लघुकथा
स्वागत!!
उस दिन प्याज पहलवान और टमाटर ठाकुर आमने-सामने भिड़ गए। रास्ता तंग था। कोई किसी को आगे बढने की जगह नहीं दे रहा था।
प्याज पहलवान दहाड़ा, “हट जा मेरे रास्ते से! जानता नहीं तू मैं कौन हूँ?”
टमाटर ठाकुर ने व्यंग्य कसा, “कौन हो तुम?”
प्याज पहलवान की दहाड़ और भी तेज़ हो गई, “आज मैं देश की सबसे चर्चित और महत्त्वपूर्ण शख़्सियत हूँ। अब वो दिन लद गए जब मुझे हिकारत की नज़र से देखा जाता था और लोग मुझसे दूरियाँ बनाते थे। मेरी देह की दुर्गंध उन्हें परेशान करती थी। मेरी उपस्थिति से उनकी आँख में किरकिरी होती थी। आज तो मुझे पाकर, मेरे समीप आकर लोगों की आँखों में ख़ुशी के आँसू होते हैं!”
टमाटर ठाकुर के चेहरे पर कुटिल मुस्कान तैर गई, “हुँह! आज मैं भी वो नहीं रहा, जब लोग मुझे सड़े-गले और भौंडे प्रदर्शनों वाले कार्यक्रमों में प्रयोग किया करते थे। आज मैं भी तुमसे किसी मायने में कम नहीं हूं। लोग अब मुझे भी पाकर खुशी के आँसू बहाते हैं …!”
यह सुन प्याज पहलवान ने टमाटर ठाकुर को गले लगाया। ‘अरे! हम दोनों इतने बेशकीमती हो गए हैं … आओ गले मिलें!’
अगले दिन दोनों ने खुदरा-बाज़ार संघ के कार्यक्रम के मंच पर मुस्कुराते हुए मुख्य अतिथि का आसन ग्रहण किया। सामने जमीन पर बैठी आम जनता आँखें फाड़े उन्हें देखे जा रही थी, जबकि कुछ खास लोग मंचासीन अतिथियों का खुले दिल से स्वागत कर रहे थे।
सही कहा, अब तो कोई किसी विरोध प्रदर्शन के दौरान टमाटर वगैरह मंच पर फेंके तो वो एक प्रकार का विरोध न होकर सम्मान की तरह का मामला हो जायगा :)
जवाब देंहटाएंसच ही कहा गया है-जिंदगी में कभी-कभी हम जिसे उपेक्षित कर देते हैं,समय आने पर उसे ही मन मसोस कर स्वीकार करना पड़ता है।पिछले दिमों जब प्याज और टमाटर का दाम आसमान छू रहा था,मेरे घर में इसका सेवन प्राय:कम हो गया था।एक दिन अचानक मेरे घर में कुछ विशेष मेहमान आ पधारे।।उन विशेष मेहमानों मे से श्रीमती जी का एक भाई भी था।स्वागत करना भी जरूरी था। प्याज और टमाटर लाने का आदेश मिल गया। पूरे बाजार का चक्कर लगाने के बाद एक जिगरी दोस्त ने आशा की किरण दिखाई । उसने कहा- "साव जी के घर जाओ एवं मेरा नाम बताना।"साव जी के घर पहुँचा एवं संक्षिप्त परिचय के बाद 100 रू.में एक किलो आलू और एक किलो प्याज मिल गया। बाजार से घर लौटते वक्त ऐसा लग रहा था जैसे मैने दुनिया को ही खरीद लिया है।उस दिन लगा था कि मैने किला फतह कर लिया है एवं चलते-चलते एक शेर याद आ गया-
जवाब देंहटाएंतुझे पाकर मैनें जहाँ पा लिया है,
अब ये हाथ उठते नही खुदा के नाम पर।अति सुंदर।
Good Morning,Sir.
