शनिवार, 24 जुलाई 2010

धारासार धरा पर

(१.) अंबुद, अंबुधर, अब्र, अभ्र, घटा, घन, घनश्याम, जलद, जलधर, जीमूत, तोयद, तोयद्गर, धाराधर, नीरद, नीरधर, पयोद, पयोधर, पर्जन्य, बादल, बदरी, बदली, बलाहक, मेघ, वारिद, वारिधर।

(२.) बादलों का समूह : कादंबिनी, घटाटोप, घनमाला, मेघमाला, मेघावली।

मानसून आ गया है। आसमान में बादल उमड़-घुमड़ कर छाए है। देश के भिन्न-भिन्न भागों में कम-बेसी, वर्षा हो रही है। इस देश का दुर्भाग्य है कि जब तक नहीं होती है वर्षा, हम उसके लिए तरसते हैं, और जब मेघ महाराज बरसते हैं तो सारी सीमाएं लांघ कर कई स्थानों पर ऐसा प्रकोप फैलाते हैं कि त्राहि-त्राहि मच जाती है। अभी उत्तरांचल में क्या हुआ, उसका डाक्टर रूपचंद शास्त्री “मयंक” ने कुछ ही दिनों पहले अपने ब्लॉग पर, सचित्र नज़ारा पेश किया था। (लिंक यहां है)।

बादलों को देख कर कवियों ने कई प्रकार से कल्पनाएं की हैं। इसके रौद्र रूप पर भी लिखा गया है। यहां वह सब बताना मेरा उद्देश्य नहीं है। हां, आज जब फ़ुरसत में हूं, और अपने ब्लॉग के लिए फ़ुरसत में ... स्तम्भ के लिए कुछ लिखना है, तो खिड़की के बाहर झांकते हुए इन बादलों का फैलाव देख कर एवं वर्षा की मोटी-मोटी बूंदों के प्रहार को महसूस कर उस वनगामी के मन के विचार के संदर्भ में गोस्वामी जी की ये पंक्तियां सहसा याद आ गई।

”घन-घमंड नभ गरजत घोरा।

प्रिया हीन डरपति मन मोरा।“

और वे यह भी कहते हैं कि

“दामिनी दमक रही घन माहीं।

खल के प्रीत जथा थिर नाहीं।“

इन मेघावली को देख मुझे भी लगता है कि ये मद में चूर प्राणी का प्रतीक हैं। जो अपने बल, धन या वैभव के नशे में चूर इतराते फिर रहें हैं। गोस्वामी जी के शब्दों मे कहें तो ये दुष्टों के प्रेम की तरह ही हैं, जो ज़रा सा भी स्थिर नहीं होता। जब चंडीगढ में था तो कई बार देखा-सुना कि धाराधर फट पड़े हैं और कुल्लू में भयंकर संत्रास फैल गल गया है। इन घटाटोप द्वारा इस तरह से आफ़त मचाने पर अनायास यह उक्ति मन में आई कि “ओ जलधर! डूब नहीं जाते क्यों तुम भरकर पानी चुल्लू में।”

कुछ इन्हीं भावनाओं को समेटे पेश है एक कविता।

 

धारासार धरा पर


IMG_0168

मनोज कुमार

 

विरहाकुल वसुंधरा देखी,

निर्मोही आकाश।

Cloudsइस    छोर  से उस  छोर  तक,

मेघों   का    श्यामल   फैलाव।

पवन  के  प्रबल    वेग  से  उड़े,

धरती  को  सरस  करती छांव।

पल में घन उमड़-घुमड़ आते,

ज्यों बरसाती घास।

 

आफ़त-1

वारिद-विद्युत   विभूषित  व्योम,

मोह – जनित     भव - दारुण।

प्रीति   रस   से  भरा   घनमाल,

रिमिर-झिमिर वर्षा, मृदु गर्जन।

मेघगीत    का   हर्षित   स्वर है

जन-जन में विश्‍वास।

flood

 

