आज मेरी आँखें खुली हैं,
बिलकुल खुली !
और मैं देख रहा हूँ,
खुली आँखों से सपने !!
जिनमें हैं कई चेहरे,
कुछ धुंधले,
कुछ साफ़,
कुछ गैर,
और बहुत से अपने !!
धुंधले चेहरे तो याद नहीं किसके हैं ?
परन्तु साफ़ चेहरे,
बिलकुल साफ़ हैं !
एकदम चमकीले,
जो चमक होती है,
सिर्फ अपनों में !!
किन्तु ये क्या,
एक और सपना देख रहा हूँ,
मैं सपनों में !!
परन्तु ये आँखें फिर भी खुली हैं,
और
प्रतीक्षा कर रही हैं,
कि
कब आयेगी वह भोर ?
जब हर चेहरे में होगी,
सच्चाई की चमक !
विश्वास की झलक !!
और
प्रेम की ललक !!!
नहीं होगा कृत्रिम अपनत्व !
होगी तो सच्चाई,
और
केवल सच्चाई चारों ओर !!
पता नहीं,
ऐसा होगा कभी ?
ऐसा होगा भी या नहीं ?
सच तो ये है,
कि
यह भी एक सपना है !
क्या फर्क पड़ता है ?
आँखें बंद हो या खुली ?
भले ही,
कुछ आशाएं हैं पली !
सुबह फिर से तड़पना है !
क्योंकि यह भी,
बस एक सपना है !!!
दिल की गहराई से लिखी गयी एक सुंदर रचना , बधाई
जवाब देंहटाएंशानदार भावमय प्रस्तुती धन्यवाद।
जवाब देंहटाएंसपना सच हो
जवाब देंहटाएंखुली आँखों के देखे हुये स्वप्न अधिक स्पष्ट होते हैं।
जवाब देंहटाएंआपकी जागी आँखों का ख़्वाब बहुत ही हसीन था... दर्द भी हसीन होते हैं, क्योंकि मांजते हैं इंसान को ताकि उनकी चमक और बढे... हाँ दो एक पंक्तियाँ खटक रही हैं, आशा है अन्यथा न लेंगे –
जवाब देंहटाएं“कब आएगा वह भोर” की जगह “कब आएगी वह भोर”
और “विश्वास का झलक” की जगह “विश्वास की झलक”
इस फॉर्मेट में लिखने पर धुंधला दिखाई देता है, या फिर पिक्सेल बराबर कर लिया करें...
उपयोगी पोस्ट!
जवाब देंहटाएंसुन्दर रचना!!
सुनील जी,
जवाब देंहटाएंआप हमारे ब्लॉग पर पहली बार आये.... हार्दिक अभिनन्दन ! प्रोत्साहन के लिए धन्यवाद !!
निर्मला कपिला जी,
जवाब देंहटाएंआपके प्रोत्साहन से आत्म-विश्वास आकाश को स्पर्श करने लगते हैं. आप से धन्यवाद से नहीं आशीर्वाद की अपेक्षा है !!
अजय जी,
जवाब देंहटाएंआमीन !!!
प्रवीण जी,
जवाब देंहटाएंधन्यवाद.... ! आपने मेरी खुली आँखों के सपने को अधिक स्पष्ट कहा.... !! मैं भी आपसे इत्तेफ़ाक़ रखता हूँ !!!
संवेदना के स्वर.....
जवाब देंहटाएंअब तो ब्लॉग पर आपके आगमन का इन्तजार रहने लगा है. मैं आपका हृदय से आभार प्रकट करता हूँ.... लिखावट की भूल की तरफ ध्यान दिलाने के लिए ! सुधार कर दिया गया है. समझ नहीं पा रहा हूँ कि कैसे आपको धन्यवाद दूँ.... ? आप समझ जाईये न..... !!!
शास्त्री जी,
जवाब देंहटाएंब्लॉग पर आपके आने से पोस्ट की गरिमा ही बढ़ जाती है ! आभारी हूँ !!!
शास्त्री जी,
जवाब देंहटाएंब्लॉग पर आपके आने से पोस्ट की गरिमा ही बढ़ जाती है ! आभारी हूँ !!!
