हाउस वाइफ
मनोज कुमार
कोने में .. एकांत,
तुम्हारा स्वर आए
तरसती हूं
दिनभर।
शाम का,
घर आओगे
जी भर तुझसे बतियाऊंगी
हां, उस एक क्षण की
सुख-शांति के लिए
करती हूं
दिन-भर
तुम्हारा इंतज़ार!
इस घर की चहारदीवारी
मनहूस-सी लगती मुझे
इसके बाहर भी तो है संसार
ले जाओगे मुझे
मोतीझील,
धर्मशाला,
चौक कल्याणी,
कहीं भी ...
कहीं भी ....
करती हूं इंतज़ार।
ये फ़ोन भी ना ...और आजकल तो एक नहीं दो-तीन फ़ोन होते हैं , एक बंद हुआ तो दूसरा घनघना उठता है ...
जवाब देंहटाएंजाने कितनो के मन की व्यथा शब्दों में ढली है आपने !
एक गृहणी के मन को बहुत ही सुन्दरता से पढ़ा है आपने.. सचमुच मन को छु गई कविता.. शायद घर से बाहर रहने वाले इस इन्तजार को समझ नहीं पाते...
जवाब देंहटाएंगृहणी के मनोभावों को गहराई से रेखांकित करती रचना......
जवाब देंहटाएंमन में उभरते सही भावों को उद्भभाषित करती आपकी कविता हाउस वाइफ प्रतीक्षारत किसी भी व्यक्ति को विक्षिप्त कर देती है।भावों को बहुत ही सुंदरता से प्रस्तुत किया गया है।हमें आत्म-केंद्रित न होकर दूसरों की भावनाओं की भी कद्र करनी चाहिए। धन्यवाद।
जवाब देंहटाएंइंतजार के पल और सब्र का फल मीठा बताया जाता है.
जवाब देंहटाएंमन के भावों को बहुत स्न्दर तरीके से व्यक्त किया है आपने । हमारे कानपुर की मोतीझील को कविता मे लाये , पढकर बहुत अच्छा सा लगा । वाकई जो दिन भर घर में रहआ है , उसे शाम का बहुत इन्तजार रहता है । मिल बैठ कर चाय के साथ दिन भर की बातो को बाँटना बहुत सुखद होता है
जवाब देंहटाएंsahi daastaan... ise bhi vatvriksh kee chhaya chahiye
जवाब देंहटाएंएक गृहणी के भावों का सुन्दर चित्रण ..उसकी मनोव्यथा को बखूबी शब्द दिए हैं ....साथ ही चित्र भी बहुत खूबसूरत लगाए हैं ...
जवाब देंहटाएंKavita padhne k bad aisa lag raha hai jaise kisi house wife ne apna dil kholkar rakh diya ho...chhoti si kavita bahot kuch kah gai...Dhanywad
जवाब देंहटाएंबहुत संवेदनापूर्ण रचना है .ऐसी ही भावना अगर मनों में जाग जाए तो बहुत से समाधान अपने आप हो जाएँ !
जवाब देंहटाएंमनोभावों की सुन्दर, सही और स्पष्ट काव्यमय अभिव्यक्ति.
जवाब देंहटाएंइंतज़ार के पलों का अच्छा चित्रण है
जवाब देंहटाएंये फोन सच में आते भी हैं या क्रिकेट मैच की तरह फिक्स होते हैं पता लगवाना पड़ेगा....हा हा हा.स्त्री मन बलिदान और बैचैनी. अच्छी प्रस्तुती
जवाब देंहटाएंआज के कामकाजी पुरुष और स्त्री मन के द्वंद को बाँधा है इस रचना में ... सच कहूँ तो आज का सच है ...
जवाब देंहटाएंएक गृहणी के मनोभावो को एकदम सटीक शब्द दिए हैं.
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर .
