बुधवार, 28 जुलाई 2010

देसिल बयना - 40 : राजा राज को बेहाल रानी काज को बेहाल

देसिल बयना – 40

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राजा राज को बेहाल रानी काज को बेहाल

मेरा फोटोकरण समस्तीपुरी

पछिला हफ्ता तो हम एगो अजगुते (आश्चर्य) देखे। एक इडिअट बॉक्स में तीन इडिअट आ रहा था। अरे अमीर खान वाला फिलिम थ्री इडिअट्स। फिलिम जब ख़तम होए को आया तो उ का नाम रहा.... हाँ याद आया, रस्तोगी जी और फरहान मियाँ कुक्कुर लेखा सूंघते-सूंघते रैंचो के पास पहुँच गए।  उके साथ हिरोईनी भी थी।

खैर सब मिले मगर खैर-मकदम का होगा... लात बाजिये शुरू हो गया। सब मिल के लगा रैंचो को लोंघरा-लोंघरा के मारे। ससुर कामो वैसने किया था। कौनो यार-दोस्त को बताये बिना चुपे-चाप तड़ीपार हो गया था। उ सब ई को खोजे में रात दिन तड़पता रहा। इत्ते दिन पर मिला था सो सब प्यार-दुलार निकाल दिया।

बाद में पता चला कि उ रणछोड़ दास चांचर उर्फ़ रैंचो नहीं है। अब हिरोइनिया का आँख चमक गया। कहिस बहुत बढ़िया। अब हमरे नाम केआगे चांचर-पांचर तो नहीं लगेगा... ! फेर उ को पता लगा कि उ का नाम तो फुलसुक वांगडू है। अब ले बलैय्या के उ लगी फिर से कपार-माथा धूने। हाय नारायण ! हमरा नाम वांगडू हो जाएगा.... ! इहे बात पर हमरे मुँह से निकल गया, "ये लो... राजा राज को बेहाल रानी काज को बेहाल !"

अब ई सुन के भौजी जो ताली पीट के हँसे लगी कि भैय्यो को रहा नहीं गया।  एक तो फिलिम हंसाते-हंसाते हाल खराब करा था... ई फकरा पर तो जो हंसी बाजरा कि भौजी का भाई गोपीचन बेचारा गिरते-पड़ते भगा बाथरूम। उ के बाद सनीमा तो दुइये मिनिट में ख़तम हो गया मगर भौजी और गोपीचन हमरे पीछे पड़ गए। ई फकरा कहाँ से सीखे आप ? हम कहे, 'भकोल दास से।'

भकोल दास बेकल राजा के इस्टेट का मनेजरी करता था। इंदिरा गांधी के राज में जमींदारी गया... फिर बाँट-बखरा... ! एक तो भाई-देयाद उकपाती (शैतान) ऊपर से रैय्यत-बटाईदार भी क़ानून बूकने लगा था।  बेकल राजा पर महीना के दिन सेजादे मोकदमे लदा गया।  बेचारे दिन रात कनूनिये दाव-पेंच सोझराने में लगे रहते थे।  परबत्ता वाला बाइस बीघा के पलौट पर कुजरा-कवारी सब कब्ज़ा कर लिया था। सरकार का हुकुम था कि  जौन को बसे का जमीन नहीं हो उ जहां पड़ती जमीन पाए घर बना ले।

J0387591 अब बेकल राजा बेचारे जमीं छोडाए कैसे ? अब यही पलौट पर बेकल राजा का राज था। ई गया हाथ से तो हो गया ठन-ठन गोपाल। राजा जीएड़ी-चोटी का पसीना एक किये हुए थे। भकोल दास भी वकील-मोहरीर के पाछे ई कोट से उ कोट चक्कर घिरनी की तरह नाचते रहता था।

हाई कोट कलकत्ता का मुखर्जी वकील आया। उ सब कागज़-पत्तर दुरुस्त कर के नेट दस बजे बोलाया था। कहा था एक्के जिरह में केस को हवा-हवाई कर देंगे। मुखर्जी वकील का बात था कौनो खेल मियाँ के टोपी नहीं। भकोल दास और बेकल राजा रात भर लालटेन जला के कागज-पत्तर जोगाते रहे। एक झपकी मारे और फिर उठ कर तैयार। भोरे सत बजिया पसिंजर भी पकड़ना था।

