गया, बिहार के मैगरा गांव में माघ शुक्लपक्ष द्वितीया 1916 को जन्मे जानकी वल्लभ शास्त्री को अपनी माता की स्नेहिल-छाया से पांच साल की छोटी उम्र में ही वंचित हो जाना पड़ा। इनके पिता स्व. रामानुग्रह शर्मा इन्हें आधुनिक शिक्षा दिलाने में विफल रहे। कुल-परंपरा के अनुसार उन्होंने संस्कृत का अध्ययन किया। 11 वर्ष की उम्र में ही इन्होंने 1927 में प्रथमा परीक्षा प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण की। शास्त्री की उपाधि 16 वर्ष की आयु में प्राप्तकर ये काशी हिन्दू विश्वविद्यालय चले गए। वहां 1932 से 1938 तक रहे। 1934-35 में इन्होंने साहित्याचार्य की उपाधि स्वर्णपदक के साथ अर्जित की। पूर्वबंग सारस्वत समाज ढाका के द्वारा साहित्यरत्न घोषित किए गए। 1937-38 में रायगढ़ (मध्यप्रदेश) में राजकवि भी रहे। 1940-41 में रायगढ़ छोड़कर मुजफ्फरपुर आने पर इन्होंने वेदांतशास्त्री और वेदांताचार्य की परीक्षाएं बिहार भर में प्रथम आकर पास की। 1944 से 1952 तक गवर्नमेंट संस्कृत कॉलेज में साहित्य-विभाग में प्राध्यापक, पुनः अध्यक्ष रहे। 1953 से 1978 तक बिहार विश्वविद्यालय के रामदयालु सिंह कॉलेज, मुजफ्फरपुर में हिन्दी के प्राध्यापक रहकर 1979-80 में अवकाश ग्रहण किया।
साहित्य-सर्जना
काव्य संग्रह :: बाललता, अंकुर , उन्मेष , रूप-अरूप , तीर-तरंग , शिप्रा , अवन्तिका , मेघगीत , गाथा , प्यासी-पृथ्वी , संगम , उत्पलदल , चन्दन वन , शिशिर किरण , हंस किंकिणी , सुरसरी , गीत , वितान , धूपतरी , बंदी मंदिरम्
महाकाव्य :: राधा
संगीतिका :: पाषाणी , तमसा , इरावती
नाटक :: देवी , ज़िन्दगी , आदमी , नील-झील
उपन्यास :: एक किरण : सौ झांइयां , दो तिनकों का घोंसला , अश्वबुद्ध , कालिदास , चाणक्य शिखा (अधूरा)
कहानी संग्रह :: कानन, अपर्णा, लीला कमल, सत्यकाम, बांसों का झुरमुट
ललित निबंध :: मन की बात, जो न बिक सकीं
संस्मरण ::अजन्ता की ओर, निराला के पत्र, स्मृति के वातायन, नाट्य सम्राट पृथ्वीराज कपूर, हंस-बलाका, कर्म क्षेत्रे मरु क्षेत्र, अनकहा निराला
समीक्षा :: साहित्य दर्शन, त्रयी, प्राच्य साहित्य, स्थायी भाव और सामयिक साहित्य, चिन्ताधारा
संस्कृत काव्य :: काकली
ग़ज़ल संग्रह :: सुने कौन नग़मा
आचार्य जानकीवल्लभ शास्त्री किसी खास विचारधारा के कवि नही हैं। उनकी रचनाओं में साहित्य की सभी धारायें समाहित हैं। मूलत: संस्कृत भाषा और साहित्य के आचार्य रहे आचार्य जानकीवल्लभ शास्त्री जी अंग्रेजी-बांग्ला –हिन्दी आदि अनेक भाषाओं के विद्वान है। राका और बेला जैसी पत्रिकाओं का संपादन किया।
