आज मंगलवार है। ब्लॉग के माध्यम से पाठकों को 'कथांजलि' अर्पित करने का दिन। पिछले कुछ दिनों से मैं श्री सत्येन्द्र झा जी की मैथिली लघुकथाओं का अनुदित रूप आपके नजर कर रहा था। अब पता नहीं ये संक्रमण है या कुछ और आज अंतस में घुमरते कुछ विचारों को 'लघुकथा' कहने की जुर्रत कर रहा हूँ। प्रयास अच्छा लगे तो सराहना कीजियेगा और नहीं तो प्रोत्साहन.... ! हा...हा....हा...हा.... हा..... !! -- करण समस्तीपुरी
कोई बात जरूर होगी
शर्माजी घर में घुसते ही निढाल होकर सोफे पर पसर गए। मिसेज शर्मा के सवालों की श्रृंखला जारी थी। कैसी रही बरात ? रामदीन भैय्या कैसे हैं ? उन्होंने हमारे नहीं आने पर शिकायत को किया होगा ? नयी बहू कैसी है ? रामदीन का एकलौता बेटा है न... ? शादी तो खूब धूम-धाम से हुई होगी ?
थके-थके से शर्माजी ने झल्ला कर कहा, "ख़ाक धूम-धाम से होगी.... ! उस से ज्यादा धूम-धाम से तो अपने मोहल्ले के धनेसर बाबू का श्राद्ध हुआ था।"
मिसेज शर्मा, "शिव-शिव... ऐसे क्यूँ बोल रहे हैं.... सब-कुछ अच्छे से हुआ न... ? क्या सब लिया है रामदीन ने ?"
शर्माजी, "कुछ नहीं।"
मिसेज शर्मा, "क्या बात करते हैं ? उनका बेटा करता क्या है ?"
शर्माजी, "सुना है किसी बहु-राष्ट्रीय कंपनी में असिस्टेंट मैनेजर है।"
मिसेज शर्मा आश्चर्य से आँखे नचाते हुए बोली, "फिर भी कुछ नहीं लिया...?"
शर्माजी, "लेने के लिए अक्ल होनी चाहिए। तुम तो जानती ही हो, रामदीन कैसा पोंगापंथी है....! अक्ल का दुश्मन एम ए पास कर के आजतक वही किरानीगिरी कर रहा है। आखिर सोना का जूता पहनने के लिए चांदी के जूते मारने पड़ते हैं। आदर्शवादी.... रिश्वत नहीं लेता-देता है। दहेज़ से परहेज है..... पता नहीं और कितने ऊंचे-ऊंचे उसूल हैं.... !"
शर्माजी, "ठीक-ठाक है। वह भी उसी शहर में नौकरी करती है।"
सहसा मिसेज शर्मा की आँखें चमक उठी, "तो ये कहिये न.... ! वही तो मैं कहूं। कोई बात जरूर होगी वरना इतने पढ़े-लिखे और अच्छे कैरियर वाले लड़के की शादी फ्री में क्यों करेंगे ?"
मनोज कुमार जी!
जवाब देंहटाएंआपने बहुत रोचक-सुन्दर और सशक्त पोस्ट लिखी है!
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महिला दिवस की बहुत-बहुत शुभकामनाएँ!
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केशर-क्यारी को सदा, स्नेह सुधा से सींच।
पुरुष न होता उच्च है, नारि न होती नीच।।
नारि न होती नीच, पुरुष की खान यही है।
है विडम्बना फिर भी इसका मान नहीं है।।
कह ‘मयंक’ असहाय, नारि अबला-दुखियारी।
बिना स्नेह के सूख रही यह केशर-क्यारी।।
करन बाबू,
जवाब देंहटाएंलघुकथा बड़ी अच्छी लगी। दहेज के प्रति हमारे समाज में परिव्याप्त मानसिकता पर अच्छा व्यंग्य। आभार।
विश्व महिला दिवस पर समपूर्ण महिला-जगत को हार्दिक बधाई।
कुछ लोग सुधर नहीं सकते हैं ... बढ़िया लघुकथा !
