आज मैं अपने गुरु तुल्य स्व. श्री श्यामनारायण मिश्र जी का एक नव गीत पेश कर रहा हूं। यह उनके काव्य संग्रह ‘प्रणयगंधी याद में’ से लिया गया है।
श्यामनारायण मिश्र
चू रहा मकरंद फूलों से,
उठ रही है गंध कूलों से।
घाटियों में
दूर तक फैली हुई है चांदनी
बस तुम नहीं हो।
गांव के पीछे
पलाशों के घने वन में
गूंजते हैं बोल वंशी के रसीले।
आग के
आदिम-अरुण आलोक में
नाचते हैं मुक्त कोलों के कबीले।
कंठ में
ठहरी हुई है चिर प्रणय
की रागिणी
बस तुम नहीं हो।
किस जनम की
प्रणयगंधी याद में रोते
झर रहे हैं गंधशाली फूल महुओं के।
सेज से
भुजबंध के ढीले नियंत्रण तोड़कर
जंगलों में आ गए हैं वृन्द वधुओं के।
समय के गतिशील नद में
नाव सी रुक गई है यामिनी
बस तुम नहीं हो।
इस सुंदर कविता को प्रस्तुत करने के लिये धन्यवाद।
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जवाब देंहटाएंप्रकृति के सभी उपादानों की उपस्थिति के बाद भी कवि के अंतर्मन में एक ही बात-'बस तुम नही हो'
जवाब देंहटाएंकी अनुगुंज की पुनरावृति इस बात का एहसास दिलाती है कि कवि कही न कही अपने प्रिय की अनुपस्थिति के कारण स्वयं को विक्षिप्तावस्था में पाता है।कविता के रूप में यह उद्गगार उसके मन में उठती हुई भाव तरंगों को उदभाषित करता है।घनीभूत भावों से भरी कविता मन को आंदोलित कर गयी। अति सुंदर।
bahut sundar rachna hai ...Dhanyavad
जवाब देंहटाएंशब्दों का नृत्य और चित्रों का ज्ञान।
जवाब देंहटाएंनवगीत विधा में मिश्र जी की सामर्थ्य उनके गीतों में स्पष्ट परिलक्षित होती है। नए बिम्बों को तलाशना या फिर पारम्परिक बिम्बों को नए अर्थों में प्रस्तुत करना मिश्र जी का स्वभाव है। प्रस्तुत नवगीत उनके श्रेष्ठ गीतों में से एक है।
जवाब देंहटाएंप्रस्तुतीकरण के लिए आभार,
bhawon ka samudr hai ye kavita.
जवाब देंहटाएंगांव के पीछे
जवाब देंहटाएंपलाशों के घने वन में
गूंजते हैं बोल वंशी के रसीले।
आग के
आदिम-अरुण आलोक में
नाचते हैं मुक्त कोलों के कबीले।
कंठ में
ठहरी हुई है चिर प्रणय
की रागिणी
बस तुम नहीं हो।
बहुत सुन्दर, भावपूर्ण गीत
श्याम नारायण मिश्र जी का खूबसूरत नवगीत पढवाने के लिए आभार
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जवाब देंहटाएंमैं निःशब्द हूँ........ आंच पर ही कुछ कह सकूँ ! दिवंगत कवि की अमर कृति जो काल के परतों में शायद दबी रह गई.............
जवाब देंहटाएंवाह! इतनी भावभीनी कविता पढवाने के लिये आपकी आभारी हूँ।
जवाब देंहटाएंbahut hi pyaari rachna hai ,badhai sweekaare .
जवाब देंहटाएंइतनी प्रवाहमयी भावपूर्ण रचना से परिचय कराने के लिए आभार..
जवाब देंहटाएंश्याम नारायण मिश्र जी का गीत पढवाने के लिए आभार
जवाब देंहटाएंमिश्र जी का सुन्दर नवगीत पढवाने का बहुत शुक्रिया.
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुंदर व भावपूर्ण नवगीत ............. सुंदर प्रस्तुति.
जवाब देंहटाएंविरह रस को इतनी सुन्दर तरीके से प्रस्तुत किया गया है की दिल छुं जाती है रचना ... धन्यवाद !
जवाब देंहटाएंइस सुंदर रचना को प्रस्तुत करने के लिये धन्यवाद
जवाब देंहटाएंप्रियतम के अभाव में सभी उपलब्धियाँ अपना आकर्षण खो देती हैं। इस भावभूमि पर पल्लवित मिश्रजी का यह गीत बड़ा ही मनोहर है।
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जवाब देंहटाएंनवगीत के एक सशक्त हस्ताक्षर बन सकते थे मिश्र जी.. लेकिन...
जवाब देंहटाएंइस गीत में जो चित्र बनता है वह मन को मोह लेता है.. सुन्दर गीत...
श्याम नारायण मिश्र जी का गीत पढवाने के लिए आभार------
जवाब देंहटाएंयह नगीने कहाँ छिपे रहे साहित्य के अरण्य में पता ही नहीं चलता.. एक बहुत पुराना गीत याद आ गयाः
जवाब देंहटाएंजब चली ठण्डी हवा,
जब उठी काली घटा
मुझको ऐ जाने वफा
तुम याद आए!!
बहुतसुंदर रचना!!
प्रेमी के लिए प्रिय में ही जीवन का उत्स है।
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुंदर कविता, ओर चित्र को ध्यान से देखा तो देखता रह गया, बहुत सुंदर धन्यवाद
जवाब देंहटाएंअपने प्रियतम के लिए विरह वेदना से ओतप्रोत यह कविता अत्यंत सुंदर है। प्रकृति की सुंदरता कवि की पीड़ा को और गहरा कर देती है।
जवाब देंहटाएंइस बेहतरीन प्रस्तुति के लिए आपका बहुत-बहुत धन्यवाद !
जवाब देंहटाएंविरह वेदना से ओतप्रोत अत्यंत सुंदर कविता..
जवाब देंहटाएंधन्यवाद इस सुंदर कविता को प्रस्तुत करने के लिये ...
अजीब सी विरह वेदना है , घूम फिर कर बस वही कहता है मन ..बस तुम नहीं हो ..
जवाब देंहटाएंइस भावपूर्ण कविता का रसास्वादन हम कर सके ,आपका आभार !
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