-- करण समस्तीपुरी
इतर-फुलेल लगाए के पहन गुलाबी ड्रेस !
गली-गली में है छिड़ी प्रेम-भक्ति की रेस !!
प्रेम-भक्ति की रेस में पीकर इंग्लिश वाइन !
पार्कविहारी बन गए, बाबा भोलंटाइन !!
बाबा भोलंटाइन ने, छोड़ा केवल खार !
बलि गुलाब की ले लिए, ये है कैसा प्यार ??
हें... हें...हें...हें... ! अरे साहिब हंसिये मत। मन पवित्तर कर सरधा-भक्ति से पढ़िए। ई है भोलंटाइन-पूजा का मंतर। ई का बड़ा महातम्य है। ई को पढ़े से बुढ़ारी के नस में भी गुलाबी खून दौड़ जाता है। आप लोग गावं के गंवई आदमी का बुझियेगा...? खाली एक्कहि गो मंतर जानते हैं 'ठन-ठन गोपाल'। शहर-बाजार में रहिये तब न पता चलेगा। हे मरदे.... ई हफ्ता भर से जो जोर-शोर से भोलंटाइन-पूजा की तैय्यारी चल रही थी कि का बताएं...! उ तो हमको भी नहीं पता था। रैचंद भैय्या बताये। 14 फरबरी को गुलाब का फूल से भोलंटाइन बाबा का पूजा करने से मनचाहा 'वर' मिलता है। हम कहे, "धू...तोरी के..
हम हफ्ता भर से यही मंतर रटते आ रहे हैं। हमारा ब्याह तो नहिये हुआ, उलटे भोले बाबा के ब्याह का दिन नजदीक आ गाया। अरे 'शिवरात'। मठ पर तो खूब ध्वजा-पताका लहरा रहा है। पूरा जोरगर तैय्यारी है। ई बार भी कुसेसर थान के कीर्तन मंडली का परोगराम है। हम तो बच्चे से देखते आ रहे हैं। अब तो पूरा रमैण रटा गाया है।
'एंह... मगर शिवजी के ब्याह का किस्सा भी कमाल है। उका पहिला ब्याह हुआ दच्छ प्रजापति के बेटी से। उ हवनकुंड में कूद कर मर गयी। अब ई मरदे ऐसन धायत धरे कि कहे हाय नारायण ! हम तो दोबारा ब्याह करबे नहीं करेंगे। उधर वही पहिली जनानी हिमाचल के घर में जनम ली थी पारवती बन के। उहो बुरबक लड़की ऐसन कि ई जोगिया के तपस्या में हठजोग लाद दी, "बारौं शम्भू न त रहौं कुमारी!" ब्याह करेंगे तो शिवजीये से नहीं तो कुमारे मर जायेंगे।" आखिर कामदेव की बलि लेकर भोला बाबा बुढ़ारी में घिढारी (मिथिलांचल में ब्याह से पहले का एक रस्म) के लिए तैयार हुए।
उधर लड़की वाला के यहाँ तो भरपूर बात-वयवस्था थी। मगर ई बुढौ... हाँ तो कर दीये मगर 'घर भूजी भांग नहीं बीवी मांगे चूरा'... ब्याह करे जायेंगे का लेके... ! लेनी देनी तो छोड़ो इहाँ तो गाड़ी-घोड़ा पर भी आफत है। नहीं घोड़ा तो बरदे पर चले जायेंगे मगर कपड़ो-लत्ता तो हो.... ! गाँव-समाज में रहते तो इधर-उधर से भी जुगार लग जाता। मगर ई पहाड़ पर.... ? खैर जैसे भी हो ब्याह का दिन पड़ गाया है तो वर-बराती को जाना तो पड़ेगा ही।
इतर-फुलेल लगाए के पहन गुलाबी ड्रेस !
गली-गली में है छिड़ी प्रेम-भक्ति की रेस !!
प्रेम-भक्ति की रेस में पीकर इंग्लिश वाइन !
पार्कविहारी बन गए, बाबा भोलंटाइन !!
बाबा भोलंटाइन ने, छोड़ा केवल खार !
बलि गुलाब की ले लिए, ये है कैसा प्यार ??
हें... हें...हें...हें... ! अरे साहिब हंसिये मत। मन पवित्तर कर सरधा-भक्ति से पढ़िए। ई है भोलंटाइन-पूजा का मंतर। ई का बड़ा महातम्य है। ई को पढ़े से बुढ़ारी के नस में भी गुलाबी खून दौड़ जाता है। आप लोग गावं के गंवई आदमी का बुझियेगा...? खाली एक्कहि गो मंतर जानते हैं 'ठन-ठन गोपाल'। शहर-बाजार में रहिये तब न पता चलेगा। हे मरदे.... ई हफ्ता भर से जो जोर-शोर से भोलंटाइन-पूजा की तैय्यारी चल रही थी कि का बताएं...!
