फ़ुरसत में …
आचार्य जानकीवल्लभ शास्त्री जी के साथ
मनोज कुमार, करण समस्तीपुरी
तीसरा भाग :: निराला निकेतन और निराला ही जीवन
दूसरा भाग : कुत्तों के साथ रहते हैं जानकीवल्लभ शास्त्री!
पहला भाग-अच्छे लोग बीमार ही रहते हैं!
चौथा भाग ::
निराला निकेतन : निराला जीवन : निराला परिचय
हमने कहा, “अगर आपको अपना परिचय देना हो तो क्या कहेंगे?”
शास्त्री जी बोले, “क्या कहूं, क्या परिचय दूं? एक पागल आदमी है, अकेले रहता है। ... यही मेरा परिचय है। विचित्र जीवन है मेरा। Different! Different होने में समय लगता है। आज के आदमी को मेरे बारे में, मेरी जीवन शैली के बारे में कहिएगा तो क्या कहेगा? .... कहेगा पागल है! मैं भाग्यशाली हूं ... इस अर्थ में कि मुझे कोई जानता ही नहीं। .... मैं आनंद से रहता हूं। जिन्हें दुनिया जानती है, उसे दुनिया नचाती रहती है, और वह नाचता रहता है।”
आगे बोले, “मेरी लिखी हुई किताबें अकेले उठा नहीं सकते आप। आप हमारे बारे में जानने की कोशिश ही मत कीजिए! जो यहां के आदमी हैं वो अपने को सबसे बड़ा कवि, लेखक, सब मानते हैं। उनको मानने दीजिए। और हमारे बारे में कहते हैं, … हां एक आदमी है, … कोई पागल लेखक, … अकेले रहते हैं। उनका कोई नहीं है। यही मेरा परिचय है। उसमें आप पड़िएगा तो बहुत मुश्किल है।’’
उत्तर छायावादी कवि हैं। उन्हें छायावाद का पांचवा स्तम्भ भी कहा जाता है। उनकी कविताएं अनुभूति प्रधान हैं। अद्भुत छंदबद्ध रचनाएं करते हैं वो। काव्य में पीड़ा मूलधारा है। मां पांच साल में गुजर गई उसमें जो वेदना स्वरूपित हुई वह गीतों में व्यक्त हुई। कालीदास पर उपन्यास लिखा उन्होंने। दार्शनिक कवि हैं। कविता सांस्कृतिक उन्नयन की है। जीवन मूल्य, अनेकांतवादी, मानवदर्शन पर लिखी रचनाओं में गहराई भी है, ऊंचाई भी।
प्रगतिशील दृष्टि- से लिखी गई है “राधा” ! राधा सात खण्डों में विभक्त उनका महाकाव्य है। राधा में राधा के संदर्भ में भाव और कृष्ण के संदर्भ में युग बोध प्रबल है। राधा की एक प्रति लेने की हमने इच्छा ज़ाहिर की तो सेवक से मंगवाकर सौंपते हैं। उस पर उनके हस्ताक्षर लेने की इच्छा ज़ाहिर की। बिना चश्में के सब चीज़ें देख लेते हैं। राधा महाकाव्य की पुस्तक हाथ में लेकर उसके पन्ने पलटते रहे। “राधा ” में उनकी “छाया” नहीं मिल रही थी। बोले, “सब सौंप दिया है उन्हें। यह पुस्तक भी। इनके मूल्य उन्हें ही दे दो। मैं क्या करूंगा, सब उनका है।” जब “छाया” की छाया नहीं मिली तो बोले, ‘‘लगता है प्रकाशक ने उनका फोटो हटा दिया इसमें से।’’ मैंने पुस्तक से उसे खोज निकाला और उनके सामने कर दिया ... “ये है तो।”
बहुत देर तक निहारते रहे। बोले, “अब सब इन्हीं का है।” पुस्तक पर उनके हस्ताक्षर लिए। एक छोटा हस्ताक्षर करके बोले ‘‘छोटा हो गया। बड़ा एक और ले लो!’’
