बुधवार, 21 जुलाई 2010

देसिल बयना - 39 : चूरा मुर-मुर... दही खट्टा.... !

देसिल बयना – 39

IMG_0076 चूरा मुर-मुर... दही खट्टा.... !


My Photoकरण समस्तीपुरी

पछिला महीना चमकी मौसी किरिया (कसम) देके बोलाई थी। कहिस कि रगेदन के ब्याह में परीच्छा का बहाना कर के नहीं आया। अभी तो गरमी तांतिल है, हफ्तो (सप्ताह) भर के लिए जरूर आना। ऊपर से नयकी कनिया बट-सावित्री पूजेगी। देवरे-ननद से पूजा-पावन चमनगर (सुहावना) लगता है न... ! झम्मनगंज से पहिल बार भार-डोर आएगा। उ सब भी तु ही को संभालना है।

ढोराई बाबू इहाँ से मौसी का तार-फोन सुन के माताराम को बताये। माताराम कहिस ठीके तो है, "घूम आओ एक बार। मगर जादे दिन ठहरना नहीं। कहीं आदरा बरसा तो धान का बिचरा गिराएंगे।"सांझे खादी-भंडार जा के मौसी और दुन्नु भौजी खातिर साड़ी-कपड़ा भी ले आयी। भोरे किरिन फूटे से पहिले देसुआ टीसन से पसिंजर गाड़ी पकर लिए।

बट-सावित्री में अभी दू-दिन था मगर मौसी के अंगना से लोक-गीत का लहर झल-फल सांझ में पूरा टोला हिला रहा था। दूरे से मौसा के बौधी फुआ के आवाज़ गूंज रही थी, "कनिया के नैहर से पुछारी आया आजो नहीं.... ! चोरबा झम्मनगंज वाला को लाजो नहीं... !!" तभिये हम अंगना में पहुंचे। भार-सन्देश के साथे हमें देख और लगे सब नयकी भौजी को ताना मारे।

PH02759J एक दिन पहिले झम्मनगंज से भौजी के भाई जोखू चेंगना खवास के साथ भार-डोर ले के आया। एंह...... कतरनी चूरा के बड़का चंगेरा.... दही के पातिल, मालभोग केला के दो-दो घौंद, लड्डू,बालूशाही और केहुनिया मिठाई.... , लंगरा और दशहरी आम का एगो-एगो चंगेरा और मजफ्फरपुर वाला शाही लिच्ची तो एगो पिलास्टिक के बोरिये में कोंचल था। ऊपर से आधा बोरा काला चनाभी।

उ रोज तो मौसी के आँगन में धमा-चौकरी मचा था। हमही काली थान से बड़का वर (बट वृक्ष) का डाल तोड़ के लाये थे। ई ठहा-ठही रौदा (धूप) में जर-जनानी सब चांदोबा टंगा के गीत गा रही थी।ऊपर से भौजी का भाई जोखुआ भौजी के माथा पर छाता ताने खड़ा था। उको बड़ा उछंदर (तंग) भी किये थे हम लोग। भौजी वर के डाली में काजर-सिंदूर कर के बैनिया (पंखा) डोलाए लगी तो हमरे हंसी छूट गया।

बट-सावित्री तो पूजा गया मगर जोखू लाल को छुटकारा कहाँ ? भीतर लुगाई लोग के खिचाई सुन के बाहर आया। बाहर मे हम रगेदन भाई के दू-चार यार-दोस्त के साथ बैठे थे। अब लगा सब उ को मजाक करे। बेचारा जोखू आस्मां से गिरा तो बबूल पर अंटका। शुरू में तो हूँ... हाँ... कर के सुनता रहा मगर कुच्छे देर में छिल्मिल्ली छूट गया।  ले लुत्ती बेचारा भगा और जा के बहिने के अंचरा में जा के छुप गया। केतनो ललकारे मगर नहिये निकला... फिर हम लोग भी छोड़ दिए।

