू महंथ ई किस्सा तो कह दिएसब कुछ समझे मगर ई दोहा काहे कहे ई हमरे पल्ले नहीं पड़ा। फिर हम पूछे। तब महंथ जी कहिन, "अरे कबीर दास जी की वाणी बड़ी गूढ़ होती है। अब देखो उ में का मर्म छुपा है। सतगुरु साहेब कहते हैं, 'आधा तो कबीरा हुआ... आधा हुआ कमाल !' आधा कबीरा... मतलब उस मे कबीर का संस्कार है... तभिये तो उ सभी औरत को माँ समान समझता है। मगर उसकी सांसारिक तृष्णा मरी नहीं है... सो बेचारा ब्याहो करना चाहता है। इसीलिए बेटा कमाल कौनो करम का नहीं रहा... ! उस में तृष्णा है... सो उ कबीर के आध्यात्मिक विरासत को भी नहीं बढ़ा सकता और संस्कारवश ब्याह करने में दुविधा है तो आनुवंशिक विरासत भी नहीं बढ़ा सकता.... ! तो हुआ न, "बूरे वंश कबीर का उपजे पूत कमाल !'


हम कहे, "हूँ।" तब फिर महंथ जी बोले, कि तभिये से कबीर दास का ई वाणी कहावते बन गया। जब भी कोई दुविधा में होता है और उस दुविधा में न इधर का रह पता है न उधर का... तो लोग बरबस कह बैठते हैं,


"बूरे वंश कबीर का उपजे पूत कमाल !
आधा तो कबीरा हुआ, आधा हुआ कमाल !!"


तो यही था आज का देसिल बयना। अब आपको कैसा लगा ई तो टिपियाने से ही पता चलेगा। दोहाई सतगुरु की।

12 टिप्‍पणियां:

  1. पढ़के ठीके लगा। ई फकरा के ऊपर और कई दंत कथायें हैं।

    सादर
    श्यामल सुमन
    09955373288
    www.manoramsuman.blogspot.com

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  2. बहुत अच्छी प्रस्तुति। सादर अभिवादन।

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  3. हंसी-हंसी में बहुत कुछ कबीर समझा गए और आप भी।

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  4. आपके लेखन के तो दीवाने हैं साहिब.. एकदम खरा-खरा..

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  5. फिर से एक अच्छी प्रस्तुति।

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  6. "बूरे वंश कबीर का उपजे पूत कमाल !
    आधा तो कबीरा हुआ, आधा हुआ कमाल !!"
    ...सुन्दर साहित्यिक प्रस्तुति के लिए हार्दिक शुभकामनाएँ

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  7. वाह...ये देसिल बयना हमेशा बहुत बढ़िया होता है....

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