सबसे पहिले त धमाकेदार प्रस्तावना के लिए धन्यबाद... पंत जी का पंक्ति, आपके कबिता के ऊपर लिखने से हमको अईसा लगा कि जईसे पंत जी का आशिर्बाद का हाथ आपके ऊपर है … पी बी शेली का अॅवर स्वीटेस्ट सॉन्ग्स आर दोज़ अऊर शैलेंद्र जी का “हैं सबसे मधुर वो गीत जिन्हें हम दर्द के सुर में गाते हैं” अऊर आपका कबिता, सब मिलकर अईसा कोलॉज बनाया है दर्द का कि पूछिए मत... लेकिन एगो बिस्वास है जो सदियों से हमरे संस्कृति में बसा हुआ है, पत्थरका लकीर जईसा... भोर का सपना सच होता है...
जवाब देंहटाएंकुछ आशाएं हैं पली !
जवाब देंहटाएंसुबह फिर से तड़पना है !
क्योंकि यह भी,
बस एक सपना है !!!
बहुत खूबसूरती से लिखा है...सुन्दर अभिव्यक्ति
सुंदर पोस्ट।
जवाब देंहटाएंसुन्दर अभिव्यक्ति।
जवाब देंहटाएंसुन्दर रचना ।
khoobsurat rachna likhi hai apne........ bahut bahut badhai
जवाब देंहटाएंखुली आंखों से दिन में सपने देखना बंद कीजिए। तब न ई सब पूरा होगा
जवाब देंहटाएंकब आयेगी वह भोर ?जब हर चेहरे में होगी,सच्चाई की चमक !विश्वास की झलक !!औरप्रेम की ललक !!!
तर्क, आप को किसी एक बिन्दु "क" से दूसरे बिन्दु "ख" तक पहुँचा सकते हैं। लेकिन सपने आप को सर्वत्र ले जा सकते हैं।
जवाब देंहटाएं@ चला बिहारी,
जवाब देंहटाएंहम तो आपका फैन हो चुका हूँ.... इसीलिये धन्यवाद नहीं कहूँगा !
@ संगीता जी,
जवाब देंहटाएंआपकी प्रतिक्रिया का इन्तजार था......आप आयीं, बहुत-बहुत धन्यवाद !!
@ सुधीर जी,
जवाब देंहटाएंक्या जनाब, एक तो पहली बार आये और सिर्फ सुन्दर पोस्ट लिख कर चले गए........ लेकिन मैं तो आपको 'शुक्रिया' कह ही सकता हूँ !!
@ हरीश जी,
जवाब देंहटाएंसर, आपने सच कहा है क्या ?
@ सुमित जी,
जवाब देंहटाएंआप भी हमारे ब्लॉग पर पहली बार आये हैं... खुशामदीद ! हौसलाफजाई के लिए शुक्रिया !!!
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएं@ हास्यफुहार
जवाब देंहटाएंबहुत दिनों के बाद आपका पुनरागमन हुआ है...... स्वागत ! आभार.... !!!
@ मनोज कुमार,
जवाब देंहटाएंसहमत हूँ आपसे ! धन्यवाद !!
भाई मनोज जी
जवाब देंहटाएंआपकी पोस्ट पर टिप्पणी करने आया था पता नहीं किस तरह से यह पोस्ट मेरे ब्लाग पर आ गई और चिट्ठाजगत में टिप्पणियों के साथ देखने लगी थी.
( पोस्ट में केवल शीर्षक था और मेरी टिप्पणी प्रकाशित हो गई थी)
खैर मैंने उसे डिलीट कर दिया है.
आपको सुंदर रचना के लिए बधाई
आपने कलेजा निकालकर रख दिया है.
मनोरम रचना !
जवाब देंहटाएंसुन्दरतम भाव ....सपने तो सपने होते हैं .
जवाब देंहटाएं@ राजकुमार सोनी जी,
जवाब देंहटाएंहमारी पोस्ट पढने के लिए आपने इतनी मशक्कत उठाई... हम तह-ए-दिल से आपका शुक्रिया अदा करते हैं ! उम्मीद है अआगे भी आपका सद्भाव बना रहेगा !! धन्यवाद !!!!
@ इंद्रानील सैल जी,
जवाब देंहटाएंआप जैसे नियमित पाठकों का हम केवल धन्यवाद ही नहीं इंतज़ार करते हैं !!