अंधकार    से    भरे   हुए   तुम,

अहंकार     मदमाते     प्रतिपल।

पदका, धन का, वैभव  बल का।

तुम्हें    चाहिए   दृढ़तर   संबल।

तेरी      धारासार      धरा    पर

लिखे अकल्पित नाश।

 

कभी  तो  तरसाते  बूंद-बूंद  को,

और  कभी  फट पड़ते कुल्लू में।

ओ जलधर! डूब  नहीं जाते क्यों

तुम   भरकर   पानी  चुल्लू   में।

अबकी  बार  सावन में विपत्तियाँ

और घोर संत्रास।

*** ***

47 टिप्‍पणियां:

  1. चित्रों ने बादलों की तरह ही शब्दाकाश को ढक लिया है। उन्हे हटाया जाये। सुन्दर कविता।

    जवाब देंहटाएं
  2. बहुत ही सुन्दर रचना है ... तदोपरी अत्यंत मनभावन प्रस्तुति ...

    जवाब देंहटाएं
  3. बहुत सुन्दर रचना है...और चित्र भी लग रहा है जैसे की अभि बरस पड़ेंगे....पर कुछ पंक्तियाँ चित्रों से ढक गयी हैं....

    जवाब देंहटाएं
  4. barsaat ka ye badal deewana hai kya jaane
    kis raah se bachna hai kis chhat ko bhigona hai

    barbas hi jagjeet ji ki gayi ye panktiyaan yaad aa gayeen ...


    badal ke vyavhar ko lekar kahi gayi aap ki yah kavita bahut achhi hai ..khas kar usko chullu me doobne ke liye kehna..zabardast prayog hai ... :)

    जवाब देंहटाएं
  5. @प्रवीण पाण्डेय जी
    @ संगीता स्वरुप ( गीत ) जी
    चित्रों की गड़बड़ी बताने के लिए आभार। उसे ठीक कर दिया हूं। असुविधा के लिए खेद है।
    आप्ने कविता को पसंद किया, आपका आभार।

    जवाब देंहटाएं
  6. @ Indranil Bhattacharjee ........."सैल"
    आपको कविता और उसकी प्रस्तुति मनभावन लगी, मेरी मेहनत सफल हुई।

    जवाब देंहटाएं
  7. @ स्वप्निल कुमार 'आतिश' जी
    आपका यहां आना और कविता को पसंद करना खास कर चुल्लू में डूब जाने वाले प्रयोग को लेकर हमें कफी प्रोत्साहित कर गया। आपका शुक्रिया।

    जवाब देंहटाएं
  8. मनोज जी ,
    अब कविता के ऊपर से बादल छंट गए हैं मंद बयार चल रही है..खूबसूरत कविता

    जवाब देंहटाएं
  9. डूब नहीं जाते क्यों

    तुम भरकर पानी चुल्लू में


    अरे अरे इन्हें चुल्लू भर पानी में डुबोने की बजाये फरीदाबाद में डूबा दो.

    कुछ हम गर्मी से त्रसित जन इसका आनंद ले.

    बहुत खूबसुर शब्द व्यंजना.

    जवाब देंहटाएं
  10. बादलों की बीच बहती मोहक रचना!!

    जवाब देंहटाएं
  11. मनोज जी,
    आपकी इस कविता की लाईव कमेंटरी तो आपसे सुन ही चुका हूँ … लेकिन इस कविता में जिस बरसात की बात आपने की है वैसा तो बताया ही नहीं... अच्छा हुआ आपने उसे चुल्लू भर पानी में डूबने का श्राप दे दिया..सच ही बयान की है विडम्बना… कहीं लोग बरसात को तरसते हैं और कहाँ कुल्लू जैसी घटना…
    पहले तो आपकी ग़ज़ल ने मदहोश कर दिया था और अब इस कविता ने सराबोर कर दिया... पहले भाग में हर्ष से और दूसरे भाग में विभीषिका से..
    आभार!

