फ़ुरसत में …
आचार्य जानकीवल्लभ शास्त्री जी के साथ
मनोज कुमार, करण समस्तीपुरी
पहला भाग-अच्छे लोग बीमार ही रहते हैं!
ऊपर ऊपर पी जाते हैं, जो पीने वाले है
कहते ऐसे ही जीते हैं, जो जीने वाले हैं।
ऐसे ही जीने वाले, एक शख्सियत से मिलना हमारे लिए आज तक की जिंदगी का सबसे बड़ा और सुखद पल था। जो अपनी साधना में लीन एकांत और शांति का जीवन जी रहा है। जो पी रहा है, ऊपर ऊपर ही, वह तो अपने उन हिस्सों को जिन्हें नहीं पचा पा रहा, स्विस बैंक में जमा कर रहा है। ... और वह जो अपने पेट को काट कर, अपनी पेंशन का अधिकांश भाग और अगर वह कम पड़ जाय तो अपनी जमीन बेच कर अपने गली-मुहल्ले के पशु-पक्षियों को अपनी गोद में रखकर अपने हिस्से की बिस्कुट खिलाता है, दूध पिलाता है, दूध की कमी न हो उनके लिए गायें पालता है, ..ये कुत्ते, बिल्ली, गायें जब मरते हैं तो अपने आंगन में उनकी समाधि बना देता, पूजा करता है उनकी, ऐसा शख्स अपने आवास का नाम निराला निकेतन रखता है क्योंकि वह Different है। Different इसलिए भी कि ‘ऊपर-ऊपर’ पी जाने वाले यदि उसके जीवन के 95वें वर्ष में उसे पदम श्री देने की सोचता है तो यह शख्स आदर पूर्वक उसे लौटा भी देता है।
11 नवम्बर 2010, महापर्व छठ के खरना का दिन। हमने जब अपने गांव रेवाड़ी, ज़िला समस्तीपुर से मुज़फ्फ़रपुर जाकर आचार्य जानकीवल्लभ शास्त्री जी से मिलने का मन बनाया और मां को इसकी सूचना दी तो मां का कहना था, ‘आज खरना है। जाओ पर शाम में भगवान को भोग लगाने के पहले आ जाना।’
गांव से हम चले तो इसी तरह कि शाम ढलते गांव वापस आ जाएंगे पर मुज़फ्फ़रपुर की सड़कों की यातायात और कुछ अन्य कठिनाइयों से निराला निकेतन पहुँचते पहुँचते शाम के 3.30 बज गए। पर आगे के जो दो घंटे बीते वह अंग्रेजी की उक्ति Life time experience के समान था।
लगभग २५ साल बाद गुज़र रहा था उधर से। काफ़ी कुछ बदला-बदला लग रहा था। कम-से-कम वो गलियां ग़ायब मिली जहां ज़िला स्कूल के दिनों में गुज़रते वक़्त कभी-कभार देखा था जिन गलियों में मुज़फ़्फ़रपुर की मशहूर तवायफ़ें रहा करती थीं। सड़क किनारे घरों के दरवाज़ों पर पहले की तरह 'ममता रानी, सपना रानी, गायिका और नृत्यांगना' जैसी तख़्ती नहीं दिखी। आज सब बदला-बदला था। उसी रेडलाइट एरिया के “चतुर्भुज स्थान” के एक छोर पर है उनका “निराला निकेतन”।
मुजफ्फरपुर को उत्तर बिहार की राजनीतिक, साहित्यिक राजधानी के रूप में भी माना जाता है। इसी शहर में है चतुर्भुज स्थान। साधारणतया हर चौराहे पर चार रास्ते होते हैं। पर यहां पांच सड़के मिलती है और पहली सड़क मुड़ती है चतुर्भुज स्थान मंदिर पर। उसके ठीक बगल में करीब एक एकड़ के प्लॉट पर बना निराला निकेतन विरान खंडहर सा एहसास कराता है। परिसर के चारो ओर चहारदीवारी है। मुख्य द्वार पर पुराना दरवाजा। एक सत्रह-अठारह साल का नौजवान (उनका सेवक) उसे आकर खोलता है, … हम प्रवेश करते हैं। पूछने पर उसने बताया कि हां, शास्त्रीजी हैं, सामने ही बैठे हैं। दो-चार क़दम आगे बढ़ा। लगा तीर्थ यात्रा के बाद मंदिर में प्रवेश कर रहे हों। परिसर अपनी गौरव गाथा का बयान करती प्रतीत हो रहा था। गेट के ऊपर लंबा बोर्ड लगा है। नीली पृष्ठभूमि पर सफ़ेद रंग से उकेरे गए ‘निराला निकेतन’। 'निराला निकेतन' वाले बोर्ड का नीलापन थोड़ा हल्का हो गया है। बोर्ड की जर्जर अवस्था शास्त्री जी की तरह लगी और उसकी विशलता भी!
