काव्यशास्त्र-२३::आचार्य विद्याधर,आचार्य विद्यानाथऔरआचार्य विश्वनाथ कविराज- आचार्य परशुराम राय |
आचार्य विद्याधर का काल तेरहवीं शताब्दी का उत्तरार्ध और चौदहवीं शताब्दी का प्रारम्भ माना जाता है। इनके आश्रयदाता उत्कल नरेश नरसिंह देव ( 1280 - 1314) थे।
काव्य शास्त्र के श्रेत्र में इनका एक ग्रंथ मिलता है जिसका नाम 'एकावली' है। इसमें कुल आठ उन्मेष हैं। प्रथम उन्मेष में काव्य-स्वरूप, द्वितीय में वृति विचार, तृतीय में ध्वनिभेद, चतुर्थ में गुणीभूतव्यड्.ग्य, पंचम में गुण और रीति, षष्ठ में दोष, सप्तम में शब्दालंकार और अष्टम में अर्थालंकारों का निरूपण किया गया है।
इस ग्रंथ की विशेषता यह है कि इसमें दिए सभी उदाहरण आचार्य विद्याधर के स्वयं के रचे श्लोक है। इसकी रचना 'काव्यप्रकाश' और 'अलंकारसर्वस्व' के आधार पर की गई है। 14वीं शताब्दी के प्रसिद्ध टीकाकार आचार्य मल्लिनाथ ने ’एकावली' पर 'तरला' नाम की टीका लिखी है जो अत्यन्त विद्वत्तापूर्ण है।
आचार्य विद्यानाथ आचार्य विद्याधर के समकालीन थे। आंध्रप्रदेश के राजा प्रतापरुद्र के राज्य में इन्हें आश्रय प्राप्त था। इन्हीं के नाम पर काव्यशास्त्र का ग्रंथ 'प्रतापरुद्रयशोभूषण' नामक ग्रंथ इन्होंने लिखा। इस ग्रंथ की रचना 'एकावली' की शैली में की गई है, अर्थात् इसमें भी उदाहरण के रूप में महाराज प्रतापरुद्र की प्रशंसा में लिखे गये श्लोकों को आचार्य विद्यानाथ द्वारा दिया गया है।
महाराज प्रतापरुद्र का काल 1298 से 1317 ई0 तक रहा है और इनकी राजधानी एकशिला थी जिसे आजकल बारंगल के नाम से जाना जाता है।
आचार्य विश्वाथ का काल चौदहवीं शताब्दी है। इनके पिता का नाम चन्द्रशेखर और पितामह का नाम नारायणदास था। इनके द्वारा किए गए उल्लेखों से पता चलता है कि ये 18 भाषाओं के ज्ञाता थे और किसी राज्य के सान्धिविग्रहिक (विदेशमंत्री)।
इनका ग्रंथ 'साहित्यदर्पण' काव्यशास्त्र का बड़ा ही प्रसिद्ध और लोकप्रिय ग्रंथ है। यह आचार्य मम्मट के 'काव्यप्रकाश' की भाँति ही दस परिच्देछों में विभक्त है (काव्यप्रकाश में दस उल्लास हैं)। 'साहित्यदर्पण' 'काव्यप्रकाश' की तुलना में काफी सरल और सुबोध है। दोनों के वर्णित विषय लगभग एक से हैं। आचार्य विश्वनाथ ने नायक-नायिका भेद तथा नाट्यशास्त्र के तत्वों का भी इस ग्रंथ में समावेश किया है, जबकि काव्यप्रकाशकार ने इन्हें छोड़ दिया है। काव्य की इनके द्वारा की गई परिभाषा 'वाक्यं रासत्मकं काव्यम्' अन्यन्त प्रसिद्ध है और आज भी विद्वानों को इसे उद्धृत करते हुए देखा जाता है।
'साहित्यदर्पण' के प्रथम परिच्छेद में काव्य के लक्षण, प्रयोजन आदि, द्वितीय में वाक्य और पद के लक्षण (परिभाषा) के साथ-साथ शब्द-शक्तियों का विस्तृत विवेचन, तृतीय में रसनिष्पति, चतुर्थ में काव्य के भेद, पंचम में ध्वनिविरोधी मतों का सशक्त खण्डन और ध्वनि सिद्धांत का समर्थन, षष्ठ में नाट्यशास्त्र का विषय विवेचन, सप्तम में दोष, अष्टम में गुण, नवम में रीति तथा दशम अनुच्छेद में अलंकारों का निरूपण किया गया है।