उ दीन तो जो हुआ सो हुआ... बेचारा बादो में बाहर निकलना ही भूल गया। भर दिन कोहबरे (दुल्हन का घर) में घुसा रहता था। एक दिन बड़की भौजी गयी पूछे बौआ चूरा-दही खाइएगा... तो जोखुआ कहिस कि न दीदी ! चिउरा मुँह में मुर-मुर करता है और पेट में जा के हुर-हुर शुरू कर देता है।"

फिर मौसी खुदे गयी बोली, "चिउरा नहीं तो दहिये सही। दही चलेगा... ? जोखुआ से पहिलही छोटकी भौजी बोल पड़ीं, "नहीं माँ जी ! ई को खट्टा से अलर्जी है... ! ई खट्टा नहीं खता है !" मौसी देहरी पर आ के बताइए रही थी कि अन्दर से दुन्नु भाई-बहिन के हंसी-ठहाका गूंज पड़ा। वहीं पर बैठी हुई थी मौसा की बौधी फुआ। मौसी के बात और अन्दर के हंसी सुन के बोली, "आहि गे दैय्या.... चूरा मुर-मुर दही खट्टा... ! भाई-बहिन में हंसी-ठट्ठा !! ऊ... हूँ... !!! हा... हा... हा... हा.... !!!!"

बौधी फुआ ऐसे बोली थी कि हँसते-हँसते पेट में दरद उखर गया। बाप रे बाप ! मौसी भी हंस-हंस के दोहरी हुई जा रही थी.... ही...ही...हे...हे.... ही...ही.... ही.... उ से रहा नहीं गया। हँसते-हँसते भौजी के कमरे में जा कर बोली, "सुनिए जोखू बाबू ! बाहर नहीं निकलिएगा तो लोग का कहते हैं, "चूरा मुर-मुर दही खट्टा... ! भाई-बहिन में हंसी-ठट्ठा !!" ही...ही...ही.... ! जोखुआ बेचारा झेप गया। बोला, "ई का मतलब का हुआ... ?"

हम बाहरे से बोले, "मतलब का हुआ... उ भीतरे से कैसे बुझाएगा... बाहर आओ तब न।"  बेचारा जोखू लाल बाहर आ के बोला अब कहिये। बड़का भैय्या बोले, "कहें का... दिन-भर कहाँ घुसे रहते हो ? चुरा तु को मुर-मुर लगता है... दही खट्टा लगता है.... मतलब ई सब जो नेचुरल है सो नहीं पसंद और भई-बहिन में हंसी-ठट्ठा खूब पसंद...। अरे हंसी मजाक के लिए तो इहाँ आये ही हो...और लोग जिस से हंसी-मजाक का रिश्ता है उ से तो मजाक करोगे नहीं भाई-बहिन में हंसी-ठट्ठा करते रहोगे तो का कहेंगे लोग... ?

4564059567_509b46413f लोग का कहेंगे...? लोग तो कहेंगे ही ना... "चूरा मुर-मुर दही खट्टा... ! भाई-बहिन में हंसी-ठट्ठा !!", बौधी फुआ फिर चिहुंक के बोली थी। और हम लोग फिर से हंस पड़े.... ! अब आपही कहिये ई मेंका गलत है... ? अरे भाई जौन कोई सामान्य को छोड़ कर असामान्य आचरण करेगा तो का कहेंगे... ? हौ मरदे ! भूल गए का.... ? अरे "चूरा मुर-मुर दही खट्टा... ! भाई-बहिन में हंसी-ठट्ठा !!"

तो यही था आज का देसिल बयना ! इसी के साथ बोल सियावर रामचंद्र की जय !!