भकोल दास को कहचरिया बस्ता थमा के गए बेचारे गोसाईं घर में गोर लगने। आखिर पुश्तैनी ज़मीन का मामला था।  कुल देवता का आशीर्वाद तो जरुरिये था न।  इधर उनकी लुगाई भी कम परेशान नहीं थी। बेचारी हरबरा के दू गो बाल्टी ले के निकली, "एजी ! आप दरभंगा चले जाइएगा तो हम दिन भर बिना पानीये के रह जायेंगे। पहिले कुआं पर से पानी भर के तो ला दीजिये।" बेचारे राजा जी कुलदेवता से पहिले गिरिह लछमी को सिर नवाए और बाल्टी ले के धर-फार भागे कुआं पर। भकोल दास द्वार पर खड़ा सब तमाशा देख रहा था।

बूंद-बूंद जल की क़ीमत राजा जी पानी रख के गोसाईं घर में जाने लगे कि गिरिह लछमी का फिर आदेश हुआ, "सुनिए ! पानी लाइए दिए हैं तो बर्तनों साफ़ कर दीजिये न... ! हम राते हाथ में मेहदी लगाए हैं !" बेकल राजा बोले, "अरे सिरीमती जी ! गाडी छूट जायेगी तो परबत्ता वाला राज गया हाथ से... !" मगर रानी जी कौनो मुरुख-चपाठ नहीं थी। झट से अपना दाहिना कलाई उल्टा कर बेकल जी के सामने कर दी, "देखिये ! अभी तो पांचो नहीं बजा है। पसिंजर तो सात बजे है।" बेचारे राजा जी गमछा और कुरता उतार कर अलना पर रक्खे और धोती समेट कर बर्तन रगड़े लगे।

झट-पट में बर्तन धोये और जैसे ही हाथ में गमछा लेते हैं कि सिरीमतीजी फिर से बोली, "सब पानी तो बरतने में लगा दिए अब दिन भर कैसे काम चलेगा ? दू बाल्टी और हमरे नहाए खातिर भी ला दीजिये न... !" अब तो प्राण जाहि पर बचन न जाहि.... ! बेचारे बाल्टी उठा के फिर चले कुआं पर। भकोल दास आँख  नाचा कर पूछा, "का ?" बेचारे का जवाब दें ? बोले, "बस हो गया। दू बाल्टी पानी दे देते हैं फिर चलते हैं।

अन्दर पानी रख के बेचारे जैसे ही कुरता उठाए कि महारानी जी कठौती में आंटा ला के सामने रख दी, "आप दरभंगा जा रहे हैं और आज जिबछी-माय भी नहीं आयेगी। फिर बाल-बच्चा खायेगा का ? ई आंटा तो कम से कम गूँथ के जाइए।" दूसरा का बात होता तो काटियो देते...राज रहे कि नहीं रहे... लौट के तो यही घर में आना है। बेचारे मन-मसोस कर आंटा में पानी उड़ेले लगे। इधर भकोल दास बाहर से आवाज लगाया, "मालिक ! जल्दी चलिए। गाड़ी का टेम हो जाएगा।" बेचारे अन्दर से बोले, "बस! यह अन्तिमे काम है।   चलते हैं।"

बेकल राजा जब तक आंटा गूंथे गिरिह लछमी जी नहा-सोना के रेडी हो गयी थी। मुँह में मगही पान का गिलौरी रखी और टेप-रेकट पर गाना चालु कर दिया, "एगो चुम्मा ले ला राजा जी बन जाई जतरा.... !" राजा जी एगो लम्बा सांस ले के उठे और हाथ धो कर गमछा में पोछ के कुरता पहिने। फिर गोसाईं घर में जा के सिर नवाये। फिर सिरीमती जी के कमरे में झाँक कर बोले, "चूल्हा भी पोछ दिए और तरकारी भी काट दिए। अब हम चलते हैं।" और जैसे खुट्टा तोड़ के बछरा भागता है वैसे ही बेचारे बेकल राजा भागे आँगन से। राजा जी को देख कर भकोल दासको भी जी में जी आया। दोनों आदमी जय गणेश-जय गणेश कर के कदम बढाए।

दरवाजे से उतर कर सड़क पर आये ही थे कि बहरिया कोठरी के खिड़की से मूरी निकाल कर सिरीमती जी चीलाई, "एजी ! सुनिए ! सुनिए !! एगो काम तो बचिए गया। जल्दी आईये। वरना लेट हो जाएगा।" बेकल राजा एक बेर घर के तरफ देखें एक बेर भकोल दास को। भकोल दास भी समझ गया। बोला, "जाइए का कीजियेगा... ? 'राजा राज को बेहाल रानी काज को बेहाल' आप को परबत्ता का इस्टेट बचाए का पड़ा हुआ है और मलकिनी को दीन भर काम कौन करेगा ई का चिंता लगा है।" जाइए, देखिये झट-पट कौन काम पड़ा हुआ है !

