शनिवार, 24 अक्तूबर 2009

लोक आस्था का महापर्व छठ

--- मनोज कुमार
बिहार और उत्तर प्रदेश के कुछ हिस्सों में महापर्व के नाम से प्रसिद्ध “छठ पर्व” श्रद्धा, विश्वास एवं आस्था के साथ मनाया जाता है। श्रद्धालुओं का मानना है कि छठ से मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है। वैसे तो कहावत है कि लोग उगते सूर्य की पूजा करते हैं, किन्तु इस पर्व में अस्त एवं उदय होते हुए दोनों रूपों में भगवान भास्कर की पूजा-अर्चना की जाती है। छठ का महापर्व कार्तिक शुक्ल पक्ष की चतुर्थी से शुरु हो जाता है।
चतुर्थी को छठ पूजा करने वाले छठव्रती, नहाए-खाय करते हैं। फिर पंचमी को खरना, जिसमें शाम के समय छठव्रती इष्टदेव की पूजा कर भोग आदि लगाते हैं। षष्ठी को डूबते हुए सूर्य को तालाब, पोखर या नदी में खड़े होकर अर्घ्य देकर विशेष प्रकार के प्रसाद ठेकुआ, खजुर, फल, आदि जिसमें गन्ने, नारियल आदि का विशेष महत्व है, चढ़ाया जाता है। सप्तमी को उगते सूर्य को अर्घ्य, नैवेद्य से पूजा की जाती है जिसे स्थानीय भाषा में हाथ उठाना कहते हैं। हाथों में नैवेद्य, नयनो में प्रतीक्षा, "उगा हो सुरुज देव अरघ के'र बेर...." और मन में अनुनय "ले हो न अरघ हमार हे छट्ठी मैय्या...!" इस व्रत का समापन सप्तमी को होता है।
चार दिनों तक चलने वाले इस पर्व के प्रति श्रद्धालुओं में श्रद्धा के साथ उमंग व्याप्त रहता है। इस पर्व की एक और विशेषता जो क़ाबिले तारीफ़ है, वह है साफ-सफाई पर विशेष ध्यान दिया जाना। कई जगह तो पूरा-का-पूरा शहर ही विशेष अभियान द्वारा साफ-सुथरा कर दिया जाता है। अन्यथा तालाब, पोखर या नदी के उन स्थलों की तो पूरी सफाई की ही जाती है जहां पर्व मनाने श्रद्धालु एकत्रित होते हैं।
छठ पर्व के अवसर पर मंगल गीत गाने का प्रचलन है। इन लोकगीतों की मिठास और संवेदना से इस पर्व की छटा और निखर जाती है। एक छठगीत आपके लिए प्रस्तुत
"केलबा के पात पर उगेलन सुरुजदेव झांके झुके ...


हे करेलू छठ बरतिया से झांके झुके... !


हम तोह से पूछीं बरतिया हे बरतिया से किनका लागी... ?


हम तोह से पूछीं बरतिया हे बरतिया से किनका लागी... ?


हे करेलू छठ बरतिया से किनका लागी .... ?


हमरो जे स्वामी तोहरे ऐसन स्वामी से हुनके लागी...


हे करेलू छठ बरतिया से हुनके लागी.... !!"


व्रती इस गीत में आगे बताती हैं कि वो छठ का महाव्रत अपने पति, पुत्र, घर एवं परिवार के लिए करती हैइस प्रकार यह मान्यता पुष्ट हो जाती है कि छठ महाव्रत के प्रसाद से धन, वैभव, संतान मान, यश और मोक्ष की प्राप्ति होती है। महाभारत में वर्णित कथा के अनुसार, जुए में सभ कुछ गंवा कर पांडव जब बनवास में थे, तभी दुर्योधन प्रेरित महर्षि दुर्वाषा पहुँच गए, पांडवों के पर्ण कुटीर। "अतिथिदेवो भवः !" परन्तु वनवासी याचक पांडव आतिथ्य धर्म का निर्वाह करें तो कैसे घर में अन्न का केवल के दाना और अठासी ब्रह्मन। धर्मसंकट। द्वार पर आये ब्रह्मन और असहाय पतियों को देख द्रौपदी ने भगवन कृष्ण को याद किया और भक्तवत्सल गोपाल के अनुग्रह से ब्रह्मणों का परितोष रखने में सफल रही। द्रौपदी की सेवा-निष्ठा से प्रसन्न महर्षि दुर्वाषा ने आशीष के साथ 'कार्तिक शुक्ल षष्ठी' को भगवान् भाष्कर का व्रत करने की सलाह दिया। द्रौपदी ने वन में ही उक्त तिथि को सूर्योपासना किया और छट्ठी मैय्या के प्रताप से एक वर्ष सफल अज्ञातवासोपरांत पांडवों को महाभारत युद्ध में विजय और खोया राज-पाट ऐश्वर्या व यश प्राप्त हुआ। तो ऐसी है भगवान् भुवन भाष्कर की महिमा और छठ महापर्व का महातम्य !!! बोलो छट्ठी मैय्या की जय !!!

4 टिप्‍पणियां:

  1. shukria;
    har parv ki jaankari apni sanskriti se ek parichayua hai.iski jaankari paakar accha laga.

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  2. Migeation from the roots makes people forget their basic culture and festivals but reading this has reminded us back our holy festival n blessings tat we r missing being far from our roots.

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  3. yun to har sal chhath manaatee thee lekin chhath kee katha nahi malum thi. itni mahatwapurn jankari ke liye dhanyawad.

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