    जवाब देंहटाएं
  12. बहुत सुन्दर रचना है...और चित्र भी लग रहा है जैसे की अभि बरस पड़ेंगे....पर कुछ पंक्तियाँ चित्रों से ढक गयी हैं...

    जवाब देंहटाएं
  13. tap tap barsa pani.... saghan meghon ka shabdik samuh , bhawnaaon ki bijli, kamaal hai

    जवाब देंहटाएं
  14. बहुत सुंदर रचना ओर अति सुंदर चित्र... बल्कि बोलते चित्र कहे तो गलत नही होगा, धन्यवाद

    जवाब देंहटाएं
  15. ई त आप कमाल कर दिए... एतना पर्यायवाची सब्द दे दिए बादल और मेघ के लिए कि अगर मैट्रिक में पढ रहे होते त पाण्च नम्बर पक्का था...खैर मजाक का बात जाने दीजिए... बरसात का एतना सुंदर बर्नन कि एक तरफ त सुंदरता देखा दिए अऊर दोसरा तरफ ई हो बता दिए कि बर्सा खाली खुसिए नहीं लाता है बरबादिओ लाता है..
    एक एक सब्द अनमोल है मनोज बाबू!! ऐसही नहीं कायल हैं आपके हम!

    जवाब देंहटाएं
  16. बहुत अच्छी प्रस्तुति।
    राजभाषा हिन्दी के प्रचार-प्रसार में आपका योगदान सराहनीय है।

    जवाब देंहटाएं
  17. यह कविता सिर्फ बादल-सरोवर-नदी-सागर, फूल-पत्ते-वृक्ष आसमान का लुभावन संसार ही नहीं, वरन जीवन की हमारी बहुत सी जानी पहचानी, अति साधारण चीजों का संसार भी है। यह कविता उदात्ता को ही नहीं साधारण को भी ग्रहण करती दिखती है।

    जवाब देंहटाएं
  18. वाह!
    एनीमेशन चित्रों का गजब इस्तेमाल है। बड़े वाले बादल को देखकर हम तो अपना कम्प्यूटर भी हटाने लगे इधर-उधर।

    बादल बेचारे के ऊपर काहे बरस रहे हैं। उसको चुल्लू भर पानी में डूबने को कह रहे हैं बेचारे का विश्वास हिल जायेगा।

    अच्छा लगा इसे बांचकर और देखकर।

    जवाब देंहटाएं
  19. खूबसूरत रचना में ,शानदार चित्रों नें अनगिनत चांद लगा दिये ।

    जवाब देंहटाएं
  20. बहुत सुन्दर रचना ...
    बादलों की खूबसूरती तो बयान ही नहीं की जा रही ...!

    जवाब देंहटाएं
  21. इतनी अच्छी प्रस्तुति कि मेरे पास शब्द नहीं हैं तारीफ़ के। चित्रों ने तो चार चांद लगा दिए हैं इस प्रस्तुति में।

    जवाब देंहटाएं
  22. वाह सर!
    अद्भुत!!
    मनभावन प्रस्तुति।

    जवाब देंहटाएं
  23. बहुत ही सुन्दर रचना है! अत्यंत मनभावन प्रस्तुति ..!!

    जवाब देंहटाएं
  24. @ अनामिका की सदायें .जी
    बादल अगक हमा कहना मानते ज़रूर उन्हें कहता उस ओर भी हो आएं। पर बादल तो बादल हैं।
    आपका प्रोत्साहन हमें मनोबल प्रदान करता है।

    जवाब देंहटाएं
  25. @ Udan Tashtari जी
    आपकी उपस्थिति से हम धन्य हुए।

    जवाब देंहटाएं
  26. @ सम्वेदना के स्वर जी
    आपकी टिप्पणि उत्साहवर्धन कर गईं।

    जवाब देंहटाएं
  27. @ महफूज़ अली जी
    आपको रचना पसंद आई, हमारा मनोबल बढा।
    त्रुटि दूर कर दी गई।

