महँगाई के डर से
आशाएँ दुबक गईं
गहरे अंधकूप में।
सूई सी चुभन लिए
कटखनी हवाएं हैं
हरजाई रूप में।
सरदी में जमता है
धमनियों का रक्त
बर्फ के समान जैसे।
धूप भी इतनी सी
कृपण की जेब से
मिला हुआ दान जैसे।
प्यार का उष्मा धन
हार गया बहका मन
घपलों के जूप में।
नैनों की ज्योति देखे
ऐनक की देहरी से
उम्र की परती पर।
धुंध अब सरकती है
सहम–सहम, धरे ज्यों
शिशु पग धरती पर।
संग अपने लाती है
थोड़ी सी रोशनी
अंजुरिन के सूप में।
बांट रहा सूरज भी
सबको किरण अपनी
इधर आधा, उधर आधा।
छत पे हैं चाचा जी
अम्मा है आँगन में
ओसारे पर दादा।
बैठे, अधलेटे
फैलाए पैरों को
अलसाई धूप में।
अख़बारों की सुर्ख़ी
चाय की चुस्की
रिश्तों की गर्मी में।
माँ के हाथ सिले
रुई के लिहाफ सी
नेह की नर्मी में।
मीठा-मीठा रस
है आज गया बस
प्यार के पूप में।
****
इतनी कठिनाईयों को बस प्रेम ही सम्हाल पाता है।
जवाब देंहटाएंअनजान क्षितिज से कोई
जवाब देंहटाएंसहला दे हारे मन को
बाँट रहा साहस-धन वह
चिरपरिचित सा सबको।
कई आयाम समेटे अच्छी कविता। आभार।
नैनों की ज्योति देखे
जवाब देंहटाएंऐनक की देहरी से
उम्र की परती पर।
धुंध अब सरकती है
सहम–सहम, धरे ज्यों
शिशु पग धरती पर।
नए और सुन्दर विम्बों का प्रयोग कविता की उत्कृष्टता में चार चाँद लगा रहा है !
आभार !
मन के एहसास को खूबसूरत बिम्बों से प्रस्तुत किया है ..अच्छी रचना
जवाब देंहटाएंBeautiful , soft , touching creation .
जवाब देंहटाएंकविता बहुत सुन्दर है !
जवाब देंहटाएंरंगों का त्यौहार बहुत मुबारक हो आपको और आपके परिवार को|
जवाब देंहटाएंकई दिनों व्यस्त होने के कारण ब्लॉग पर नहीं आ सका
komalta se likhi ek sundar kavita.
जवाब देंहटाएंबेहद खूबसूरत भावो का समन्वय्।
जवाब देंहटाएंदबा सहमा मन हारा कहाँ ...
जवाब देंहटाएंफिर से जी उठा नेह की नरमी में ...!
बहुत सुन्दर नवगीत. कहीं-कहीं मात्रागत असंतुलन है परन्तु छोटे-छोटे देसज शब्दों के मेल से गीत का परिदृश्य मनोरम हो गया है और सन्देश भी मुखर. धन्यवाद !
जवाब देंहटाएंधूप भी इतनी सी
जवाब देंहटाएंकृपण की जेब से
मिला हुआ दान जैसे।
waah, bahut badhiyaa
बहुत से नये बिंब लाए हैं इस रचना के माध्यम से और बाखूबी प्रयोग किया है उनका ....
जवाब देंहटाएंलाजवाब मनोज जी ...
सुन्दर , कोमल, देशज शब्दों से अलंकृत कविता चमत्कृत करती है . भावनाओ के प्रबल प्रवाह में मै बह चला
जवाब देंहटाएंअख़बारों की सुर्ख़ी
जवाब देंहटाएंचाय की चुस्की
रिश्तों की गर्मी में.....
बेहतरीन भावपूर्ण नवगीत के लिए बधाई...
मनोज जी मन हारा कहाँ । बडी खूबसूरती से आप कविता को प्रारम्भिक निराशा से निकाल कर स्नेह और आशा के व्यापक धरातल पर लाएं हैं । होली की ढेरों शुभकामनाएं ।
जवाब देंहटाएंवाह गजब का प्रवाह.सुन्दर कविता.
जवाब देंहटाएंबहुत खूबसूरत अभिव्यक्ति!
जवाब देंहटाएंRachnakar ka ek naya roop. Navin 'Roopak' aur 'Upma'-'Upmaan' ka bejod prayog. Waah! Kavy, gadt aur Samikshaa, sabhi vidhaon me itna maharat. Bhai aaj to maja aa gaya aur GUJHIYA due ho gayi.
