लघुकथा
मजनूँ कहीं का
मनोज कुमार
बहुत दिनों से मास्टर मुचकुन्द नाथ की नज़रें उसे ही खोज रही थीं। कहीं से उन्हें उड़ती ख़बर मिली थी कि क्लास का एक लड़का माला से इश्क फरमा रहा है। माला क्लास की सबसे ख़ूबसूरत लड़की जो थी। पर, उन्हें अभी तक इसका कोई सुबूत नहीं मिला था ताकि वह उसको मज़ा चखा सकें। उनकी मंशा उसे रंगे हाथ पकड़ने की थी। वो घात लगाए ही थे कि यह मौक़ा उन्हें जल्द मिल गया।
उस दिन जब वो क्लास लेने आ रहे थे तो खिड़की से उन्हें दिखाई पड़ा कि शंकर एक चिट माला की ओर बढ़ा रहा है। इससे पहले कि माला उस चिट को ले पाती, मास्टर साहब धप्प से कमरे में घुसे और चिट को झपट कर अपने क़ब्ज़े में किया। उन्होंने मुड़े हुए कागज के टुकड़े को खोलकर भरी क्लास में ऊँचे स्वर में बाँचना शुरू किया। उस पर एक शे’र लिखा था .........
नज़र में ढल के उभरते हैं दिल के अफ़साने,
यह और बात है कि दुनियाँ नज़र न पहचाने।
उनकी आँखों से आग बरसने लगी। गुस्से से तमतमाए मास्टर साहब ने नैतिकता, विद्यालय की मर्यादा और छात्रों के धर्म की दुहाई देते हुए शंकर पर लात-घूंसे और चप्पल की बौछार कर दी। जब जी ठंडा हुआ तो हाँफते हुए बोले, “साला ... मजनूँ की औलाद ... पढ़ने आता है या इश्कबाज़ी करने! आइन्दा ऐसी हरकत की तो खैर नहीं .........।”
क्लास खत्म होने के बाद माला ने शंकर से पूछा, “तुझे क्या हो गया शंकर ? ऐसा क्यों किया?”
शंकर ने बताया, “वो रतन ने लिखा था, और तुझे देने को बोला था।”
इधर, स्टाफ रूम में मास्टर मुचकुन्द नाथ अपने दोस्त अध्यापकों को गर्व से वृत्तान्त सुना रहे थे, “आज मज़ा चखा दिया। कमीना कहीं का, मेरी माला पर नज़र रखता था।”
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बढ़िया, सफाई का मौका जरूर दें सजा सुनाने से पहले.
जवाब देंहटाएंwaah re shikshak mahiday !
जवाब देंहटाएंदुनिया तेरी अजब कहानी।
जवाब देंहटाएंकथानक की समस्त व्यंजना मात्र एक शब्द में निहित है, वह है कहानी की अंतिम पंक्ति में प्रयुक्त शब्द "मेरी"। यहीं से नैतिकता, धर्म और मर्यादा की जो दुहाई मास्टर जी दे रहे होते हैं, उसके उसके मायने बदल जाते हैं। इस "मेरी" के बिना कहानी बहुत साधारण नजर आती है। समाज के जिस पद को हम मर्यादा और नैतिकता के आदर्श के रूप में देखते हैं, उसके विकार पर यह कहानी प्रभावशाली ढंग से चोट करती है।
जवाब देंहटाएंहा.. हा.. हा..। मजनूँ कौन है?
जवाब देंहटाएंआजकल ऐसे एक दो मजनुओं के बारे में खबरें लगभग रोज ही अखबारों में देखने को मिलती हैं। समाज के कलंक। समाज की इस विकृत पर जबरदस्त चोट करती लघुकथा अच्छी लगी। आभार,
कुण्ठाओं को व्यक्त करने के ढंग पर प्रहार करती कहानी बहुत रोचक है। सर्वांगीण रूप से लघुकथा अपनी विधा की कसौटियों पर खरी उतरती है।
जवाब देंहटाएंरोचक प्रस्तुती
जवाब देंहटाएंशायद सच्चाई अभी भी यही है.