परिसर में दोनों ओर गायों को खिलाने की नादों की लंबी कतार। नादों की कतार के पीछे टीन की छत वाला एक घर गायों को बांधने के लिए। हम आगे बढते हैं। बरामदे के ठीक सामने मंदिर है। शास्त्री जी के पिता का।
ग्रिल से घिरा बरामदा, बरामदे में प्रवेश करते ही बांई तरफ पंलग पर शास्त्री जी गंजी और कमर के नीचे धोती डाले तकिए के सहारे बैठे मिले, गोद में कुत्ते के तीन-चार बच्चे। शास्त्री जी की काफी उम्र हो चुकी है! वे काफी अस्वस्थ दिखे। उनकी चारों तरफ ढेर सारे कुत्ते थे। वो भी सड़क के कुत्ते, जिनकी बदबू से पूरा घर भरा पड़ा था। लेकिन शास्त्री जी के चेहरे पर उनके प्रति अगाध स्नेह दिखा। गोद में चार-पांच कुत्तों के बच्चों के साथ बैठे थे। नीचे एक कुतिया थी। हमें देखते ही बोलते हैं, ‘बैठने की जगह ढूंढ लो। जहां मिले बैठ जाओ। यहां सब जगह ऐसा ही है।’
हम बैठते हैं तो नीचे वाली कुतिया कूं-कूं करती है। हमारी तरफ़ मुखातिब होकर कहते हैं, ‘मां आई है। ले जाने।’ हम हतप्रभ थे गन्दी सी कुतिया के लिए इतनी सम्मानित संज्ञा। शास्त्री जी फिर उसे कहते हैं, ‘आ गई लेने? जा। जा। तुझे भी अपने बच्चों के बिना मन नहीं लगता। ले जा!’
हम उनके पैर छूते हैं। नज़रें इधर-उधर दौड़ाते हैं। दीवार पर छायावाद के स्तम्भ प्रसाद, निराला, पंत, महोदवी की तस्वीर है। दाई तरफ शास्त्री जी की वो तस्वीर जब वे मुज़फ्फ़रपुर आए थे। बांई तरफ वो तस्वीर जब वे सेवानिवृत्त हुए, तब वे पटने में थे। हम उन सारी तस्वीरों को अपने कैमरे में उतारने लगे। तस्वीरों में भरपूर, लंबे बाल, शास्त्री जी की पहचान। शास्त्री जी के सामने एक औसत कद का दर्पण और एक छोटी कंघी आज भी पड़ीं है। शायद उनकी कुंतल-प्रियता की गवाह।
लोगों से सुन रखा था शास्त्री जी की याददाश्त बहुत कमजोर हो चुकी है। हां, बात-चीत के दौरान हमें भी लगा। अतः इस आलेख में कुछ तथ्यगत भूल हो सकते हैं। पर जो भी उन्होंने बताया हम उसे ही पेश कर रहे हैं। कुछ पूछने से पहले खुद ही बताना शुरु कर देते हैं। घटनाओं को बेतरतीब बताते हैं। कई बार भूल जाते हैं। फिर पूछते हैं क्या कह रहा था? कई बार एक ही वाकया बार-बार सुनाते हैं। कहीं का कहीं जोड़ देते हैं, तो कभी बोलते-बोलते चुप हो जाते हैं। काफी देर बाद फिर बोलते हैं। जबकि उनकी पत्नी छाया देवी से बात हुई तो पाया कि वे बोलने का क्रम बनाए रखती है। सिलसिलेवार बताती हैं बात को। बड़े ही मृदुल और शांत स्वभाव की महिला हैं वो। शास्त्री जी को अगर बीच में बात काटो तो झल्ला भी जाते हैं। सुन भी नहीं पाते कई बार।
हमसे पूछते हैं, ‘क्यों आए? कुछ भी नहीं कहूँगा। छापोगे? .. नहीं बताऊँगां कुछ भी। ... जाओ औरों से पूछो। यहां क्यों आए? ऐसा क्या है शास्त्री के पास कि मिलने चले आए!’