अपनी टिप्पणी में टमाटर की जगह आलू लिख दिया हूँ,कृपया इसे टमाटर पढ़ें।इसे भूल सुधार समझें।
जवाब देंहटाएंमंहगा होते ही स्टार हो गये
जवाब देंहटाएंसब्जियों में भी लोकतन्त्र और बाजार हावी है।
जवाब देंहटाएंkuch dinon me ye hi sarvesarva ho jayenge
जवाब देंहटाएंटमाटर और प्याज तो प्रतीक मात्र हैं। वास्तव में यह आज के युग की विडम्बना है कि में गैर महत्वपूर्ण लोग भी अवसर आने पर प्रतिष्ठा अर्जित कर लेते हैं। यह इस लघुकथा में आकर्षक ढंग से व्यंजित हुआ है।
जवाब देंहटाएं-हरीश प्रकाश गुप्त
बिम्बों के माध्यम से कथानक में मँहगाई की जो व्यंजना की गई है, बड़ी ही आकर्षक है।
जवाब देंहटाएंकहानी लघुकथा की कसौटी पर खरी दिखती है।
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जवाब देंहटाएंअच्छी लगी लघु कथा.
भुक्त भोगी हैं हम सब
इसलिये रास आयी ये व्यंग्य-व्यथा.
पिछले दिनों
मुझे राह में
एक अच्छी नस्ल का
बेशकीमती प्याज पाया.
मैंने सबकी नज़रों से बचा उसे उठाया.
गले लगाया.
घर ले आया. पत्नी को नहीं बताया.
उस एक प्याज को छोटे-छोटे बेकार प्याजों में चुपचाप मिलाया.
आज़ किस पर फुर्सत है कि इस तरह की मिलावट पर शंका करे?
एक सार्वजनिक सूचना :
मेरे ऑफिस के पास ही ओखला मंडी है. किसी थोक विक्रेता का यदि कोई प्याज खोया हो तो मुझसे संपर्क करें.
प्याज अभी तक खाया नहीं गया है.
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ये विम्बात्मक प्रस्तुति बहुत ही अच्छी लगी
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत धन्यवाद
अगले दिन दोनों ने खुदरा-बाज़ार संघ के कार्यक्रम के मंच पर मुस्कुराते हुए मुख्य अतिथि का आसन ग्रहण किया
जवाब देंहटाएं:) :) बढ़िया प्रस्तुति ..
आज कल प्याज पहलवान से सबने हारी मान ली है.
जवाब देंहटाएंआज के हालात का लघुकथा के माध्यम से सुन्दर चित्रण किया है।
जवाब देंहटाएंaaj ki samajik haalat par achcha prahar.
जवाब देंहटाएंsab bazar ki maya hai...kab kise kulanche marne per vivesh kar dein...kah nahi sakte...
जवाब देंहटाएंkafi achhi prastuti ke liye sadhuwad...
दोनों ही सेलिब्रेटी हैं...
जवाब देंहटाएंझगड़े हों या गलबहियां, ये दोनों अतिथि न बनें, घर के सदस्य बने रहें.
जवाब देंहटाएंप्याज पहलवान.......... टमाटर ठाकुर......... बेचारा आम आदमी.... ! रोचक सम-सामयिक प्रस्तुति. धन्यवाद !!
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर लघुकथा.
जवाब देंहटाएंSachchi baat hai aadami ki kimat hi uske samman ki unchaai Tay karati hai.
जवाब देंहटाएंGantantr diwas kee anek shubhkamnayen!
जवाब देंहटाएंबहुत खुब जी :)
जवाब देंहटाएंप्रतुल वशिष्ठ जी की टिप्पणी के बाद कुछ कहने को नहीं रहा!! मनोज जी इसीलिये हम आपको प्याज से.. प्यार से छोटा भाई कहते हैं!!
जवाब देंहटाएंमनोज जी , बहुत ही अच्छी लघुकथा. इन हाई प्रोफाईल लोंगों की गलबहिया दोस्ती से ही तो आम आदमी त्रस्त है...
जवाब देंहटाएंसंक्षिप्त किंतु बढ़िया कटाक्ष! आठ आने रुपये किलो वाला प्याज, और कभी पांच पैसे मे तीन किलो बिकने वाला टमाटर………आज आम जनता की पहुंच बाहर हो रहे हैं। बनावटी अभाव बताकर "निर्यात" की राह पकड़ लोग बहती गंगा मे हाथ धो रहे हैं। क्या करियेगा! रचना के लिये बहुत बहुत आभार……
जवाब देंहटाएंबहत अच्छी व्यंग कथा लिखी आपने ।
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