सम्मान-पुरस्कार
ये 'साहित्य वाचस्पति, 'विद्यासागर, 'काव्य-धुरीण तथा 'साहित्य मनीषी आदि अनेक उपाधियों से सम्मानित हुए तथा पद्मश्री जैसे राजकीय पुरस्कार को ठुकरा चुके हैं। पुरस्कार कई मिले – राजेन्द्र शिखर सम्मान (बिहार का )। उत्तर प्रदेश सरकार ने भारत भारती पुरस्कार से सम्मानित किया। एक पुरस्कार इंदिरा जी के हाथों नहीं लिया। और हाल ही में २०१० में जब पद्म श्री के पुरस्कार की घोषणा की गई तो उन्होंने इसे लेने से मना कर दिया। इसे 'मजाक' कहकर शास्त्रीजी ने अस्वीकार कर दिया। उनके शब्दों में दर्द साफ झलक रहा है। महाकवि जानकी वल्लभ शास्त्री हिंदी और संस्कृत के प्रकांड विद्वान हैं। साहित्यकारों की कई पीढ़ियां उनके आंगन की छांव में बड़ी हुई हैं....महाकवि से कनिष्ठ कई लोगों को पद्मश्री से बड़ा पुरस्कार मिल चुका है। ऐसे में शास्त्रीजी का दर्द जायज है। दुखी शास्त्री जी बोल पड़ते हैं, “सालों से मेरी सुध लेने कोई नहीं आया।” सच्चे साहित्यकार को सम्मान की भूख भले ही न हो लेकिन उपेक्षा का दंश जरूर उसे सालता है...महाकवि जानकी वल्लभ शास्त्री का जो हिंदी साहित्य में योगदान है उसको सिर्फ पद्मश्री से नहीं तौला जा सकता है!
वर्षों पहले उन्होंने लिखा था
कुपथ कुपथ रथ दौड़ाता जो
पथ निर्देशक वह है,
लाज लजाती जिसकी कृति से
धृति उपदेश वह है,
परिवार
परिवार के बारे में बताते हुए कहते हैं, “पहली पत्नी का नाम चन्द्रकला था। मैगरा में ही १९४७ में उनकी मृत्यु हो गई। पुत्री शैलबाला को छोड़कर चली गई वो। उनसे एक लड़की है। उसकी दो लड़किया हैं। सब प्रोफ़ेसर हैं। गोरखपुर में।” परिसर में प्रवेश करने के ठीक पहले शास्त्री जी की एकमात्र संतान पुत्री शैलबाला जी का अपेक्षाकृत छोटा मकान है। उसमें वह और उनके पति प्रतापचंद्र मिश्र रहते हैं। वे भी अस्सी वर्षीय हैं। शैलबाला हिंदी की अवकाशप्राप्त प्राघ्यापिका हैं। उनकी भी उम्र सत्तर से ऊपर की ही होगी। शास्त्री जी के परिसर में आना जाना कम ही होगा। मिश्र जी राजस्व विभाग में काम करते थे। सेवा निवृत्त हैं । आकाशवाणी पटना से 70 के दशक में रामेश्वर सिंह कश्यप के बहुप्रसारित नाटक “लोहा सिंह” में फाटक बाबू की भूमिका निभाते रहे हैं ।
प्रसिद्ध कविता ‘किसने बासुरी बजाई’ गा कर सुनाया … !
