शुक्रवार, 8 अप्रैल 2011

शिवस्वरोदय – 38

जानकी वल्लभ शास्त्री जी का निधन

हिन्दी के प्रसिद्ध साहित्यकार और वयोवृद्ध कवि आचार्य जानकी वल्लभ शास्त्री जी का हृदय गति रुक जाने से कल रात बिहार के मुजफ्फ़रपुर जिले में निधन हो गया। वे 96 वर्ष के थे!

हम उन्हें विनम्र श्रद्धा सुमन अर्पित करते हैं।

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इस ब्लॉग पर, उनसे बातचीत के आधार पर, हमने छह भागों में उनका विस्तृत परिचय दिया था। उसके लिंक नीचे है।

पहला भाग-अच्छे लोग बीमार ही रहते हैं!

दूसरा भाग : कुत्तों के साथ रहते हैं जानकीवल्लभ शास्त्री!

तीसरा भाग :: निराला निकेतन और निराला ही जीवन

चौथा भाग :: निराला निकेतन : निराला जीवन : निराला परिचय

उद्दाम जिजीविषा

संक्षिप्त जीवन परिचय

शिवस्वरोदय – 38

परशुराम राय

पृथिव्याः पलानि पञ्चाशच्चत्वारिंशत्तथाम्भसः।

अग्नेस्त्रिंशत्पुनर्वायो विंशतिर्नभसो दश।।197।।

अन्वय – श्लोक अन्वित क्रम में है, अतएव अन्वय आवश्यक नहीं है।

भावार्थ – शरीर का पचास भाग पृथ्वी तत्त्व, चालीस भाग जल तत्त्व, तीस भाग अग्नि तत्त्व, बीस भाग वायु तत्त्व और दस भाग आकाश तत्त्व मानना चाहिए। यहाँ यह बताना आवश्यक है कि पाठक उपर्युक्त विभाजन प्रतिशत में न समझें, बल्कि यह एक अनुपात है। पुनः इसे श्लोक संख्या 199 में स्पष्ट किया गया है।

English Translation – Prithvi Tattva occupies fifty parts of the body, Jala Tattva forty parts, Agni Tattva thirty parts, Vayu Tattva twenty parts and Akash Tattva ten parts. Here we should understand that this has not been calculated in percent, it is ratio only. The same thing has been mentioned in the verse No. 199.

पृथिव्यां चिरकालेन लाभश्चापः क्षणात्भवेत्।

जायते पवने स्वल्पः सिद्धौSप्यग्नौ विनश्यति।।198।।

अन्वय - पृथिव्यां चिरकालेन लाभश्चापः क्षणात्भवेत् पवने स्वल्पः जायते सिद्धौSप्यग्नौ विनश्यति।

भावार्थ – इसीलिए पृथ्वी तत्त्व के प्रवाहकाल में किया गये कार्य में दीर्घकलिक सफलता मिलती है, जबकि जल तत्त्व के प्रवाहकाल में किये गये कार्य में सफलता मिलती है, वायु तत्त्व के प्रवाहकाल में किए गए कार्य में मामूली सफलता मिलती है और अग्नि तत्त्व के प्रवाह के समय किए गए कार्य में घोर असफलता मिलती है।

English Translation – That is why the work started during the flow of Prithvi Tattva gives durable and positive result, whereas the work started during the flow of Jala Tattva does not give result to that extent, Vayu Tattva gives least result and Agni Tattva causes harmful result.

पृथिव्याः पञ्च ह्यपां वेदा गुणास्तेजोद्विवायुतः।

नभस्येकगुणश्चैव तत्त्वज्ञानमिदं भवेत्।।199।।

अन्वय – यह श्लोक अन्वित क्रम में है।

भावार्थ – पाँच भाग पृथ्वी, चार भाग जल, तीन भाग अग्नि, दो भाग वायु और एक भाग आकाश है। इसे पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश तत्त्व का 5:4:3:2:1 अनुपात समझना चाहिए।

English Translation – Here also the same ratio of Prithivi Tattva, Jala, Agni, Vayu and Akash Tattva has been stated like that of verse No. 197, i.e. 5:4:3:2:1.

