गुरुवार, 31 मई 2012
आँच – 111 पर – बन जाना
तम्बाकू निषेध दिवस पर कुछ बातें
तम्बाकू निषेध दिवस पर कुछ बातें
- आज यानी 31 मई को विश्व तंबाकू निषेध दिवस है। फिर भी बढ़ रहा है तंबाकू उत्पादों का इस्तेमाल और यह तम्बाकू धीमे जहर के रूप में समाज के सभी वर्ग के लोगों को प्रभावित कर रहा है।
- सार्वजनिक स्थानों पर खुले आम धूम्रपान से अनजाने में ही धूम्रपान नहीं करने वालों को भी इसका खामियाजा भुगतना पड़ रहा है।
- भारत का हर दूसरा व्यस्क पुरूष बीड़ी, सिगरेट या तंबाकु के नशे का गुलाम है।
- अंतराष्ट्रीय व्यस्क तंबाकू सर्वेक्षण के मुताबिक भारत की 34.6 फीसदी व्यस्क आबादी को तंबाकू की लत है।
- इनमें से 47.9 फीसदी आबादी पुरूषों की है। महिलाओं में यह आंकड़ा 20.3 फीसदी है।
- धुआं रहित तम्बाकू (खैनी, ज़र्दा, गुटखा) इस्तेमाल करने वालों की संख्या 40% से अधिक है।
- देश में 32.9% पुरुष और 18.4% महिलाएं धुएं रहित तम्बाकू का सेवन करती हैं। इनमे से व्यस्क 26% और युवा 12.5% हैं। युवाओं में 16.2% लड़के और 7.2% लड़कियां है।
- एक रिपोर्ट के अनुसार 132 देशों में 13 से 15 वर्ष की उम्र के स्कूली बच्चे धुआं रहित तम्बाकू का उपयोग करते हैं।
- तंबाकू चबाने से मुंह, गला, अमाशय, यकृत और फेफड़े के कैंसर का खतरा बढ़ जाता है। तंबाकू जनित रोगों में सबसे ज्यादा मामले फेफ़ड़े और रक्त से संबंधित रोगों के हैं जिनका इलाज न केवल महंगा बल्कि जटिल भी है।
- भारतीय चिकित्सा अनुसंधान (ICMR) की रिपोर्ट मे इस बात का खुलासा किया गया है कि पुरुषों में 50% और स्त्रियों में 25% कैंसर की वजह तम्बाकू है। इनमें से 90% मुंह के कैंसर हैं। धुएं रहित तम्बाकू में 3000 से अधिक रासायनिक यौगिक हैं, इनमें से 29 रसायन कैंसर पैदा कर सकते हैं।
- मुंह के कैंसर के रोगियों की सर्वाधिक संख्या भारत में है। गुटका, खैनी, पान, सिगरेट के इस्तेमाल से मुंह का कैंसर हो सकता है।
- बहरहाल तंबाकू के खतरे को नजरअंदाज करना न सिर्फ भयानक होगा बल्कि आत्मघाती भी होगा।
- तंबकू सेवन से होने वाले कैंसर से हर छह सेकेंड में एक मरीज़ की मौत हो जाती है। (डॉ. आशीष मुखर्जी, नेताजी कैंसर इंस्टीच्यूट, कोलकाता)
- विश्व स्वास्थ्य संगठन का आंक़ड़ा कहता है कि 1997 के मुकाबले वर्ष, 2005 तक तंबाकू निषेध कानूनों के लागू करने के बाद वयस्कों में तंबाकू सेवन की दर में 21 से 30 प्रतिशत की कमी आई थी, लेकिन इसी दौरान हाईस्कूल जाने वाले 18 वर्ष से कम उम्र के बच्चों में तंबाकू का सेवन 60 प्रतिशत ब़ढ़ गया था।
- अमेरिकन कैंसर सोसायटी का आंक़ड़ा है कि प्रत्येक 10 तंबाकू उपयोगकर्ता में से 9 महज 18 वर्ष की उम्र से पहले तंबाकू का सेवन शुरू कर चुके होते हैं।
- विश्व स्वास्थ्य संगठन का अनुमान है कि सन 2050 तक 2.2 अरब लोग तंबाकू या तंबाकू उत्पादों का सेवन कर रहे होंगे। इस आकलन से अंदाजा लगाया जा सकता है कि तंबाकू के खिलाफ कानूनी और गैर सरकारी अभियानों की क्या गति है और उसका क्या हश्र है।
- तंबाकू के खतरे को नजरअंदाज नहीं करना चाहिए। धूम्रपान तथा तम्बाकू जनित उत्पादों के सेवन से मरने वालों का आंकड़ा विगत कुछ वर्षों में बढा है।