'काव्यप्रकाश' पर इन्होंने 'काव्यप्रकाशदर्पण' नाम की टीका भी लिखी है। 'राघवविलास' महाकाव्य है। 'कुवलयाश्वचरित' प्राकृतभाषा में लिखा गया काव्य है। 'नरसिंहविजय' संस्कृत में लिखा गया काव्य है। इसके अतिरिक्त 'प्रभावतीपरिणय' और 'चन्द्रकला' दो नाटिकाएँ हैं। 'प्रशस्तिरत्नावली' सोलह भाषाओं में लिखा गया करम्भक (करम्भक का अर्थ 16 भाषाओं में लिखा गया ग्रंथ) है।
आचार्य विश्वनाथ ने उपर्युक्त सभी ग्रंथों का उल्लेख 'साहित्यदर्पण' और 'काव्यप्रकाश' की टीका में किया है।
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पिछले अंक
|| 1. भूमिका ||, ||2 नाट्यशास्त्र प्रणेता भरतमुनि||, ||3. काव्यशास्त्र के मेधाविरुद्र या मेधावी||, ||4. आचार्य भामह ||, || 5. आचार्य दण्डी ||, || 6. काल–विभाजन ||, ||7.आचार्य भट्टोद्भट||, || 8. आचार्य वामन ||, || 9. आचार्य रुद्रट और आचार्य रुद्रभट्ट ||, || 10. आचार्य आनन्दवर्धन ||, || 11. आचार्य भट्टनायक ||, || 12. आचार्य मुकुलभट्ट और आचार्य धनञ्जय ||, || 13. आचार्य अभिनव गुप्त ||, || 14. आचार्य राजशेखर ||, || 15. आचार्य कुन्तक और आचार्य महिमभट्ट ||, ||16. आचार्य क्षेमेन्द्र और आचार्य भोजराज ||, ||17. आचार्य मम्मट||, ||18. आचार्य सागरनन्दी एवं आचार्य (राजानक) रुय्यक (रुचक)||, ||19. आचार्य हेमचन्द्र, आचार्य रामचन्द्र और आचार्य गुणचन्द्र||, ||20. आचार्य वाग्भट||, ||21. आचार्य अरिसिंह और आचार्य अमरचन्द्र||, ||22. आचार्य जयदेव|| |
एक साथ , इतनी जल्दी , तीनों आचार्यों को समेट दिया ! इतनी जल्दबाजी क्यों भाई !
जवाब देंहटाएंसंक्षिप्त में सार्थक जानकारी ।
जवाब देंहटाएंसार्थक जानकारी ।
जवाब देंहटाएंउपयोगी और सार्थक पोस्ट!
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर लगा आज का यह पोस्ट जी, सब से मिलवाने के लिये आप का धन्यवाद
जवाब देंहटाएंआप काव्य-शास्त्र और काव्याचार्यों से
जवाब देंहटाएंसंबंधित जो शृंखला प्रस्तुत कर रहे हैं वह
काव्य-रचना करने वाले मनीषियों एवं
स्वाध्यायी सज्ज्नों के लिए अत्यंत
उपयोगी है। इन नेक कार्य के लिए
साधुवाद।
सद्भावी -डॉ० डंडा लखनवी
संग्रहणीय सामग्री । ऐसी जानकारी यदा-कदा ही देखने को मिलती है और जब हमें जरूरत होती है तो भटकना पड़ता है। उपयोगी सामग्री एक ही स्थान पर उपलब्ध कराने के लिए आचार्य राय जी को साधुवाद।
जवाब देंहटाएं@अमरेन्द्र जी,
जवाब देंहटाएंइन आचार्यों के जीवनवृत्त के बारे में जानकारियाँ बहुत कम उपलब्ध हैं। अतएव इनके बारे में बहुत अधिक लिख पाना सम्भव नहीं है।
धन्यवाद सहित,
दुर्लभ एवं उपयोगी जानकारी के लिये धन्यवाद
जवाब देंहटाएंबहुत सार्थक जानकारी।
जवाब देंहटाएंउपयोगी शृंखला है।
जवाब देंहटाएंआदरणीय राय जी विविध ग्रंथों का समुन्द्र-मंथन कर अथक श्रम का कालकूट पी, ये साहित्य-रत्न पाठकों को उपलब्ध करवा रहे हैं! साहित्यकारों की भावी पीढ़ी इनका ऋणी रहेगी! लेखक और और सभी पाठकों को कोटि-कोटि धन्यवाद !!
जवाब देंहटाएंअमरेन्द्र ने ठीक कहा अत्यन्त सन्क्षिप्त है, परन्तु ठीक है गागर में सागर-बधाई--पूरी गागर को विस्त्रत रूप से एक एक करके पुनः भी दिया जा सकता है ।
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