फूत्कारकृत्प्रस्फुटिता विदीर्णा पतिता धरा।

ददाति सर्वकार्येषु अवस्थासदृशं फलम्।।200।।

अन्वय - फूत्कारकृत्प्रस्फुटिता विदीर्णा पतिता धरा सर्वकार्येषु अवस्था सदृशं फलं ददाति।

भावार्थ – फुत्कारती हुई प्रस्फुटित, विदीर्ण और पतित पृथ्वी अपनी अवस्था के अनुसार सभी कार्यों में अपना प्रभाव डालती है।

धनिष्ठा रोहिणी ज्येष्ठाSनुराधा श्रवणं तथा।

अभिजिदुत्तराषाढा पृथ्वीतत्त्वमुदाहृतम्।।201।।

अन्वय – श्लोक अन्वित क्रम में है।

भावार्थ – धनिष्ठा, रोहिणी, ज्येष्ठा, अनुराधा, श्रवण, अभिजित् और उत्तराषाढ़ा नक्षत्रों का सम्बन्ध पृथ्वी तत्त्व से है।

English Translation – Here and in the following three verses tell us about Nakshtras (stars) relating to Tattvas. Dhanishtha, Rohini, Jyeshtha, Anuradha, Shravana, Abhijit and Uttarasharha are related to Prithivi Tattva.

पूर्वाषाढा तथा श्लेषा मूलमार्द्रा च रेवती।

उत्तराभाद्रपदा तोयं तत्त्वं शतभिषक् प्रिये।।202।।

अन्वय – यह श्लोक भी अन्वित क्रम में है।

भावार्थ – पूर्वाषाढा, श्लेषा, मूल, आर्द्रा, रेवती, उत्तराभाद्रपद और शतभिषा नक्षत्र जल तत्त्व से सम्बन्धित हैं।

English Translation – Purvasharha, Shlesha, Mula, Ardra, Revati, Uttarabhadrapad and Shatabhisha are related to Jala Tattva.

भरणी कृत्तिकापुष्यौ मघा पूर्वा च फाल्गुनी।

पूर्वाभाद्रपदा स्वाती तेजस्तत्त्वमिति प्रिये।।203।।

अन्वय – प्रिये, भरणी कृत्तिकापुष्यौ मघा पूर्वा च फाल्गुनीपू र्वाभाद्रपदा स्वाती तेजस्तत्त्वमिति।

भावार्थ – हे प्रिये, भरणी, कृत्तिका, पुष्य, मघा, पूर्वाफाल्गुनी, पूर्वाभाद्रपद और स्वाति नक्षत्रों का अग्नि तत्त्व से सम्बन्ध है।

English Translation – O Dear Goddess, similarly Bharani, Krittika, Pushya, Magha, Purvaphalguni, Purvabhadrapada and Svati are related to Agni Tattva.

विषाखोत्तरफाल्गुन्यौ हस्तचित्रे पुनर्वसुः।

अश्विनी मृगशीर्ष च वायुतत्त्वमुदाहृतम्।।204।।

अन्वय – यह श्लोक अन्वित क्रम में है।

भावार्थ – विषाखा, उत्तराफाल्गुनी, हस्त, चित्रा, पुनर्वसु, अश्विनी और मृगषिरा नक्षत्रों का सम्बन्ध वायु तत्त्व से है।

English Translation – Vishakha, Uttaraphalguni, Hast, Chitra, Punarvasu, Ashvini and Mrigashira are related to Vayu Tattva. Nakshatra relating to Akash Tattva is not given because all Nakshatras are place in the sky only.

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25 टिप्‍पणियां:

  1. इस प्रुए साक्षात्कार के दौरान शास्त्रीजी के व्यक्तित्व के विभिन्न पहलुओं को जाना था ...
    विनम्र श्रद्धांजलि !

