शिवस्वरोदय-25
पिंगला नाड़ी के प्रवाह-काल में किए जानेवाले कार्य
आचार्य परशुराम राय
पिछले अंक में इडा नाड़ी के प्रवाह-काल में किए जानेवाले कार्यों के विवरण दिए गए थे। इस अंक में पिंगला नाड़ी के प्रवाह-काल में किए जानेवाले कार्यों के विवरण प्रस्तुत हैं। इस संदर्भ में यहाँ आठ श्लोक दिए गए हैं। समझने की सुविधा की दृष्टि से इनके भावार्थ एक साथ दिए जा रहे हैं।
कठिन-क्रूर-विद्यानां पठने पाठने तथा।
स्त्रीसङ्ग-वेश्यागमने महानौकाधिरोहणे।।114।।
भ्रष्टकार्ये सुरापाने वीरमन्त्राद्युपासने।
विह्वलोध्वंसदेशादौ विषदाने च वैरिणाम्115।।
शास्त्राभ्यासे च गमने मृगयापशुविक्रये।
इष्टिकाकाष्ठपाषाणरत्नघर्षणे दारुणे।।116।।
गत्यभ्यासे यन्त्रतन्त्रे दुर्गपर्वतारोहणे।
द्यूते चौर्ये गजाश्वादिरथसाधनवाहने।।117।।
व्यायामे मारणोच्चाटे षट्कर्मादिसाधने।
यक्षिणी-यक्ष-वेताल-विष-भूतादिनिग्रहे।।118।।
खरोष्ट्रमहीषादीनां गजाश्वरोहणे तथा।
नदीजलौघतरणे भेषजे लिपिलेखने।।119।।
मारणे मोहने स्तम्भे विद्वेषोच्चाटने वशे।
प्रेरणे कर्षणे क्षोभे दाने च क्रय-विक्रये।।120।।
प्रेताकर्षण-विद्वेष-शत्रुनिग्रहणेSपि च।
खड्गहस्ते वैरियुद्धे भोगे वा राजदर्शने।
भोज्ये स्नाने व्यवहारे दीप्तकार्ये रविः शुभः।।121।।
भावार्थ – पिंगला नाड़ी के प्रवाह के समय निम्नलिखत कार्य प्रारम्भ करने के सुझाव दिए गए हैं जिससे सफलता मिले-
कठिन तथा क्रूर विद्याओं का अध्ययन और अध्यापन, स्त्री-समागम, वेश्या-गमन, जलयान की सवारी, भ्रष्ट कार्य, सुरापान, वीर-मंत्रों आदि की साधना, शत्रु पर विजय या उसे विष देना, शास्त्रों का अध्ययन, शिकार करना, पशुओं का विक्रय, ईंट तथा खपरे बनाना, पत्थर तोड़ना, लकड़ी काटना, रत्न-घर्षण, दारुण कार्य करना, गति का अभ्यास, यंत्र-तंत्र की उपासना, किले या पहाड़ पर चढ़ना, जुआ खेलना, चोरी करना, हाथी या घोड़े की सवारी करना या उन्हें नियंत्रित करना, व्यायाम करना; मारण, उच्चाटन, मोहन (वशीकरण), स्तम्भन, शान्ति और विद्वेषण तांत्रिक षट्कर्म की साधना करना, यक्ष-यक्षिणी, वेताल आदि सूक्ष्म जगत के जीवों से सम्बन्धित साधना या सम्पर्क करना, विषधारी जन्तुओं को नियंत्रित करना; गधे, घोड़े, ऊँट, हाथी अथवा भैसे आदि की सवारी, नदी या समुद्र को तैरकर पार करना, औषधि का सेवन, पत्राचार करना, प्रेरित करना, कृषि कार्य, किसी को क्षुब्ध करना, दान लेना-देना, क्रय-विक्रय, प्रेतात्मओं का आह्वान, शत्रु को नियंत्रित करना या उससे युद्ध करना, तलवार धारण करना, इन्द्रिय सुख का भोग, राज-दर्शन, दावत खाना, स्नान, कठोर कार्य और व्यवहार करना आदि में सूर्य-प्रवाह शुभ होता है।114-121।।
English Translation – Following actions have been suggested to do during the flow of breath through right nostril-
All sciences or practices pertaining to Vamamargi Tantra or need vigorous physical labour are to be taught or learnt, sexual contact by men (for women left nostril flow has been suggested), to have contact with prostitutes, journey by boat, ship etc, depraved act, to take liquor, practice of Veera-Mantras, Victory over an enemy or to poison an enemy, study of sciences, hunting, sale or purchase of animals, preparation of bricks and tiles, stone breaking, wood cutting, grinding of gems, horrible or difficult