बेचारे राजा जी से तभी तो ई कहावत पर भी हंसा नहीं जा सका। अपना जैसे मुँह लटका के पिछले पैर पलट गए। मगर एक दिन भकोल दास मिसरी लाल कक्का के अंगना में ई किस्सा कह रहा था तो हम भी वही थे। उ जैसे ही अंतिम मे खिखिया के कहा, "राजा राज को बेहाल ! रानी काज को बेहाल !!" की हम तो हँसते-हँसते दोबर हो गए। काकी तो लोटा-लोटा के हंसी। मिसरी कक्का भी हँसते-हँसते काकी को ताना मारे, "आज से आप भी काज कम करवाइए हम से नहीं तो..... !"

जब सब हंस ठठा के शांत हुआ तब हम भकोल दास से पूछे, "दास जी ! आपको ई अलबत्त बात कहाँ से सूझा ?" दास जी बोले, "धुर महाराज ! अरे और का कहते ? जानते हैं, बेकल राजा कितना परेशान थे परबत्ता पलौट के लिए... और महारानी जी को अपना गिरिह-कारज ही सबसे जरुरी लगता था।  तो ठीके न कहे न ?

मिस्री कक्का भी भकोल दास के हाँ में हाँ मिला के बोले, "हाँ ठीक नहीं तो क्या ? एक किसी जरूरी बात के लिए परेशान है और दूसरा किसी बेकार बात के लिए तो का कहेंगे ? सहीये तो कहे हैं, "राजा राजको बेहाल ! रानी काज को बेहाल !!" कहावत का मतलब बुझा के मिसरी कक्का भी जो लय में ई दुहराए कि हंसी का बाँध फिर से टूट गया।

PH03425I तो वही हाल उ हिरोइनिया कर रही थी। सब को सब बात का चिंता लगा है.... कि भई रैंचो कौन था... ई वांगडू को रैंचो काहे बनना पड़ा... उको अमीरका के कंपनी से डील करना था... अब आगे का होगा... सबई में लगा था और हिरोईनी को इहे का चिंता खाए जा रहा था कि उ का सरनेम का होगा... ?

हूँ ! पूरा किस्सा सुन के भौजियो के मुँह से निकल पड़ा, "मार बढ़नी .... सच्चे तो, राजा राज को बेहाल ! रानी काज को बेहाल !!" भौजी कहावत का अर्थ समझ कर भैय्या के तरफ घूम के बोली, "आप कुच्छो समझे कि नहीं ? हम भी काज से बहुते तबाह रहते हैं ?" भौजी का बात ख़तम होए से पहिलही हम टपक पड़े, "लेकिन भौजी ! ई कहावत को कौनो-कौनो जगह ऐसे भी बोलते हैं, "राजा राज को बेहाल ! रानीचुम्मा को बेहाल !!" हा... हा... हा... हा... ! एक बार फिर से सब ठहक्का मर के हंसने लगा। खाली गोपिचंमा बेचारा मूरी झुकाए मुस्का रहा था।

20 टिप्‍पणियां:

  1. ए करन बाबू!! आज हम कुच्छो नहीं बकेंगे..बस आपका देसिल बयना के जबाब में मगध का देसिल बयना साट देते हैं, एकदम से ओही मतलबवा त नहिंए है, बाकी अऊसने है, आनो के आन के चिंता अऊर कानो के भतार के चिंता. बस !

