सामाजिक मनोविज्ञान के कुशल चितेरे प्रेमचन्दहरीश प्रकाश गुप्त |
'कोई घटना तब तक कहानी नहीं होती जब तक कि वह किसी मनोवैज्ञानिक सत्य को व्यक्त न करे।' इस कथन से उनकी कहानियों में आए विकास को समझा जा सकता है। 'कफन' कहानी उनके इस वैचारिक विकास का उत्कर्ष है। प्रेमचन्द हिन्दी साहित्य में युग प्रवर्तक रचनाकार के रूप में जाने जाते हैं। वे युगदृष्टा हैं। वे अपने समय की राजनीतिक, सामाजिक व सांस्कृतिक अस्थिरता से भलीभाँति परिचित थे। उनके समय स्वतंत्रता संग्राम के कारण देश की राजनीति में सत्ता व जनता के मध्य टकराव जारी था तो समाज में सामंती-महाजनी सभ्यता अपने चरम पर थी। शोषण और शोषित के बीच खाई बढ़ती जा रही थी। गरीब त्रासदपूर्ण जीवन जीने के लिए विवश था। प्रेमचन्द ने मध्य और निर्बल वर्ग की नब्ज पर हाथ रखा और उनकी समस्याओं, जैसे विधवा विवाह, अनमेल विवाह, वेश्यावृत्ति, आर्थिक विषमता, पूँजीवादी शोषण, महाजनी, किसानों की समस्या तथा मद्यपान आदि को अपनी कहानी का कथानक बनाया। तत्कालीन परिस्थितियों में शायद ही कोई ऐसा विषय छूटा हो जिसे प्रेमचन्द ने अपनी रचनाओं में जीवंत न किया हो। उनकी कहानियाँ मनोरंजन के उद्देश्य से ऊपर उठकर सम्पूर्ण समाज के यथार्थ को उजागर करती हुई सामने आईं। उनकी कहानियों में आदर्श और यथार्थ का अन्तर्द्वन्द्व है। प्रेमचन्द पहले रचनाकार हैं जिन्होंने सामाजिक जीवन के विभिन्न चरित्रों को मनोवैज्ञानिक तरीके से चित्रित किया और उनके पात्र मानवीय संवेदना की प्रतिमूर्ति लगने लगे। उनकी कहानियाँ मनोरंजन के उद्देश्य से ऊपर उठकर सम्पूर्ण समाज के यथार्थ को उजागर करती हुई सामने आईं। उनकी कहानियों में आदर्श और यथार्थ का अन्तर्द्वन्द्व है। अपनी प्रारम्भिक कहानियों में वे आदर्शों से नियंत्रित होने वाले रचनाकार लगते हैं। लेकिन बाद की कहानियों में उन्होंने यथार्थ का चित्रण करते हुए, हालांकि ये कहानियाँ समस्यामूलक रही हैं, आदर्श समाधान प्रस्तुत करना बन्द कर दिया। यह उनकी रचनाओं में रिक्ति नहीं बनी बल्कि ये वैचारिक मंथन के रूप में पाठकों को झकझोरने लगीं और ये रचनाएं अपने उत्कर्ष को प्राप्त करती अधिक प्रभावशाली साबित हुईं। ‘पूस की रात’ और 'कफन' जैसी कहानियों में उनकी बदली हुई वैचारिक पृष्ठभूमि को स्पष्ट देखा जा सकता है। उनकी बाद की कहानियाँ घटना प्रधान न होकर चरित्र प्रधान हैं जिनमें पात्रों की मनोवृत्तियों का वास्तविक चित्रण नितांत सहज रूप में देखने को मिलता है। उनका स्वयं कथन है - 'कोई घटना तब तक कहानी नहीं होती जब तक कि वह किसी मनोवैज्ञानिक सत्य को व्यक्त न करे।' इस कथन से उनकी कहानियों में आए विकास को समझा जा सकता है। 'कफन' कहानी उनके इस वैचारिक विकास का उत्कर्ष है। इसमें ग्रामीण कृषक की दुरावस्था का चित्रण है। किसानों की आर्थिक विपन्नता जमीदारों - साहूकारों के शोषण का नतीजा नहीं है बल्कि यह आर्थिक विषमता मूलक समाज की संरचना है। यह कहानी उस सामाजिक व्यवस्था पर करारा व्यंग्य करती है जो मनुष्य के जिन्दा रहने पर उसका शोषण होने देती है और मर जाने पर खोखली नैतिकता का जामा पहन उसके अंतिम संस्कार के लिए उपाय करती है, सहयोग करती है। मुख्य