27 टिप्‍पणियां:

  1. संगीता जी ने ठीक ही कहा है। यह देसिल बयना सुना हुआ सा नहीं लगता।
    कहानी एक बार फिर रोचक।
    शैली प्रवाहमय।
    चला बिहारी वाले सलिल जी का इंतज़ार है।
    चूरा मुर-मुर तो है, दही को खट्टा बताते हैं या दही-चूरा जिमाते हैं।

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  2. हई देखिए! मनोज जी का हुकुम हुआ अऊर हम हाजिर... हमको त पते नहीं था कि साहेब घरे बोला के मुर मुर चिउड़ा जिमाने के लिए कहेंगे... बाकी करन बाबू हमरा तरफ से त दस में दस नम्बर है, कहानी के लिए अऊर कहानी का फ्लो के लिए... एकदम बाढ में जईसे गाछ बिरिछ दहाता है, ओइसहीं दनादन आपका सब्द दहाएल जा रहा था.. अऊर भाई बहिन का हँसी ठट्ठा वाला बात पर एतना हँसी छूट रहा था हमरा कि पूछिए मत... भले ई देसिल बयना सुनल नहीं था, लेकिन सुनला के बाद त सुनले बुझाया... मिजाज हरियर अऊर चित्त परसन्न!! अऊर मनोज बाबू ई दहिओ खट्टा नहीं लगा हमको, एकदम मिश्टी दोई!!

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  3. करण जी सबसे पहले तो आपको धनबाद, जे आप हमरा अनुरोध स्वीकार करके संगीता जी के पोस्ट पर जाकर अपना बिचार और उहां पूछे गए कहाबत पर अपना टिपनी दिए।
    हमको लगता है आप देसिल बयना पर पूरा रिसर्च करके रक्खे हैं। अइसन-अइसन फकरा सुनाते हैं जेकरा हम अप्पन दादियो-नानियो से नहीं सुने थे।
    आज का चूरा-दही खा कर त मोन महो-महो हो गया।
    .... और का कहें बस्स।
    बाकी सब त बिहारी जी कहिए दिए हैं जे कहानी के फ्लो ... एकदम बाढ में जईसे गाछ बिरिछ दहाता है, ओइसहीं दनादन आपका सब्द दहाएल जा रहा था.. !

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  4. करण जी सबसे पहले तो आपको धनबाद, जे आप हमरा अनुरोध स्वीकार करके संगीता जी के पोस्ट पर जाकर अपना बिचार और उहां पूछे गए कहाबत पर अपना टिपनी दिए।
    हमको लगता है आप देसिल बयना पर पूरा रिसर्च करके रक्खे हैं। अइसन-अइसन फकरा सुनाते हैं जेकरा हम अप्पन दादियो-नानियो से नहीं सुने थे।
    आज का चूरा-दही खा कर त मोन महो-महो हो गया।
    .... और का कहें बस्स।
    बाकी सब त बिहारी जी कहिए दिए हैं जे कहानी के फ्लो ... एकदम बाढ में जईसे गाछ बिरिछ दहाता है, ओइसहीं दनादन आपका सब्द दहाएल जा रहा था.. !

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  5. बहुत अच्छी प्रस्तुति।
    राजभाषा हिन्दी के प्रचार-प्रसार में आपका योगदान सराहनीय है।

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  6. @ चला बिहारी ब्लॉगर बनने जी
    आप हमरा अनुरोध स्वीकर कर इहां आए और अपना बात से इस पोस्ट के सोभा में चार चांद लगा दिए। आपका आभार!

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  7. Ka bat hai Karan Ji..Bahute khub kah gaye ap to..chura mur mur dahi khata hai e to thik hai bt apka post to ekdume mitha hai.....padh kar maja aa gaya..Chamki mausi to apke post ko chamka he gai...

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  8. डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री मयंक ने कहा…

    बहुत बढ़िया और रोचक पोस्ट!
    Thursday, 22 July, 2010

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  9. डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री मयंक ने कहा…

    बहुत बढ़िया और रोचक पोस्ट!
    Thursday, 22 July, 2010

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    Thursday, 22 July, 2010

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  23. कहावत वाकई में नहीं सुना था .... लेकिन अब जानकर बहुत अच्छा लगा...

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  24. नयी कहावत से परिचय हुआ...रोचक प्रस्तुति

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आपका मूल्यांकन – हमारा पथ-प्रदर्शक होंगा।