शिवस्वरोदय-31
- आचार्य परशुराम राय
स्कंधद्वये स्थितो वह्निर्नाभिमूले प्रभञ्जनः।
जानुदेशे क्षितिस्तोयं पादान्ते मस्तके नभः।।156।।
अन्वय – वह्निः स्कन्धद्वये स्थितः प्रभञ्जनः नाभिदेशे क्षितिः जानुदेशे तोयं पादान्ते नभः (च) मस्तके।
भावार्थ – इस श्लोक में शरीर में पंचमहाभूतों की स्थिति बताई गयी है। अग्नि तत्त्व का स्थान दोनों कंधों में, वायु का नाभि में, पृथ्वी का जाँघों में, जल का पैरों में और आकाश तत्त्व का स्थान मस्तक में कहा गया है।
English Translation – Here in this verse, places of five Tattvas have been described. The place of Fire is in both shoulders, air in novel, earth in thighs, water in legs and ether in head.
माहेयं मधुरं स्वादे कषायं जलमेव च।
तीक्ष्णं तेजस्समीरोSम्ल आकाशं कटुकं तथा।।157।।
अन्वय – स्वादे माहेयं मधुरं जलं कषायं च तेजः तीक्ष्णं समीरोSम्लं आकाशं कटुकं तथा।
भावार्थ - इस श्लोक में पंच महाभूतों के स्वाद के विषय में चर्चा की गयी है। पृथ्वी का स्वाद मधुर, जल का कषाय, अग्नि का तीक्ष्ण, वायु का अम्लीय (खट्टा) और आकाश का स्वाद कटु बताया गया है।
English Translation – Tastes of five Tattvas have been indicated in this verse. Earth tastes sweet, water astringent, fire pungent, air acidic (sour) and ether tastes bitter.
अष्टङ्गुलं वहेद्वायुरनलश्चतुरङ्गुलम्।
द्वादशाङ्गुलं माहेयं वारुणं षोडशाङ्गुलम्।।158।।
अन्वय – वायुः अष्टाङ्गुलं वहेत् अनलश्च चतुरङ्गुलं माहेयं द्वादशाङ्गुलं वारुणं षोडशाङ्गुलम्।
भावार्थ – यहाँ श्वाँस में पंच महाभूतों के उदय के अनुसार इसमें (प्रश्वास) की लम्बाई में परिवर्तन की ओर संकेत किया गया है। जब साँस में वायु तत्त्व की प्रधानता या उसका उदय हो, तो प्रश्वास की लम्बाई आठ अंगुल, अग्नि तत्त्व के उदय काल में चार अंगुल, पृथ्वी तत्त्व के समय बारह अंगुल और जल तत्त्व के समय सोलह अंगुल होती है।
English Translation – Here it has been described that the length of breath differs as per appearance of Tattvas in it. At the time of appearance of air in the breath, the length of expiration becomes about six inches, fire’s appearance causes three inches length, earth nine inches and water twelve inches. No length of ether has been indicated.
उर्ध्वं मृत्युरधः शान्तिस्तिर्यगुच्चाटनं तथा।
मध्ये स्तम्भं विजानीयान्नभः सर्वत्र मध्यमम्।।159।।
अन्वय – यह श्लोक अन्वित क्रम में है।
भावार्थ – जब स्वर का प्रवाह ऊपर की ओर हो, अर्थात स्वर में अग्नि तत्त्व प्रवाहित हो, तो मारण की साधना प्रारम्भ करना उचित है। स्वर की गति नीचे की ओर हो, अर्थात स्वर में जल तत्त्व का उदय काल शांतिपूर्ण कार्य के लिए उचित होता है। स्वर का प्रवाह यदि तिरछा हो, अर्थात वायु तत्त्व का उदयकाल हो, तो उच्चाटन जैसी साधना के प्रारम्भ के लिए उचित समय होता है। पर स्वर का प्रवाह मध्य में होने पर, अर्थात पृथ्वी तत्त्व के प्रवाह-काल में स्तम्भन सम्बन्धी साधना का प्रारम्भ ठीक होता है। लेकिन आकाश तत्त्व के उदय काल को मध्यम, अर्थात किसी भी कार्य के लिए अनुपयोगी बताया गया है।
English Translation – When the flow of breath is upward, i.e. during the flow fire in the breath, some can practice Marana Sadhana (a kind Tantric practice which is practised to kill the enemies), during the downward flow of breath, i.e. appearance of water in the breath, the work of peaceful nature should be preferred, angular flow of breath (appearance of air) is good for Uchchatana (a kind of Tantric Sadhana causes mental disturbances). When breath flows in the middle (during the appearance of earth), Stambhan Sadhana (this is also a kind of Tantric practice and it is performed to make someone immovable) should be performed. But the appearance of ether in the breath is of no use for any work other than Yogic practices.
