आँच-28 :: पर 'मेरा आकाश'हरीश प्रकाश गुप्त |
किसी ने कहा जीवन एक संघर्ष है, किसी ने कहा संघर्ष ही जीवन है। दृष्टि अपनी-अपनी है। जीवन में संघर्ष नही तो यह नीरस है। संघर्षों का सामना करना, उन पर विजय पाना उपलब्धि है और यही जीवन को सरस बनाता है। जिन्दगी की इन जटिलताओं को सरल और सपाट शैली में व्यक्त करना आसान नहीं होता। ऐसी अभिव्यक्तियाँ जब गर्भ में होतीं है, अर्थात् रचनाकार के मानस में होती है तब रचनाकार स्वयं अनेक अन्तर्द्वन्द्वों से जूझ रहा होता है। वह अपनी संवेदना से दूसरों की अनुभूति जीता है, उसे वाणी प्रदान करता है। उसके पास जादू की छड़ी नहीं है। लेकिन वह अपने शब्द कौशल से चमत्कार पैदा करते हुए नवीन अर्थ का सृजन करता है, उसे आकर्षक बनाता है। जब पाठक का रचना से तादाम्य स्थापित हो जाता है तब रचना सफलता के शिखर पर होती है। मनोज कुमार जी की कविता 'मेरा आकाश'(लिंक यहां है) जिन्दगी की ऐसी ही जटिलताओं की अभिव्यक्ति है और मनोज जी ने इसे सफलतापूर्वक शब्दों में ढाला है। पाठकों से तादाम्य स्थापन के कारण इस कविता को पाठकों की भरपूर सराहना भी मिली है। कविता का विस्तार तीन प्रस्तरों का है। पहला प्रस्तर संघर्ष की अभिव्यक्ति हैं। कविता के प्रारम्भ के स्वर में आंशिक निराशा है। 'मेरा आकाश पीछे छूट गया, बहुत दूर क हाथ बढ़ाया था छूने का।' लेकिन अपने लक्ष्य को पाने की असीम उत्कण्ठा बार-बार उठ खड़े होने के लिए प्रेरित करती है। वहीं झंझाएं ऐसी हैं कि वे आगे बढ़ने नहीं देतीं। 'बादलों की हुंकार' प्रतिकूलतम परिस्थितियों को अभिव्यंजित करती है लेकिन साहस की पराकाष्ठा उन्हीं झन्झाओं में ही अवलम्ब तलाश लेती है। 'कौधंती बिजलियों की डोर थामें।' बारम्बार प्रयासों में बहा रक्त-स्वेद निस्सार होने के बावजूद भी संघर्ष की जिजीविषा असफलताबोध पर भारी हो जाती है। रक्त का रिसना संघर्ष की पराकाष्ठा है तो रक्त का सागर के जल की भाँति खारा बनना उस असीम श्रम के निष्फल होने की पराकाष्ठा।
कविता का द्वितीय प्रस्तर कवि का आत्मालाप है जो पूर्व पद से सम्पृक्त भी है और एक पृथक दिशा की ओर भी मुखरित है।
यदि कविता के प्रथम दो पद चेष्टाओं और असफलता के संघर्ष की परिभाषा हैं तो अंतिम पद आशोन्मुख है और नितांत प्रेरक है। यह कविता का सबसे मधुर और कोमल पद है।
मनोज जी की यह कविता काव्यत्व से सराबोर है। एक-एक शब्द गहरा अर्थ लिए हुए है। उन्होंने अपने अन्वेषित बिम्बों से कविता को समृद्ध किया है जो न केवल अर्थ को चमक देते हैं बल्कि अर्थ की गहराई का भी अहसास कराते हैं। यदि कहीं अपवाद हैं तो अत्यल्प हैं। 'बादलों के कुछ टुकड़ों ने ऐसी हुंकार भरी' में हुंकार रूपी गर्जन अर्थ को लांघता है तो 'कौधंती बिजलियों की डोर थामें' में व्यतिरेक से अर्थ भरने का सार्थक प्रयास भी किया गया है।
