बंजारे बादल
बजा बजा कर ढोल
नाच रहे बादल
बना बना कर गोल।
छाती दूनी हुई नदी की
फैल गया आंचल।
धोने लगी पहाड़ी
आंखों से बासी काजल।
घाटी रचा रही
पांवों में लाल महावर घोल।
हल्दी चढा पपीहा
कोयल सुगन – सुहगला बांचे।
वन भगोरिया हुआ
बांकुरा भील – मोर नाचे।
बया घोसले के
झूले में झूल रही जी खोल।
खेतों की पाटी पर
हरखू लिखने लगा ककहरा।
चौपालों पर बैठा
आल्हा ऊदल का पहरा।
मटकी और मथानी
बोलें कजरी वाले बोल।
बेहतरीन कविताये , संवेदनशील विषय बधाई
जवाब देंहटाएंदेशज बिम्बों से अटा पड़ा बेहद आकर्षक और मनमोहक नवगीत।
जवाब देंहटाएंबंजारे बादल भी कितने राज छिपाये फिरते हैं।
जवाब देंहटाएंबंजारे बादल - कितना मनोहारी है। किसी एक पद को श्रेष्ठ चुनना बहुत ही मुश्किल है। पूरा का पूरा गीत ही हृदयस्पर्षी है। आभार,
जवाब देंहटाएंkitna saundarya ghol rahe hain banjare badal-bahut sunder rachna -
जवाब देंहटाएंश्याम नारायण मिश्र द्वारा रचित नवगीत-'बंजारे बादल' में प्रयोग किए गए देशज बिंब अपनी पूर्ण समग्रता में सार्थक सिद्ध हुए हैं। कविता के अनुरूप भाव प्रधान बिंबों का सटीक प्रयोग अच्छा लगा। धन्यवाद।
जवाब देंहटाएंजब भी मैं स्वर्गीय मिश्रजी की रचनाएँ पढ़ता हूँ, जी कचोटता है कि संभावना होते हुए भी इनका सानिध्य नहीं मिल पाया. एक ही बात संतोष देती है दूरभाष पर ही सही एक बार इस नवगीत के कुशल चितेरे का आशीष प्राप्त हुआ था.
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंमिश्रजी के गीतों में प्रयुक्त शब्द-योजना के कारण सामान्य और प्रचलित शब्द बिलकुल नये से लगने लगते हैं। प्रतिभा-सम्पन्न और सहृदय कवि की यही पहिचान है।
जवाब देंहटाएंयह गीत वर्षों बाद पढ़कर काफी सुखद रहा।
आभार।
मेरे लिए तो इस महान रचनाकार का हर नवगीत एक प्रसाद के समान है.. मनोज जी आपने उनका साक्षात्कार हमसे करवाकर एक बड़ा पुण्य-कार्य किया है!! हर गीत जैसे सीपी में सजा एक धवल मुक्ता कण!!
जवाब देंहटाएंखेतों की पाटी पर
जवाब देंहटाएंहरखू लिखने लगा ककहरा।
चौपालों पर बैठा
आल्हा ऊदल का पहरा।
मटकी और मथानी
बोलें कजरी वाले बोल।
अभिनव प्रतीकों ने गीत को नव-गीत की अग्रणी श्रेणी में लाकर खड़ा कर दिया है !शब्दों और भावों का संतुलन अदभुत है !
मनोज जी, मिश्र जी की इस भावपूर्ण रचना को पाठकों तक पहुंचाने के लिए साधुवाद !
बहुत ही सुंदर रचनायें है
जवाब देंहटाएंबादल को लेकर बहुत ही बढ़िया नवगीत लिखा है श्री श्यामनारायण मिश्र जी ने!
जवाब देंहटाएंखेतों की पाटी पर
जवाब देंहटाएंहरखू लिखने लगा ककहरा।
चौपालों पर बैठा
आल्हा ऊदल का पहरा।.....
श्याम नारायण मिश्र जी के नवगीत की बेहतरीन प्रस्तुति के लिए आपको हार्दिक बधाई।
गीत की एक-एक पंक्ति मानो उस वातावरण को दृश्यमान करती है।
जवाब देंहटाएंखांटी माटी के सोंधेपन ने
जवाब देंहटाएंकिया है सबको सराबोर
"बंजारे बादलों" ने धरा-जीवन के समारोहों को चारुता से सामने ला कर प्रस्तुत कर दिया .
जवाब देंहटाएंजन-जीवन की सोंधी सुवास से भरी रचना मन में सरसता का संचार कर गई .
सुन्दर नवगीत पढवाने के लिए ..मनोज जी आपका आभार
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