सहजता – दार्शनिकता और संगीत उनके गीतों को लोकप्रिय बनाते हैं। रस और आनंद की उनकी कवितामों, गीतों में प्रमुखता रही है। राग केदार उनका प्रिय राग रहा है। उनके गीतों में जीवन का वह पहलू है जो शांति और स्थिरता का कायल है। वे कहते हैं गोल गोल घूमना इसमें नहीं है। बाहर से कुछ छीन झपटकर ले आने की खुशी नहीं अपने को पाने का आनंद है। उनसे बात-चीत के क्रम में हमें उनकी दार्शनिकता और उनकी जीवन शैली वैदिक ऋषि परंपरा की याद दिलाती रही। शास्त्री जी ने अपने जीवन के मानक स्वयं गढे हैं।
सब अपनी अपनी कहते है।
कोई न किसी की सुनता है,
नाहक कोई सिर धुनता है।
दिल बहलाने को चल फिर कर,
फिर सब अपने में रहते है।
सबके सिर पर है भार प्रचुर,
सबका हारा बेचारा उर
अब ऊपर ही ऊपर हँसते,
भीतर दुर्भर दुख सहते है।
ध्रुव लक्ष्य किसी को है न मिला,
सबके पथ में है शिला शिला
ले जाती जिधर बहा धारा,
सब उसी ओर चुप बहते हैं।
सहज गीत आचार्य जानकीवल्लभ शास्त्री की पहचान है। उन्होंने छंदोबद्ध हिन्दी कविता लिखे हैं। प्रारंभ में वे संस्कृत में कविता करते थे। संस्कृत कविताओं का संकलन काकली के नाम से १९३० के आसपास प्रकाशित हुआ। निराला जी ने काकली के गीत पढ़कर ही पहली बार उन्हें प्रिय बाल पिक संबोधित कर पत्र लिखा था। बाद में वे हिन्दी में आ गए।
निराला ही उनके प्रेरणास्रोत रहे हैं। वह छायावाद का युग था। निराला उनके आदर्श बने। चालीस के दशक में कई छंदबद्ध काव्य-कथाएँ लिखीं, जो 'गाथा` नामक उनके संग्रह में संकलित हैं। उन्होंने कई काव्य-नाटकों की रचना की और 'राधा` जैसा श्रेष्ठ महाकाव्य रचा।
वे कविसम्मेलनों में खूब सुने सराहे जाते थे। उनके गीतों में सहजता का सौन्दर्य है। बहुत सरल बिंब के माध्यम इस सनातन भाव को चित्रित करते हैं। शृंगार उनका प्रिय रस है। उनकी कविताओं में माधुर्य है। सहज सौंदर्य के साथ-साथ वे लोकोन्मुख जनजीवन के कवि हैं।
अंबर तर आया।
परिमल मन मधुबन का–तनभर उतराया।
थरथरा रहे बादल, झरझरा बहे हिमजल
अंग धुले, रंग घुले–शरद तरल छाया।
पवन हरसिंगार-हार निरख कमल वन विहार
हंसों का सरि धीमी –सरवर लहराया।
खेत ईख के विहँसे, काँस नीलकंठ बसे
मेड़ो पर खंजन का जोड़ा मँडराया।
चाँदनी किसी की पी, आँखों ने झपकी ली
सिहरन सम्मोहन क्या शून्य कसमसाया।
सुन्दरता शुभ चेतन, फहरा उज्ज्वल केतन
अर्पित अस्तित्व आज –कुहरायी काया।
उत्तर छायावादी कवि हैं। उन्हें छायावाद का पांचवा स्तम्भ भी कहा जाता है। उनकी कविताएं अनुभूति प्रधान हैं। अद्भुत छंदबद्ध रचनाएं करते हैं वो। काव्य में पीड़ा मूलधारा है। मां पांच साल में गुजर गई उसमें जो वेदना स्वरूपित हुई वह गीतों में व्यक्त हुई।
कुपथ कुपथ रथ दौड़ाता जो
पथ निर्देशक वह है,
लाज लजाती जिसकी कृति से
धृति उपदेश वह है,
मूर्त दंभ गढ़ने उठता है
शील विनय परिभाषा,
मृत्यू रक्तमुख से देता
जन को जीवन की आशा,
जनता धरती पर बैठी है
नभ में मंच खड़ा है,
जो जितना है दूर मही से
उतना वही बड़ा है।
आचार्य जानकीवल्लभ शास्त्री जी के परिचय एवं रचनाओं को पढ़वाने का आभार.
जवाब देंहटाएंसुन्दर! अच्छा लगा यह पढ़ना!
