सोमवार, 21 मार्च 2011

हार गया मन

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IMG_0867मनोज कुमार

महँगाई के डर से

        आशाएँ दुबक गईं

                गहरे अंधकूप में।

 

सूई सी चुभन लिए

        कटखनी हवाएं हैं

                हरजाई रूप में।

सरदी में जमता है

धमनियों का रक्त

        बर्फ के समान जैसे।

धूप भी इतनी सी

कृपण की जेब से

        मिला हुआ दान जैसे।

प्यार का उष्मा धन

हार गया बहका मन

        घपलों के जूप में।

नैनों की ज्योति देखे

ऐनक की देहरी से

        उम्र की परती पर।

धुंध अब सरकती है

सहम–सहम, धरे ज्यों

        शिशु पग धरती पर।

संग अपने लाती है

थोड़ी सी रोशनी

        अंजुरिन के सूप में।

बांट रहा सूरज भी

सबको किरण अपनी

        इधर आधा, उधर आधा।

छत पे हैं चाचा जी

अम्मा है आँगन में

        ओसारे पर दादा।

बैठे, अधलेटे

फैलाए पैरों को

        अलसाई धूप में।

अख़बारों की सुर्ख़ी

चाय की चुस्की

        रिश्तों की गर्मी में।

माँ के हाथ सिले

रुई के लिहाफ सी

        नेह की नर्मी में।

मीठा-मीठा रस

है आज गया बस

        प्यार के पूप में।

****

43 टिप्‍पणियां:

  1. इतनी कठिनाईयों को बस प्रेम ही सम्हाल पाता है।

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  2. अनजान क्षितिज से कोई
    सहला दे हारे मन को
    बाँट रहा साहस-धन वह
    चिरपरिचित सा सबको।
    कई आयाम समेटे अच्छी कविता। आभार।

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  3. नैनों की ज्योति देखे

    ऐनक की देहरी से

    उम्र की परती पर।

    धुंध अब सरकती है

    सहम–सहम, धरे ज्यों

    शिशु पग धरती पर।

    नए और सुन्दर विम्बों का प्रयोग कविता की उत्कृष्टता में चार चाँद लगा रहा है !

    आभार !

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  4. मन के एहसास को खूबसूरत बिम्बों से प्रस्तुत किया है ..अच्छी रचना

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  5. रंगों का त्यौहार बहुत मुबारक हो आपको और आपके परिवार को|
    कई दिनों व्यस्त होने के कारण ब्लॉग पर नहीं आ सका

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  6. बेहद खूबसूरत भावो का समन्वय्।

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  7. दबा सहमा मन हारा कहाँ ...
    फिर से जी उठा नेह की नरमी में ...!

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  8. बहुत सुन्दर नवगीत. कहीं-कहीं मात्रागत असंतुलन है परन्तु छोटे-छोटे देसज शब्दों के मेल से गीत का परिदृश्य मनोरम हो गया है और सन्देश भी मुखर. धन्यवाद !

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  9. धूप भी इतनी सी

    कृपण की जेब से

    मिला हुआ दान जैसे।

    waah, bahut badhiyaa

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  10. बहुत से नये बिंब लाए हैं इस रचना के माध्यम से और बाखूबी प्रयोग किया है उनका ....
    लाजवाब मनोज जी ...

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  11. सुन्दर , कोमल, देशज शब्दों से अलंकृत कविता चमत्कृत करती है . भावनाओ के प्रबल प्रवाह में मै बह चला

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  12. अख़बारों की सुर्ख़ी
    चाय की चुस्की
    रिश्तों की गर्मी में.....

    बेहतरीन भावपूर्ण नवगीत के लिए बधाई...

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  13. मनोज जी मन हारा कहाँ । बडी खूबसूरती से आप कविता को प्रारम्भिक निराशा से निकाल कर स्नेह और आशा के व्यापक धरातल पर लाएं हैं । होली की ढेरों शुभकामनाएं ।

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  14. वाह गजब का प्रवाह.सुन्दर कविता.

