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पिछले दिनों एक समाचार पत्र में पढ़ रहा था कि लंदन के समाचार पत्र डेली मेल के एक सर्वेक्षण के अनुसार प्रत्येक पांचवे व्यक्ति का दिल अपने साथी के लिए नहीं बल्कि किसी और के लिए धड़कता है। इस अध्ययन से यह बात सामने आई है कि अपने मौजूदा रिश्तों से खुश लोग भी न चाहते हुए किसी और का अहसास कर लेते हैं। जो लोग अपने अहसासों पर काबू नहीं रख पाते वे अक्सर किसी और संबंध में पड़ जाते हैं जिसमें उनका विवाह या मौजूदा रिश्ता टूट जाता है। विवाह टूटने या टूटने के कगार पर पहुँचने के और भी कारण हैं, हो सकते हैं। यही बात मेरी इस कविता के सृजन का आधार बनी। पति-पत्नी के रिश्तों की बारीकियों पर नज़र डालें तो एक बात तो तय है कि चाहे जितनी बातें कह ली जाएं, सुन ली जाएं, लेकिन आपसी विश्वास और पवित्र प्रेम ही वह धुरी है, जिस पर दाम्पत्य की बुनियाद टिक सकती है। बिना विश्वास के गृहस्थी की गाड़ी चला पाना असंभव है। पवित्रता वह संपत्ति है जो प्रेम के बाहुल्य से पैदा होती है। इसे बेहतर बनाए रखने के लिए आपसी विश्वास, समझदारी, सामंजस्य, प्रेम और देखभाल निहायत ज़रूरी है। अहं, आलोचना, तुलना, शक, ना झुकना या समझौता न करने की ज़िद इस रिश्ते रूपी वृक्ष को दीमक की तरह बरबाद करता है। पति-पत्नी का रिश्ता एक बड़ा पवित्र रिश्ता है। रवीन्द्र नाथ टैगोर ने कहा था पवित्रता वह संपत्ति है जो प्रेम के बाहुल्य से पैदा होती है। इसे बेहतर बनाए रखने के लिए आपसी विश्वास, समझदारी, सामंजस्य, प्रेम और देखभाल निहायत ज़रूरी है। अहं, आलोचना, तुलना, शक, ना झुकना या समझौता न करने की ज़िद इस रिश्ते रूपी वृक्ष को दीमक की तरह बरबाद करता है। ईगो या अहं दोनों के बीच टकराव की स्थिति पैदा करता है। इसलिए यह ज़रूरी है कि इस झूठे अहं को दरकिनार किया जाय। एक दूसरे पर दोषारोपण करने से आवश्यक है कि वे बातें सोचें जिससे एकजुट रहा जाए। अहं का रिश्ता मन में रखने से रिश्ता फल-फूल नहीं सकता। अहं तो दो प्राणियों के बीच दीवार खड़ी कर देता है। इससे पहले कि अहं ठेस पहुंचाए. लोगों को संभल जाना चाहिए। इस रिश्ते का सबसे क़ीमती उपहार समय है। एक-दूसरे को भरपूर समय देना चाहिए। आजकल अधिकांश पति-पत्नी दोनों स्वावलंबी हैं। रिश्ता निभाने में ज़रा सी दिक़्क़त आते ही तलाक़ देने –लेने पर उतारू हो जाते हैं। इस बात को ध्यान में रखना चाहिए कि अलग होना आसान है, पर साथ रहकर निभाना मुश्किल! हमें सूई बनना चाहिए, कैंची नहीं। शादी विवाह अब जन्म जन्मांतर का रिश्ता नहीं रह गया है। जब तक विचार मिले तो एक साथ, विचारों में जरा सी भी खटास आए तो कोर्ट का दरवाजा खटखटाकर तलाक लेने से नहीं चूकते। ऐसे में तलाक की अर्जी दाखिल करने वालों की संख्या दिनों-दिन बढ़ती जा रही है। भारत में प्रति हज़ार में 11 शादियां टूटती हैं। यानी हर सौ में एक! एक रिपोर्ट के मुताबिक देश में पचपन हज़ार तलाक़ के मामले लंबित हैं। शादी विवाह अब जन्म जन्मांतर का रिश्ता नहीं रह गया है। जब तक विचार मिले तो एक साथ, विचारों में जरा सी भी खटास आए तो कोर्ट का दरवाजा खटखटाकर तलाक लेने से नहीं चूकते। ऐसे में तलाक की अर्जी दाखिल करने वालों की संख्या दिनों-दिन बढ़ती जा रही है। कोर्ट से जुड़े जानकारों के मुताबिक प्रति माह तलाक के सैंकड़ों मुकदमे दायर हो रहे हैं। तलाक की अर्जी लगाने वाले दंपतियों में अधिकतर पढ़े लिखे और अच्छी नौकरी करने वाले हैं। विशेषज्ञों के अनुसार तलाक की नौबत बेहद मामूली वजह बन रही हैं। अहं और आपसी विश्वास में कमी के कारण टकराव पैदा होता है और परिवार बिखरने की स्थिति में आ जाता है, यहां तक कि तलाक तक की नौबत तक आ जाती है| क्या तलाक बिगड़ते हुए रिश्तों को सुलझाने की सही दवा है? क्या शादी जैसे पवित्र रिश्ते की डोर इतनी कमज़ोर होती है कि आपसी कलह के चलते इस डोर को तोड़ा जा सकता है? |