हमने कहा –‘आपका आशीर्वाद लेने आए हैं। यही पढ़ता था। एल.एस. कॉलेज, बिहार यूनिवर्सिटी में। छुट्टियों में छठ मनाने घर आया था। बस आपके चरण छूने चला आया।’
थोड़ा शांत दिखे तो हम भी सोचने लगे बात कहां से शुरु करें। हमने कहा, ‘एक फोटो चाहिए। आपके साथ।’
हंसते हैं। ‘मेरे साथ बैठे पाओगे। बैठो।’ पलंग पर सलगी (पुराने कपड़े से बनी तोशक) बिछी थी उसे मोड़ देते हैं। करण खींचता है फोटो।
हमने उनके पैर के पास उसी पलंग पर जगह ली। करण उनके बगल में बैठ गया। बच्चे तो फोटो लेने में मस्त थे। एक कुर्सी थी। श्रीमती जी उस पर बैठ गईं।
पूछा, ‘कैसे हैं, तबीयत कैसी है?’
बोलते हैं, ‘देख ही रहे हैं, ठीक हूं।’
ऊपर टंगे एक चित्र को दिखाते हुए कहते हैं, ‘यह लड़का आया था मुज़फ़्फ़रपुर।’
सामने दूसरी दीवार पर टंगे दूसरे चित्र को दिखाते कहते हैं, ‘यह .. पटना से सेवानिवृत हुआ था। नौकरी खोजने से लेकर सेवानिवृत होने तक का फोटो लगा रखा है। इन दोनों के बीच आपके सामने बैठा हूं, ९५ साल का जानकी वल्लभ शास्त्री! .. अकेला!! … एक एकड़ जमीन के प्लाट में बने आवास में अकेला!!!’
उनकी उम्र का कहीं कोई प्रभाव न आवाज़ पर था न ही नजरों पर।
शास्त्री जी ज़ोर से आवाज़ लगाते हैं, ‘अरे कोई है। ज़रा बहू के जगाओ। बुलाओ बाहर। लोग आए हैं मिलने। दूर से।‘ फिर हमें बताया, “बीमार रहती हैं। बारहों मास बीमार रहने वाली बहू हैं। अच्छी हैं .... अच्छा ही है, अच्छे लोग बीमार ही रहते हैं।’’ पता नहीं उनका व्यंग्यार्थ क्या था... शायद विधाता के असंतुलित अनुकम्पा पर ही व्यंग्य हो किन्तु हमें नेपोलियन बोनापार्ट की उक्ति याद आयी, "द वर्ल्ड सफ्फर्स अ लोट नोट बिकॉज ऑफ़ द वायलेंस ऑफ़ द बैड पीपल बट बिकॉज द सायलेंस ऑफ़ द गुड़ पीपल।" अच्छे लोग अच्छे बने रहने के लिए कुछ भी झेल लेते हैं। यह भी तो मानसिक बीमारी ही है।
शास्त्री जी फिर कहते हैं ... “बीमार तो .. रहना ही चाहिए। ... इंसान अगर बीमार ज़्यादा नहीं रहेगा तो पियक्कड़ हो जाएगा!”
हमने सोचा सच ही तो कह रहे हैं, जो स्वस्थ है, समृद्ध है, सबल है, उसे किसी न किसी चीज़ का नशा तो रहता है, अपने स्वस्थ, सबल होने का ही सही।
हम जितनी देर रहे, उनकी इस तरह की कई उक्तियां सुनने को मिलती रही।
… ज़ारी ….
** अगले महीने आचार्य जानकीबल्लभ शास्स्त्री जी का जन्मदिवस है। तब तक उनके आशीष स्वरुप यह श्रृंखला आप तक पहुंचती रहेगी … फ़ुरसत में… हमारे ब्लॉग से शास्त्री जी को जन्मदिवस की हार्दिक शुभ-कामना देने में हमारे साथ आयें।
धन्यवाद !
आपका अग्रिम धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी प्रस्तुति। हार्दिक शुभकामनाएं!
