काव्यशास्त्र – 24 :: आचार्य शारदातनय,आचार्य शिंगभूपाल और आचार्य भानुदत्तआचार्य परशुराम राय |
आचार्य शारदातनय का काल 13वीं शताब्दी माना जाता है। इनके वास्तविक नाम का पता नहीं है। हो सकता है कि इनकी माँ का नाम शारदा रहा हो और उसी के आधार पर ये अपने को शारदातनय के रूप में कहने और लिखने लगे हों तथा यही नाम प्रसिद्ध हो गया हो। सन् 1320ई0 के लगभग आचार्य शिङ्गभूपाल हुए हैं जिनके विषय में आगे लिखा जाएगा। इन्होंने अपने ग्रंथ 'रसार्णवसुधाकर' में आचार्य शारदातनय के मतों का उल्लेख किया है। अतएव इनका काल उसके पहले निश्चित होता है।
आचार्य शारदातनय, नाट्यशास्त्र के आचार्य हैं और इन्होंने 'भावप्रकाशन' नामक ग्रंथ लिखा है जिसमें कुल दस अधिकार (अध्याय) हैं। इनमें क्रमश: भाव, रसस्वरूप, रसभेद, नायक-नायिका निरूपण, नायिकाभेद, शब्दार्थसम्बन्ध, नाटयेतिहास, दशरूपक, नृत्यभेद एवं नाट्य-प्रयोगों का प्रतिपादन किया हैं इस ग्रंथ में आचार्य भोज के 'शृंगारप्रकाश' तथा आचार्य मम्मट द्वारा विरचित 'काव्यप्रकाश' से अनेक उद्धरण मिलते हैं।
आचार्य शिंगभूपाल भी नाट्यशास्त्र के आचार्य हैं। अपने ग्रंथ 'रसार्णवसुधाकर' नामक ग्रंथ के अंत में पुष्पिका में अपना परिचय देते हुए लिखते हैं:-
'श्रीमदान्ध्रमण्डलाधीश्वरप्रतिगण्डभैरवश्रीअन्नप्रोतनरेन्द्रनन्दनभुजबलभीमश्रीशिङ्गभूपालविरचिते रसार्णवसुधाकरनाम्नि नाट्यलङ्कारे रञ्जकोल्लासो नाम प्रथमो विलास:।
उक्त कथन से लगता है कि ये आंध्र के राजा अन्नप्रोत की संतान और आंध्र मण्डल के अधीश्वर थे। ये अपने को शूद्र लिखते हैं। 'रसार्णवसुधाकर' के आरम्भ में अपने वंश आदि का उल्लेख करते हुए इन्होंने जो विवरण दिया है उससे पता चलता है कि ये 'रेचल्ला' वंश में उत्पन्न हुए। इनके छ: पुत्र थे तथा इनका शासन विन्ध्याचल से लेकर श्रीबोल पर्वत के मध्य भाग तक फैला हुआ था। इनकी राजधानी 'राजाचल' थी।
'रसार्णवसुधाकर' में कुल तीन उल्लास हैं - रञ्जकोल्लास, रसिकोल्लास और भावोल्लास। प्रथम उल्लास में नायक-नायिका विवेचन, दूसरे में इसका निरूपण तथा तीसरे में रूपकों (नाटकों) के वस्तुविन्यास का विस्तार से प्रतिपादन मिलता है। आचार्य शिंगभूपाल की भाषा सरल और सुबोध है। इसके अतिरिक्त संगीतनाट्य के आचार्य शार्गदेव द्वारा विरचित 'संगीतरत्नाकर' पर इन्होंने 'संगीतसुधाकर' नामक टीका भी लिखी है।
14वीं शताब्दी में ही आचार्य भानुदत्त का काल आता है और ये मिथिला के निवासी थे। इनके पिता का नाम गणेश्वर था, जो मंत्री थे। धर्मशास्त्र एक ग्रंथ 'विवादरत्नाकर' मिलता है जिसके प्रणेता आचार्य चण्डेश्वर हैं। इन्होंने भी अपने पिता का नाम गणेश्वर बताया है। अतएव लगता है कि आचार्य भानुदत्त और आचार्य चण्डेश्वर दोनों भाई-भाई थे। ऐसा उल्लेख मिलता है कि आचार्य चण्डेश्वर 1315ई0 में अपना तुलादान करवाया था। 1428ई0 में आचार्य गोपाल ने आचार्य भानुदत्त की पुस्तक 'रसमञ्जरी' पर 'विकास' नामक टीका लिखी। अतएव निर्विवाद रूप से आचार्य भानुदत्त का काल 14वीं शताब्दी माना जा सकता है। 'रसमञ्जरी' के अन्तिम श्लोक में अपना परिचय देते हुए इन्होंने इस प्रकार लिखा है:-
