पांचवां भाग
आचार्य जानकीवल्लभ शास्त्री जी के साथ
मनोज कुमार, करण समस्तीपुरी
चौथा भाग :: निराला निकेतन : निराला जीवन : निराला परिचय
तीसरा भाग :: निराला निकेतन और निराला ही जीवन
दूसरा भाग : कुत्तों के साथ रहते हैं जानकीवल्लभ शास्त्री!
पहला भाग-अच्छे लोग बीमार ही रहते हैं!
शास्त्री जी का व्यक्तित्व भी उनके कृतित्व की तरह विराट है । उम्र का असर उनकी स्मृति पर है किन्तु वाणी पर विल्कुल नहीं। स्मृति और विस्मृति के बीच उनकी खनकती आवाज़ असीम आत्मीयता का अनुभव दे
ता है। हमने उनके घर को देखने की इच्छा ज़ाहिर की तो बोले, “इस घर में प्रायवेसी नाम की चीज़ है ही नहीं। जहां तक आपकी दृष्टि जाए, सब आपका है। घूमिए-फिरिए। यह तो बाहर का लौंडा है ... बाहर से यहां आया था, यहीं का होकर रह गया। इतनी बड़ी जगह, एक एकड़, में एक आदमी रहता है। यह देखने वाली चीज़ है।”
सबसे पहले हम पहुंचे सामने के कमरे में जिसमें शास्त्री जी की पत्नी, श्रीमती छाया देवी थीं। हमारी श्रीमती जी पहले से ही उनके साथ घुल-मिल गईं थीं। उन्होंने पूछा, “आपके बाल बच्चे …?”
छाया देवी ने कुछ जवाब नहीं दिया, सिर्फ ना में सिर हिलाए।
आगे उन्होंने जानना चाहा, “घर का काम-धाम ..?”
छाया देवी बताती हैं, “बाई हैं। आती है सुबह नाश्ता बना देती है। दोपहर में आकर खाना बना देती है। मुझे नहला भी देती है। मुझसे कुछ नहीं होता। हाथ काम नहीं करता। लाचार हूँ।”
श्रीमती जी ने पूछा, “किसी से दिखाई नहीं?”
तो बताने लगीं, “दिखाई थी। दिल्ली में। सर गंगा राम हॉस्पीटल में। यहां पर इनके भाई की बहू को छोड़कर गई थी शास्त्री जी की देखभाल के लिए। वहां डाक्टर बोला रहकर ईलाज करवाना होगा। पर कैसे रहते? यहां जिसे छोड़ा था वह घबरा गई, उसने फोन कर दिया। चली आई। शास्त्री जी को किसके ऊपर छोड़ूं। उन्हें भी तो देखना पड़ता है।” वो वस्तुतः शास्त्री जी की छाया हैं। इतने स्नेह से पूरित दम्पत्ति जो एक दूसरे की चिंता में घुला जा रहा है।
छठ पर्व है। .. और बाई के द्वारा घर का कई काम होता है। पर बाई को भी छठ पर्व करना है। बताती हैं, “आज तो खरना है। वह तो आकर दिन में ही रात के लिए सब्जी बना गई है। रात में प्रसाद भेज देगी तो खा लेंगे। पर कल वह छठ करेगी। कल कैसे काम चलेगा इसकी परेशानी है।”
उनकी पत्नी से भी आशीष लेने का मन हुआ। तब तक तो मेरी श्रीमती जी उनसे बातें कर ही रहीं थी। हम जब गए तो उनके चरण छूए। आशीष देते बोलीं, “आप भी लिखते हैं?”