फ़ुरसत में आचार्य जानकीवल्लभ शास्त्री के साथ
आह............ तस्वीरों को देख एक बार फिर वे क्षण जीने की लालसा बलवती हो उठी! अरे कोई है.... बहू को बुलाओ.... देखो कितने दूर से अतिथि आये हैं....... किसने यह बांसुरी बजाई.... शास्त्रीजी के स्वर हे कानों में घुमर रहे हैं.
जवाब देंहटाएंआचार्य जानकीवल्लभ शास्त्री जी के संबंध में अच्छी जानकारी प्रस्तुत करने के लिए आप धन्यवाद के पात्र हैं। अपने प्रकाशस्म्भों का सामीप्य-बोध कराने का आपका यह प्रयास सर्वरूपेण एवं सर्वभावेन प्रशंसनीय है। आगले भाग का इंतजार रहेगा। मेरे पोस्ट पर आपका निमंत्रण है।
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छा लगा इस मुलाकात के बारे में पढ़कर। हमारे बड़े बुजुर्ग साहित्यकारों के पल्ले बुढ़ापे में स्मृतिलोप, खीझ और असहाय संवाद ही पड़ते हैं!
जवाब देंहटाएंआगे की कड़ियों का इंतजार है।
पुरोधा शास्त्री जी को सादर नमन. आपको धन्यवाद.
जवाब देंहटाएंबुजुर्ग शास्त्री जी से आपकी मुलाकात मन को छू गयी . अगली कडियों का इंतजार रहेगा .
जवाब देंहटाएंआचार्य जानकीवल्लभ शास्त्री जी के बारे में और जानने की उत्सुकता बनी हुई है !
जवाब देंहटाएंआपके संस्मरण की तस्वीरें बोलती हैं !
अगले अंक का बेसब्री से इंतज़ार है !
-ज्ञानचंद मर्मज्ञ
करण समस्तीपुरी जी के बुधवार वाले देसिल बयना के कुछ अंक पढ़ चुका हूँ। आज आप के यहां तस्वीर भी देख लिया।
जवाब देंहटाएंअगली कड़ी का इंतजार है।
बहुत अच्छा लगा इस मुलाकात के बारे में पढ़कर।
जवाब देंहटाएंशास्त्री जी को नमन और सुन्दर उक्तियाँ हमसे बाँटने के लिये भी धन्यवाद। अगली कडी का इन्तजार रहेगा।
जवाब देंहटाएंab to निराला निकेतन dekhne ko man kar raha hai.
जवाब देंहटाएंनमस्कार !
जवाब देंहटाएंबेहद अच्छा लगा , लगा ऐसे कि हम ने वहा भ्रमण कर लिया हो . आदर जोग शात्री जी को सादर नमन !
आप का भी आभार !
सादर
भेंट एक अनुभव रहा होगा, शास्त्रीजी को सादर बधाईयाँ, अग्रिम।
जवाब देंहटाएंBahut bahut dhanyawad hindi sahitya ke puroudha se milane ke liye...:)
जवाब देंहटाएंmere dil se unhe naman hai!
आचार्य जानकीवल्लभजी शास्त्रीजी के इन्सानियत से परिपूर्ण दुर्लभ व्यक्तित्व से परिचित करवाने हेतु आपका आभार. अगली कडी की प्रतिक्षा सहित...
जवाब देंहटाएंबहुत प्रभावशाली और दुर्लभ पोस्ट !
जवाब देंहटाएंbahut sashakt lekh.
जवाब देंहटाएंपरम श्रद्धेय आचार्य जानकी बल्लभ शास्त्री जी से आपकी रूबरू बातचीत का एक अंश पढ़ने को मिला ,बहुत अच्छा लगा. ऐसे योग्य व्यक्ति को साहित्य का सर्वोच्च सम्मान बहुत पहले ही मिल जाना चाहिए था . विलम्ब से देने का कोई अर्थ नहीं रहता. ऐसे में सम्मान को वापस कर देना ही उचित क़दम है. उनकी साहित्य सेवा के आगे हम लोगों का योगदान एक बहुत मामूली सा हिस्सा है. उनके जन्म दिन के लिए मैं अपना एक मुक्तक बधाई स्वरुप भेजूंगा, हो सके तो उनसे सम्बंधित अगली पोस्ट में मेरे मुक्तक का इस्तेमाल करियेगा.
जवाब देंहटाएंबहुत ही बढ़िया लगा..इस आत्मीय मुलाकात का विवरण...
