सोमवार, 12 जुलाई 2010

धर्म

धर्म        (लघुकथा)

-- सत्येन्द्र झा

सप्ताह भर दिन-रात जी तोड़ मेहनत करने के बाद बिल्टू बाबू ने जब जोगिया को महज पचास रूपये दिए तो वह अड़ गया। बोला, "यह क्याहै मालिक? सात दिनों के सात सौ रूपये तो सीधा बनते हैं।  ऊपर से दिन-रात काम किया है। यह पचास रुपया किस हिसाब से दे रहे हैं ?"

"क्या बात करते हो ? तुम से भला मैं हिसाब करूँगा ? अरे, जो दिया उसे आशीर्वाद समझ कर रख लो।", बिल्टू बाबू पान चबाते हुए बोले।

कुछ ख्वाब उड़ जाने दो

जोगिया नाक-भौंह सिकोड़ कर बोला, "नहीं मालिक ! अब आशीर्वाद का ज़माना चला गया। अब हम लोग भी जग गए हैं, मालिक! सत्ता में भी हमारी हिस्सेदारी बढ़ गयी है.... !"

बिल्टू बाबू बीच में ही बात कटते हुए बोले, "धर्र... बुरबक ! सब कुछ ठीक है मगर धर्म क्या कहता है ? क्या धर्म तुम्हे अपने से श्रेष्ठों को अपमानित करने की आज्ञा देता है ? कहो! तुम्हें पाप लगेगा कि नहीं ?"

जोगिया चुप हो गया। पचास टके के नोट को मोर कर पॉकेट में रख वह अपने घर की ओर बढ़ गया। धर्म का नशा उसके सर चढ़ कर बोल रहा था।

(मूल कथा  'अहीं कें कहै छी' में संकलित "निशाँ" से हिंदी में केशव कर्ण द्वारा अनुदित।)

15 टिप्‍पणियां:

  1. धर्म की जय हो.... ! बहुत ही नुकीला व्यंग्य है !! लेखक को नमस्कार !!!

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  2. धर्म को जितना गरीब मानते हैं .. अमीर भी मान लें .. तो दुनिया स्‍वर्ग हो जाए !!

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  3. जो धारण करे वह धर्म। ये अन्याय धारण किये जाने योग्य नहीं।

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  4. जो धारण किया जाए वही धर्म है!
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    मगरल आजकल तो देश काल के हिसाब से
    इसकी परिभाषाएँ बदल गईं हैं!

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  5. इस धर्म की बिमारी को सही समझा जाये तो कोई रोगी ना रहे

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  6. धर्म का भय दिखा कर गरीब का शोषण करना ..अमीरों को बहुत आता है ..अच्छी लघु कथा

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  7. एक धर्म से डर गया तो दूसरा धर्म से हट गया
    बहुत ही संक्षेप में सारगर्भित तरीके से परिभाषित किया है आपने धर्म को.

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  8. धर्म के पाखंडियों पर करारा प्रहार कर लोगों को अंधविश्‍वास से दूर रहने को प्रेरित करती रचना।

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  9. बहुत गजब कहानी. धर्म सबके ऊपर है.

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  10. katha achi lagi.jogiya itna sahas kar kehe sakta hai ki satta mein rishtedari hai,toh wah yah bhi pooch sakta tha ki kounsa dharam athawa poojya vyakti ek majdoor ka shoshan karne ki anumati deta hai.iss prakar samwad mein isey kholne ki aawashyakata mujhe mahasoos hui.isasey katha ko ek nai disha milti.

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  11. वास्तव में, निर्बल वर्ग को धर्म के नाम पर ही सबसे अधिक ठगा जाता है और यह ठगी आर्थिक तथा मानसिक दोनों ही तरह की होती है।
    अच्छा सन्देश देने वाली कथा है।

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