करण का उनसे निवेदन होता है कि आपके गीत किसने बांसुरी बजाई हमारे कोर्स में था। हमें बहुत अच्छा लगता है। उसे सुनाइए न।
वो कहते हैं, ‘‘हां, उसे मुज़फ़्फ़र आने के बाद ही लिखा था। इसे बहुत गाया। मंचों पर। अब इस उम्र में गा सकता हूं क्या?” फिर कुछ देर ठहर कर बोलते हैं, “राग केदार में इसे गाता था।” फिर राग केदार की सरगम सुनाते हैं
यह राग कल्याण थाट से निकलता है। समय रात का पहला प्रहर है।
आरोह - स म म प ध प नी ध स।
अवरोह--स नी ध प स प ध प म ग म रे स।
पकड़--स म म प ध प म रे स।
ये है राग केदार ... फिर गाने लगते हैं,
किसने बांसुरी
बांसुरी बजाई
बांसुरी बजाई!
बांसुरी...
किसने बांसुरी बजाई ?
जनम-जनम की पहचानी-
वह तान कहां से आई?
अंग-अंग फूले कदम्ब-सम,
सांस-झकोरे झूले;
सूखी आंखों में यमुना की –
लोल लहर लहराई!
किसने बांसुरी बजाई?
जटिल कर्म-पथ पर थर-थर-थर
कांप लगे रुकने पग,
कूक सुना सोए-सोए-से
हिय में हूक जगाई!
किसने बांसुरी बजाई?
मसक-मसक रहता मर्म-स्थल,
मर्मर करते प्राण,
कैसे इतनी कठिन रागिनी
कोमल सुर में गाई!
किसने बांसुरी बजाई?
उतर गगन से एक बार-
फिर पीकर विष का प्याला,
निर्मोही मोहन से रूठी
मीरा मृदु मुसकाई!
किसने बांसुरी बजाई?
ओह! क्या अद्भुत नज़ारा था हमारे लिए! एक ९५ साल का शख्स हमारे लिए, हमारे अनुरोध पर फिर से अपना यौवन जी रहा था। न सिर्फ़ उनकी बल्कि हमारी आंखों से भी अविरल अश्रु की धार बह चली!!!
उनके मुंह से निकला ‘‘आजकल लोग न जाने क्या लिखते हैं?’’
संस्मरण बहुत है। किसने बांसुरी बजाई कविता पढ़कर बहुत अच्छा लगा। शास्त्रीजी के बारे में बहुत सी जानकारियां आपके माध्यम से मिलीं। बहुत अच्छा किया आपने उनके बारे में लिखा।
जवाब देंहटाएंआचार्य जी से आपकी और करण जी की बातचीत का चौथा भाग पढ़ने को मिला. उन्हें संगीत के विभिन्न रागों का भी अच्छा ज्ञान था,ये मुझे आज पता चला.भले ही मैं उनसे आज तक मिला नहीं हूँ,परन्तु उनके साहित्यिक विशद ज्ञान की जानकारी अखबारों और पत्र-पत्रिकाओं के माध्यम से होती रहती थी.मैंने अख़बारों के ज़रिये ही पढ़ा था की शास्त्री जी ने विरोध के साथ पद्म श्री सम्मान अस्वीकार कर दिया.ठीक ही किया,अगर कनिष्ठ साहित्यकार को चालबाजी के तहत पहले उससे बड़ा पुरस्कार/सम्मान सरकार अथवा संस्था दे चुकी है तो वरिष्ठ साहित्यकार को उससे छोटा सम्मान देकर अपमानित करने जैसा लगता है.बहरहाल ये दुनिया जब तक रहेगी आचार्य शास्त्री जी का नाम साहित्य-जगत में पूरे आदर और सम्मान के साथ लिया जायेगा,ये मैं जानता हूँ.