मैंने कहा, “बस ऐसे ही, थोड़ा बहुत। शौकिया।” बोलीं, “आप अपनी रचना दीजिए। हम बेला में छापेंगे। बेला शास्त्री जी की पत्रिका रही है। खुद संपादन करते थे। अब नहीं कर पाते। मैंने भी बहुत दिनों तक किया। अब अस्वस्थ रहती हूं। तो अब इसका काम किसी और को दे दिया है। शास्त्री जी के जन्म दिन पर इसका वार्षिकांक आएगा। उसी में आपकी रचना छापूंगी। दे दीजिएगा।”
हमने पूछा कि कब है शास्त्री जी का जन्म दिन तो उन्होंने बताया, “माघ शुक्ल द्वितिया को। इसबार ४ फ़रवरी को पड़ेगा। उस दिन बहुत सारे कार्यक्रम होते हैं। प्रतिवर्ष। पूजा, हवन, सांस्कृतिक कार्यक्रम दिन में .. फिर रात में कवि सम्मेलन। दूसरे दिन सुबह तक चलता है, यानी सूर्योदय से सूर्योदय तक।” फोन नम्बर भी दिया उन्होंने, 0621-2286466, बोलीं, “इस पर कार्यक्रम की जानकारी ले लीजिएगा, और ज़रूर आइएगा।”
हमारी श्रीमती जी को शास्त्री जी की पत्नी बताती हैं, “इनकी साहित्य साधना ग़ज़ब की है। एक दिन कुछ लिख रहे थे। शाम तक पूरा नहीं हो पाया। तो बाहर चबूतरे पर चले गए। उसी चबूतरे पर बैठकर रात भर लिखते रहे। शास्त्री जी कहते हैं, सृजन सुनसान में ही संभव है।”
रैक पर सैंकड़ों पुस्तकें
एक रैक पर सैंकड़ों पुस्तकें पड़ी हुई थी। गड्ड-मड्ड। एक के ऊपर एक। बेतरतीब, धूल-गर्द जमी हुई। उनकी पत्नी से पूछा, “क्या ये सारी शास्त्री जी की रचनाएं हैं?” उन्होंने बताया, “नहीं, इनके ऊपर लोगों ने लिखा है। ये वो पुस्तकें हैं। सब भेज देते हैं।”
किताब, पत्र-पत्रिकाओं का अनगढ़ अम्बार। राधा पढते वक़्त शास्त्री जी के शब्दों में इसका अर्थ जाना,
“सौष्ठव सम्भाल में ही नहीं, बेसम्भाल में भी है। रचाव के मुक़ाबले अनगढ़ में कहीं अधिक तेजस्विता देखी जाती है।”
इसको और स्पष्ट करते हुए उसी पुस्तक में शास्त्री जी कहते हैं, “भक्ति और प्रेम मूलतः एक ही तत्व हैं। अन्तर है एक के हर घड़ी सम्भाले रहने में और दूसरे के अल्हड़पन में। भक्ति को सम्भाले रखना पड़ता है। ‘मैं इन पुस्तकें, जो मुझ पर लिखी गई हैं, से प्रेम करता हूं।’
यह व्यक्ति जो लिखता है, वही जीता है। अल्हड़पना है इनके जीवन में। वही अल्हड़पना हमें इस पूरे निराला निकेतन में विखरा पड़ा मिला। यहां-वहां, सब जगह। हम पूरे निकेतन में घूम-घूम कर फोटो खीचते रहे, खिचवाते रहे। गाय के लिए नादों के बीच, चबूतरे के पास, पशुओं की समाधियों के पास, उनके बीच के संकट मोचन मंदिर के पास।
जब हमने चलने कि इच्छा ज़ाहिर की तो पूछे, “देखने से लगता है कि कुछ दिन चलूंगा मैं?”
हम इस अकस्मात् आए वाक्य को ठीक से समझ नहीं पाए तो पूछ बैठे, “जी?” तो फिर समझाते हुए बोले, “आपको देख कर कैसा लगता है – डेढ दो साल और खींच दूंगा। पच्चानवे साल का हो गया हूँ मैं। पता नहीं और कितने दिन और खीचूँगा।”
“नहीं नहीं आप अभी बहुत दिन हमारे साथ रहेंगे।”
वापस आने का मन तो नहीं था, पर मां का आदेश था भागवान को भोग लगने के पहले वापस जाना है। अतः चल पड़े। विदा लेने के लिए जब शास्त्री जी से कहा तो कहने लगे, “कुछ देर और बैठते। कुछ खाया पीया नहीं। कहोगे जाकर कि शास्त्री जी ने बिना खिलाए पिलाए विदा कर दिया।”
हमने कहा, ‘‘अब चलते हैं। फिर आएंगे।”
कहने लगे, “बिना कुछ खाए जा रहे हो तुम्हारे लिए ही इंतजाम करवा रहा हूँ।”
आने का मन तो नहीं था। पर .....!