जवाब देंहटाएंआचार्य जानकीवल्लभ शास्त्री के विराट व्यक्तित्व की अर्चना के लिए चुने गए ये श्रद्धा-सुमन ब्लाग-जगत के लिए विरल थाती हैं। आभार।
जवाब देंहटाएंसाहित्य को पूर्णतया समर्पित व्यक्तित्व हैं आचार्य जानकी वल्लभ शास्त्री जी। जीते जी किवदंती बन चुके हैं वह। सृजन का अम्बार खड़ा किया है उन्होंने। उन्हें नमन।
जवाब देंहटाएंआचार्य जानकीवल्लभ शास्त्री जी के परिचय उनकी रचनात्मकता के बारे में विस्तार से जानकारी देने के लिए आपका शुक्रिया ...निश्चित रूप से शास्त्री जी साहित्य के दैदीप्यमान नक्षत्र हैं ...!
जवाब देंहटाएंसाहित्य की इतना बड़ा खजाना कहाँ छिपा था। धीरे धीरे और कृतियों से भी परिचय करायें। आभार।
जवाब देंहटाएंसुन्दर ...सार्थक .मनभावन ब्लॉग
जवाब देंहटाएंविस्तार से जानकारी देने के लिए आपका आभार।
आचार्य जानकीवल्लभ शास्त्री जी के बारे मे जानकर अच्छा लगा……………आभार्।
जवाब देंहटाएंआह...आनंद आ गया...
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार आपका इन अप्रतिम रचनाओं का रसास्वादन करवाने के लिए...
"राधा" किस प्रकाशन से प्रकाशित है ?? कृपया ज्ञात हो तो बताएं...
सच कहूँ तो, इनकी बहुत कम कृतियाँ पढने का सुअवसर मिला है...पर अब पढूंगी...
कृपया आप भी ब्लॉग द्वारा हमें इसका सुअवसर दें, हम आपके बहुत बहुत आभारी रहेंगे...
आचार्य जानकीवल्लभ शास्त्री जी के परिचय के लिये आप का धन्यवाद
जवाब देंहटाएंआचार्य जी ks रचनात्मकता के बारे में विस्तार से जानकारी देने के लिए आभार।
जवाब देंहटाएंआचार्य जानकीबल्लभ शास्त्री जी के बारे में जानना और उनके काव्य को पढ़ना अपने आप में एक अनुभव है ..आभार
जवाब देंहटाएंआचार्य जानकीवल्लभ शास्त्रीजी की इन चुनिन्दा रचनाओं का सुधी पाठकों को रसपान करवाने हेतु आभार...
जवाब देंहटाएंइतनी कालजयी रचनाओं को यहाँ पढवाने का बहुत बहुत शुक्रिया
जवाब देंहटाएंआचार्य जानकीवल्लभ शास्त्री जी के बारे में पढकर अच्छा लगा.
जवाब देंहटाएंआचार्य जी के बारे में पढ़ना अच्छा लगता है.
जवाब देंहटाएंआजकल इन्टरनेट बहुत दुखी कर रहा है ,मनोज जी. इसलिए पोस्ट पढ़ने और टिप्पणी देने में देर हो रही है.
आचार्य जानकीवल्लभ शास्त्री जी के जीवन परिचय को पढकर अच्छा लगा.
जवाब देंहटाएंआचार्य जानकीवल्लभ शास्त्री जी के साहित्य संसार और उनकी कालजयी रचनाओं से परिचय कराने के लिए आभार.
जवाब देंहटाएंसादर,
डोरोथी.
आचार्य जी का सम्पूर्ण परिचय एक स्मृति यात्रा की तरह है!! आपका वर्णन एक फ़िल्म की तरह सारा डृश्य खींचता गया!!
जवाब देंहटाएंआचार्य जानकीवल्लभ शास्त्री पर बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति...... उनकी जीवन चर्या के बाद उनके जीवन परिचय को विस्तृत रूप से जानना अच्छा लगा.
जवाब देंहटाएंधरती पै कितनें मोती है! आए;
जवाब देंहटाएंकुछ छिपे हुए आज उभर आए;
धन्य है! गुरूवर आपको जिसनें,
दिया मिलाय किसको दोष धरा जाए;
जब प्रकृति हीं खुद मिलाए """
सादर पुष्पांजलि नमन् मेरा स्वीकार 🇮🇳
अभी तो आई हूँ!
जवाब देंहटाएंआहिस्ता आहिस्ता;
निहारूगी अपनें जीवन;
में उतारूगी जो इतनें,
गहरे विचारों में समाए""
राधा की दिवानी भी में,
न कुछ हूँ! प्रभू की"
शरण और अध्ययन स्वभाव हूँ!
🌿🇮🇳