जवाब देंहटाएंएक बार कहीं पढ़ा था कि निराला जी के यहाँ उनके जन्मदिन पर आकाशवाणी से कुछ लोग गए साक्षात्कार लेने गए तो पाया कि वे अपनी टूटी कडाही में कटहल की सब्जी खा रहे हैं... महादेवी जी जब शाश्त्री जी के यहाँ पहुंची तो पाया कि वे प्रधानमंत्री के पद पर रहते हुए केवल उबले हुए शकरकंद से एकादशी का व्रत तोड़ रहे थे.... और एक अपने शःस्त्री जी हैं.. हमारी पीढी तो कम से कम इन्हें पढ़ रही है... दुर्भाग्य है आने वाली पीढी के लिए पढने को केवल 'दी सूटेबल ब्यॉय ' या 'कमपनी आफ ए वूमेन ' जैसे चीज़ें रहेंगी और और किसकी घडी और ब्रासलेट में कितने हीरे जड़े हैं... आपके पूरे संस्मरण को शास्स्त्री जी एक पंक्ति में कह दिया.. पता नही आज के लोग क्या लिख रहे हैं.... हमें.. आज की पीढी के कवियों लेखको को सोचने पर मजबूर कर रही है उनका यह कथन...
जवाब देंहटाएंआचार्य जानकीबल्ल्भ शास्त्री जी के सामीप्य-बोध से जो भी जानकारी आपने इकत्र किया है, उसे एक विस्तृत आयाम देकर साक्षात्कार विधा के अंतर्गत एक पुस्तक प्रकाशित करने का प्रयास करें। ठीक उसी तरह जैसे श्रीकांत वर्मा ने आक्टोवियो पाज का किया था। यह सबसे अलग सिद्ध होगा। सादर।
जवाब देंहटाएंआचार्य जानकीबल्लभ जी के बारे में पढ़ना बड़ा ही रोचक रहा| उनकी कवितायें रचनाएँ पशु प्रेम ...क्या कहने...जैसे
जवाब देंहटाएं" कहाँ मिले स्वर्गिये सुमन
मेरी दुनिया मिटटी की ,
विहस बहन क्यों तुझे सताऊं
कसक बताकर जी की
बस आखिरी विदा लेता हूँ
आह यही इतना कह
मुझसा भाई हो न किसी का
तुझ सी बहन सभी की !!"
धन्यवाद
बाँसुरी घूमफिर कर जीवन में आ रही है, बार बार। बहुत सार्थक कार्य किया है, एक बिसराये साहित्यकार का विस्तृत परिचय दे। आगे भी हिन्दी साहित्य के पुरोधाओं को ढूढ़ निकालिये।
जवाब देंहटाएंहर बड़ी मौत के बाद जुटने वाली हाहाकारी भीड़ को यह संस्मरण ज़रूर पढ़ना चाहिए।
जवाब देंहटाएंआचार्य जी का परिचय और उनका काव्य कर्म किसी परिचय का मोहताज नहीं .....बांसुरी की धुन तो सबको अच्छी लगती ही है ...अब जब शास्त्री जी ने बजाई होगी ...अपनी कविता के माध्यम से तो ....सार्थक तो होगी ही ....कविता भाव पूर्ण है ....आपका आभार इस प्रस्तुति के लिए
जवाब देंहटाएंशास्त्री जी से जिस तरह आपने परिचय कराया है उसके लिये आपके तहे दिल से आभारी हूँ……………उनके लिये कुछ भी कहना हम जैसे तुच्छ लोगो के लिये मुमकिन नही ……………हमे तो उनसे सिर्फ़ सीखना है।
जवाब देंहटाएंadbhut...:)
जवाब देंहटाएंsat sat naman....aise viswa maha purush ko:)
आपलोगों की आँखों से अश्रुधारा बह चले...पढ़ कर हमारा भी मन ग़मगीन हुआ...
जवाब देंहटाएंशास्त्री जी उस पीढ़ी के हैं , जो निस्पृह भाव से साहित्य सेवा करते थे और उसमे ही परम आनंद पाते थे...ना पैसे की चाहत ,ना किसी नाम की ख्वाहिश .