तातो यस्य गणेश्वर: कविकुलालङ्कारचूडामणि:।
देशो यस्य विदेहभू: सुरसरित्कल्लोलकिमीरिता॥
आचार्य भानुदत्त के तीन ग्रंथ मिलते हैं - रसमञ्जरी, रसतरङ्गिणी और गीतगौरीपति। 'रसमञ्जरी' काव्यशास्त्र की पुस्तक है। 'रसतरङ्गिणी' रसमञ्जरी का ही संक्षिप्त रूप में लिखा गया ग्रंथ है और 'गीतगौरीपति' आचार्य जयदेवकृत 'गीतगोविन्द' की भाँति गीतिकाव्य है।
*** ***
पिछले अंक
|| 1. भूमिका ||, ||2 नाट्यशास्त्र प्रणेता भरतमुनि||, ||3. काव्यशास्त्र के मेधाविरुद्र या मेधावी||, ||4. आचार्य भामह ||, || 5. आचार्य दण्डी ||, || 6. काल–विभाजन ||, ||7.आचार्य भट्टोद्भट||, || 8. आचार्य वामन ||, || 9. आचार्य रुद्रट और आचार्य रुद्रभट्ट ||, || 10. आचार्य आनन्दवर्धन ||, || 11. आचार्य भट्टनायक ||, || 12. आचार्य मुकुलभट्ट और आचार्य धनञ्जय ||, || 13. आचार्य अभिनव गुप्त ||, || 14. आचार्य राजशेखर ||, || 15. आचार्य कुन्तक और आचार्य महिमभट्ट ||, ||16. आचार्य क्षेमेन्द्र और आचार्य भोजराज ||, ||17. आचार्य मम्मट||, ||18. आचार्य सागरनन्दी एवं आचार्य (राजानक) रुय्यक (रुचक)||, ||19. आचार्य हेमचन्द्र, आचार्य रामचन्द्र और आचार्य गुणचन्द्र||, ||20. आचार्य वाग्भट||, ||21. आचार्य अरिसिंह और आचार्य अमरचन्द्र||, ||22. आचार्य जयदेव||23. आचार्य विद्याधर, आचार्य विद्यानाथ और आचार्य विश्वनाथ कविराज|| |
जानकारियों से भरी उपयोगी पोस्ट!
जवाब देंहटाएंसंग्रहणीय प्रस्तुति!
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी जानकारियां दी आप ने इस लेख मै धन्यवाद
जवाब देंहटाएंभारतीय काव्यशास्त्र को समझाने का चुनौतीपुर्ण कार्य कर आप एक महान कर्य कर रहे हैं। इससे रचनाकार और पाठक को बेहतर समझ में सहायता मिल सकेगी। सदा की तरह आज का भी अंक बहुत अच्छा लगा।
जवाब देंहटाएंसुन्दर और उपयोगी !
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी जानकारी . धन्यवाद.
जवाब देंहटाएंराय जी के पोस्ट के माध्यम से काव्यशास्त्र पर जानकारी मिलती रही है.आभार.
जवाब देंहटाएंहर बार की तरह इस बार भी एक सारगर्भित आलेख और उपयोगी जानकारी।
जवाब देंहटाएंसदा की तरह आज का भी अंक बहुत अच्छा लगा।
जवाब देंहटाएंबहुत ही उपयोगी जानकारी।
जवाब देंहटाएंबस एक ही अफ़सोस है कि यह सामग्री विश्वविद्यालय के दिनों में मुझे क्यूँ नहीं मिली...... खैर जब मिले तभी सही.... इन आचार्यों का विवरण तो साहित्य के इतिहासों में भी अनुपलब्ध से हैं.... ! आपकी स्मरण शक्ति और विवरण क्षमता को साधुवाद !!!
जवाब देंहटाएंहिंदी ब्लॉग लेखकों के लिए खुशखबरी -
जवाब देंहटाएं"हमारीवाणी.कॉम" का घूँघट उठ चूका है और इसके साथ ही अस्थाई feed cluster संकलक को बंद कर दिया गया है. हमारीवाणी.कॉम पर कुछ तकनीकी कार्य अभी भी चल रहे हैं, इसलिए अभी इसके पूरे फीचर्स उपलब्ध नहीं है, आशा है यह भी जल्द पूरे कर लिए जाएँगे.
पिछले 10-12 दिनों से जिन लोगो की ID बनाई गई थी वह अपनी प्रोफाइल में लोगिन कर के संशोधन कर सकते हैं. कुछ प्रोफाइल के फोटो हमारीवाणी टीम ने अपलोड.......
अधिक पढने के लिए चटका (click) लगाएं
हमारीवाणी.कॉम