- दुनिया में सर्वाधिक मौतें तम्बाकू उत्पादों के सेवन से होने वाली बीमारियों से हो रही है।
- विश्व स्वास्थ्य संगठन की एक रिपोर्ट के मुताबिक तंबाकू के इस्तेमाल से होने वाली बीमारियों के कारण भारत में हर साल दस लाख लोग मर जाते हैं।
- तंबाकू के इस्तेमाल से पूरी दुनिया में हर साल 50 लाख लोगों की मौत हो जाती है।
- दुनिया में होने वाली हर 5 मौतों में से एक मौत तंबाकू की वजह से होती है।
- हर 8 सेकेंड में होने वाली एक मौत तंबाकू और तंबाकू जनित उत्पादों के सेवन से होती है।
- 2030 तक तंबाकू उत्पादों के इस्तेमाल के कारण होने वाली मौत का आंकड़ा सालाना एक करोड़ तक पहुंच जाएगा।
- लोग कहते हैं तम्बाकू उत्पाद काफ़ी सरकार को काफ़ी राजस्व मिलता है।
- हक़ीक़त पर नज़र डालें -- देश भर में बीड़ी उद्योग में लगे बीड़ी बनाने में 29 रुपए से 78 रुपए का भुगतान हो रहा है जबकि इस उद्योग के उत्पादकों को इससे कई गुना अधिक लाभ हो रहा है। यहां भी शोषण ही हो रहा है।
- तम्बाकू उत्पादों से होने वाला राजस्व महज 12 हजार करोड़ रुपए है जबकि इससे होने वाली मौत और बीमारियों से बचाव के लिए सरकार इससे कई गुना अधिक 40 हजार करोड़ रुपए हर वर्ष खर्च कर रही है।
- विश्व स्वास्थ्य संगठन सहित कई देशों में तंबाकू उत्पादों से होने वाली मौतों से बचाव के लिए जन जागरण अभियान चलाए गए हैं, फिर भी तंबाकू के उपभोग में कमी न होना मानव सभ्यता के लिए एक गंभीर सवाल है। तंबाकू के ब़ढ़ते खतरे और जानलेवा दुष्प्रभावों के बावजूद इससे निपटने की हमारी तैयारी इतनी लचर है कि हम अपनी मौत को देख तो सकते हैं लेकिन उसे टालने की कोशिश नहीं कर सकते। यह मानवीय इतिहास की एक त्रासद घटना ही कही जाएगी कि कार्यपालिका, विधायिका तथा न्यायपालिका की सक्रियता के बावजूद स्थिति नहीं संभल रही।
- सार्वजनिक स्थानों पर धूम्रपान करने पर प्रतिबंध लगाए जाने, कम उम्र के बच्चों को तंबाकू उत्पाद न बेचे जाने और उल्लंघन पय ज़ुर्माने के प्रावधानों और तम्बाकू उत्पादों के सेवन के बारे में क़ानून बन जाने के के बावज़ूद भी इनकी अनुपालना नहीं हो रही है।
- तम्बाकू सेवन के खिलाफ़ जनजागरण में मीडिया के साथ ब्लॉगजगत की भी अहम भूमिका हो सकती है। रचनात्मक लेखन से आम आदमी को जागरूक किया जाना चाहिए।
सोमवार, 28 मई 2012
बांस का चीरा
बांस का चीरा
रविवार, 27 मई 2012
भारतीय काव्यशास्त्र – 114
गुरुवार, 24 मई 2012
विक्की डोनर - एक शुभ संकेत
आंच-110
विक्की डोनर - एक शुभ संकेत
मनोज कुमार
एक फिल्म का संवाद है कि लकडी भले ही जलकर राख हो जाए चूल्हे की गरमी देर तक बनी रहती है। हमारे ब्लॉग पर “आंच” की लकडियाँ (सर्वश्री परशुराम राय, हरीश गुप्त एवं करण समस्तीपुरी) फिलहाल (व्यक्तिगत कारणों से) भले ही ठंडी हो गयी हों “आंच” की गरमी बनी रहनी चाहिए। चूँकि फिल्मी संवाद से अपनी बात आरम्भ की है इसलिए सोचा कि आज यहां क्यों न एक फिल्म की चर्चा की जाए। इसी उद्देश्य से देखी फ़िल्म – “विक्की डोनर”। यह एक कॉमेडी फ़िल्म है, जो इंटरवल के बाद थोड़ी सीरियस होती है, लेकिन विषयान्तर कहीं नहीं होती है। न तो फ़िल्म कहीं से कमज़ोर है और न ही इसकी गति धीमी है।