एक युगपुरुष से मिलने का सौभाग्य मिला आपको.....और आपके द्वारा हमें भी इतने आत्मीय और दुर्लभ संस्मरण पढने को मिले...बहुत बहुत शुक्रिया
.कविता वाकई अच्छी है.लगातार शास्त्री जी की जीवनी पढ़ कर उनके बारे में जानकारी ही नहीं मिली बल्कि उनकी वेदना से सहानुभूति एवं समर्थन भी व्यक्त करता हूँ..
जवाब देंहटाएंआप दुवारा लिखा यह संस्मरण बहुत सुंदर ओर अच्छा लगा,आचार्य जानकीवल्लभ शास्त्री जी के बारे पढा, सच कहा आज के युग मे ऎसे लोग कहा, बहुत अच्छा लगा. धन्यवाद
जवाब देंहटाएंमनोज जी ,
जवाब देंहटाएंआपने आचार्य जानकी वल्लभ शास्त्री जी से अपना मिलाना सच में सार्थक किया है ..उनके बारे में इतनी सूक्ष्मता से जानकारियाँ जुटायीं और उनका विस्तृत वर्णन कर हम तक पहुंचाईं ...कितना बड़ा दुर्भाग्य है कि ऐसे शख्स को उपेक्षा का दंश सहना पड़ रहा है ...उनकी खुद्दारी को नमन है ...
यह संस्मरण श्रेष्ठ साहित्यिक रचनाओं में गिने जायेंगे ...आभार
आचार्य जानकी वल्लभ शास्त्री जी का विलक्षण व्यक्तित्व पूज्यनीय है !
जवाब देंहटाएंअपनी शर्तों पर जीने वाले शास्त्री जी को शत शत नमन !
यह संस्मरण एक साहित्यिक दस्तावेज है !
मनोज जी और करन जी, आप दोनों का जितना भी आभार प्रकट किया जाय कम है !
शास्त्रीजी के व्यक्तित्व और कृतित्व से परिचित हो रहा हूँ!! आपका आभार!
जवाब देंहटाएंलेख की आख़िरी पंक्ति शास्त्री जी के मन की व्यथा बयान करती है.. और बहुत कुछ सच भी!! एक अद्भुत यात्रा है यह!!
आचार्य जी का आपके साथ साक्षात्कार और उस पर आपकी पत्रकार-दृष्टि बड़ी मोहक है और इस ब्लाग अभूतपूर्व थाती है। आपका यह साक्षात्कार लगता है आखिरी साक्षात्कार होगा। क्योंकि आपने पहले अंक में लिखा है कि वे अपने पास किसी को फटकने नहीं देते। इस साक्षात्कार को अविकल प्रस्तुत करने के लिए आपको हार्दिक बधाई।
जवाब देंहटाएंअद्भुत और नितांत अविस्मरणीय इस संस्मरण को पढ़ कर अभिभूत एवं निशब्द हूँ ! आपका परम सौभाग्य कि ऐसे विलक्षण व्यक्तित्व से रू ब रू होने का अवसर आपको मिला और आपने उनके श्रीमुख से इस अनुपम रचना 'किसने बांसुरी बजाई' को सुना ! बधाई एवं अभिनन्दन !
जवाब देंहटाएंबहुत ही भावपूर्ण संस्मरण है। काफी कुछ अनकहा व्यक्त हो रहा है इस संस्मरण में जिन्हें कि शब्दों में कह पाना आसान नहीं है।
जवाब देंहटाएंजानकी वल्लभ जी के बारे में इस तरह की पोस्टों को एक तरह से साहित्यिक धरोहर कहना मैं ज्यादा उचित समझता हूँ।
बहुत बहुत आभार।
सच्चे साहित्यकार को सम्मान की भूख भले ही न हो लेकिन उपेक्षा का दंश जरूर उसे सालता है...
जवाब देंहटाएंआपके द्वारा लिये गये उनके इस साक्षात्कार ने हम जैसे न जाने कितने पाठकों को इनके निराले व्यक्तित्व के विभिन्न पहलुओं को जानने-समझने का अवसर उपलब्ध करवाया है । आभार...