रास्ते में लौटते वक़्त मन में यह ख़्याल आ रहा था .. जिसने सारा जीवन साहित्य साधना में लगा दिया हो … जिसके मुंह से एक एक वाक्य सुक्ति के रूप में निकलता है … ऐसी साहित्यिक धरोहर को हम Preserve करके नहीं रख सकते? आज वह एकाकीपन और त्रासदी को जी रहा है। क्या सरकारी तंत्र इतना लाचार है कि इस धरोहर को Nursing की सुविधा भी मुहैया नहीं करा सकता?
शहर से दूर अपनी नौकरी की मजबूरी न होती तो उनके सानिध्य में कुछ सेवा का पुण्य कमाने का अवसर नहीं खोता … पर ये विचार मेरे मन में बार-बार कौंध रहा था कि वह कौन सा आक्रोश था इनके मन में कि 95 साल का यह साहित्य का सेवक राग केदार में, किसने बांसूरी बजाई गा तो लेता है – पर सरकारी सम्मान पद्म श्री लेने से इंकार करने का मन बनाता है।
साहित्यिक गुटबंदियों से दूर मुजफ्फरपुर जैसे शहर में उन्होंने अपना पूरा जीवन बिताया। बेला जैसी साहित्यिक पत्रिका का संपादन करते रहे। तथाकथित महान आलोचकों की दृष्टि में वे सदा अलक्षित ही रहे। जानकीवल्लभ शास्त्री जी का साहित्यिक योगदान भारतीय काव्य परंपरा के विकास में स्वर्णाक्षरों में लिखा जाना चाहिए।
आज माघ शुक्ल पक्ष की द्वितीया है, शास्त्री जी का जन्म दिन!
ईश्वर से प्रार्थना है कि वह उन्हें दीर्घायु करे।
उद्दाम जिजिविषा के धनी आचार्य जानकीवल्लभ शास्त्री को प्रणाम करते हुए उनके दीर्घ जीवन की कामना करता हूँ!
जवाब देंहटाएंमनोज कुमार जी।
आपका आभारी हूँ कि आपने आचार्य जानकीवल्लभ शास्त्री जी के बारे में विस्तृत जानकारी प्रदान की!
आदरणीय शास्त्रीजी को सादर प्रणाम तथा उनको सुखी और स्वास्थवर्धक जीवन की शुभकामना
जवाब देंहटाएंशास्त्रीजी को सादर प्रणाम, इश्वर करे वो सदा स्वास्थ्य रहे।
जवाब देंहटाएंशास्त्री जी को जन्मदिन की बहुत शुभकामनाएं ईश्वर उन्हेँ दीर्घायु प्रदान करे साथ ही साथ उनका स्वास्थ्य भी ठीक रहे. ऐसे व्यकतित्व का सानिध्य मन में कितनी शीतलता प्रदान करता है यह अनुभव किया जा सकता है. मनोज जी शास्त्री जी पर जो श्रंखला आपने प्रस्तुत की उसके लिए मैं आपकी आभारी हूँ.
जवाब देंहटाएंश्रद्धेय शास्त्री जी को प्रणाम ,
जवाब देंहटाएंवे दोनों निर्विघ्न एवं शान्तिपूर्ण लंबा जीवन बितायें
और हम सब को अपने आशीष की छाँह दिये रहें !
आदरणीय शास्त्रीजी से विस्तृत मुलाकात में उनके व्यक्तित्व के कई पहलू उजागर हुए ...इस युग के लिए दुर्लभ हैं ऐसे व्यक्ति ...उनकी सादगी, प्रकृति प्रेम ने बहुत प्रभावित किया ... ईश्वर उन्हें दीर्घायु और स्वस्थ रखे ...!
जवाब देंहटाएंप्रणाम सहित जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनायें !