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  2. अभी ही परिचय हुआ था। हार्दिक श्रद्धान्जलि।

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  3. आचार्य जानकी वल्लभ शास्त्री जी के आकस्मिक निधन से हिंदी साहित्य जगत की अपूर्णीय क्षति और हम साहित्यकारों को असहनीय तकलीफ हुई है.उन्हें विनम्र श्रद्धांजलि.

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  4. पुण्यात्मा को विनम्र श्रद्धांजलि .......!

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  5. ब्लॉग खुलते ही आचार्य जानकी वल्लभ शास्त्री जी के निधन का समाचार पढ़ कर मन दुःख से भर गया !
    परम पिता उनकी आत्मा को शांति प्रदान करे !

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  6. हिन्दुस्तान के प्रथम प्रष्ट पर यह दुखद समाचार मिल गया था. हम शास्त्री जी की आत्मा की शांति के लिए परम-पिता परमात्मा से प्रार्थना करते हैं.

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  7. मनोज जी आपके आलेखों को पढने के बाद शास्त्री जी को करीब से जाना था.. उनकी रचनाओं को फिर से पढने लगा था... इस बीच उनका चला जाना निजी क्षति के रूप में लग रहा है.. विनम्र श्रद्धांजलि ...नमन

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  8. जानकी बल्लभ शास्त्री जी के बारे में आपके साक्षात्कार श्रृंखला से ही जाना था ...उनको विनम्र श्रृद्धांजलि

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  9. आखिर पंछी उड़ गया। सच्‍ची श्रद्धांजलि यही होगी‍ कि उनकी थाती को संभालें और आगे बढ़ाएं।

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  10. हम उन्हें विनम्र श्रद्धा सुमन अर्पित करते हैं।

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  11. शास्त्री जी से अभी हाल ही में आपके लेखो के माध्यम से परिचय हुआ था .इस अनोखो साहित्यकार का जाना निसंदेह हिंदी साहित्य के लिए अपूरणीय क्षति है.
    विनर्म श्रद्धा सुमन शास्त्री जी के चरणों में.

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  12. इक भावभीमि श्रद्धांजली दी जा रही है कल "चर्चा मंच" पर जानकी वल्लभ शास्त्री जी को...
    at 09.04.2011

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  13. बहुत ही दुखद खबर है यह....ईश्वर उनकी आत्मा को शांति दे...
    विनम्र श्रद्धांजलि

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  14. छाया वाद के आखिरी स्तम्भ आचार्य जानकी बल्लभ शास्त्री जी को हमारा शीश झुककर नमन

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  15. उफ़... ! गुम हो गया बांसुरी का स्वर। एक ही वाक्य कानों में गुंज रहे हैं, "तब देखने से क्या लगता है ? कुछ दिन और चलुंगा... ?" और आज वो चल दिये... !

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  16. .

    जब आयेगा बुलावा हरि का
    छोड़कर सबकुछ जाना पड़ेगा.
    ........ यही अंतिम सत्य है.

    शतक से वंचित रह गये.
    लेकिन जितना जिये स्वाभिमान से और प्रेरणा सरीखे होकर.

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  17. वैसे तो हर एक को एक न एक दिन जाना होता है लेकिन जो देश और समाज को निश्छल मन से ज्ञान दान लुटाते हैं उनके जाने से अधिक कष्ट होता है और उस रिक्त स्थान की पूर्ति भी आसान नहीं होती। आचार्य़ शास्त्री जी ऐसे ही धनी व्यक्तित्वों में से एक हैं। उन्हें श्रद्धा सुमन सादर समर्पित हैं।

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  18. आखिर दीपक बुझ ही गया।

    आचार्य़ जानकी बल्लभ शास्त्री को सादर नमन।

    श्रद्धांजलि.......

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  19. शास्त्री के अचानक निधन पर गहरा धक्का लगा। ईश्वर उनकी आत्मा का शान्ति प्रदान करें।

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