जग की जननी हे माँ शारदे.....
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ऋतुराज पधारे... मुस्काई लतिकायें... खिले कुसुम... ओढ धानी चुनर ली धरा अंगराई.... झरे मकरन्द.... भ्रमर करें किलोल, पिक-काकली की मधुर बोल... मूक सृष्टी को मिला स्वर... वाग्देवी की अर्चना का सुअवसर। कल है बसंत पंचमी। कल है स्वरदात्री माँ शारदे की अराधना का सुयोग। ऋतुपति के आगमन से मुकुलित-मकरंद सुशोभित मधुमय बेला में इस मंच से वागधिष्ठात्री का आवाहन काव्य-प्रसून से कर रहे हैं कविकर ज्ञानचन्द मर्मज्ञ। जग की जननी हे माँ शारदे तुम, मेरी पूजा को स्वीकार करना । मुझको आता नहीं फूल चुनना, मुझको आता न शृंगार करना ॥ जग की जननी.......... !! कुछ न कुछ हर किसी को हुआ है, हर तरफ़ बेतहाशा धुआँ है । मुश्किलों से भरी हैं ये राहें, इन अँधेरों को गुलज़ार करना ॥ जग की जननी..........!! ओस की बूँद जब मुस्कराये, गंध माटी से फूलों में आये । रूप हो, रंग हो, भाव हो तुम, जग को खुशियों क संसार करना ॥ जग की जननी.......... !! कब से सोये अभी तक न जागे, कैसे समझेंगे तुझको अभागे । जग की जननी.......... !! प्यास पानी को ठगने लगी है, खून की प्यास लगने लगी है । दिल से इन नफ़रतों को मिटा दे, सीख ले हर कोई प्यार करना ॥ जग की जननी.......... !! भाव कितने तराशे पड़े है, कितने मर्मज्ञ प्यासे पड़े हैं । इनको मालूम है, ये पता है, तुझको आता न इनकार करना ॥ जग की जननी.......... !! |
मां सरस्वती को शत-शत नमन।
जवाब देंहटाएंप्रातःकाल वब्लाग पर माँ शारदा का स्मरण बड़ा ही सुखद लगा। माँ सरस्वती कवि को, जिज्ञासुओं को कवि-वांछित फल प्रदान करे, यही प्रार्थना है।
जवाब देंहटाएंइनकी काव्य प्रतिभा का लोहा तो हम भी मानते हैं... यहाँ माता शारदे की वंदना प्रस्तुत कर आपने बहुत सराहनीय कार्य किया है..
जवाब देंहटाएंसुबह की शुरुआत सुंदर कविता से. मर्मज्ञ जी के साथ ही आप का भी आभार
जवाब देंहटाएंहम तो भाई मर्मज्ञ जी की लेखनी के कायल है!
जवाब देंहटाएंमाँ शारदे को नमन!
माँ शारदे को प्रणाम, मर्मज्ञजी उनके वरदान को निकट से समझ सकते हैं।
जवाब देंहटाएंप्रातः स्मरणीय माँ शारदे को नमन।
जवाब देंहटाएंमर्मज्ञ जी बहुत अच्छा लिखते हैं.
जवाब देंहटाएंमाँ शारदे को नमन..
बहुत सुंदर रचना है। समसामयिक भी। मर्मज्ञ जी का आभार कि इस पुनित अवसर पर उन्होंने हमारे लिए यह प्रस्तुति दी।
जवाब देंहटाएंसभी पाठक मित्रों को बसंत पंचमी की शुभकामनाएं।
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जवाब देंहटाएंमेरी शिकायत - मेरी पूजा ...
हे देवी! छंद के नियम बनाये क्योंकर?
वेदों की छंदों में ही रचना क्योंकर?
किसलिये प्रतीकों में ही सब कुछ बोला?
किसलिये श्लोक रचकर रहस्य ना खोला?
क्या मुक्त छंद में कहना कुछ वर्जित था?
सीधी-सपाट बातें करना वर्जित था?
या बुद्धि नहीं तुमने ऋषियों को दी थी?
अथवा लिखने की उनको ही जल्दी थी?
'कवि' हुए वाल्मिक देख क्रौंच-मैथुन को.
आहत पक्षी कर गया था भावुक उनको.
पहला-पहला तब श्लोक छंद में फूटा.
रामायण को लिख गया था जिसने लूटा.
माँ सरस्वती की कृपा मिली क्यूँ वाकू?
जो रहा था लगभग आधे जीवन डाकू?