.. ! ई वर लेके हम का करेंगे....?" तब भैय्या कहिन कि अरे बुरबक खाली वर ही नहीं वधु भी मिलती है। हें...हें...हें...हें....! हमरो मन में गुदगुदी हुआ। बोले, "तो का... भोलंटाइन बाबा ब्याहो करा देंगे ?" भैय्या कहिन, "ये लो.... 'लाद दो... लदा दो... लदनीपुर पहुंचा दो!' अरे सबकुछ भोलंटाइन बाबा ही कर देंगे तो और देवता-पित्तर बेरोजगार नहीं हो जायेंगे का... ? भोलंटाइन बाबा ब्याह तो नहीं मगर ब्याह का जोगार लगा सकते हैं। अगर ब्याह करना है तो भोला बाबा को गोहराओ।" लगे हाथ मंतरो सिखा दीये, "खीर खाय को थाली देंगे, दूध पिए को प्याली.... हो देंगे गरमागरम नित चाह ! हो भोला बाबा हमरो करा दे ब्याह !!"
हम हफ्ता भर से यही मंतर रटते आ रहे हैं। हमारा ब्याह तो नहिये हुआ, उलटे भोले बाबा के ब्याह का दिन नजदीक आ गाया। अरे 'शिवरात'। मठ पर तो खूब ध्वजा-पताका लहरा रहा है। पूरा जोरगर तैय्यारी है। ई बार भी कुसेसर थान के कीर्तन मंडली का परोगराम है। हम तो बच्चे से देखते आ रहे हैं। अब तो पूरा रमैण रटा गाया है।
'एंह... मगर शिवजी के ब्याह का किस्सा भी कमाल है। उका पहिला ब्याह हुआ दच्छ प्रजापति के बेटी से। उ हवनकुंड में कूद कर मर गयी। अब ई मरदे ऐसन धायत धरे कि कहे हाय नारायण ! हम तो दोबारा ब्याह करबे नहीं करेंगे। उधर वही पहिली जनानी हिमाचल के घर में जनम ली थी पारवती बन के। उहो बुरबक लड़की ऐसन कि ई जोगिया के तपस्या में हठजोग लाद दी, "बारौं शम्भू न त रहौं कुमारी!" ब्याह करेंगे तो शिवजीये से नहीं तो कुमारे मर जायेंगे।" आखिर कामदेव की बलि लेकर भोला बाबा बुढ़ारी में घिढारी (मिथिलांचल में ब्याह से पहले का एक रस्म) के लिए तैयार हुए।
उधर लड़की वाला के यहाँ तो भरपूर बात-वयवस्था थी। मगर ई बुढौ... हाँ तो कर दीये मगर 'घर भूजी भांग नहीं बीवी मांगे चूरा'... ब्याह करे जायेंगे का लेके... ! लेनी देनी तो छोड़ो इहाँ तो गाड़ी-घोड़ा पर भी आफत है। नहीं घोड़ा तो बरदे पर चले जायेंगे मगर कपड़ो-लत्ता तो हो.... ! गाँव-समाज में रहते तो इधर-उधर से भी जुगार लग जाता। मगर ई पहाड़ पर.... ? खैर जैसे भी हो ब्याह का दिन पड़ गाया है तो वर-बराती को जाना तो पड़ेगा ही।
भौजी-
सब देबता सब तो छिटक गये मगर वर के साथ बरात भी तो चाहिये। तुरत शिवजी अपने गण सब को बुलाये। गण सब हाज़िर। “नाना बाहन नाना बेषा। बिहसे सिव समाज निज देखा।। कोउ मुखहीन बिपुल मुख काहू। बिनु पद कर कोउ बहु पद बाहू।। बिपुल नयन कोउ नयन बिहीना। रिष्टपुष्ट कोउ अति तनखीना।।" कौनो अंधा, कौनो लूला... किसी को सहस्र हाथ... किसी को अनेक मुंह, कोई बिन मुंहे के.... किसी का मुंह सूखा और पेट हाव.... मतलब कि सब कुछ अजगुते।
जब ई बराती के साथ भोला बाबा चले ब्याहन तब गोसाईं बाबा के मुंह से नि
-काकी नहीं हैं तो का हुआ... महादेव के गण ही उनका सिंगार करने लगे। "सिवहि संभु गन करहिं सिंगारा.... !" झट से जटा का मुकुट और सांप का मौड़ बना दिया। मगर कहते हैं न कि 'जिसका काम उसी को साजे....!' ई मरदे भूत-परेत सब कब का ब्यूटीशियन...? कर दिया न गड़बर... ! अरे दूल्हा को नीचा से ऊपर न सजाते हैं। सबसे पहिले धोती, फिर कुरता तब न मौड़-मुकुट। ई भूत-परेत सब पहिले मौड़-मुकुट कर के तैयार कर दिया और नीचा दिगंबर.... ! हर-हर महादेव।
