स्व. श्री श्याम नारायण मिश्र के गीतों के साथ मेरा दीर्घ सान्निध्य रहा। वे मुझे अपने सम सामयिक गीतकारों से अलग और स्वतंत्र व्यक्तित्व के लगते थे। वे उन गीतकारों में से नहीं थे जो मुट्ठीभर रचना करके, अपने कंठमाधुर्य के बल पर, उसके एवज़ में झोली भर चना-चबेना जुगाने की दिशा में हाथ-पैर मारते। न ही ऐसा कुछ था कि उन्होंने अपना एक गीतात्मक सांचा तैयार कर रखा था जिसमें कच्चे माल को ढाल कर वे रातों रात नए संकलन की तैयारी कर डालते। उनके द्वारा छह सौ से अधिक गीतों में पुनरावृत्ति की झलक कहीं नहीं दिखाई पड़ती।
जाड़ा जा रहा है। फाल्गुन दस्तक दे चुका है। ऐसे में मुझे श्यामनारायण मिश्र जी के कंठ से सुना यह नवगीत ‘पालों से फहरे दिन फागुन के’ बरबस याद आ रहा है। आज उसे ही आपसे बांट रहा हूं। आशा है पसंद आएगा।
मनोज कुमार
पालों से फहरे दिन फागुन के
सेंमल की शाखों पर
शत्-सहस्त्र कमल धरे,
कोहरे से उबरे,
दिन फागुन के।
उबटन सी लेप रही आंगन में,
हल्दी सी चढी हुई बागन में,
धूप गुनगुनी,
पत्तों को धार में नचा रही,
अरहर के खेत में बजा रही,
पवन झुनझुनी।
मड़वे पर बिरहा
मेड़ों पर दोहरे,
लगा रहे पहरे,
दिन फागुन के।
आंखों में उमड़े हाट और मेले,
चाहेगा कौन बैठना अकेले,
द्वार बंद कर।
दिन गांजा-भंग पिए रात पिए ताड़ी,
कौन चढे – हांके सपनों की गाड़ी,
नेह के नगर।
सांझ औ’ सबेरे
नावों पै ठहरे,
पालों से फहरे,
दिन फागुन के।
मनोज कुमार जी, आपने ठीक कहा कि स्व.पं.श्यामनारायण मिश्र में रातो-रात एक संकलन भर गीत लिखने की प्रतिभा और क्षमता थी। उनके लिए पूरी प्रकृति सदा गीत गाती सी प्रतीत होती थी। ऐसा लगता था वे गीत लिखने के लिए जरा भी प्रयास लही करते थे, बस कलम उठाए और गीत लिख गये। बहुत दिनों बाद उनका यह गीत पढ़ने को मिला। आभार।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर लगी रचना धन्यवाद|
जवाब देंहटाएंbhaut pasand aaya geet
जवाब देंहटाएंdhanaywad
बड़ा सुन्दर गीत स्व मिश्रजी का।
जवाब देंहटाएंमिश्र जी के गीतो में प्राकृतिक बिम्ब बहुत सहज रूप में अभिव्यक्त होते हैं और रचना को अनुपम सौन्दर्य से विभूषित करते हैं।
जवाब देंहटाएंसुन्दर रचना।
आभार,
बहुत सन्दर नवगीत है। मिश्र जी के गीत बहुत ही स्वाभाविक होते हैं। मिश्र जी के गीतों में प्रकृति की छटा अपनी सम्पूर्ण सुन्दरता के साथ बिखर जाती है।
जवाब देंहटाएंआभार,
फागुन के अनुरूप सुन्दर गीत।
जवाब देंहटाएंश्यामनारायण मिश्र जी की रचना बहुत खूबसूरत है!
कवि के परिचय के साथ कविता उत्तम भावों के साथ मौसम का सुन्दर वर्णन प्रस्तुत करती है.
जवाब देंहटाएंमिश्र जी को पढ़ना अच्छा लगता है.उनकी कवितायें लाजवाब होती हैं.
जवाब देंहटाएंफागुन का सुन्दर गीत.
जवाब देंहटाएंचल पड़ी है फगुनाहट , मिश्र की कविता अच्छी लगी .
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर, धन्यवाद
जवाब देंहटाएंbahut sunder rachana...
जवाब देंहटाएंएक सजीव एव मनमोहक दृश्य उपस्थित हो रहा है गीत के माध्यम से .. सुन्दर गीत पढवाने के लिए मनोज जी का हार्दिक आभार
जवाब देंहटाएंस्व. मिश्र जी के ख़ज़ाने का एक नायाब हीरा... लगा जैसे फगुनहट छूकर गुज़र गई!!
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर कविता..कविता अपने भावों में बहा कर लेजाती है..
जवाब देंहटाएंउबटन सी लेप रही आंगन में,
जवाब देंहटाएंहल्दी सी चढी हुई बागन में,
धूप गुनगुनी,
पत्तों को धार में नचा रही,
अरहर के खेत में बजा रही,
पवन झुनझुनी।
फागुन की बयार बहुत ही खूब लगी. सुंदर गीत पढकर मन आनन्दित हो गया.
सुन्दर नवगीत ...फागुन की बहार लाता हुआ
जवाब देंहटाएंसांझ औ’ सबेरे
जवाब देंहटाएंनावों पै ठहरे,
पालों से फहरे,
दिन फागुन के
bahut badhiya lagi ,kitna sundar likha hai .
अहहहा........
जवाब देंहटाएं"गीत पढ़ कर खो गया हूँ गीत में !
बासंती धरा के सुरभि-संगीत में !!
फूटते हैं भाव शब्दों से जनित !
आह... लिखा है क्या प्रकृति के प्रीत में !!"
यह इस रचना का प्रभाव ही है कि मूक अधर पर भी कविता-कामिनी मुस्कुराने लगे.... ! अद्भुत. बहुत सुन्दर.... मनभावन !!!