जवाब देंहटाएंहिन्दी साहित्य की अमूल्य धरोहर हैं आचार्य जानकी वल्लभ शास्त्री जी। उनके जन्म दिवस के अवसर पर उनके शतायु होने की ईश्वर से कामना करता हूँ।
जवाब देंहटाएंशास्त्री जी पर जीवंत शृंखला प्रस्तुत करने के लिए मनोज जी को आभार।
सृजन सुनसान में ही संभव है।
जवाब देंहटाएंआपको जन्दिन की ढेरों शुभकामनायें, आपका स्वास्थ्य बना रहे।
आचार्य शास्त्री जी, चरण स्पर्श!
जवाब देंहटाएं-
यह श्रिंखला हम सभी के लिए आशीर्वाद है.
शास्त्री जी के बारे मैं जान के अच्छा लगा.
जवाब देंहटाएंआचार्य शास्त्री जी को जन्म दिन की हार्दिक शुभकामनायें मेरी निम्न पंक्तियों के साथ:-
जवाब देंहटाएंहरपल खुशियाँ आस पास हों,कभी न हों नाशाद,
ऊपर वाले से भी मिलती रहे सदा इम्दाद .
दूर बहुत हूँ करता रहता फिर भी हरदम याद,
जन्म - दिवस पर क़ुबूल करिये मेरी मुबारकबाद.
ईश्वर उन्हें स्वस्थ रक्खे और लम्बी उम्र दे.
आदरणीय शास्त्री जी को जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनाये ।
जवाब देंहटाएंमनोज जी यह आपका परन सौभाग्य है कि आपको उनका सानिध्य मिला ।
शास्त्री जी को जन्म दिवस की ढ़ेरोँ शुभकामनायेँ और ईश्वर से कामना है कि वह शतायु प्राप्त करेँ ।
जवाब देंहटाएंमनोज जी आपका ये प्रयास सराहनीय है । आपके इस बहुमूल्य प्रयत्न से हमेँ एक साहित्यिक धरोहर को जीवन्त रूप मेँ जानने का सौभाग्य प्राप्त हुआ । आपका बहुत बहुत आभारी हूँ ।
" कुछ फूल पत्थर के भी हुआ करते हैँ............गजल "
आचार्य जानकी वल्लभ शास्त्री जी हिन्दी साहित्य के शिखर पुरुष हैं। उनके साक्षात्कार की अंतिम कड़ी पूर्व की कड़ियों की ही भाँति रोचक और सजीव सी है। आपके आलेख से जानकारी हुई कि कल उनका जन्म दिवस था। उनके जन्म दिवस पर उनके दीर्घायु होने की मंगल कामना करता हूँ।
जवाब देंहटाएंआचार्य शास्त्री से परिचय कराने के लिए आपको आभार,
आचार्य जानकी बल्लभ शास्त्री जी के दीर्घ जीवन की कामना करता हूं।आप कितने सौभाग्यशाली हैं कि
जवाब देंहटाएंउनके जीवन की सांध्य बेला में उनका सामीप्य-बोध कर सके।इस प्रस्तुति के लिए आपकी जितनी भी प्रशंसा की जाए वह थोड़ी है। अति सुंदर।
साहित्यानुरागीयों के लिये ये कुछ दुर्लभ क्षण होते हैं.... फिर सपरिवार इस विशेष कालखण्ड को शास्त्रीजी के साथ जी लेने का आनंद.....क्या कहने।
जवाब देंहटाएंथाती ये साहित्य की ईश्वर रखें सम्भाल,
जवाब देंहटाएंस्वस्थ, दीर्घ जीवन रहे जियें साल दर साल!
थाती ये साहित्य की ईश्वर रखें सम्भाल,
जवाब देंहटाएंस्वस्थ, दीर्घ जीवन रहे जियें साल दर साल!
शास्त्री जी का जीवन परिचय बहुत अच्छा लगा। शास्त्री जी को जन्मदिन की बहुत शुभकामनाएं ईश्वर उन्हेँ दीर्घायु प्रदान करे। आभार।
जवाब देंहटाएंआचार्य शास्त्री जी हिंदी साहित्य जगत के शलाका पुरुष . माँ सरस्वती के इस अप्रतिम पुत्र को मेरी तरफ से स्वस्थ जीवन की इश्वर से कामना और आपको बधाई ऐसे अद्भुत और सजीव वर्णन के लिए .
