गुरुवार, 26 नवंबर 2009

चौपाल में अतिथि : दधीचि

नमस्कार ! एक बार फिर गुरूवार की संध्या चौपाल में हम आपका स्वागत करते हैं आज की चौपाल में हमारे साथ हैं हमारे अतिथि कवि, श्री परशुराम राय । स्वर्णगर्भा उत्तर प्रदेश में जन्मे श्री राय संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय से साहित्याचार्य, फिर रूसी भाषा व बी.एड. की शिक्षा के उपरान्त बन्दूक बनाने की कार्यशाला का प्रबंधन कर रहे हैं लेकिन 'मसि-कागद' का साथ कभी नहीं छूटा तो आज पढ़िए, राय जी की एक कविता ! -- करण समस्तीपुरी


दधीचि
-परशुराम राय
प्रतिक्रियाओं के ठूँठ पर
लटक रही कुंठा की घंटियॉ
शोर मचाने के लिए हैं ।
लोकतंत्र के लिये
चाणक्य की खुली शिखा
जड़ हो चुकी है,
परशुराम की प्रतीक्षा में
आखिर क्यों बैठना ?
अरे, बूढ़ी बाहों का कुंठित परशु
जंग से अपनी ही रक्षा कर ले
तो बहुत है ,
शर-शय्या पर सोकर
मृत्यु की प्रतीक्षा के लिए
बनी पितामह भीष्म की वीरता
किस काम की ?
नये संदर्भ में सिसकते
जनतंत्र के प्रश्नों के उत्तर
इनके पास नहीं
महात्मा दधीचि की
अस्थियों के पास हैं,
गंगा में विसर्जन से पहले
ढूँढ लो
अस्थियों के बोझ को
ढो रहे उस कारवॉ को ।

*********

सौभाग्य से मैं और श्री परशुराम राय जी सहकर्मी रह चुके हैं। मैं ने श्री राय के कवित्व को करीब से देखा है और पाया है कि यद्यपि संख्याबल से इनकी रचनाएं न्यूनतम हैं परन्तु उनमे गुणबल अथाह है। ओज इनकी कविताओं का मुख्या स्वर है किन्तु भाव मे पुरातन संस्कारों का मोह और वर्तमान की विद्रूपता पर क्षोभ स्थायी हैं। पौराणिक प्रतीकों के माध्यम से आधुनिक कुव्यवस्था पर प्रहार करना श्री राय के शैली की विशेषता है

-- मनोज कुमार

12 टिप्‍पणियां:

  1. प्रतीकों के प्रयोग से कविता सुंदर बन पड़ी है ।

    जवाब देंहटाएं
  2. कविता बहुत अच्छी लगी । निश्चित रूप से कह सकता हूं कि श्री राय में कविता रचने की अद्भूत क्षमता है एवं वे प्रतिभा के धनी हैं ।

    जवाब देंहटाएं
  3. बहुत अच्छी लगी आज की आप की यह रचना

    जवाब देंहटाएं
  4. प्रतिक्रियाओं के ठूँठ पर

    लटक रही कुंठा की घंटियॉ

    शोर मचाने के लिए हैं ।

    यही पंक्तियाँ व्यथित कर गयीं..मिथकीय संदर्भों को बहुत सलीके से इस समय की विडम्बनाओं को उजागर करने के लिये गढ़ा है इस कविता मै.
    और संख्याबल और गुणवत्ता मे उतना ही फ़र्क है जितना श्वान-दल और अकेले सिंह की शक्ति मे है..अच्छी कविता अपनी जगह बना ही लेती है जेहन मे..
    आभार है आपका

    जवाब देंहटाएं
  5. आज की परिस्थितियों से अवगत कराती एक सशक्त कविता ।

    जवाब देंहटाएं
  6. नये संदर्भ में सिसकते
    जनतंत्र के प्रश्नों के उत्तर
    इनके पास नहीं
    महात्मा दधीचि की
    अस्थियों के पास हैं...
    हर एक पंक्तियाँ लाजवाब है! इस उम्दा रचना के लिए बधाई!

    जवाब देंहटाएं
  7. Parashuram Rai ji ki Drishti spasht hai..........Achchhi rachna ke liye shukriya...

    जवाब देंहटाएं
  8. मृत्यु की प्रतीक्षा के लिए

    बनी पितामह भीष्म की वीरता

    किस काम की ?

    बहुत ही अच्छी रचना। उत्तम गुणवत्ता की रचना जो आज की विडम्बनाओं को उजागर करती है।

    जवाब देंहटाएं
  9. परशुराम जी की कविताओं में परशुराम वाला ही ओज है !

    जवाब देंहटाएं
  10. पौराणिक प्रतीकों के माध्यम से कुव्यवस्था पर प्रहार करती यह कविता बहुत अच्छी लगी।

    जवाब देंहटाएं

आपका मूल्यांकन – हमारा पथ-प्रदर्शक होंगा।