'पुरखों के पिण्डों संग समर्पित हैं' में एक अलग तरह की शब्द योजना है जो शेष कविता से मेल नहीं खाती। अतः इस स्थान पर ऐसे शब्दविधान से बचा जा सकता था। शब्दाकर्षण कविता का इष्ट नहीं है। जबकि भावविधान, अर्थ का गांभीर्य, सम्प्रेषणीयता और शब्दगरिमा ही कविता के प्रमुख तत्व हैं, रस निष्पत्ति उसका धर्म है। इस कविता के भाव और कला (शिल्प) दोनों ही पक्ष सबल हैं। कविता के शीर्ष में प्रयुक्त बिम्ब ‘मेरा आकाश’ अपना अर्थ स्पष्ट करने में कुछ भ्रमित करता है कि यह सफलता है या आशाएं-अपेक्षाएं हैं अथवा स्वतंत्रता या फिर इनका समुच्चय। हाँ, एक बात और जिससे शायद सभी लोग सहमत न हों, लेकिन जब कवि को स्वयं कविता की भूमिका में प्रस्तावना देने या अर्थ के लिए अवलम्ब लेने की आवश्यकता पड़े तो यह कविता की सफलता नहीं कही जाती। हालाँकि यह कविता अर्थ के स्तर पर और भाव के स्तर पर स्वयं सम्प्रेषण में पूर्णतया समर्थ है। इसे किसी भूमिका की आवश्यकता न थी।
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गुरुवार, 29 जुलाई 2010
आँच-28 :: पर 'मेरा आकाश'
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बहुत सार्थक समीक्षा......
जवाब देंहटाएंbahut badiya parstutikaran
जवाब देंहटाएंSaathak sameeksha.
जवाब देंहटाएंManoj ji ko haardik shubhkamnayne
Harish ji "Mera Akash" kavita par sarvangin sundar samiksha adbhut hai.
जवाब देंहटाएंबहुत ही सार्थक और सटीक.
जवाब देंहटाएंरामराम.
आलोचना या समालोचना का अर्थ है देखना, समग्र रूप में परखना। किसी कृति की सम्यक व्याख्या या मूल्यांकन को आलोचना कहते हैं। यह कवि और पाठक के गीच की कड़ी है। इसका उद्देश्य है रचना कर्म का प्रत्येक दृष्टिकोण से मूल्यांकन कर उसे पाठक के समक्ष प्रस्तुत करना, पाठक की रूचि परिष्कार करना और उसकी साहित्यिक गतिविधि की समझ को विकसित और निर्धारित करना।
जवाब देंहटाएंइस दृष्टिकोण से आपकी यह समीक्षा एक पूर्ण समीक्षा कही जा सकती है। समीक्षा पाठक के मन को छू लेती है और आपकी विषय पर समझ, सामर्थ्य और कलात्मक शक्ति से परिचय कराती है। इस समीक्षा को पढ़ते हुए ऐसा लगता है कि आप समीक्षा करने के पहले कविता को उसकी विस्तृति में बूझने का यत्न करने वाले समीक्षक हैं। भाषा की सादगी, सफाई, प्रसंगानुकूल शब्दों का खूबसूरत चयन, जिनमें सटीक शब्दो का प्राचुर्य है।
समीक्षा महज समीक्षक का बयान भर नहीं है। इस समीक्षा में समीक्षक की भावनाएं सीधे साधे सच्चे शब्दों में बेहद ईमानदारी से अभिव्यक्त की गई है। इसमें कविता में मौजूद कई कमियां ईमानदारी से बताए गए हैं। समीक्षक द्वारा अपनी शिकायत दर्ज कराई गई है।
समीक्षा इतनी सटीक है कि इसे बार-बार पढने, पढते रहने, का मन करता है।
बहुत अच्छी प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंराजभाषा हिन्दी के प्रचार-प्रसार में आपका योगदान सराहनीय है।
यथार्थबोध के साथ कलात्मक जागरूकता भी स्पष्ट है।
जवाब देंहटाएंइस समीक्षा की अलग मुद्रा है, अलग तरह का स्वर। अद्भुत मुग्ध करने वाली, विस्मयकारी।
जवाब देंहटाएंइस समीक्षा में आपने कविता को लेकर कोई सपाट बयानी नहीं की है। आपकी समीक्षा की आंच में सिंधी हुई ये समीक्षा हमें आंच की गर्माहट प्रदान करती है ।
जवाब देंहटाएंसमीक्षा आपके अनुभव पर आधारित है,और इसकी शैली की मधुरता सरस है इसलिए इसमें अद्भुत ताजगी है।
जवाब देंहटाएंकविता की परिभाषा और कविता की बहुत ही सार्थक,सटीक व्याख्या ...