जवाब देंहटाएंआदरणीय मनोज जी
जवाब देंहटाएंआपका आभार आचार्य जी के बारे में इतनी विस्तृत जानकारी देने के लिए ...
पूजनीय शास्त्री जी को जन्म दिन की हार्दिक शुभकामनायें ....ईश्वर उन्हें सुख, चैन और दीर्घायु बक्शे ....
जिसने सारा जीवन साहित्य साधना में लगा दिया हो … जिसके मुंह से एक एक वाक्य सुक्ति के रूप में निकलता है … ऐसी साहित्यिक धरोहर को हम Preserve करके नहीं रख सकते? आज वह एकाकीपन और त्रासदी को जी रहा है। क्या सरकारी तंत्र इतना लाचार है कि इस धरोहर को Nursing की सुविधा भी मुहैया नहीं करा सकता?
जवाब देंहटाएंआपकी बात शत प्रतिशत सही है ………पढते पढते आंख भर आई…………उन्हे नमन करते हुये बस यही प्रार्थना है कि ईश्वर उन्हे दीर्घायु बनाये और आपके आभारी हैं कि आपने एक अनमोल धरोहर से मिलवाया।
मनोज जी,
जवाब देंहटाएंआपने बहुत अच्छा काम किया है, ऐसे साहित्यकार को हमारे बीच में लाकर. हम शास्त्री जी कि दीर्घायु की कामना करते हैं और इतनी दूर न होते तो पूरा विश्वास था की उनकी सेवा भी करने का अवसर पा लेते. सरकार जब उनके अनुरुप समय से सम्मान नहीं दे पायी तो Nursing की सुविधा कहाँ से दे पाएगी? उसको अपनी चालों और राजनीति से फुरसत ही नहीं है. स्थानीय प्रशासन ही कुछ कर सके तो बेहतर होगा.
हृदय भर आता है पढ़ कर ... कभी कभी सोचने लगता हूँ की ऐसा क्यों होता है ... भगवान अच्छे लोगों के साथ ... फिर कुछ कहा नही जाता ... शास्त्री जी को जनम दिन की बहुत बहुत मुबारक ...
जवाब देंहटाएंआप धनी हैं जो उनकी संगति में कुछ दिन बिता कर आए ...
.
जवाब देंहटाएंआचार्य जानकीवल्लभ शास्त्री के प्रति ...
मन के अन्दर बैठी श्रद्धा
गुणगान आपका गाती है
जो नहीं कभी होगी वृद्धा
आशीष आपका पाती है.
मनोज जी,
.... एक प्रेरक चरित्र से साक्षात करवाया, मन को भाया और मन ही मन मुस्काया.
इसे ही कहते हैं मन का ओज मतलब मन का उल्लास, मन को आनंदित कर देने वाला प्रेरक प्रसंग.
वाह मनोज ही वाह.
.
पूज्यनीय शास्त्री जी को जन्मदिन की शुभकामनाएं. ईश्वर उन्हें दीर्घायु करें और हमेशा स्वस्थ रखें.
जवाब देंहटाएंआपका भी बहुत बहुत आभार इतने आत्मीय संस्मरण का.
आजशास्त्री जी के कृतित्व के अतिरिक्त, उनकी पत्नी, उनका पद्मपुरस्कार ठुकरा देना, आतिथ्य धर्म का निर्वाह आदि अनेक पहलुओं की जानकारी मिली.
जवाब देंहटाएंऐतिहासिक धरोहर को सहेजने के लिये तो पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग है, साहित्यिक धरोहर के लिये... ये भी कोई चीज़ है!! विडम्बना देश की!
ईश्वर उनको दीर्घायु प्रदान करें तथा स्वस्थ रखें!! शास्त्री जी को जन्म दिन की शुभकामनाएँ!!