पृथिव्यां स्थिरकर्माणि चरकर्माणि वारुणे।
तेजसि क्रूरकर्माणि मारणोच्चाटनेSनिले।।160।।
अन्वय – पृथिव्यां स्थिरकर्माणि वारुणे चरकर्माणि तेजसि क्रूरकर्माणि अनिले मारणोच्चाटने।
भावार्थ – पृथ्वी तत्त्व के उदय-काल में स्थायी प्रकृति के कार्य का प्रारम्भ श्रेयस्कर होता है, जल तत्त्व के समय अस्थायी कार्य, अग्नि तत्त्व के समय श्रम-साध्य कठिन कार्य तथा वायु तत्त्व के प्रवाह में मारण, उच्चाटन जैसे दूसरों को हानि पहुँचाने कार्य करने चाहिए।
English Translation – Period of appearance earth in the breath is auspicious to start any work of permanent nature, during the appearance of water we should prefer to start the work of temporary nature, hard work should be always preferred during the appearance of fire and work for harming others should be preferred during the appearance of air, like practice of Marana, Uchchatana.
व्योम्नि किञ्चिन्न कर्तव्यमभ्यसेद्योगसेवनम्।
शून्यता सर्वकार्येषु नात्र कार्या विचारणा।।161।।
अन्वय - व्योम्नि किञ्चिन्न कर्तव्यम् योगसेवनम् अभ्यसेद् सर्वकार्येषु शून्यता नात्र कार्या विचारणा।
भावार्थ – आकाश तत्त्व के प्रवाह काल में कोई भी कार्य नहीं करना चाहिए। यह समय केवल योग का अभ्यास करने योग्य है। यह सभी कार्यों के परिणाम को शून्य कर देता है, अर्थात कोई फल नहीं मिलता। इसलिए योग साधना के अलावा और कोई कार्य करने के विषय में सोचना भी नहीं चाहिए।
English Translation – Period of appearance of ether in the breath is not advisable for any work other than spiritual practices. It has been stated that we should not think to do anything during this period. Because any work done during this period does not produce any fruitful results.
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आकाश तत्त्व के प्रवाह काल में कोई भी कार्य नहीं करना चाहिए। यह समय केवल योग का अभ्यास करने योग्य है। यह सभी कार्यों के परिणाम को शून्य कर देता है, अर्थात कोई फल नहीं मिलता। इसलिए योग साधना के अलावा और कोई कार्य करने के विषय में सोचना भी नहीं चाहिए।
जवाब देंहटाएंise samjhenge kaise
आचार्यवर,
जवाब देंहटाएंनमस्कार !
बहुत ही उत्तम ज्ञान का भडार आपने खोल रखा है. हम परिश्रम करते हैं फिर भी वांछित सफलता नहीं मिलती है और सर धुनते हैं. ह सफलता के लिए प्रयासों की सघनता के साथ-साथ दशा और दिशा भी महत्वपूर्ण है. में इन विद्यायों का आजमाना चाहिए. धन्यवाद !!
ज्ञानवर्धक आलेख ...कोशिश करेंगे ...
जवाब देंहटाएंज्ञान की बातें हैं ..अपनानी मुश्किल होती हैं :) पर कोशिश करेंगे.
जवाब देंहटाएंआपकी उम्दा प्रस्तुति कल शनिवार (19.02.2011) को "चर्चा मंच" पर प्रस्तुत की गयी है।आप आये और आकर अपने विचारों से हमे अवगत कराये......"ॐ साई राम" at http://charchamanch.uchcharan.com/
जवाब देंहटाएंचर्चाकार:Er. सत्यम शिवम (शनिवासरीय चर्चा)
बहुत सुंदर, धन्यवाद
जवाब देंहटाएंअनोखे ज्ञान का रोचक वर्नन.. आचार्य जी हम सौभाग्यशाली है कि हम यह सब पढ़ पा रहे हैं आपके सौजन्य से!!
जवाब देंहटाएंरश्मि जी,
जवाब देंहटाएंस्वर में तत्त्वों की पहिचान करने के तरीके पिछले अंक में बताए गए हैं। कृपया उन्हें एक बार देखें। आभार।
ज्ञानवर्धक पोस्ट।
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