क्या बात है...मनोज जी! दूसरी तरफ क्या चल रहा है इसे अपनी संवेदना के माध्यम से गहरे से अनुभव कर लेना और उसे शब्दों के सांचे में व्यक्त करना ही सच्चे कवि की पहचान है। आपने इस कविता में कवि धर्म को सुन्दरता से जीवंत किया है।
जवाब देंहटाएंआपका यह अंदाज भी अच्छा लगा। आभार,
दिन भर का
जवाब देंहटाएंमेरा इंतज़ार …
रह जाता है इंतज़ार
और मन
हो जाता है त्रस्त!!
मनोज जी नारी मन के भावों को खूब गढा है …………ये सिर्फ़ एक गृहिणी ही समझ सकती है…………नारी मन की व्यथा का सजीव चित्रण्।
जो शिकायत मैं रोज़ सुनता रहा हूँ उसे आपने इतने प्रभावशाली ढंग से रख दिया कि डरता हूँ यदि इस रचना को मेरी ‘रचना’ ने पढ़ लिया तो क्या होगा।
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर कविता.
जवाब देंहटाएंआज तो हमारे मन की व्यथा काव्य रूप ले गई!
जवाब देंहटाएंआभार इस प्रस्तुति के लिए।
कार्यालय की व्यस्तता में सच में गृहणी की पीड़ा नहीं दिख पाती है।
जवाब देंहटाएंइस कविता में स्त्री अपनी मौलिकता में है। पति के सान्निध्य में अपने वजूद को खोजती!
जवाब देंहटाएंप्रेरक रचना के लिए बधाई स्वीकार कीजिए।
जवाब देंहटाएंइसे पढ़ कर सुखद अनुभूति हुई। कल नेताजी सुभाषचंद बोस की जयन्ती थी उन्हें याद कर युवा शक्ति को प्रणाम करता हूँ। आज हम चरित्र-संकट के दौर से गुजर रहे हैं। कोई ऐसा जीवन्त नायक युवा-पीढ़ी के सामने नहीं है जिसके चरित्र का वे अनुकरण कर सकें?
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मुन्नियाँ देश की लक्ष्मीबाई बने,
डांस करके नशीला न बदनाम हों।
मुन्ना भाई करें ’बोस’ का अनुगमन-
देश-हित में प्रभावी ये पैगाम हों॥
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सद्भावी - डॉ० डंडा लखनवी
वाह जी आप ने तो बचपन याद दिला दिया जब मां के संग पिता जी की इंतजार करते थे, तो यही विचार मन मे आते थे, धन्यवाद
जवाब देंहटाएंबहुत सहज और सुंदर तरीके से आपने एक गृहणी की आपबीती ,नारीमन की व्यथा लिखी है -
जवाब देंहटाएंसुंदर रचना --
एक ग्रहणी की मनोव्यथा का बहुत सुन्दर चित्रण..आभार
जवाब देंहटाएंक्या सुंदर चित्रण है एक गृहणी की मन: स्थिति का।
जवाब देंहटाएंवाह... कितनी खूबसूरती से उसको लिख दिया...
जवाब देंहटाएंबहुत खूब...
आप सबों का एक साथ ही शुक्रिया अदा करता हूं कि आपने मेरी भावनाओं के साथ अपनी भावनीं जोड़ा।
जवाब देंहटाएंदिन भर का
जवाब देंहटाएंमेरा इंतज़ार …
रह जाता है इंतज़ार
sach hai... bahut sunder!
अपनी संवेदना से अन्य की अनुभूति का सहज चित्रण.... यही विशेषता है इस कविता है.
जवाब देंहटाएंनारी के मनोभावों का सुंदर वर्णन...और इंतजार के पल तो वैसे भी कठिन ही होते हैं..उस पर फोन की आफत..बहुत अच्छी रचना
जवाब देंहटाएंगृहणी के मनोभावों को खूबसूरती से पिरोया है। बधाई।
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