जवाब देंहटाएंआचार्री जानकीवल्लभ शास्त्री जी के बारे में जानना मन को प्रफुल्लित कर गया ...शास्त्री जी के जन्मदिन पर बहुत बहुत शुभकामनायें
जवाब देंहटाएंमनोज जी
जवाब देंहटाएंनमस्कार !
आदरणीय शास्त्री जी को सादर प्रणाम ! और आप को जनम दिन की हार्दिक बधाई !ईश्वर उनको दीर्घायु प्रदान करें तथा स्वस्थ रखें!!
शास्त्री जी को जन्मदिन की बहुत शुभकामनाएं
जवाब देंहटाएंसंस्मरण के इस हिस्से को पढ़ते हुए विरक्ति, व्यथा, श्रद्धा जैसे कई भाव आये और गये, लेकिन जो बात मन में जम गयी, वह यह कि शायद निर्लिप्ति ही साहित्याकारों (सही अर्थ में) के जीवन का इष्ट है। साहित्यक निर्लिप्ति से उपजा खिलंदड़पन ही तो है कि शास्त्री जी कहते हैं-"देखने से लगता है कुछ दिन चलूंगा मैं।' मैंने सोचा कि उन्होंने ऐसा क्यों नहीं कहा कि "अब तो चंद दिनों का मेहमान हूं ?' मतलब साफ है- शास्त्री जी के लिए जीवन भी एक भौतिक उपलब्धि ही है, जो एक दूरी तक चलने के बाद खत्म हो जाती है। कमाल की बात यह कि छाया जी में ऐसा ही कुछ दिखाई दिया।
जवाब देंहटाएंबड़ा अच्छा लगा। उम्मीद है कि आप अगले हिस्से में संस्मरण के अंतःकरण में भी हमें अवश्य ले जायेंगे। वह जो देह और दुनिया के बीच में है, जो आपने शास्त्री जी के साथ और उनसे मिलने के बाद अनुभूत की।
सादर
रंजीत
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जवाब देंहटाएंशास्त्री जी को जन्मदिन की बहुत बहुत शुभकामनाएं। ईश्वर उन्हेँ दीर्घायु प्रदान करे।
जवाब देंहटाएंआचार्य जानकीवल्लभ शास्त्री जी के बारे में विस्तृत जानकारी प्रदान करने के लिए आपको आभार।
आपके आलेख के द्वारा ही शास्त्री जी का परिचय मिला है ! हर कड़ी में जितना अधिक उन्हें जानने का अवसर मिला है मन अगाध श्रद्धा से अभिभूत होता जाता है ! उनके जन्मदिवस पर उन्हें कोटिश: शुभकामनायें ! उनकी छत्रछाया सदैव बनी रहे यही कामना है !
जवाब देंहटाएंशतायु की ओर अग्रसर आचार्य जानकीवल्लभ शास्त्रीजी को उनके जन्मदिन की शुभकामनाओं के साथ ही शेष जीवन की मंगलकामनाएँ...
जवाब देंहटाएंbahut bahut shukriya is sansmaran ko ham tak pahuchane ke liye.
जवाब देंहटाएंshastri ji ki swastyevardhak lambi umr ki prarthna karti hun.
अच्छा संस्मरण है।
जवाब देंहटाएंशास्त्रीजी का कल जन्मदिन था। उनको जन्मदिन की अनेकानेक मंगलकामनायें।
jis aatmiyata se aap shashtri ji ke baare me batate ja rahe hain, ek judaav unse banta ja raha hai. esi aatmiyata hamare samaj se lagatar kshin hoti ja rahi hai, yah sansmaran use bachane ki ek rachnatmak koshish bhi kaha ja sakta hai.
जवाब देंहटाएंसबसे पहले आचार्य जी को जन्म दिन की समस्त शुभकामनाये...
जवाब देंहटाएंकितनी बिडम्बना है हमारे देश की कि न साहित्य न साहित्य की धरोहर को ही संरक्षित रख पाते हैं..
“सौष्ठव सम्भाल में ही नहीं, बेसम्भाल में भी है। रचाव के मुक़ाबले अनगढ़ में कहीं अधिक तेजस्विता देखी जाती है।
कितना सही कहा है..
