!!सभी ब्लोगर मित्रों को भारत के गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभ-कामनाएं !!
-- करण समस्तीपुरी
देश आज़ाद हो गया था। साल-दू-साल से बिन्नू बाबाजी सगरे घूम-घूम कर कह रहे थे सुराज आ गया है। गंधी महतमा और जमाहिर लाल का सपना सच हो गया। गाँव-गाँव और जिला-जिला में इस्कूल अस्पताल सब खुलेगा। अब कौनो गोर्रा खप्तान का चाबुक नहीं खाना पड़ेगा। लोग-वाग सुन के जो हँसे.... हें...हें...हें... ई कौन आजादी मिला है जो बिन्नू बाबाजी तो सोलहन्नी नरभसा गए हैं। हें...हें...हें.... खादी भण्डार तो बंद होने वाला है और गाँव-गाँव में इस्कूल और इस्पिताल खुलेगा..... ही....ही...ही....ही...... नन्हकू गुरूजी और लूटन बैद जिंदाबाद !
'मृषा न होहि देव ऋषि वाणी.... ' सच्चे उ माघ महीना के ठिठुरती ठंडक में भरी सांझ माधोराम डिगडिगिया पीट रहा था, "डा.....डिग्गा..... डा..... डिग्गा...... डा..... डिग्गा....... अपना देश... अपना राज.... 26 जनवरी को लालकिला पर राजिंदर बाबू झंडा फहराएंगे.... अब अपना देश में अपना क़ानून चलेगा.... !"
मरद जात तो सड़क पर उतर आया था, जर-जनानी सब भी खिड़की फाड़ के देख-सुन रही थी। मास दिन गए जिरात पर एगो इस्कूल और स्थल पर सरकारी दवाखाना भी खुल गया था। जौन लोग बिन्नू बाबाजी के बात पर हँसता था उ सब भी मारे खुशी के बल्ली उछाल रहा था। तभी ई कौन जानता था कि इ गणतंत्र एकदिन गन(बन्दूक)तंत्र हो जाएगा।
जिरात पर इस्कूल खुले से तनिक कम्पटीशन तो हो गया था मगर नन्हकू गुरूजी के पाठशाला पर अभियो सबसे ज्यादा रौनक रहता था। पंद्रह अगस्त, छब्बीस जनवरी, सरोसती पूजा और दूसरा परव-त्यौहार में तो पूरा रेवाखंड उमर जाता था नन्हकू गुरूजी के पाठशाला पर।
उ बार जिरात पर वाला इस्कूल का हेडमास्टर 26 जनवरी के परोगराम के लिए शहर दरिभंगा से मलेटरी टरेनिंग बुलाया था। पदूमलाल कह रहे थे, "गुरूजी ई जुग-जुग का रेकट (रिकार्ड) नहीं टूटना चाहिए। पाठशाला पर भी एकदम चकाचक परोगराम हो।" नन्हकू गुरूजी भी ई को इज्जत का बात समझ बैठे।
बजरंगिया नन्हकू गुरूजी के पाठशाला का शान था। कुश्तियो में वैसने जबदगर और गीत-नाच में तो कौनो जोरे नहीं। पाठशाला का कौनो काज-करम बिना बजरंगिया के सुर से शुद्ध नहीं होता था।
गुरूजी अधरतिया तक रियाज कराते थे। "केहू लूटे न विदेशी टोपी ताज रखिह..... भारत माता के चुनरिया के लाज रखिह..... हो....... बन्दे-मातरम नारा के लिहाज रखिह...... केहू लूटे न विदेशी टोपी ताज रखिह................... !" आह क्या गला था बजरंगिया का। सच्छात सुरसतिये बिराजती थी। आँख दुन्नु बंद। एगो हाथ से कान ढक कर दूसरा हाथ उठा-उठा.... गीत में ऐसे रम कर गाता था कि लगे भारत माता खुदे बुला रही हैं।
रियाज में मौजूद गाँव जवार के लोग वाह-वाह करते नहीं थकते थे। ई बार तो पाठशाला का परोगराम जिलाजीत होगा। जरूर कलस्टर (कलक्टर) का इनाम मिलेगा। कोठी पर वाले सूरत चौधरी तो लाउडिसपीकर लगवाने का भी जिम्मा ले लिए