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  15. Rachnakar ka ek naya roop. Navin 'Roopak' aur 'Upma'-'Upmaan' ka bejod prayog. Waah! Kavy, gadt aur Samikshaa, sabhi vidhaon me itna maharat. Bhai aaj to maja aa gaya aur GUJHIYA due ho gayi.

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  16. चर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर आपकी प्रस्तुति मंगलवार 22 -03 - 2011
    को ली गयी है ..नीचे दिए लिंक पर कृपया अपनी प्रतिक्रिया दे कर अपने सुझावों से अवगत कराएँ ...शुक्रिया ..

    http://charchamanch.uchcharan.com/

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  17. प्रेम के भावो को बहुत सुंदर ढंग से सावांरा हे आप ने, धन्यवाद इस सुंदर रचना के लिये

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  18. बहुत ही सुन्दर गीत। करारा व्यंग भी।
    बधाई।

    जवाब देंहटाएं
  19. बहुत ही सुन्दर गीत। करारा व्यंग भी।
    बधाई।

    जवाब देंहटाएं
  20. खूबसूरत एहसास ,सुंदर भाव और भी बहुत कुछ ,बधाई

    जवाब देंहटाएं
  21. महँगाई के डर से
    आशाएँ दुबक गईं
    गहरे अंधकूप में।
    सच, इस मँहगाई में आशाएं ऐसे ही गहरे अंधकूप में समा जाती है। सामान्य जीवन का यथार्थ है यह।

    नैनों की ज्योति देखे
    ऐनक की देहरी से
    उम्र की परती पर।
    सुन्दर नवीन प्रयोग।

    आभार

    जवाब देंहटाएं
  22. धुंध अब सरकती है
    सहम–सहम, धरे ज्यों
    शिशु पग धरती पर।

    नैनों की ज्योति देखे
    ऐनक की देहरी से
    उम्र की परती पर।
    सुन्दर प्रयोग। कोमल भाव।

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  23. अँजुरिन की सूप में थोड़ी सी रोशनी से साहित्य जगत को प्रकाशमान करने का सुंदर प्रयास करती काव्य कृति के लिए बधाई मनोज भाई|

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  24. सुन्दर नवगीत ..शब्दों के चयन और नए बिम्बों ने रचना का काव्यगत सौन्दर्य द्विगुणित कर दिया है |


    धूप भी इतनी सी

    कृपण की जेब से

    मिला हुआ दान जैसे

    **********************

    नैनों की ज्योति देखे

    ऐनक की देहरी से

    उम्र की परतीपर

    *********************................बहुत समर्थ अभिव्यक्ति

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  25. जीवन के यथार्थ को नितांत मौलिक काव्य बिम्बों के माध्यम से जिस कुशलता से आपने शब्द चित्रित किया है वह अत्यंत सराहनीय है ! रचना काव्यमयी होते हुए भी यथार्थ के धरातल को कस कर पकड़े हुए है यही अद्भुत प्रयोग रचना को अनमोल बनाता है ! बधाई एवं शुभकामनायें !

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  26. माँ के हाथ सिले
    रुई के लिहाफ सी
    नेह की नर्मी में।
    कोमल भाव की रचना
    सुन्दर

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  27. नयी पुरानी हलचल से पहली बार आना हुआ आपके ब्लौग पर, बहुत अच्छा लगा!
    सादर

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  28. कृपण की जेब से
    मिला हुआ दान जैसे।

    वाह! बहुत सुन्दर गीत है सर....
    सादर/

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  29. सर्दियों में अपने आप की धूप.. बढ़िया है।

    जवाब देंहटाएं
  30. सर्दियों में अपनेपन की धूप.. बढ़िया है

    जवाब देंहटाएं
  31. धुंध अब सरकती है

    सहम–सहम, धरे ज्यों

    शिशु पग धरती पर।
    छत पे हैं चाचा जी

    अम्मा है आँगन में

    ओसारे पर दादा।

    बैठे, अधलेटे

    फैलाए पैरों को

    अलसाई धूप में।

    जवाब देंहटाएं
  32. बेहतरीन शब्द चित्र अपनों ,मनो भावों का ,मन के गलियारों का ...

    जवाब देंहटाएं
  33. बहूत हि सुंदर,,
    बेहतरीन भाव अभिव्यक्ती...

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