आपका बहुत बहुत आभार इस अद्भुत प्रतिभा और महान हस्ती से इतने खूबसूरत अंदाज में परिचय कराने का.
आदरणीय आचार्य जानकीवल्लभ शास्त्री जैसे असाधारण एवं विलक्षण व्यक्तित्व वाले, मां सरस्वती के अनन्य उपासक और हिंदी साहित्य जगत के दुर्लभ नायाब और बेशकीमती मणि से परिचित हो पाना और उनके जीवन को करीब से देख पाने का अवसर मिलना स्वयं में किसी आशीष से कम नहीं है जो विरले ही मिल पाता है. जीवन के इस मोड़ पर भी उनकी अदम्य जिजीविषा जीवटता और प्रखर प्रतिभा का दर्शन सभी लोगों के लिए किसी अजस्त्र प्रेरणास्रोत से कम नहीं है.
जवाब देंहटाएंआदरणीय शास्त्री जी से परिचय कराने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद. उनके जन्म दिवस के अवसर पर हार्दिक शुभकामनाएं.
सादर,
डोरोथी.
ओह तो यह पोस्ट कल ही लगानी थी न ..चलिए तनिक विलम्ब से ही शास्त्री जी को जन्मदिन की बहुत बधाई -आपका पुनः आभार !
जवाब देंहटाएंइतने महान व्यक्तित्व का इनता साधारण जीवन .... बहुत ही प्रभावित कर गया यह आदर्श जीवन . जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनाये और नमन............... ।
जवाब देंहटाएं@ अरविन्द जी
जवाब देंहटाएंइस बार द्वितीया कल भी थी आज भी है।
और उनका जन्म दिन कल सुबह से आज सुबह तक मनाया गया होगा।
... और फ़ुरसत में शनिवार को ही आता है।
आप आजकल जाइए धनाढ्यों के यहां। कहेंगे,आईए,गरीबखाने में आपका स्वागत है या फिर यह कि जो कुछ रुखा-सूखा बन पाया,यही है। मगर आडम्बररहित आदमी रूखा-सूखा परोसकर भी कहेगा,"खास आपके लिए ही बनाया है।" एकदम शास्त्रीजी जैसा।
जवाब देंहटाएंआचर्य शास्त्रीजी शतायु हों..... सहस्त्रायु हों.... हमारी शुभकामनायें.... ! वे अपनी कृतियों से अमर तो हो ही गये हैं...........! इस यात्रा में हमारे साथ आने के लिये आप तमाम पाठकों को भी मैं हृदय से धन्यवाद देता हूं।
जवाब देंहटाएंहम शास्त्री जी के दीर्घ एवं सुखद जीवन की कामना करते हैं.
जवाब देंहटाएंआचार्य जानकी बल्लभ शास्त्री जी के दीर्घ जीवन की कामना करता हूं।आप सौभाग्यशाली हैं कि
जवाब देंहटाएंउनके जीवन की सांध्य बेला में उनका सामीप्य-बोध कर सके । इस प्रस्तुति के लिए आपकी जितनी भी प्रशंसा की जाए वह थोड़ी है। ईश्वर उन्हें दीर्घायु और स्वस्थ रखे ऐसे व्यकतित्व का सानिध्य मन में कितनी शीतलता प्रदान करता है.....
मनोज जी शास्त्री जी पर जो श्रंखला आपने प्रस्तुत की आभार....
Saturday, 05 February, 2011।
अफ़सोस है कि उक्त दिन पर शुभकामना न भेज पायी पोस्ट द्वारा ही...पर ईश्वर से प्रार्थना है कि इस साहित्य रत्न को शतायु दें..स्वस्थ निरोगी और सुखी रखें...
जवाब देंहटाएंमन आह्लाद से भर गया पढ़कर...
आपका कोटिशः आभार...
शास्त्री जी को जन्मदिन की शुभकामनाएं ईश्वर उन्हेँ दीर्घायु करे साथ ही उनका स्वास्थ्य भी ठीक रहे.