जवाब देंहटाएंआपने तो बिलकुल तस्वीर ही खींच दी नज़रों के सामने...अगली कड़ियों का इंतज़ार रहेगा.
बहुत ही शालीन और आदर भरी इस भेंटवार्ता की प्रस्तुति के लिए आप दोनों महानुभावों को बधाई।
जवाब देंहटाएंआचार्य जानकी बल्लभ शास्त्री जी से आपकी मुलाकात से लगा जैसे हम ही वहा मिल रहे है, जो आपकी इतनी सुंदर प्रस्तुति है. शास्त्री जी का व्यक्तित्व एक महान प्रेरणा है..... जन्मदिन की बधाई में कृपया हमें भी शामिल कारें . आभार.
जवाब देंहटाएंbahut hee prashansniya kaam. hamare jaise pathak anugrahit hain. Dhanyawad.
जवाब देंहटाएंअब क्या कहूं मनोज जी, गुरुवर के दर्शन कराके धन्य कर दिया मुझे, मैंने कभी महाप्राण निराला को नहीं देखा मगर जिस व्यक्ति की आँखों में मैंने देखी है निराला की छवि . सोचिये जब आप उस व्यक्तित्व से मिले होंगे तो आपकी मन:स्थिति क्या रही होगी ?
जवाब देंहटाएंआज आपके पोस्ट को पढ़कर पुरानी स्मृतियाँ ताज़ी हो गयी अचानक -
बात उन दिनों की है जब वर्ष-१९९१ में मेरा पहला ग़ज़ल संग्रह "हम सफ़र " प्रकाशित हुआ . नया-नया साहित्य के क्षेत्र में प्रवेश किया था . लोगों ने काफी सराहा और ग़ज़ल-गीत-कविता लिखने का जूनून बढ़ता गया .मगर मैं तब हतप्रभ रह गया जब वर्ष -१९९३ में हिन्दी साहित्य के शलाका पुरुष आचार्य जानकी बल्लभ शास्त्री जी ने मेरी चार ग़ज़लों को अपनी मासिक पत्रिका बेला के कवर पृष्ठ पर छापा और ११-१२ फरवरी १९९४ को निराला निकेतन में आयोजित कवि सम्मलेन हेतु आमंत्रित किया इसी दौरान पहली वार मैं मिला आदरणीय आचार्य जी से और खो गया उनके प्रभामंडल में एकबारगी समारोह के दुसरे दिन आचार्य जी ने अलग से मुझे मिलने हेतु अपने निवास पर बुलाया और अपनी शुभकामनाओं के साथ-साथ अपना आशीर्वचन दिया . उसी समय आचार्य जी का नया-नया खंडकाव्य "राधा" और कौन सुने नगमा ग़ज़ल की किताब आई थी जिसपर विस्तार से चर्चा हुयी . मैंने उन्हें उसी दौरान सीतामढ़ी में होने वाले विराट कवि सम्मलेन सह सम्मान समारोह में आने हेतु ससम्मान आमंत्रित किया जिसे उन्होंने स्वीकार कर लिया ...
" ... Bcz silence of good people...," great
जवाब देंहटाएंagle post kee besabra pratikcha Rahegee.
शास्त्री जी से मिलना बहुत अच्छा लगा, बुजुर्ग लोग बहुत कुछ ऎसा बोल देते हे जो हमारी समझ मै बाद मे आता हे, सभी चित्र बहुत अच्छे लगे, धन्यवाद, शास्त्री जी को प्रणाम
जवाब देंहटाएंमन भावुक हो गया....
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार आपलोगों का...
सौभाग्य उदय हो तभी गुणीजनों का सानिध्य मिलता है..
अच्छे लोग अच्छे बने रहने के लिए कुछ भी झेल लेते हैं। यह भी तो मानसिक बीमारी ही है.
जवाब देंहटाएंसच ही है.
एक से एक बढ़कर रोचक युक्तियों से औत प्रोत संस्मरण. दिल को छू लेने वाली भाषा.और शाष्त्री जी का व्यक्तित्व
बहुत अच्छा लग रहा है पढ़ना .अगली कड़ी का इंतज़ार है.