जवाब देंहटाएंयही मानसिकता है -- बैंगन सस्ते में मिले तो ज़रूर काना होगा ...
जवाब देंहटाएंसभी पाठकों को महिला दिवस की अनन्त शुभ-कमनायें। "यत्र नार्यस्तु पुज्यन्ते रमन्ते तत्र देवताः !" अभिनन्दन एवं आभार !!!
जवाब देंहटाएंआपने बहुत रोचक-सुन्दर और सशक्त पोस्ट लिखी है| धन्यवाद|
जवाब देंहटाएंइस कान से नही पकडा तो उस से पकड लो। बहुत अच्छी लघु कथा। फिर भी कम से कम दहेज ना लेने की पहल तो की वर्ना पढे लिखे अधिक दहेज माँगते हैं।
जवाब देंहटाएंलोगों कि मानसिकता को उजागर करती अच्छी लघु कथा
जवाब देंहटाएंबहुत रोचक कथा...
जवाब देंहटाएंविश्व महिला दिवस पर हार्दिक बधाई।
is gyaan ko vatvriksh ke liye bhejiye
जवाब देंहटाएंइस लघुकथ को पढने वाला मैं प्रथम पाठक था लेकिन कुछ टिप्पणी नही की क्योंकि मुझे लगा कि दहेज़ प्रथा और स्त्रियों पर होने वाले अन्य अत्याचारों में कहीं ना कहीं महिलाएं भी बराबर जिम्मेदार और हिस्सेदार होती हैं.. लेकिन आज महिला दिवस है सो यह उनके विरुद्ध जाता .. इस लिए कोई टिप्पणी नहीं की.... बहुत ससक्त लघुकथा...
जवाब देंहटाएंशोषण नारी का करें, 'महिला-दिवस' मनाय,
जवाब देंहटाएंकिसका चेहरा कौन है,कुछ भी कहा न जाय !
करन जी,
अपनी लघुकथा में आपने नारी शोषण की बात बड़े ही प्रभावशाली ढंग से निरुपित करके महिला दिवस को सार्थकता प्रदान की है !
लघुकथा अत्यंत मारक एवं संवेदनशील है !
कृपया मेरी बधाई स्वीकार करें !
कहानी का आशय यह हुआ की रेकरिंग दहेज़ लिया गया है.
जवाब देंहटाएंBahut badhiya...
जवाब देंहटाएंरोज़ सोने का अण्डा देने वाली मुर्गी! आधुनिक समाज की विडम्बना!!
जवाब देंहटाएंऎसी मानसिकता कब बदलेगी?
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर कथा,
समझ धन्य है, और क्या कहें हम।
जवाब देंहटाएंअच्छी लघुकथा।
जवाब देंहटाएंbahut hi achchhi katha ,kuchh baton me sachchai ki jhalak hai .badhai .
जवाब देंहटाएंदहेज लोभी मानसिकता पर व्यंग्य अच्छा है।
जवाब देंहटाएंKaran Ji..Apki likhi ye Laghukatha Samaj ki mansikta par sahi vyang kas rahi hai..
जवाब देंहटाएंDahej na lene par, aj k samaj mai 90% logon ki mansikta yahi kahti hai ki dahej ni liya "KOI BAT JARUR HOGI"
unhe ye ni pata ki aisa kahne se wolog dahej partha ko badhawa he de rahe hai..
Actualy aj k samaj mai dahej lena aur dahen dena dono he inni aam aur jaruri bat ho gayi hai ki, Dahej na lena aur na dena he galat samjha ja raha hai.
Man to bahot kuch kah raha hai likhu lakni kahi aisa na ho jaye apki laghukatha se badi mai tippani de dun..Isi bat ko dhayn mai rakte hue...Mahila diwas par is Saandar aur Jaandar laghukatha k liye apko hriday se dhanyawad hai.