जवाब देंहटाएंचर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर आपकी प्रस्तुति मंगलवार 22 -03 - 2011
जवाब देंहटाएंको ली गयी है ..नीचे दिए लिंक पर कृपया अपनी प्रतिक्रिया दे कर अपने सुझावों से अवगत कराएँ ...शुक्रिया ..
http://charchamanch.uchcharan.com/
प्रेम के भावो को बहुत सुंदर ढंग से सावांरा हे आप ने, धन्यवाद इस सुंदर रचना के लिये
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर गीत। करारा व्यंग भी।
जवाब देंहटाएंबधाई।
बहुत ही सुन्दर गीत। करारा व्यंग भी।
जवाब देंहटाएंबधाई।
खूबसूरत एहसास ,सुंदर भाव और भी बहुत कुछ ,बधाई
जवाब देंहटाएंमहँगाई के डर से
जवाब देंहटाएंआशाएँ दुबक गईं
गहरे अंधकूप में।
सच, इस मँहगाई में आशाएं ऐसे ही गहरे अंधकूप में समा जाती है। सामान्य जीवन का यथार्थ है यह।
नैनों की ज्योति देखे
ऐनक की देहरी से
उम्र की परती पर।
सुन्दर नवीन प्रयोग।
आभार
धुंध अब सरकती है
जवाब देंहटाएंसहम–सहम, धरे ज्यों
शिशु पग धरती पर।
नैनों की ज्योति देखे
ऐनक की देहरी से
उम्र की परती पर।
सुन्दर प्रयोग। कोमल भाव।
अँजुरिन की सूप में थोड़ी सी रोशनी से साहित्य जगत को प्रकाशमान करने का सुंदर प्रयास करती काव्य कृति के लिए बधाई मनोज भाई|
जवाब देंहटाएंसुन्दर नवगीत ..शब्दों के चयन और नए बिम्बों ने रचना का काव्यगत सौन्दर्य द्विगुणित कर दिया है |
जवाब देंहटाएंधूप भी इतनी सी
कृपण की जेब से
मिला हुआ दान जैसे
**********************
नैनों की ज्योति देखे
ऐनक की देहरी से
उम्र की परतीपर
*********************................बहुत समर्थ अभिव्यक्ति
जीवन के यथार्थ को नितांत मौलिक काव्य बिम्बों के माध्यम से जिस कुशलता से आपने शब्द चित्रित किया है वह अत्यंत सराहनीय है ! रचना काव्यमयी होते हुए भी यथार्थ के धरातल को कस कर पकड़े हुए है यही अद्भुत प्रयोग रचना को अनमोल बनाता है ! बधाई एवं शुभकामनायें !
जवाब देंहटाएंbahot khoob !
जवाब देंहटाएंमाँ के हाथ सिले
जवाब देंहटाएंरुई के लिहाफ सी
नेह की नर्मी में।
कोमल भाव की रचना
सुन्दर
ehsaso ko bakhubi sashakt shabdo ka jama pahnaaya hai. badhayi.
जवाब देंहटाएंआपकी किसी नयी -पुरानी पोस्ट की हल चल बृहस्पतिवार 23-02-2012 को यहाँ भी है
जवाब देंहटाएं..भावनाओं के पंख लगा ... तोड़ लाना चाँद नयी पुरानी हलचल में .
नयी पुरानी हलचल से पहली बार आना हुआ आपके ब्लौग पर, बहुत अच्छा लगा!
जवाब देंहटाएंसादर
कृपण की जेब से
जवाब देंहटाएंमिला हुआ दान जैसे।
वाह! बहुत सुन्दर गीत है सर....
सादर/
bahut hi sundar rachna hai....saadar...
जवाब देंहटाएंबहुत ही बढ़िया सर!
जवाब देंहटाएंसादर
सर्दियों में अपने आप की धूप.. बढ़िया है।
जवाब देंहटाएंसर्दियों में अपनेपन की धूप.. बढ़िया है
जवाब देंहटाएंधुंध अब सरकती है
जवाब देंहटाएंसहम–सहम, धरे ज्यों
शिशु पग धरती पर।
छत पे हैं चाचा जी
अम्मा है आँगन में
ओसारे पर दादा।
बैठे, अधलेटे
फैलाए पैरों को
अलसाई धूप में।
बेहतरीन शब्द चित्र अपनों ,मनो भावों का ,मन के गलियारों का ...
जवाब देंहटाएंmn ke bhavon ko bdi khubsurti se piroya hai.bahut achcha.
जवाब देंहटाएंबहूत हि सुंदर,,
जवाब देंहटाएंबेहतरीन भाव अभिव्यक्ती...