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सोमवार, 2 अगस्त 2010
संबंध-विच्छेद
रविवार, 1 अगस्त 2010
काव्यशास्त्र-26 :: आचार्य कवि कर्णपूर (आचार्य परमानन्द दास), आचार्य कविचन्द्र और आचार्य अप्पय्यदीक्षित
काव्यशास्त्र-26 :: आचार्य कवि कर्णपूर (आचार्य परमानन्द दास), आचार्य कविचन्द्र और आचार्य अप्पय्यदीक्षितआचार्य परशुराम राय |
आचार्य कवि कर्णपूर
'अलंकारकौस्तुभ' दस किरणों (अध्यायों) में विभक्त है और इसके प्रतिपाद्य विषय काव्य लक्षण, शब्दशक्ति, ध्वनि, गुणीभूत-व्यंग्य, रस, भाव, गुण, अलंकार, रीति, दोष आदि हैं। आचार्य कविचन्द्र
आचार्य कविचन्द्र के कुल तीन ग्रंथ हैं:- काव्यचन्द्रिका, सारलहरी और धातु चन्द्रिका। इनमें काव्यशास्त्र प्रतिपादक ग्रंथ 'काव्यचन्द्रिका' है, जो सोलह प्रकाशों में विभक्त है। आचार्य अप्पय्यदीक्षितआचार्य अप्पय्यदीक्षित दक्षिण भारत के रहने वाले थे। अपने ग्रंथ 'कुवलयानन्द' में उन्होंने लिखा है:- अमुं कुवलयानन्दमकरोद्दप्प दीक्षित:। नियोगाद्वेङ्कटनृपतेर्निरुपाधिकृपानिधे:॥
आचार्य अप्पय्यदीक्षित की रचनाओं को देखकर बरवस आचार्य अभिनव गुप्त की याद आ जाती है। दोनों ही उच्च कोटि के विद्वान व प्रतिभाशाली, दार्शनिक और शास्त्र प्रणेता थे। दोनों में मुख्य अन्तर जो देखने को मिलता है वह यह कि आचार्य अभिनव गुप्त शैव दर्शन के अनुयायी थे तो आचार्य अप्पय्यदीक्षित वैष्णव दर्शन के। आचार्य अभिनवगुप्त ध्वनिवादी थे, जबकि आचार्य अप्पय्यदीक्षित अलंकारवादी। आचार्य अप्पय्यदीक्षित के मुख्य ग्रंथों को विषयों की विविधता की दृष्टि से निम्नलिखित श्रेणियों में बाँट सकते हैं:- (क) अद्वैतवेदान्त सम्बन्धी ग्रंथ (ख) भक्तिपरक ग्रंथ (ग) रामानुजमतावलम्बी ग्रंथ (घ) मध्वसिद्धान्त सम्बन्धी ग्रंथ (ड.) पूर्वमीमांसा पर आधारित ग्रंथ (च) काव्यशास्त्र से सम्बन्धित ग्रंथ
अप्यर्धचित्रमीमांसा न मुदे कस्य मांसला। अनूरुरिव द्यर्मोशोरर्धेन्दुरिव धूर्जटे:॥
'कुवलयानन्द' काव्यशास्त्र का इनका मुख्य ग्रंथ है जिसकी रचना आचार्य जयदेव कृत 'चन्द्रलोक' की शैली में की गई है। अर्थात्, आधे श्लोक में अलंकार की परिभाषा और आधे में उदाहरण। वैसे अन्य काव्यों से भी इन्होंने काफी उदाहरण दिए हैं। अन्त में इन्होंने 24 ऐसे अलंकारों का उल्लेख किया है जो चन्द्रलोक में नहीं मिलते। आचार्य अप्पय्यदीक्षित संस्कृत वाङ्मय के मूर्धन्य विद्वान हैं। दार्शनिक होते हुए भी इन्होंने दर्शनेतर विषयों पर अनेक ग्रंथों का प्रणयन किया है। ***** |
पिछले अंक|| 1. भूमिका ||, ||2 नाट्यशास्त्र प्रणेता भरतमुनि||, ||3. काव्यशास्त्र के मेधाविरुद्र या मेधावी||, ||4.आचार्य भामह ||, || 5. आचार्य दण्डी ||, || 6. काल–विभाजन ||, ||7.आचार्य भट्टोद्भट||, || 8. आचार्य वामन ||, || 9. आचार्य रुद्रट और आचार्य रुद्रभट्ट ||, || 10. आचार्य आनन्दवर्धन ||, || 11. आचार्य भट्टनायक ||, || 12. आचार्य मुकुलभट्ट और आचार्य धनञ्जय ||, || 13. आचार्य अभिनव गुप्त||, || 14. आचार्य राजशेखर ||, || 15. आचार्य कुन्तक और आचार्य महिमभट्ट ||, ||16. आचार्य क्षेमेन्द्र और आचार्य भोजराज ||, ||17. आचार्य मम्मट||, ||18. आचार्य सागरनन्दी एवं आचार्य (राजानक) रुय्यक (रुचक)||, ||19. आचार्य हेमचन्द्र, आचार्य रामचन्द्र और आचार्य गुणचन्द्र||, ||20. आचार्य वाग्भट||, ||21. आचार्य अरिसिंह और आचार्य अमरचन्द्र||, ||22. आचार्य जयदेव||23. आचार्य विद्याधर, आचार्य विद्यानाथ और आचार्य विश्वनाथ कविराज||24. आचार्य शारदातनय,आचार्य शिंगभूपाल और आचार्य भानुदत्त॥25. आचार्य रूपगोस्वामी और आचार्य केशव मिश्र॥ |