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  2. आज का देसिल बयना अपनी सरसता से हमें सराबोर करता है। कहानी सरस है, प्रवाहमय और रोचक। कथा में मनोरंजन तो सदा की तरह आज भी है ही, एक परिवेश विशेष की स्थिति का भी सृजन होता है।
    आपको साधुवाद।

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  3. बहुत सटीक कथा के साथ परोसा है देसिल बयना ...सुन्दर पोस्ट

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  4. Namaskar karan ji...kahawat to ap acha kah gaye..lakn u ka hai na ki is bar ka desil bayna me humko kucho naya ni laga...thik thak hai otna hasi b ni aaya...
    Is desli bayna me humko bas apke kahawat ka matlab samjh me aa gaya..jaha tak manoranjan ka bat hai thoda aur majedar hota to maja aa jata...
    Waise e bat b to hai na ki Sachin Tendulkar ek match acha na b khele to ka hoga ...rahega to wo Sachin Tendulkar bole to MASTER BLASTER he na...
    Agle desil bayna ka intzar rahega...dhanyabad...

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  5. बहुत अच्छी प्रस्तुति।
    राजभाषा हिन्दी के प्रचार-प्रसार में आपका योगदान सराहनीय है।

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  6. aapka desiyal bayna ham jab -jab padhte hain to haste-haste lot -pot ho jaate hain.aanand aagaya padh kar.
    poonam

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  7. @ चला बिहारी,
    सलिल जी,
    पहिले तो आप हम को डराइये दिए मगर बाद में ऐसन मगही पान खिलाये कि मन परसन्न हो गया. वैसे कल्हे जब से डिसिल बयना लिखे तबहि से इंतिजार कर रहे थे कि अब आप टिपियाइएगा... मगर आप कुच्छो कहते तो हमरा और हौसलाफजाई होता! धबाद नहीं देंगे.... !!!

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  8. @ बूझो तो जाने....
    देखे... ! देसिल बयना आपको इतना दिन के बादो खीच लाया न... !! अब हमेशा आइयेगा.... !!! इहाँ रोज नया मिटिरियल छपता है !!!! समझे... ? नहीं समझे तो धन्यवाद !!!!!!

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  9. @ मनोज कुमार,
    उत्साह बढ़ा रहे हैं कि सच्चो में ऐसा लगा ? देखिये आपके अशिर्बाद से देसिल बयना का चलिसमा लग गया न... !!

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  10. @ संगीता स्वरुप गीत,
    अम्मा,
    एतना कम काहे बोलती हैं ? ई का है... अरे कुच्छो समीच्छा उमीच्छा करिए... अरे मंच पर कबहु देसिल-बयना का भी चर्चा-उर्चा करिए ! जादे बोला गया हो तो छमा करियेगा ! लेकिन हमरा तरफ से धन्वाद जरूर लीजियेगा !!!

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  11. @ रचना,
    राम-राम !
    देखिये ! हई एतना दिन पर आप एबो किये तो... ! अब का करें ? आपका फूल मनोरंजन नहीं कर पाने का अफ़सोस तो है मगर आप जनबे करती है हर इनिंग में सचिन.... अरे बाप रे बाप... ! हम भी भासियाईये गए हैं. सचिन तो सचिन है........ नो कम्प्रिजन एट आल !!! लेकिन ब्लॉग पर आपका साप्ताहिक भिजित बड़ी निम्मन लगा. धनबाद तो लेते जाइए !!!

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  12. @ हास्य-फुहार,
    अरे वाह ! आप भी आ गयी ! देखिये हम आपके कने जा के रोज टिपिया आते हैं !!!! चलिए हिसाब बरोबर !!! जैसे उहाँ हम शाट में हिहियाते हैं वैसेही आप इहाँ शाट में टिपिया भी दी हैं. अब वैसाही शाट में धनबाद भी ले लीजिये !!!!

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  13. @ राजभाषा हिंदी,

    जय हो महरानी ! हम तो आपही के सेवा में लगे हैं ! अब ई मत कहियेगा कि हमरा सूरते बिगाड़ दिया !!! धनबाद !!!!

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  14. @ झरोखा,
    पूनम जी,
    आपको हंसी आयी कि खाली हमरा हौसला बढाने के लिए कह दी सो तो राम जाने मगर आपकी प्रतिक्रिया पढ़ कर हमको सच्चो में बहुत आनंद आ रहा है. लगता है मेहनत सफल हुआ..... !!! धन्यवाद दें का ?

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  15. राजा का राज नहीं रहा तो यह दुर्गति तो होनी ही थी ...
    कहावत बढ़िया से समझा दी ....!

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  16. सटीक कथा के साथ परोसा है देसिल बयना!

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