बहुत अच्छा लगा जानकर्……………दुर्लभ जानकारी।
जवाब देंहटाएंअगर कहें कि मन भर गया अऊर आँख डबडबा गया त अतिशयोक्ति मत समझियेगा... शास्त्री जी से एक बार आकाशवाणी पटना में मिले थे. मिले थे का, बईटःअकर उनका कबिता उनके सिरीमुख से सुने थे.. मगर आज लगता है कि बिहार में सहित्य के बिभूति लोग के किस्मत में पद्म्श्री लौटाना ही बदा है.. रेणु जी अऊर शास्त्री जी! मगर एक बात तो तय है कि ई सब पुरस्कार छोटा है उनके जोगदान के आगे!!
जवाब देंहटाएंचरण स्पर्श शास्त्री जी का इस पोस्ट के माध्यम से!!
सादर धन्यवाद् - शास्त्रीजी को सहृदय जन्मदिवस की शुभकामनाएं तथा आपको सपरिवार नव वर्ष की मंगल कामना
जवाब देंहटाएंएक जीवंत चलचित्र ......
जवाब देंहटाएंपरम श्रद्धेय आचार्य जानकी बल्लभ शास्त्री जी आपकी रूबरू बातचीत का अंश पढ़कर मन को बहुत अच्छा लगा .....
बहुत अच्छी सार्थक प्रस्तुति ... आभार
bahut achha laga
जवाब देंहटाएंsaskt lekh
kabhi yha bhi aaye
www.deepti09sharma.blogspot.com
Acharya ji ke bare me jaankar acha laga. Agle bhag ki pratiksha rahegi.
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंआदरणीय मनोज सर,
जवाब देंहटाएंपरम आदरणीय श्री जानकी बल्लभ शास्त्री जी और निराला निकेतन की चर्चा करके मुझे 25 साल पीछे जाने पर मजबूर कर दिया जहाँ मैं रामबाग में रोज अपने दोस्त के यहाँ जाया करता था जो वैध जी के लड़के थे.वैध जी शास्त्री जी के परम मित्र थे . उनके घर के पास से कई-बार निकला मगर मुलाकात करने की हिम्मत नहीं जुटा पाया.दिल्ली आ जाने के बाद यह सुअवसर नहीं प्राप्त हो सका ,लेकिन उसकी भरपाई आपकी जानकारी से काफी हदतक हो पाई है.उनकी एक किताब मैंने आज भी बहुत संभाल कर रखी है.बहुत गर्व होता यह सोचकर कि मैं उनके शहर ही नहीं उनके घर के भी काफी करीब खादी-भंडार में ही रहता था.हमारे समय में वे सेवा-निवृत होकर आ चुके थे .बहुत भावुक कर दिया आपके इस जीवंत संस्मरण ने.बहुत-बहुत आभार .
आचार्य शास्त्री जी से मिलना अच्छा लगा।
जवाब देंहटाएंशास्त्री जी को नमन। उनके शतायु होने की मंगल कामना के साथ,
गुरुवर आचार्य शास्त्री किवदंती हैं। उनसे संबन्धित शृंखला प्रेरक साबित होगी। उन्हें नमन।
जवाब देंहटाएंआदरणीय शास्त्री जी से आपके आलेख के द्वारा ही परिचित होने का सौभाग्य मिला ! सहज ही उनके विलक्षण व्यक्तित्व के बारे में अनुमान लगा पा रही हूँ ! उनके बारे में और अधिक जानने की जिज्ञासा बनी हुई है ! आपके आलेख की अगली कड़ियों की प्रतीक्षा रहेगी ! शास्त्री जी को मेरा नमन तथा उनके आगामी जन्मदिन के लिये अग्रिम शुभकामनायें !
जवाब देंहटाएंआचार्य जानकीवल्लभ शास्त्री जी साहित्य जगत के दीप्यमान नक्षत्र हैं। उनके साक्षात्कार से उनसे सामीप्य अनुभव हुआ। उन्हें सादर नमन।
जवाब देंहटाएंसाहित्य के पुरोधा आचार्य जानकीवल्लभ शास्त्री जी हम सब के प्रेरणाश्रोत हैं और रहेंगे। उनके जीवन के बारे जानकर मन द्रवित हो उठा। उन्हें आदर के साथ नमन एवं उनके शतायु होने की ईश्वर से कामना करता हूँ।
जवाब देंहटाएंbahut hi sundar sansmaran hai, aatmiyata se likha gaya.
जवाब देंहटाएंवाह, हीरा ढूंढ लाये हैं मुजफ्फरपुर से आप। जानकीवल्लभ शास्त्री जी को नमन!
