रविवार, 20 मार्च 2011

आज छुट्टी है.......

आज छुट्टी है.......

आचार्य परशुराम राय

लगभग 15 दिन से मैं देख रहा हूँ सभी ब्लागर अपने-अपने ब्लाग पर फागुन के गीतों और कविताओं से ऐसे रंग खेल रहे हैं कि मैं उन्हें पढ़ते-पढ़ते भूल गया कि मुझे भारतीय काव्यशास्त्र का अगला अंक तैयार करना है। करन बाबू रोज ही किसी न किसी बहाने से आकर इस ब्लाग पर होली खेल जाते हैं। वे आजकल खट्टर पुराण का पाठ करना भूल गए हैं। महाशिवरात्रि के दिन तो उन्होंने सारी हदें तोड़ दीं। बाबा भोले नाथ के नाम पर भाँग की गोलियाँ तक बाँट गए। जब से शादी तय हुई है, दिन पर दिन होली का रंग उनपर गहराता जा रहा है। मैं भी उनकी पीठ ठोकता रहा- बच्चू, खूब होली मना ले, शादी के बाद समय मिले न मिले। वैसे मेरी हार्दिक शुभकामना है कि यावज्जिन्दगी वे ऐसे ही होली मनाते रहें। लेकिन इतना जरूर ध्यान रखें कि बिना लाइसेंस के खुलेआम इस तरह भाँग न बाँटे, अन्यथा मैं तो नहीं, लेकिन किसी का दिमाग फिर गया तो पुलिस को सूचित कर देगा और यह काफी मँहगा पड़ सकता है। आजकल भ्रष्टाचार और अन्य तमाम आरोपों से घिरी सरकार और पुलिस दोनों काफी खार खाए बैठी हैं। बस मौके की तलाश में है। मौका मिलते ही अपनी ईमानदारी का सारा सबूत एक साथ दे देंगी।

हाँ तो ब्लागर भाइयों, करन बाबू से मिली भाँग का नशा मुझे भी चढ़ गया है। अतएव थोड़ी बगावत की भावना मन में उठी कि सभी होली मना रहे हैं और मैं इधर शास्त्र-चिन्तन में लगा हुआ हूँ। इसलिए आज मैंने अपने बॉस से कहा- आज मुझे भी छुट्टी दे दीजिए, ताकि मैं भी अपने मित्रों के साथ होली मना लूँ। देखा कि वे भी थोड़ा मूड में आ गए हैं और आज अपनी उदासी पोछकर हाथ में गुलाल की पुड़िया लिए होली पर कुछ कहने के लिए उतावले हैं। हमारे बॉस बड़े ही सदय व्यक्ति हैं। बगावत करने की जरूरत नहीं पड़ी। उन्होंने बड़ी सहृदयता से हामी भर दी- Okay, enjoy your Holi. हाँ, आपको मैं बताना भूल न जाऊँ, इसलिए पहले बता देता हूँ कि आज भारतीय काव्यशास्त्र के लेखन से मुझे छुट्टी मिल गयी है होली मनाने के लिए, केवल आज भर के लिए। अगले अंक अपने निर्धारित कार्यक्रम से आते रहेंगे।

कल दिनभर कुछ इलेक्ट्रानिक मीडियावाले यह बताने में व्यस्त दिखे कि इस पूर्णिमा का चाँद सबसे बड़ा दिखेगा और जब-जब यह बड़ा दिखता है अनर्थ होता है। जापान में हुई त्रासदी को इस परिप्रेक्ष्य में देखने का असफल प्रयास किया जा रहा था। ज्योतिषियों और वैज्ञानकों की माथाच्ची को बिना पूरी तरह सुने सूत्रधार अपनी बात जोतने में लगे रहे। अतः इस अवसर पर मैं भी अपने कुतूहल पर लगाम नहीं लगा पाया और रात में बृहच्चन्द्र का दर्शन करने के लिए छत पर चला गया। चन्द्रमा बड़ा था या नहीं, मैं अपनी आँखों से आँक तो न सका। निस्संदेह कल का चाँद मुझे बड़ा मोहक लगा और बहुत पहले, सम्भवतः सत्तर के दशक में लिखा अपना एक श्लोक याद आ गया। उसे आपलोगों के लिए यहाँ दे रहा हूँ-

वस्त्राभूषिता तव प्रभायाः निशाप्रयासाकर्षति सर्वचित्तम्।

करालवेशः त्वया बिना शिवः नाशक्नोत् प्राप्तुं हिमवान्पुत्रीम्।।

अर्थात् हे चन्द्रमा, तुम्हारी प्रभा का वस्त्र धारणकर रात बिना प्रयास के ही सबके मन को आकर्षित कर रही है। तुम्हारे बिना भगवान शिव का वेश इतना कराल होता कि माँ पार्वती को वे प्राप्त नहीं कर सकते थे।

इसके साथ ही अपने सभी पाठकों और मनोज ब्लाग के सहयोगी मित्रों को होली की हार्दिक बधाइयाँ और शुभकामनाएँ।

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15 टिप्‍पणियां:

  1. आपको सपरिवार होली की हार्दिक शुभकामनायें ..मैं देख रहा था कि आज भारतीय काव्य शास्त्र का अंक क्योँ नहीं आया ..लेकिन अब पता चला ....!

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  2. चलिए आपको तो होली की छुट्टी मिल गयी ...होली की शुभकामनायें ...

    कल का चाँद सच ही बहुत मोहक था ...

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  3. आज कि छुट्टी और होली दोनों बढ़िया रही हो ऐसी आशा के साथ होली की शुभकामनाएँ.

    चाँद सुन्दर था लेकिन उसका दुष्प्रभाव वैज्ञानिक नहीं मानते. शायद ऐसा ही होता हो तो हम सब के लिए अच्छा होगा.

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  4. होली पर छुट्टी जरूरी है...

    रंगपर्व होली पर असीम शुभकामनायें !

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  5. होली पर्व की घणी रामराम.

    रामराम.

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  6. यह छुट्टी भी खूब रही।

    सभी बन्धुओं को होली पर्व की हार्दिक शुभकामनाएं।

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  7. सभी पाठकों को एक बार पुनः होली पर मांगलिक कामनाएँ।

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  8. आप जारी रखिये. फिलहाल
    होली की रंगारंग शुभकामनाये!!

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  9. अच्छी छुट्टी मनीं।
    होली की शुभकामनाएं।

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  10. हाँ साहब, कल की छुट्टी से मजा आ गया। एकदम निश्चिन्त होकर होली मनाया। छुट्टी स्वीकृत करने के लिए आपको हृदय से धन्यवाद देता हूँ।

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  11. आचार्यजी,
    मानसकार !
    आलेख में स्थान देने के लिए आभार. अब हो गया भंग का स्टॉक ख़त्म. अगले साल फिर से लायेंगे खांटी देसी माल. बटुआ लेके तैयार रहिएगा. धन्यवाद !!

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  12. होली कि छुट्टी तो मिलनी ही चाहिए.
    बहुत बहुत शुभकामनाएं.

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