जवाब देंहटाएंआभार ...!
बहुत ही अच्छी समीक्षा है यह. बहुत कुछ सीखने को मिला. कवि और समीक्षक दोनों को धन्यवाद !
जवाब देंहटाएंमनोज जी, आपका विश्लेषण तार्किक ही नहीं व्यवहारिक भी है।
जवाब देंहटाएं…………..
पाँच मुँह वाला नाग?
साइंस ब्लॉगिंग पर 5 दिवसीय कार्यशाला।
@ संगीता स्वरूप जी,
जवाब देंहटाएं@ अर्पित श्रीवास्तव जी,
@ कविता रावत जी,
आपका प्रोत्साहन हमें प्रेरणा देता है।
आपको आभार।
@ अनामिका जी,
जवाब देंहटाएंचर्चामंच पर सम्मान देने के लिए आपका आभारी हूँ।
@ आदरणीय राय जी,
जवाब देंहटाएंआपका मार्गदर्शन हमारी प्रेरणा है।
आभार।
@ ताऊ रामपुरिया जी,
जवाब देंहटाएंआपका प्रोत्साहन प्रेरणा देता है।
आपको आभार।
@ मनोज जी,
जवाब देंहटाएंआपके शब्दों के लिए मैं अधिक क्या कहूँ। आप एक अतिसहृदय व्यक्ति हैं जो आपने दर्शाए गए संकेतों को बहुत सरलता और सहजता से स्वीकार किया है। यह आपके हृदय की विशालता है। आपका स्नेह है। उठाए गए विन्दु शिकायत नहीं हैं। यह कोई पूर्ण या श्रेष्ठ समीक्षा भी नहीं है, वरन यह मेरे अपने विचार हैं। मैं अभी भी आप जैसे लोगों से सीख रहा हूँ। रचना पर दृष्टि डालते समय केवल रचना सामने रहती है, रचनाकार कौन है इससे सरोकार नहीं रहता। अपनी सीमाओं के बावजूद प्रयास करता हूँ कि अपना कार्य ईमानदारी, निष्पक्षता व निष्ठा से करूँ, कोई व्यक्तिगत आग्रह न रहे। सफल कितना हूँ यह पाठकगण तय करेंगे।
प्रतिक्रिया के लिए आभार।
@ राजभाषा हिंदी
जवाब देंहटाएंआपकी प्रतिक्रिया उत्साहवर्धक है। आभार।
@ हास्यफुहार जी,
जवाब देंहटाएंआपको समीक्षा पसन्द आई। धन्यवाद।
@ जुगल किशोर जी,
जवाब देंहटाएं@ प्रेम सरोवर जी,
@ रीता जी,
@ वाणी गीत जी,
आपको समीक्षा पसन्द आई। धन्यवाद।
@ करण जी,
जवाब देंहटाएंआपकी प्रतिक्रिया उत्साहवर्धक रहती है। आभार।
@ ज़ाकिर अली ‘रजनीश’ जी,
जवाब देंहटाएंआपको समीक्षा पसन्द आई। धन्यवाद।