श्री प्रेम सरोवरजी का सुझाव भी महत्वपूर्ण लगता है ।
शास्त्री जी की साहित्यिक यात्रा तथा यह सँस्मरण अद्भुत है । पढ़कर ऐसा लगा जैसे मैँ साक्षात् शास्त्री जी से मिल रहा हूँ ।
जवाब देंहटाएंआभार मनोज जी ।
आदरणीय मनोज जी जो सजीवता आपकी इस प्रस्तुतिकरण मेँ है उससे आसानी से मानसिक पटल पर imagnation होता है । ऐसा महसूस होता है जैसे पिक्चर सामने चल रही है । आपका बहुत बहुत आभारी हूँ ।
जवाब देंहटाएंबांसुरी की तान ने तो बेसुध कर दिया -आडिओ भी लगाना था न !
जवाब देंहटाएंआप लोगों की आत्मीयता भरी टिप्पणियों से मन आउर आंखें भींग आई हैं।
जवाब देंहटाएंटेप तो है, पर उसे लगाना नहीं आता। किसी तकनीकी द्क्ष से अगली पोस्ट में निवेदन करूंगा।
आचार्य जानकीबल्लभ जी के बारे में पढ़ना बड़ा ही रोचक रहा|
जवाब देंहटाएंआपके द्वारा हमें भी इतने आत्मीय संस्मरण पढने को मिले.........बहुत अच्छा किया धन्यवाद
जवाब देंहटाएंकविता को उसकी सरगम के साथ पढना अच्छा लगा ...कविता के मृदुल भाव ने आनंदित किया ..
जवाब देंहटाएंशास्त्रीजी के जीवन और लेखन से जुड़े कई पहलुओं को जाना ...
बहुत आभार !
"एक पागल आदमी है, अकेला रहता है"
जवाब देंहटाएंयह वक्तव्य शास्त्री जी की जिंदगी पर बहुत ही मजबूत पकड़ को साबित करता है| मेरे जैसा विद्यार्थी और भला क्या कहे उन के बारे में| बस यही प्रार्थना है ईश्वर से कि आप जैसे दोस्तों का साथ बना रहे, ताकि और भी विशिष्ट व्यक्तियों के बारे में इसी तरह जानने को मिलता रहे|
विलक्षण प्रतिभा के धनी शास्त्री जी से जुड़ी बातें हमारे साथ बतियाने के लिए "भौत-भौत" धन्यवाद भाई साब|
शास्त्री जी से परिचय कराने के लिए बहुत धन्यवाद..बांसुरी बजाई कविता बहुत सुन्दर लगी..
जवाब देंहटाएंकितने ही अनछुए पहलुओं से मुलाकात हुई इतने सुन्दर संस्मरण बहुत ही सूक्ष्मता और सुंदरता से समेटे आपने ..एक युग पुरुष से पहचान वह भी इतने अनोखे और खूबसूरत अंदाज में ..बहुत बहुत आभार आपका.
जवाब देंहटाएंमनोज जी,
जवाब देंहटाएंइतना सुंदर संस्मरण और ऐसे विद्वान् व्यक्ति से सक्षत्मकर लेकर और उसे हम लोगों तक पहुँचाया - इसके आप कोटि कोटि धन्यवाद के पात्र हैं. मैं इसके सारे भाग पढ़ रही हूँ.
दस्तवेजी बनती जा रही है साहित्य महात्मा से आपकी यह मुलाकात। नहीं पता आगे क्या कहेगा कवि ? उत्सुकता के साथ आगे ताक रहा हूं।
जवाब देंहटाएंभगवान ऐसा पागल बनायें हमें। आचार्यजी तो रोल मॉडल रहेंगे!
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर शृंखला!
वाह... जीवंत सामग्री, आभार मनोज जी। महाकवि जानकीवल्लभ हमारे हृदयों में सदा विद्यमान रहेंगे..
जवाब देंहटाएं