26 जनवरी को भोरे भोर पाठशाला पर सरपंच बाबू झंडा फहराए। जन-गण-मन, बन्दे-मातरम हुआ फिर बजरंगिया वही झंडे के नीचे गाया, "कौमी तिरंगे झंडे ऊचे रहो जहां में..... !" फिर गली-गली में रस वाला घूमघुमौआ गरम जिलेबी का परसाद बंटाया। और फिर एका पर एक रंगारंग कारज-करम।
छोट-मोट नाटक का भी जुगाड़ था। किला हिला दो दुश्मन का। नन्हकू गुरूजी अपने से सोच-सोच कर लिखे थे और चटिया (विद्यार्थी) सब को खूब रियाज कराये थे। गुरूजी अपनों कमाल के नटकिया थे। जनानी से लेकर जोकर तक का रोल मजे में कर लेते थे।
इहो नाटक में चीन जुद्ध का दिरिस दिखाए थे। बजरंगिया और घुघनी लाल मेन सिपाही बना था और सूरत चौधरी का बेटा कलिया हवालदार का रोल किया था। दर्जन भर छोटका विद्यार्थी सब दुन्नु तरफ का सिपाही बना था।
नाटक तो पहिले सीन से ऐसा चढ़ा कि लोग ताली पीटते-पीटते बेहाल। बजरंगिया तो जैसन डायलोग देने में माहिर था वैसने एक्शन में बिजली। एक्टिंग में तो उ हवलदारों को दाब देता था।
लड़ाई का सीन तो और बेजोड़ बना था। केतना लोग तो लघुशंका तक रोके टकटकी लगाए देखता रहा। कलिया तो खाली मुँह में चोंगा लगा के औडर दे रहा था। असल रोल तो बजरंगिया और घुघनिये लाल का था। अंत में बजरंगिया बन्दूक फेककर सीधा पिल जाता है दुश्मन पर। 'किरलक.... किरलक..... ढनाक.....' कनहू ठाकुर नगारा गनगनाये हुए है। बजरंगिया दुश्मन के दू-चार गो सिपाही को अकेले धकियाते हुए किला पर तिरंगा फहरा देता है। पाछे से हुल्लड़ मचता है, भारत माता की जय.... हिप-हिप-हुर्रेह्ह्हह्ह........ !"
अंतिम दिरिस में गुरमिन्ट विजेता पलटन को इनाम देती है, "कलिया का सेना जौन बहादुरी का कारज किया है उ बारहों जुगों तक याद किया जाएगा। कलिया के पलटन का एक निहत्था सिपाही आधा दर्ज़न दुश्मन को चित कर के किला पर झंडा फहरा दिया। इतनी बड़ी जीत काली हवालदार के सूझ-बूझ और परिश्रम का ही नतीजा है। गुरमिन्ट उनकी इस जीत के लिए काली हवालदार को 'वीर-बहादुर-चक्र' से सम्मानित करती है।"
कलिया इस्टेज पर चढ़ कर मंत्री बने जामुन सिंघ से इनाम लेता है। हाथो मिलाता है। मगर दर्शक सब के हाथों में तो जैसे मेहंदी गयी थी। एक्कहू गो ताली नहीं बजाया। बेचारे नन्हकू गुरूजी ललकारे भी मगर तैय्यो जनता का हाथ नहीं खुला। सब के मन में एगो अलगे क्षोभ था, "ई इनाम का असली हकदार तो बजरंगिये था.... ससुर का करतब दिखलाया.... !" सब को यही बात का मलाल था कि एतना शानदार एक्टिंग किया बजरंगिया और नाम हुआ चोंगा टांग कर घूमे वाला कलिया हवालदार का।
एगो सूरत चौधरी ही थे जौन फूले नहीं समां रहे थे, "आह ! हमार बिटवा तो आज पूरा जवार में नाम रोशन कर दिया.... नाटक में किला पर कब्ज़ा का हुआ पूरा जिला में कलिया का नाम हो गया.... !" सिरनाथ झा से रहा नहीं गया तो चिहुंक कर कहिये दीये, "हाँ हो चौधरी बाबू ! काहे नहीं.... किसका करतब था उ तो आप भी देखे.... कहते हैं नहीं वही वाली बात, "लड़े सिपाही नाम हवलदार के। इत्ता मेहनत किहिस बेचारा बजरंगिया और नाम ओ इनाम मिला आपके सपुत्तर को.... !"