जवाब देंहटाएंहम सब कितने भोले हैं जानकर भी उनकी दीर्घायु की ही कामना कर रहे हैं। जानते हैं कि उनकी देखभाल करने वाला कोई नहीं है और न हममें से किसी की यह हिम्मत है उनके पास रहकर यह दायित्व निभा सके। फिर उनकी दीर्घायु की कामना करके क्यों और मुसीबत में डालना चाहते हैं।
जवाब देंहटाएं*
मैं तो यही कामना करता हूं कि वे जब तक हैं स्वस्थ्य रहें।
मनोज कुमार जी, पहले तो क्षमा चाहूँगा कि पिछले एक वर्ष से आपके ब्लाग से गायब हूँ. पढ़ना जारी है परन्तु संपर्क न हो पाया.
जवाब देंहटाएंकुछ कार्य जीवन में ऐसे होते हैं जिससे करने वाले धन्य और कृतार्थ महसूस करते हैं. शास्त्री जैसे उद्भट शख्सियत से मिलकर और उन्हें हम सबसे मिलाकर आप कृतार्थ हो गये हैं. आपके समस्त परिजन और करण जी बधाई के हक़दार हैं. मैं व्यक्तिगत रूप से आपका आभार व्यक्त करता हूँ कि आपका यह साहित्येतिहासिक कार्य आने वाले समय में अपनी महती भूमिका निभायेगा.
कुछ लोग अपने जीवन, विचार और व्यवहार से ऋषित्व को उपलब्ध होते हैं. विश्वास जानिये, शास्त्री जी को पढ़कर ऐसा ही लगा जैसे मैं विनाबा भावे और गॉंधी जी को देख रहा हूँ. वैसे बिहार की मिट्टी ही कुछ ऐसी है कि एक से एक सामाजिक, साहित्यक, राजनैतिक और ऐतिहासिक महापुरूष जन्म लेते रहे हैं. बाबू राजेन्द्र प्रसाद हों या ला़.ब.शास्त्री या जानकीवल्लभ शास्त्री जी, ऐसा लगता है 700 बी सी में नालन्दा में बने दुनिया के पहले विश्वविद्यालय की विरासत को क़ायम रखने ये युगपुरूष होते आ रहे हैं.
ये भी उतना ही सच है कि धिक्कार है इस व्यवस्था और इसके शासकों पर कि वे अपने युगपुरषों का ध्यान रखना और सम्मान करना नहीं जानती. दुनिया के शासकों ने सुकरात के पहले से अब तक सबके साथ यही व्यवहार किया है. जो शासक की गाते हैं वे इनाम पाते हैं. पद्मश्री ठुकराना दर्शाता है कि शास्त्री जी जीवन मूल्यों और नैतिकता की कितनी कद्र करते हैं. मुझे इन क्षणों में वाजपेयी जी कि वह पंक्तियॉं याद आ रही हैं 'हार नहीं मानूँगा, रार नहीं ठानूँगा, काल के कपाल पर लिखता हूँ, मिटाता हूँ, गीत नया गाता हूँ......'
यदि उनके रचना संसार से भी अंश ब्लाग पर पढ़ने को मिलें तो श्रेयस्कर होगा.
पुन: कोटि-कोटि बधाई़्
शास्त्री जी जैसे कितने ही महामानव होंगे जो हिन्दी साहित्य के इतिहास की मुख्य धारा से नही जुड पाए हैं पर आप यह अत्यन्त महत्त्वपूर्ण कार्य कर रहे हैं । यह न केवल आपकी अपने श्रद्धेयके प्रति भक्ति है बल्कि पाठकों के लिये अनमोल उपहार है ।
जवाब देंहटाएंमनोज जी एवं करण जी,
जवाब देंहटाएंहर भाग कितनी बार पढ़ा है, कह नहीं सकता।
आचार्य जी को पहले से पढ़ा है, जाना है, नहीं जानना संभव भी कहाँ है?
लेकिन आज इस भेंट के लिए, यह सब सहेजने के लिए आप लोगों की भूरि भूरि प्रशंसा करूँगा।
आत्मा प्रसन्न हुई।
श्रद्धेय शास्त्री जी को प्रणाम!
हम सब उनके आशीष की छाँव तले रहें।
आपका फिर से आभार।