सोमवार, 27 जून 2011

नवगीत : चढ़ गई बिजुरिया मेघों का जीना

आषाढ़ का महीना है, एक नवगीत इसी पर

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श्यामनारायण मिश्र

 

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images (43)तुमने की होगी बयार

        आंचल से पोंछकर पसीना,

                आ गया आषाढ़ का महीना।

 

 

images (43)लो, नभ में उमड़ चले

        भाव    भरे    बादल।

पुरवा की छाती से

        सरक गया आंचल।

        चढ़ गई बिजुरिया मेघों का जीना।

 

images (43)प्रेम का पीयूष पी

        धरती हुई पागल।

देह में मलने लगी

        सिन्दूर औ’ काजल।

        महक गए माटी तुलसी पोदीना।

 

images (43)बिरही मन गुहराए

        बादल ओ बादल।

कोने में पड़े हुए

        अलगोजे मादल।

        तुम बिन पी कौन कसे जीवन की बीना।

22 टिप्‍पणियां:

  1. बढ़िया सामायिक गीत के लिए आभार आपका !

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  2. लो, नभ में उमड़ चले
    भाव भरे बादल।
    पुरवा की छाती से
    सरक गया आंचल।
    चढ़ गई बिजुरिया मेघों का जीना।
    क्या बात है ! सुंदर अतिसुन्दर , बधाई

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  3. अहा, सोंधी बयार सी प्रस्तुति।

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  4. अहहह..... काश इस नवगीत का सस्वर पाठ सुन पाता......... ! बहुत सुन्दर! एक-एक शब्द में माधुर्य किलोल करता हुआ....... ! बहुत खूब !!

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  5. गीत की प्रारम्भिक पंक्तियों ने मन मोह लिया.. और आगे की पंक्तियों ने तो दृश्य उपस्थित कर दिया आँखों के सामने!!

    मिश्र जी के नवगीतों को हर बार पढकर एक नया ही अनुभव प्राप्त होता है!!

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  6. तुमने की होगी बयार
    आंचल से पोंछकर पसीना,
    आ गया आषाढ़ का महीना।

    मधुरतम भावों से भीगा हुआ मधुरतम नवगीत...

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  7. तुमने की होगी बयार

    आंचल से पोंछकर पसीना,

    आ गया आषाढ़ का महीना।

    अहा,इस नवगीत के तो मुखड़े के भावों में ही बड़ा नयापन है.
    ग़ज़ब का पूरा नवगीत. आभार.

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  8. वाह सर जी लगता है गांव के अषाढ़ के झमाझम बारिस की याद में ये पंक्तियां निकली है।

    बहुत सुन्दर।

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  9. मनोज जी बढ़िया नव गीत ..सुन्दर तुलना प्रेम की अद्भुत और चरम ..
    आंचल से पोंछकर पसीना...महक गए माटी तुलसी पोदीना

    अलगोजे मादल।---?? कृपया समझाएं

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  10. सोमवार को मिश्र जी के नव गीत की ऐसी आदत पड़ गई है कि इस गीत को भी पहले उनका ही गीत समझ कर पढ़ा फिर देखा कि ये तो आपका गीत है... गांधी जी पर गंभीर आलेख लिखते हुए हिरदय इतना सहज, मृदुल हो सकता है कई बार आश्चर्य लगता है.... आषाढ़ में पहली फुहार... पसीना भी साथ लाता है... और फिर आँचल से पसीना पोछने का दृश्य... मन में तो एक गोरी जीवंत हो उठती है... सुन्दर नवगीत...

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  11. बहुत सुन्दर गीत। शुभकामनायें।

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  12. गीत में पूरा आषाढ़ साकार हो उठा है। यह गीत पढ़कर एद्दूमैलारम की कवि-गोष्ठियाँ याद आ गयीं। आभार।

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  13. चर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर आपकी प्रस्तुति मंगलवार 28 - 06 - 2011
    को ली गयी है ..नीचे दिए लिंक पर कृपया अपनी प्रतिक्रिया दे कर अपने सुझावों से अवगत कराएँ ...शुक्रिया ..

    साप्ताहिक काव्य मंच-- 52 ..चर्चा मंच

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  14. @ surendrshuklabhramar5
    यह एक प्रकार की बंसुरी या वाद्य यंत्र है।

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  15. तुम बिन पी कौन कसे जीवन की बीना...मौसम का तकाज़ा है...

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  16. श्याम नारायण मिश्र जी का नवगीत नव -उमंग भर गया -
    तुम ने की होगी बयार आँचल से पौंछ कर पसीना ,
    आ गया आषाढ़ का महिना .शुक्रिया .

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  17. मौसम का नजारा और पी की जुदाई ...
    सुन्दर नवगीत !

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