किसी तरह बघछाला से ढक के इज्जत बचाए। तैयार तो हो गए... मगर जरा दूल्हा का रूप तो देखिये... एक तो पहिलही से पंचमुँहा... एगो मुँह में तीन-तीन आँख। माथा पर चाँद तो ठीक, मगर गर्दन में सांप, जटा में गंगा... नंग-धरंग... पावडर के बदले भष्म... डाँर मे बघछाला, एक हाथ में तिरशूल और दोसर में डमरू.... ! रे बाबू ई तो विकट पाहुन तैय्यार हो गये।
दूल्हा ऐसन विकट और बराती सजे गजे देवतागण.... नाना वाहन बिराजे। विष्णु भगवान बोले, “रे तोरी के.... वर के जैसी तो बरात ही नहीं है। खा-म-खा आन गांव जाकर हंसी करायेगा का... ? ई जोगीजी को छोड़ो और सब अपना ग्रुप में छिटक कर चलो..... “बिलग बिलग होइ चलहु सब निज निज सहित समाज।।"
सब देबता सब तो छिटक गये मगर वर के साथ बरात भी तो चाहिये। तुरत शिवजी अपने गण सब को बुलाये। गण सब हाज़िर। “नाना बाहन नाना बेषा। बिहसे सिव समाज निज देखा।। कोउ मुखहीन बिपुल मुख काहू। बिनु पद कर कोउ बहु पद बाहू।। बिपुल नयन कोउ नयन बिहीना। रिष्टपुष्ट कोउ अति तनखीना।।" कौनो अंधा, कौनो लूला... किसी को सहस्र हाथ... किसी को अनेक मुंह, कोई बिन मुंहे के.... किसी का मुंह सूखा और पेट हाव.... मतलब कि सब कुछ अजगुते।
जब ई बराती के साथ भोला बाबा चले ब्याहन तब गोसाईं बाबा के मुंह से नि
करण बाबू,
जवाब देंहटाएंवेलेन्टाइन्स डे से शिवरात्रि तक बहुत बढ़िया लपेट लिए हो और साथ में आधुनिक परिवेश को भी नहीं छोड़े कमाल के लिखते हो, करन बाबू।
आज के बयना के प्रेरणास्रोत हैं लोकप्रिय ब्लॊग सरोकार’ वाले श्री अरुण चन्द्र राय जी। सो अगर कुछ गड़बड़ लगे तो उन्ही को सुनाइयेगा। और नहीं जो सब कुछ ठीक-ठाक हो तो हमरी तारीफ़ कीजियेगा। जय हो भोलन्टाइन बाबा की.... जय हो भोला बाबा की! जय हो पाठक-वृन्द की ! धन्यवाद !!
जवाब देंहटाएंआचर्यवर,
जवाब देंहटाएंसादर अभिनन्दन ! चरण-वन्दन !! कोटिश: धन्यवाद !!! आपकी प्रतिक्रिया को सहज सकारात्मक रूप में लेते हुए कहना चाहुंगा, "पारस परस कुधातु सुहाइ"!
करण जी मुझे तो शब्द नही मिल रहे तारीफ के लिये। जय हो वेलेंटाईन बाबा की।
जवाब देंहटाएंआपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
जवाब देंहटाएंप्रस्तुति भी कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
कल (17-2-2011) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट
देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
अवगत कराइयेगा और हमारा हौसला बढाइयेगा।
http://charchamanch.blogspot.com/
करन बाबू! सिब जी बिआहने चले पालकी सजाए के, भभूति लगाए के ना!! फिलिम मुनीम जी का ई गनवा इयाद करा दिये...अऊर आपका भाखा का टिरेन त एदमे नन इस्टॉप चलता है.. जईसा बर ओईसने बराती त हम लोग पार्लियामेण्ट में देखिये रहे हैं!!
जवाब देंहटाएंबलिटाहन बाबा के नखरे भारतवासियों को बहुत भा रहे हैं।
जवाब देंहटाएं@ निर्मला जी,
जवाब देंहटाएंआपके आशीष से मेरा श्रम सार्थक हो गाया.