चुकती हुई नैतिकता की नंगी तस्वीर !
जवाब देंहटाएंबेहतरीन व्यंग्य की शक्ल में लघुकथा।
जवाब देंहटाएंअरे वाह ....
जवाब देंहटाएंबेहतरीन रचना , गलत पहचान करने और रखने वालों कि शायद आँखें खुलें !शुभकामनायें मनोज भाई !!
बढ़िया रही यह लघुकथा!
जवाब देंहटाएंमास्टर और छात्र दोनों का चरित्र सामने आ गया!
अंजाम-ए-गुलिस्तां क्या होगा हर डाल पे मटुक बाबा बैठे हैं..... ! सार्थक व संतुलित लघुकथा !!
जवाब देंहटाएंएक कहावत याद आ गई "करे कौन भरे कौन".
जवाब देंहटाएंअच्छी है लघुकथा .
shikchak ke atyachar ka ek aur namoona.....beraham...
जवाब देंहटाएंपढते पढते लग ही रहा था कि मास्टर की नीयत ही खराब होगी और वो ही निकला………………कैसी दुनिया है ये और कैस ्लोग और कैसा उनका चरित्र इस बात को बखूबी उजागर किया है।
जवाब देंहटाएंनैतिकता सिखाने से पहले हमे अपने गिरेबान में तो झाकना चहिये ही ना .सुन्दर लघु कथा .
जवाब देंहटाएंसलेक्टिव नैतिकता पर अच्छी कहानी !
जवाब देंहटाएंवीणा जी ने अपनी टिप्पणी ने इस लघुकथा को स्पष्ट कर दिया है.. 'सेलेक्टिव नैतिकता' .. यदि तो तमाम समस्याओं की जड़ है..
जवाब देंहटाएंहरीश जी से सहमत. 'मेरी माला'. यह केंद्र विन्दु है. उस पर नजर तो अध्यापक महोदय की भी है, वह इस एकाधिकार को बांटने कैसे दे.? यह अध्यापक महोदय की मन की सच्चाई को खोलता है, मजनू को पीटना उनके अहं की तुष्टि है और कुल मिलाकर एक यथार्थ जिसे मनोवैज्ञानिक दर्पण कहना अधिक सटीक होगा. अच्छी रचना. आभार .
जवाब देंहटाएंउफ़ हद्द हो गई ...अब शिक्षा कौन दे?
जवाब देंहटाएंबहुत रोचक और सुन्दर प्रस्तुति...
जवाब देंहटाएंस्पष्ट है जब ऐसे अध्यापक होंगे तो शिष्य भी वैसे ही होंगे.जिसकी लाठी उसकी भैंस वाली बात हुयी यह घटना.
जवाब देंहटाएंबहुत रोचक और सुन्दर प्रस्तुति| धन्यवाद|
जवाब देंहटाएंऎसे गुरु जब बच्चो के हाथ लग जाये तो इन का सारा गुरुपन निकल जाता हे...
जवाब देंहटाएंकभी-कभी ऐसी खबरें पढ़ने को मिल ही जाती हैं कि अमुक मास्टर फलां छात्रा को ले उड़ा।
जवाब देंहटाएंशिक्षक अपनी अहम् की तुष्टि के लिए ही छात्रों पर हाथ उठाते हैं....उन्होंने अपना गुबार निकाल लिया...सहकर्मियों पर रौब जमा लिया संतुष्ट हो गए...जबकि ऐसे वाकये को कोमलता से tackle करने की जरूरत होती है.....
जवाब देंहटाएंकहानी ने बड़ी सूक्ष्मता से इस पर प्रकाश डाला है
मटुकनाथ जूली प्रकरण के बाद तो यह कथा और वास्तविक लगी!!
जवाब देंहटाएंकमीना कहीं का, मेरी माला पर नज़र रखता था।”
जवाब देंहटाएंओह अब किसे मजनू कहें ?
ओह....
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