    जवाब देंहटाएं
  28. @ रश्मि प्रभा...जी
    आप जैसी कवयित्री का आशिर्वाद इस रचना को प्राप्त हुआ। हमारा सौभाग्य है।

    जवाब देंहटाएं
  29. @ राज भाटिय़ा जी
    आपके शब्द हमारी प्रेरणा हैं।

    जवाब देंहटाएं
  30. @ चला बिहारी ब्लॉगर बनने जी
    जब तक आपसे बतिया नहीं लेते हैं लगता ही नहीं कि सब पूरा हुआ है।

    जवाब देंहटाएं
  31. @ अनूप शुक्ल जी
    आपका मूल्यांकन, हमारा मार्गदर्शन है।

    जवाब देंहटाएं
  32. @ अजय कुमार
    @ राजभाषा हिंदी
    @ हास्यफुहार
    @ मेरे भाव
    @ वाणी गीत
    @ जुगल किशोर
    @ प्रेम सरोवर
    @ रीता
    आपका यहां आना और कविता को पसंद करना हमें कफी प्रोत्साहित कर गया। आपका शुक्रिया।

    जवाब देंहटाएं
  33. बादलों की खूबसूरती तो बयान ही नहीं की जा रही ...!

    जवाब देंहटाएं
  34. "माफ़ी"--बहुत दिनों से आपकी पोस्ट न पढ पाने के लिए ...

    जवाब देंहटाएं
  35. बेहतरीन पोस्ट .......आनंद आ गया मनोज जी ...। बहुत ही सुंदर रचना और चित्रों ने तो कमाल ही कर दिया है

    जवाब देंहटाएं
  36. सुंदर रचना को खूबसूरत चित्रों से सजाकर आपने इस पोस्ट को लाज़वाब बना दिया है. आँखें हैं कि हटती नहीं, शब्द हैं कि दिल में समा जाना चाहते हैं.
    ..बधाई.

    जवाब देंहटाएं
  37. बहुत ही सुन्दर रचना और सुंदर चित्र...

    जवाब देंहटाएं
  38. मनोज जी, कविता वाकई में बहुत बढिया लगी...चित्रों नें पोस्ट में और भी चार चाँद लगा डाले..

    जवाब देंहटाएं
  39. पढ़ कर ऐसा लगा कि घन-आनंद बरसे.... लेकिन विभीषिका की कल्पना कर मुँह से निकल पड़ा ओह माय गाड !

    जवाब देंहटाएं
  40. @ संजय भास्कर जी
    देर से आए तो क्या हुआ, आपने याद तो रखा।
    आपने रचना पसंद की आपका आभार।

    जवाब देंहटाएं
  41. @ anjana जी
    आप पहली बार हमारे ब्लॉग पर आए। आपका स्वागत।
    रचना अपने पसंद की, धन्यवाद!

    जवाब देंहटाएं
  42. @ पं.डी.के.शर्मा"वत्स" जी
    प्रेरक और उत्साह वर्धक बातों के लिए आपका आभार।

    जवाब देंहटाएं
  43. @ अजय कुमार झा जी
    बहुत दिनों के बाद आप हमारे ब्लॉग पर आए, शायद रचना का आकर्षण ही था। आपका आना हमारा मनोबल बढा गया!

    जवाब देंहटाएं
  44. @ बेचैन आत्मा जी
    आपकी प्रेरक टिप्पणी से उत्साह वर्धन हुआ। आपका आभार।

    जवाब देंहटाएं
  45. चुल्लू भर पानी में बादलो को डूबने का सन्देश देकर उन्हें लज्जित करने का अच्छा प्रयास है।

    जवाब देंहटाएं

आपका मूल्यांकन – हमारा पथ-प्रदर्शक होंगा।