@वंदनाजी,
जवाब देंहटाएंचर्चा मंच पर स्थान देने के लिए आभार. ६७ अंक लिखने के बाद ही सही कहीं चर्चा तो हुई. अनुरोध है कि भविष्य में भी आपका स्नेह बना रहेगा. धन्यवाद.
@ चला बिहारी........
जवाब देंहटाएंचचा...
आई मिजाज परसन हो गाया. आन दिन आपके इन्तिजारी में सांझ तक बैठना पड़ता था. आज सवेर आये सो आये और ऐसन न जोरदार शोट मारे हैं कि सीधा मैदान के बाहर. "जईसा बर ओईसने बराती त हम लोग पार्लियामेण्ट में देखिये रहे हैं!!' करकरा दीये... इहे बात पर बोलिए भोलंटाइन बाबा की जय.
@प्रवीण पांडेयजी,
जवाब देंहटाएंका कीजिये पांडेयजी,
ई ससुर समैय्ये संक्रमण का है. कहते नहीं हैं कि घर का जोगी जोगरा आन गाँव का सिद्ध. खैर ई सब बात तो होते रहेगा... फिलहाल आपका धन्यवाद !
ऐसा जोरदार मंतर दिए हो भोलनटाइन बाबा को परसन्न करने का कि, ओह....
जवाब देंहटाएंदुनु तरफ से रस दिए....भोलनटाइन रस भी और भोला बाबा का बियाह रस भी ....
मन आनंद तिरपित हो गया...
जियो बचवा जियो...
आ ई फकरा का इससे बढ़िया और कोई एग्जाम्पल तो हो ही नहीं सकता था...
@ रंजना दीदी,
जवाब देंहटाएंपायं लागी !
हर हर महादेव ....जय हो बाबा भोलंटाइन
जवाब देंहटाएंआज का समय .. लोगो का चरितर सबका सटीक चित्रण किये हैं करण बाबु...आपकी यही खाशियत का त हम सब कायल है ...
बहुत नीक प्रस्तुति के लिए बधाई...
हर हर महादेव ....जय हो बाबा भोलंटाइन
जवाब देंहटाएंआज का समय .. लोगो का चरितर सबका सटीक चित्रण किये हैं करण बाबु...आपकी यही खाशियत का त हम सब कायल है ...
बहुत नीक प्रस्तुति के लिए बधाई...
ना निकले दिल-दीप से,प्यार की कोई रे ,
जवाब देंहटाएंलोग मनाये तब यहाँ valentine डे !
करन जी,
आपकी लेखनी कमाल की है !
माँ शारदे की कृपा यूँ ही बनी रहे !
मंत्र का जाप करते रहिए, आपको इच्छित फल शीघ्र मिलेगा।
जवाब देंहटाएंहां, यह कहावत उसके बाद याद रखिएगा ... याद दिलाना न पड़े।
रोचक सरस शैली में लिखी रचना हमें भी काफ़ी पसंद आई।
करन भाई बहुत बहुत धन्यवाद कि आपने क्रेडिट लाइन दिया... नहीं देते तब भी हम कुछ कहते थोड़े ही.. देसिल बयना के पढ़ तो कलही लिए थे लेकिन कमेन्ट क्या करें सूझ ही नहीं रहा था.. और फिर बाद में अपनी पार्वती और गणेश-कार्तिक में इतने व्यस्त हुए कि आज सुबह उनको स्कूल भेजने के बाद फुर्सत मिली.... सो देखिएगा ... भोलाबबा वियाह तो करा देंगे लेकिन फिर आपको पारवती और गणेश कार्तिक से फुर्सत नहीं मिलेगी.. और अभी तो अनवरत चल रहा है बयना का क्रम सो मिस किया करेंगा.. अपने अनुभव से कह रहे हैं... बाकी ये पोस्ट को अदभुद है.. एक्के बात हर हफ्ते कहने में ठीक नहीं लग रहा कि आप रेणुजी की क्लोनिंग की प्रक्रिया चल रही है देसिल बयना लैब में...
जवाब देंहटाएंबाबा का प्रेमजाल द्रुतगति से विस्तार पा रहा है।
जवाब देंहटाएंबाबा के प्रति आपकी निष्ठा ब्लाग विदित है।
मनोज जी का आशीर्वाद शीघ्र फलीभूत हो, हम भोला बाबा से यह कामना कर ही लेते हैं।
शुभम् भूयात्।
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंBahut badhiya..
जवाब देंहटाएंBahut badhiya likhlaun...
जवाब देंहटाएंतमाम पाठाक-वृन्द पर भोलंटाइन बाबा का परेम बरसे.... जय हो भोलंटाइन बाबा... जय हो भोला बाबा... हर-हर महादेव ! जय हो पाठक वृन्द !!
जवाब देंहटाएं