work, practice of running or likewise work, practice of Yantra-Tantra, climbing up forts, hills or mountain, gambling, stealing, riding of horses, elephants, camel, ass or buffalo, physical exercises, practice Vamamargi Tantric Shat-Karma (Marana-to hurt or kill someone, Uchchatana-to disturb someone mentally, Stambhana-to immobilize or gender inert, Mohana or Vashikarana-to influence the minds of others, Shanti-tantric practices leading to peace or happiness and Vidveshana-to create anomisity between two or more people), practicing for having contact with beings of subtle world like Yksha, Yakshini, ghosts etc, controlling of poisonous creatures, to cross river or sea by swimming, use of medicine, correspondence, to inspire someone, agricultural work, to disturb somebody, to donate or take donation, procurement or disposal, summoning ghosts, battle against enemies to control them, to have a sword, enjoyment of pleasure of senses, to visit king or boss, to have feast any hard work or unpleasant behavior.
भुक्तमार्गेण मन्दाग्नौ स्त्रीणां वश्यादिकर्मणि।
शयनं सूर्यवाहेन कर्त्तव्यं सर्वदा बुधैः।।122।।
अन्वय – सर्वदा बुधैः भुक्तमार्गेण मन्दाग्नौ स्त्रीणां वश्यकर्मणि शयनं सूर्यवाहेन कर्तव्यम्।122।
भावार्थ – भूख जाग्रत करना, किसी स्त्री को नियंत्रित करना और सोना आदि कार्य बुद्धिमान लोग सफल होने के लिए सूर्य नाड़ी के प्रवाह काल में करते हैं।
English Translation – To increase appetite, to have control of woman, sleeping etc are to be done during the flow of breath through right nostril as suggested by wise persons.
क्रूराणि सर्वकर्माणि चराणि विविधानि च।
तानि सिद्धयन्ति सूर्येण नात्र कार्या विचारणा।।123।।
अन्वय – क्रूराणि सर्वकर्मणि विविधानि चराणि च तानि सूर्येण सिद्धयन्ति, अत्र न विचारणा कर्या।123।
भावार्थ – सभी प्रकार के क्रूर कार्य और विविध चर कार्य (अस्थायी प्रकृति वाले कार्य) सूर्य नाड़ी के प्रवाह काल में करने पर सिद्ध होते हैं, किसी प्रकार का इसमें संशय नहीं।
English Translation – All kinds of harsh acts and different work having temporary results started during the flow of breath through right nostril give desired results undoubtedly.
******
शिव स्वरोदय का विस्तृत ज्ञान मिल रहा है।
जवाब देंहटाएंआभार
जानकारी परक पोस्ट !
जवाब देंहटाएं-ज्ञानचंद मर्मज्ञ
ज्ञानवर्धन के लिए आभार.
जवाब देंहटाएंनाड़ी पर वैज्ञानिक दृष्टीकोण लिए हुए ये आलेख बड़ा लाभकारी है.
जवाब देंहटाएंस्वरोदय विज्ञान बहुत लाभकारी है। यह शास्त्र जन जन-जन तक पहुँचाकर आप जन हित का कार्य कर रहे हैं। आपको आभार।
जवाब देंहटाएंयानि की सभी प्रकार के तामसिक कार्य इस काल में साधने चाहिए....
जवाब देंहटाएंअति सुंदर जानकारियां जी धन्यवाद
जवाब देंहटाएंवाह-वाह ! देखिये... हमारे शास्त्र में लोक मंगल..... सबजन हिताय.... अनैतिक कार्यों के लिए भी नैतिक विधान.... ताकि उनका भी मंगल हो. बहुत अच्छा ! आचार्य जी को नमन !!!
जवाब देंहटाएंज्ञानवर्धक जानकारी.
जवाब देंहटाएंइस ज्ञान वर्धक और उपयोगी आलेख के लिए आभार!
जवाब देंहटाएंज्ञानवर्धक जानकारी.
जवाब देंहटाएं