पात्र जो कि निकम्मे हैं, कोई काम-धाम नहीं करते। उनकी सोच है कि जो निकम्मे नहीं है उनकी भी स्थिति कमोवेश यही है, बेहतर नहीं। वे इस फलसफे पर जीवन यापन करते हैं कि जी-तोड़ मेहनत करके मरना कहाँ की बुद्धिमानी है। यह कहानी कर्मफल के सिध्दांतों पर प्रश्न उठाती है। भौतिकतावादी जीवन के चरम पर आज मानवीय संवेदना आत्मकेन्द्रित होकर शून्य होती जा रही है। प्रेमचन्द ने इसे आज से पचहत्तर वर्ष पूर्व ही चित्रित कर दिया था। यह प्रेमचन्द की सर्वाधिक त्रासदपूर्ण कहानी है जो जीवन की व्यर्थता और निस्सारता को व्यंजित करती है। एक व्यक्ति जिसका जीवन पशु से भी बदतर है उसके लिए जीवन का सबसे बड़ा सच भूख है। और भूख का मनोविज्ञान उसे कितना संवेदना शून्य बना सकता है, वह इस कहानी के माध्यम से अभिव्यक्त है। राजेन्द्र यादव इसे बुधिया के कफन की कहानी नहीं बल्कि मृत नैतिकबोध के कफन की कहानी मानते हैं।
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शनिवार, 31 जुलाई 2010
सामाजिक मनोविज्ञान के कुशल चितेरे - प्रेमचन्द -हरीश प्रकाश गुप्त
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उनकी कहानियाँ मनोरंजन के उद्देश्य से ऊपर उठकर सम्पूर्ण समाज के यथार्थ को उजागर करती हुई सामने आईं। उनकी कहानियों में आदर्श और यथार्थ का अन्तर्द्वन्द्व है।
जवाब देंहटाएंकथा सम्राट को नमन!
बहुत अच्छा लगा यह लेख ।
जवाब देंहटाएंआज इस ब्लॉग पर सारे लेख उत्कृष्ट रहे ....मुंशी प्रेमचंद को और उनके साहित्य को जानना एक सुखकर अनुभूति रही....मुंशी जी मेरे प्रिय लेखक रहे हैं ...आप सभी का आभार जिन्होंने आज यहाँ उनकी स्तुति की ...
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंइसे 01.08.10 की चर्चा मंच में शामिल किया गया है।
http://charchamanch.blogspot.com/
Premchand kee yah kahani maine haalhi me dobara padhi. Unki anginat kahaniya is baat kee gawah hain,ki,ve ek behad kushal manovaidnyanik the.
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंराजभाषा हिन्दी के प्रचार-प्रसार में आपका योगदान सराहनीय है।
Premchand ki kahaniyon men ayi swabhavik manasikata ko achchh tarah se vishleshit kiya gaya hai.
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी प्रस्तुति. धन्यवाद.
जवाब देंहटाएंप्रेम्चन्द जी के बारे में बहुत जानकारी मिली, आफे ब्लोग के माध्यम से.धन्यवाद.
जवाब देंहटाएंएक अच्छा पोस्ट. आभार.
जवाब देंहटाएं@ manoj ji,
जवाब देंहटाएंaapko post acchi lagi dhanyvad.
@ sharad kokas ji,
जवाब देंहटाएंprtikriya ke le aabhar.
@ sangeeta ji,
जवाब देंहटाएंpremchand se aapka hi nahi hum sabaka bhi utna hi lagav hai.
prtikriya ke liye aabhar.
@ manoj ji,
जवाब देंहटाएंcharchamanch par samman dene ke liye aabhar.
@ kshama ji,
जवाब देंहटाएं@ haasya phuhar ji,
@ rajbhasha hindi,
prtikriya ke liye aabhar.
@ aadarniya rai ji,
जवाब देंहटाएंaapke shabd hamare liye protsahan hai.
aabhar.
@ shamim ji,
जवाब देंहटाएं@ mohasin ji,
@ boojho to jane,
aapko post acchi lagi dhanyvad.