जवाब देंहटाएंमहत्वपूर्ण पोस्ट लगी हिन्दी ब्लॉगिंग के लिये!
पुरोधा शास्त्री जी को सादर नमन ... बहुत अच्छा लगा इस मुलाकात के बारे में ...
जवाब देंहटाएंआचार्य जानकीवल्लभ शास्त्री जी के बारे में और जानने की उत्सुकता बनी हुई है !
जवाब देंहटाएंआपके संस्मरण की तस्वीरें बोलती हैं !
अगले अंक का बेसब्री से इंतज़ार है शास्त्री जी को सादर नमन.
मेरे पोस्ट पर आपका निमंत्रण है।
मेल कब का ही मिला था . थोड़ा विलम्ब से हूँ , इसलिए क्षमाप्रार्थी भी हूँ . ऐसे कार्य आपके जीवट और श्रेष्ठ मनोयोग के सूचक है . उम्मीद है कि ऐसे कार्य अपने परिवेश को चुपचाप संस्कारित करने का कार्य भी करेंगे , इसलिए आपके प्रयत्नलाघव पर बरबस मुग्ध हूँ !
जवाब देंहटाएंएक अलक्षित पक्ष की आवाज आप चाहें तो यहाँ देख सकते हैं :
http://jyotsnapandey.blogspot.com/2011/01/blog-post.html
aapki prastuti ko padh kar acchha laga. aage bhi padhne/jaanne ki utsukta rahegi.aapki shastri ji se milne ki khushi ka is prastuti dwara andaza lagaya ja sakta hai.
जवाब देंहटाएंaabhar aisi shakhsiyat se milwane k liye.
शास्त्री जी को सादर नमन. इस पोस्ट के लिए आपका धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंमनोजजी /करन जी ... इस संस्मरण पर कुछ कहना मेरे लिए मुश्किल है.. सो बस उनकी एक कविता टिप्पणी स्वरुप प्रस्तुत कर रहा हूँ... उनके जीवन से मेल खाती है... शाश्त्री जी को शत शत नमन..
जवाब देंहटाएं"ऐ वतन याद है किसने तुझे आज़ाद किया ?
कैसे आबाद किया ? किस तरह बर्बाद किया ?
कौन फ़रियाद सुनेगा, फलक नहीं अपना,
किस निजामत ने तुझे शाद या नौशाद किया ?
तेरे दम से थी कायनात आशियाना एक,
सब परिंदे थे तेरे, किसने नामुराद किया ?
तू था ख़ुशख़ल्क, बुज़ुर्गी न ख़ुश्क थी तेरी,
सदाबहार, किस औलाद ने अजदाद किया ?
नातवानी न थी फ़ौलाद की शहादत थी,
किस फितूरी ने फ़रेबों को इस्तेदाद किया ?
ग़ालिबन था गुनाहगार वक़्त भी तारीक़,
जिसने ज़न्नत को ज़माने की जायदाद किया ?
माफ़ कर देना ख़ता, ताकि सर उठा के चलूँ,
काहिली ने मेरी शमशेर को शमशाद किया ?"
sabhee paathakon ka aabhar.
जवाब देंहटाएंमनोज जी, नमस्कार!
जवाब देंहटाएंनव वर्ष का शुभारम्भ राष्ट्र भाषा को समर्पित एक यशस्वी रचनाकार की सचित्र चर्चा से हो, शायद इससे बड़ी बात, राष्ट्रीय चेतना, हिंदी प्रेमियों के लिए दूसरी नहीं हो सकती. दूसरी बात एक सशक्त परिचय के साथ बोलती तश्वीरें बी बहुत कुछ कहती हैं जैसे मूक नहीं बोलने को बेताब हैं. ...क्या खूब चुनाव किया है आपने . सशक्त रचना के लिए आभार. नव वर्ष की शुभ कामनाएं
शास्त्री जी को नमन।
जवाब देंहटाएंआचार्य जानकीवल्लभ शास्त्री जी के बारे में कुछ भी जानना अपने गौरवशाली अतीत के बारे में जानना है. वह जिन मूल्यों का प्रतिनिधित्व करते थे उनका प्रतिनिधित्व करना अब मुश्किल ही नहीं लगभग असंभव है. आज मानवीय मूल्यों का निरंतर ह्रास होता जा रहा है.
जवाब देंहटाएं