@ शिखा जी,
जवाब देंहटाएंसात समंदर पार से भी हमारे पोस्ट पर आपकी नजर-ए-इनायत हुई..... बंदा शुक्रगुज़ार है !!!
कविता रचना मुझे न आता कभी कभी रच जाती कविता.
जवाब देंहटाएंकविता के बारे मे आदरणीय पंत जी की परिभाषा से अवगत हुआ। आपकी कविता का भी आनंद लिया। आभार्……।
जवाब देंहटाएंखुली आँख का सपना दिल के भीतर तक उतर गया बनकर अपना।
जवाब देंहटाएं................
पॉल बाबा का रहस्य।
आपकी प्रोफाइल कमेंट खा रही है?.
बड़ा शानदार सपना देखा गया भाई।
जवाब देंहटाएंखुली आंखो से देखा सपना ही तो सच होता है और उम्मीद है ये सपना सच होगा।
जवाब देंहटाएंभुत भावनात्मक कविता।
जवाब देंहटाएंखुली आँख का सपना दिल के भीतर तक उतर गया बनकर अपना।
जवाब देंहटाएंआपकी जागी आँखों का ख़्वाब बहुत ही हसीन था.!!
जवाब देंहटाएंअनुपम रचना .... खुली आँखों के सपने दिल को भाते हैं ....
जवाब देंहटाएंलाजवाब ....
अच्छी रचना।
जवाब देंहटाएंराजभाषा हिन्दी के प्रचार-प्रसार में आपका योगदान सराहनीय है।
बहुत बहुत खूबसूरत अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएं@ पश्यन्ति जी,
जवाब देंहटाएंआपका आना किसी शुभ संयोग से कम नहीं है.... इस ब्लॉग पर हम आपका हार्दिक अभिनन्दन करते हैं ! आपने जो पंक्ति लिखी है उसके लिए, "कहते हैं कि ......का है अंदाज़-ए-बयाँ और !! धन्यवाद !!!
@ सूर्यकांत गुप्ता जी,
जवाब देंहटाएं'पन्त की परिभाषा आपको अच्छी लगी और हमें आपके उदगार !' आपका आभार !!!!
@ जाकिर अली रजनीश,
जवाब देंहटाएंजाकिर भाई,
आपको खुली आँखों का सपना पसंद आया.... आपने तबज्जो बख्शी... शुक्रिया कहूँ क्या ?
@ अनूप शुक्ल जी,
जवाब देंहटाएंदेखा न... आपको भी आना पड़ा ! पहली बार आप मेरे पोस्ट पर टिपियाये हैं.... धन्यवाद कहने का हक तो बनता है !!
@ वंदना जी,
जवाब देंहटाएंआप बहुत दिनों से नहीं आ रही थी हमारे ब्लॉग पर.... शबाब बन गयी यह अकविता. अल्लाह करे कि आपकी दुआ में असर हो... ये सपना सच हो जाए ! प्राणियों में सद्भावना हो.... 'सर्वे भवन्तु सुखिनः....' !!!
@ प्रेम सरोवर,
जवाब देंहटाएंकविता आपके जज्बातों को छू पायी, शुक्रिया !!
@ जुगल किशोर जी,
जवाब देंहटाएंअरे वाह... क्या तुकबंदी मिलाई है.... ! वैसे यह आपकी जर्रानवाजी है.... !! शुक्रिया कबूलें !!!
@ रीता जी,
जवाब देंहटाएंजागी आँखों के ख्वाब आपको पसंद आये.... मेरी खुशकिस्मती. शुक्रिया !!
@ दिगंबर नाशवा,
जवाब देंहटाएंसच कहता हूँ कविता पोस्ट करने के बाद मुझे आपकी प्रतिक्रिया की प्रतीक्षा थी. देर आयद ! दुरुस्त आयद !! हौसलाफजाई के लिए शुक्रिया !!!
@ राजभाषा हिंदी,
जवाब देंहटाएंसमझिये कि आपकी कुछ सेवा हो गयी....... मेरा श्रम सफल हो गया ! धन्यवाद !!
@ राजभाषा हिंदी,
जवाब देंहटाएंसमझिये कि आपकी कुछ सेवा हो गयी....... मेरा श्रम सफल हो गया ! धन्यवाद !!