या रामायण के लिए भी डाका डाला?
अथवा तुमने ही उसको कवि कर डाला?
हे सरस्वती, बोलो अब तो कुछ बोलो !
क्या अब भी ऐसा हो सकता है? बोलो !!
अब तो कविता में भी हैं कई विधायें.
अच्छी जो लागे राह उसी से आयें.
अब नहीं छंद का बंध न कोई अड़चन.
कविता वो भी, जो है भावों की खुरचन.
कविता का सरलीकरण नहीं है क्या ये?
प्रतिभा का उलटा क्षरण नहीं है क्या ये?
कुछ और यहाँ पढ़ सकते हैं :
http://pratul-kavyatherapy.blogspot.com/2010/10/blog-post_15.html
कुछ और भाग नये संस्करण में ... (आज-कल में...)
http://pratul-kavyatherapy.blogspot.com/
[मेरा मंच खाली रहता है इस कारण दूसरे मंचों पर आ-धमकता हूँ. इसे मेरी मजबूरी समझें.]
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माँ सरस्वती को समर्पित ये प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर लगी
बहुत बहुत धन्यवाद सर
प्यास पानी को
जवाब देंहटाएंठगने लगी है,
खून की प्यास लगने लगी है ।
दिल से इन नफ़रतों को मिटा दे, सीख ले हर कोई प्यार करना ॥
अर्चना के इन स्वरों में एक स्वर मेरा मिला लो,
मर्मज्ञ जी की प्रतिभा उनकी रचनाओं में स्पष्ट झलकती है।
मां सरस्वती के चरणों में शत-शत नमन।
भगवती भारती देवी नमस्ते !
जवाब देंहटाएंइस मनोहर वंदना के लिए, मर्मज्ञजी का आभार. माँ शारदे उनकी वन्दना स्वीकार करें. कल ही उनके आवास पर आयोजित एक संक्षित कवि-गोष्ठी में श्री मर्मग्यजी के तानपुरित वाणी में इस मंगलकारी वंदना का पाठ सुना था. संजो लाया आपके लिए, अपने परिवार के लिए. धन्यवाद !!
मां सरस्वती को शत-शत नमन। इनकी कृपा हम सभी पर बनी रहे ...आपका आभार
जवाब देंहटाएंवसंत पंचमी के पावन अवसर पर मेरे भाव सुमनों को वाग्देवी के चरण कमलों में समर्पित होने का सौभाग्य प्राप्त हो सका, इसके लिए आदरणीय मनोज जी और करन जी का हृदय से आभारी हूँ !
जवाब देंहटाएंसुधी पाठकों के प्रति कृतज्ञता ज्ञापित करता हूँ जिनके विचार मुझे रास्ता दिखाते हैं !
माँ सरस्वती से बहुत अच्छी प्रार्थना की है मर्मग्य जी ने और आपने उससे परिचित कराके उतना ही अच्छा कार्य किया है.
जवाब देंहटाएंमां सरस्वती को शत-शत नमन।
जवाब देंहटाएंजाग रहे हैं फिर भी सोए हैं
जवाब देंहटाएंलोग अपने में ही खोए हैं
दिल से ईर्ष्या को मिटा दें सीख ले हर कोई प्यार जताना
जग की जननी मां शारदे मेरी पुजा तुम स्वीकार करना
मां शारदे को मेरा शत-शत नमन
जाग रहे हैं फिर भी सोए हैं
जवाब देंहटाएंलोग अपने में ही खोए हैं
दिल से ईर्ष्या को मिटा दें सीख ले हर कोई प्यार जताना
जग की जननी मां शारदे मेरी पुजा तुम स्वीकार करना
मां शारदे को मेरा शत-शत नमन
मां सरस्वती को शत-शत नमन जी, बहुत अच्छी लगी बंदना, धन्यवाद
जवाब देंहटाएंमर्मज्ञ जी की प्रतिभा उनकी रचनाओं में स्पष्ट झलकती है।
जवाब देंहटाएंमां सरस्वती के चरणों में शत-शत नमन।
मर्मज्ञ जी बहुत अच्छा लिखते हैं.
जवाब देंहटाएंमां शारदे को मेरा शत-शत नमन
मर्मज्ञ जी की लेखनी बहुत प्रभावित करती है..... आभार उनसे मिलवाने का
जवाब देंहटाएंमां सरस्वती को शत-शत नमन। बसंत पंचमी की हार्दिक शुभकामनाएं।
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