इस फ़िल्म का निर्माण अभिनेता जॉन अब्राहम ने किया है। फिल्म का केन्द्रीय विषय स्पर्म डोनेशन (शुक्राणु-दान) है, और यदि फ़िल्म के ही शब्दों में कहें तो इसमें “क्वालिटी स्पर्म” के डोनेशन की बात पर बल दिया गया है। निर्माता ने एक ऐसे विषय पर फ़िल्म बनाने की सोची जो समाज में वर्जित माना जाता रहा है। किन्तु इसे निर्माता-निर्देशक की सूझ ही कहा जाएगा कि जब ऐसे विषय को हास्य के साथ परोसा जाए, तो एक वर्जित विषय को भी सहजता से ग्रहण करने का मानस तैयार होता है। इसी फिल्म से एक उदाहरण देखिए कि जब एक दम्पति आकर कहता है कि मुझे क्रिकेटर वाला सैम्पल चाहिए, तब डॉक्टर साहब अपने पेशे की विशेषता बताते हुए कहते हैं कि कितनी अच्छी बात है, पहले बच्चे का कैरियर डिसाइड कर लो, बाद में बच्चा पैदा करो।
इस फ़िल्म का मुख्य पात्र एक युवक है, जिसका नाम है विक्की अरोड़ा। इस किरदार को निभाया है आयुष्मान खुराना ने। उनकी पृष्ठभूमि पर दृष्टि डालें तो वे रेडियो जॉकी थे और पिछले साल तक आई.पी.एल. के टीवी होस्ट/संचालक के रूप में उन्होंने काम किया था जो काफ़ी सराहा भी गया था। फिल्म में विक्की बेरोज़गार किंतु बहुत ही मस्तमौला टाइप का लड़का है। नौकरी की खोज में दर-दर भटकता है। उसकी मां पार्लर चलाती है, पिता मर चुके हैं। घर में एक दादी भी है।
शहर में एक डॉक्टर है – बलदेव चड्ढा। इस चरित्र को जिया है अन्नू कपूर ने। शुरू से अंत तक फ़िल्म में अगर किसी कलाकार ने दर्शकों को बोर नहीं होने दिया तो वह हैं अन्नू कपूर, जिनकी अद्भुत अभिनय क्षमता से उभरा है एक सशक्त चरित्र - डॉ. चड्ढा। फिल्म के हर दृश्य में (जहां वे आते हैं) अपने अभिनय कौशल और संवादों की अदायगी से वे हंसाते रहते हैं। डॉ. चड्ढ़ा दिल्ली के दरियागंज में एक फर्टिलिटी क्लीनिक चलाता है। जिन दम्पत्ति को बच्चा नहीं हुआ है उन्हें मां-बाप बनने के न सिर्फ़ सपने दिखाता है, बल्कि उनके सपनों को साकार भी करता है। एक समय उसे एक विशेष डोनर की आवश्यकता पड़ती है। ऐसे में उसकी नज़र विक्की पर पड़ती है, तो उसे लगता है कि स्पर्म-डोनर के तौर पर विक्की बहुत ही आदर्श व्यक्ति है। किंतु उसके सामने समस्या यह होती है कि विक्की को इस काम के लिए राज़ी कैसे किया जाए। विक्की को राज़ी कराने के लिए चड्ढ़ा के प्रयासों से फिल्म में काफ़ी हास्य का सृजन हुआ है। जब वह पहली बार विक्की के सामने अपना प्रस्ताव रखता है, तो विक्की ज़ोर-ज़ोर से हंसते हुए कहता है, “यह भी कोई डोनेट करने की चीज़ है?” लेकिन चड्ढा उसे समझाना बंद नहीं करता। अंत में विक्की इस काम के लिए राज़ी हो जाता है और उसकी आमदनी भी होने लगती है। उसके सपने पूरे होते हैं।