चौधरी जी बोले, "लड़े सिपाही नाम हवलदार के.... ई कौन कहावत है ?" झाजी समझा के बोले, "नहीं समझे चौधरी बाबू ! अरे जब मेहनत और करतब हो किसी और का और करेडिट (क्रेडिट) ले जाए कोई तो का कहियेगा.... यही न कि 'लड़े सिपाही और नाम हवलदार के !' जय
हो भारत माता।
"भारत प्यारा सबसे न्यारा !
अमर रहे गणतंत्र हमारा !!"
गणतंत्र दिवस पर हार्दिक शुभकामनाएं और उत्तम चर्चा के लिए बधाई|
जवाब देंहटाएंसार्थक पोस्ट.....
जवाब देंहटाएंगणतंत्र दिवस की मंगलकामनाएं
ऐसा लगा जैसे रेणु को पढ़ रहा हूँ. बहुत ही शानदार लेखन है।
जवाब देंहटाएंआप सब को गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभ कामनाएं.
जवाब देंहटाएंगणतंत्र दिवस पर हार्दिक शुभकामनाएं और बधाई ...
जवाब देंहटाएंआप सभी कों गणतंत्र दिवस की बधाई एवं शुभकामनायें !
जवाब देंहटाएंआप को गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभ कामनाएं!
जवाब देंहटाएंआप को गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभ कामनाएं!
जवाब देंहटाएंबिलकुल ठीक बयां किया है.ऐसे ही हर जगह हो रहा है.
जवाब देंहटाएंसही कहा करण जी. गणतंत्र दिवस की बधाई एवं शुभकामनायें.
जवाब देंहटाएंगण तंत्र दिवस के पावन अवसर पर आप सभी को हार्दिक षुभकामनाएं।
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी कथा के माध्यम से कहावत बताई है ....
जवाब देंहटाएंगणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनायें.
गणतंत्र दिबस का बधाई करण जी! ई त देस का मूल मंत्र बन गया है... बहुत सामयिक देसिल बयना!!
जवाब देंहटाएंबहुत रोचक और सार्थक ......शुक्रिया
जवाब देंहटाएंAgree with Maathur Sahab as a comments. Will study it once more. Really today i am too much busy sir as you know about me. See you again Sir!
जवाब देंहटाएंगणतंत्र दिवस की बहुत बहुत बधाई
जवाब देंहटाएंएकदम टनाटन्न सैली में लिखे हैं, और जो बात कहना चाह रहे थे ऊहो पूरा समझ में आ गया। आजो त इहे देखने को मिलता है कि लरे सिपाही अउर नाम हबलदार का।
जवाब देंहटाएंहां, पंचम जी ठीके कहें हैं कि रेणु याद आ गए।
जवाब देंहटाएंउनका भी पोस्ट देखिएगा। उसको भी पढकर रेणु याद आ गए हमको।
करन जी पहले तो गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामना.. दुसरे...हर बार एक ही बात निकलती है कि सचमुच रेणु याद आते हैं.. आज के बयना को पढने के बाद एक बार तो ऐसा लगा कि बाबा नागार्जुन का उपन्यास बाबा बटेसर नाथ पढ़ रहा हू और किसी खाखी बर्दी बाले के बात हो रही है.. सुन्दर बयना.. बहुत बहुत बधाई..
जवाब देंहटाएंरोचक आलेख!
जवाब देंहटाएंगणतन्त्र दिवस की 62वीं वर्षगाँठ पर
आपको बहुत-बहुत शुभकामनाएँ!
गणतंत्र दिवस के पावन अवसर पर आप सभी को हार्दिक शुभकामनाएं।
जवाब देंहटाएं62वें गणतंत्र दिवस के पावन अवसर पर आप सभी को हार्दिक शुभकामनाएं।
जवाब देंहटाएंकरन जी,
जवाब देंहटाएंबहुत ही जीवंत है आज का देसिल बयना !
आपकी लेखनी को नमन !
गणतंत्र दिवस की ढेरों बधाईयाँ !