यह कविता आप सब को पसंद आयी... मुझे बहुत खुशी हो रही है. एक अनिर्वचनीय आनद आ रहा है.... ! मैं इस आनंद में आप सबों को सम्मिलित करना चाहता हूँ !! आखिर यह सफलता आपकी है !!! अंत में मैं सभी आगत-अनागत, प्रत्यक्ष-परोक्ष पाठकों का आभार व्यक्त करता हूँ ! मैं यहाँ उन सभी पाठकों को भी धन्यवाद देना चाहता हूँ जिन्होंने, ई-मेल, फ़ोन अथवा एस.एम.एस से अपनी दाद भेजी है !!! आप सबों का हृदय से आभारी हूँ!!!!
जवाब देंहटाएंMeko b apki ye rachna bahooooot pasand aai karan ji...Dil ko chhune wali kavita likh dala apne... bahot hai sadharan aur sundar kavita...
जवाब देंहटाएंLakn tippani dene me bilamb ho gaya :(
Mere Naye offc me blogs wagerah blocked hai jis wajah se mai apke blog par pahle ki bhanti har roz ni aa pati hun..
Isliye apse aur Manoj ji se nivedan hai ki is blog par jo b post aata hai meko meri gmail id par send kar dia kare..taki mai sabi post ka aanand le sakun...aur is tarah ke ache post ko miss na karu...dhanywad..
कुछ आशाएं हैं पली !
जवाब देंहटाएंसुबह फिर से तड़पना है !
क्योंकि यह भी,
बस एक सपना है !!!
और फिर जब तक सपना है तब तक आस है
सुन्दर रचना
बहुत सुन्दर रचना बहुत पसंद आई शुक्रिया
जवाब देंहटाएंमंगलवार 19 जुलाई को आपकी रचना ... चर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर ली गयी है आभार
जवाब देंहटाएंhttp://charchamanch.blogspot.com/
मंगलवार २० जुलाई को आपकी रचना ... चर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर ली गयी है आभार
जवाब देंहटाएंhttp://charchamanch.blogspot.com/
दिनांक गलत छप गयी थी
@ मनोज कुमार,
जवाब देंहटाएंचिटठा-चर्चा में शामिल करने के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद ! चर्चा भी बहुत सुन्दर बन पड़ीं है ! वहाँ भी टिपिया आया हूँ !!
@ रंजू भाटिया,
जवाब देंहटाएंआखिर आपको भी आना ही पड़ा.... हम शुक्रगुज़ार हैं !!!
@ संगीता स्वरुप,
जवाब देंहटाएंचर्चा-मंच पर स्थान देने के लिए, धन्यवाद !!
सही है जब तक किसी बात की अनुभूति नही होती या घटना से सामना नही होता कविता का प्रस्फुटन नही होता। और आपकी कविता इस बात का उदाहरण है। मार्मिक रचना। बधाई……व आभार।
जवाब देंहटाएंसुन्दर कविता के लिए बधाई..
जवाब देंहटाएंबेहतरीन कविता हैं...शब्दों में कैसे प्रशंशा की जाये...ये सोच रहा हूँ...विलक्षण तरह से भावों को समेटा गया है... वाह...वा...
जवाब देंहटाएंनीरज
बहुत अच्छा....मेरा ब्लागः"काव्य कल्पना" at http://satyamshivam95.blogspot.com .........साथ ही मेरी कविता "हिन्दी साहित्य मंच" पर भी.......आप आये और मेरा मार्गदर्शन करे...धन्यवाद
जवाब देंहटाएंकुछ आशाएं हैं पली !
जवाब देंहटाएंसुबह फिर से तड़पना है !
क्योंकि यह भी,
बस एक सपना है !!!
सपने तो सपने होते हैं
चर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर आपकी (कोई पुरानी या नयी ) प्रस्तुति मंगलवार 14 - 06 - 2011
जवाब देंहटाएंको ली गयी है ..नीचे दिए लिंक पर कृपया अपनी प्रतिक्रिया दे कर अपने सुझावों से अवगत कराएँ ...शुक्रिया ..
सफर पुरानी राहों से आगे की डगर पर , साप्ताहिक काव्य मंच