विक्की को अशिमा नाम की एक बंगाली लडकी से प्यार हो जाता है, और परिवार के विरोध के बावज़ूद दोनों शादी कर लेते हैं। अशिमा की भूमिका यामी गौतम ने काफ़ी खूबसूरती से निभाई है। कहानी में ट्विस्ट यहीं से आता है। जब उसे पता चलता है कि विक्की क्या “धन्धा” करता है, तो अशिमा को गहरा सदमा पहुंचता है। विक्की उसे समझाने की कोशिश करता है कि वह जो कर रहा है वह “धन्धा” नहीं, एक समाज-सेवा है। लेकिन अशिमा दुखी मन से विक्की का घर छोड़कर चली जाती है। अशिमा के छोड़कर चले जाने की बात जब फैलती है तो घर, परिवार और समाज से विक्की को “इतना गंदा धन्धा”, “खानदान का नाम बदनाम कर दिया तूने” आदि ताने सुनने को मिलते हैं। थोड़ी देर सीरियस रहने के बाद फ़िल्म का सुखद अंत होता है। डॉक्टर चड्ढा को भी अहसास होता है, और वह विक्की से कहता है “तेरी फैमिली लाइफ को स्पॉयल कर दिया मैंने।” और अंत में वही संकट मोचक भी बनता है। अशिमा को जब विक्की द्वारा किए जा रहे काम का महत्व समझ में आता है, तो फिल्म उसके संक्षिप्त से संवाद “सॉरी” के साथ समाप्त होती है। फ़िल्म की अवधि एक घंटे और सत्तावन मिनट है।
दिल्ली के पंजाबी लड़के के रोल में आयुष्मान खुराना ने जान डाल दी है। किसी भी लिहाज से नहीं लगता कि यह आयुष्मान खुराना की पहली फ़िल्म है। विक्की की मां का अभिनय डॉली अहलुवालिया ने किया है और दादी की भूमिका निभाई है कमलेश गिल ने। दोनों ने एक पंजाबी घर के वातावरण को सजीव कर दिया है। इस फ़िल्म के निर्देशक हैं शूजित सरकार। उनके सामने चुनौती रही होगी कि दो भिन्न परिवेश और संस्कृति वाले (बंगाली और पंजाबी) परिवार के फिल्मांकन में ताल-मेल बिठा सकें, और यह काम उन्होंने बड़े ही रोचक ढंग से सम्पन्न किया है।
निर्माता-निर्देशक ने कहीं भी फ़िल्म को फॉर्मूला फिल्म नहीं होने दिया, यह इस फ़िल्म की सबसे बड़ी विशेषता है। आज के आइटम सॉंग के दौर में, बिना किसी ताम-झाम के एक हिट फिल्म देना, वह भी एक ऐसे विषय पर जिसपर घरों में लोग बातें करने से भी हिचकते हैं, एक कुशल निर्देशन का ही नतीजा है। ऐसे में एक वर्जित विषय पर फिल्म का निर्माण करके अभिनेता जॉन अब्राहम ने भी अदम्य साहस का परिचय दिया है|
इस फ़िल्म की सबसे बड़ी विशेषता यही कही जा सकती है कि इस फ़िल्म में न कोई नायक है, न नायिका। अगर कोई मुख्य भूमिका निभा रहा है, तो वह है इसकी स्क्रिप्ट! इसलिए बॉलीवुड में आईं, अपेक्षाकृत नई स्क्रिप्ट राइटर जूही चतुर्वेदी का उल्लेख यदि न किया जाए और उन्हें उनका अपेक्षित सम्मान न दिया जाए तो बहुत ही नाइंसाफ़ी होगी। जूही के मस्तिष्क में अवश्य ही रहा होगा कि वो एक गंभीर विषय पर स्क्रिप्ट लिख रही हैं, जो साथ ही “वर्जित” विषय की श्रेणी में आता है, इसलिए उन्होंने बड़ी कुशलता से अपनी बात हास्य के माध्यम से सामने रखी है। जब इन दिनों पान सिंह तोमर, आई एम कलाम, कहानी और विक्की डोनर जैसी फ़िल्में हिट हो रही हैं, तो कहा जा सकता है कि एक बार फिर से सत्तर के दशक के ‘स्टोरी टेलिंग’ वाले स्क्रिप्ट का युग लौट रहा है। ऐसी स्क्रिप्ट पर कम बजट में फ़िल्म बन पाती हैं और किसी बड़े स्टार कास्ट की ज़रूरत नहीं पड़ती। बौलीवुड की यह शीतल बयार लोगों को पसंद आ रही हैं, और यह एक शुभ संकेत है।
“आंच” पर फिल्म समीक्षा को शामिल करने की यह शीतल बयार आपको कैसी लगी?