श्यामनारायण मिश्र
घंटियां बजाती,
लौटती कलोरों पर
पर्वत के छोरों पर
उतरी है शाम।
धूप-छांव ने
बातचीत के लिए चार पल खोजे।
गूंज उठे घाटी में
ग्वालों के वंशी – अलगोजे।
पंख फड़फड़ाती,
दुधिया हिलोरों पर
झील के कटोरों पर
उतरी है शाम।
पुल के नीचे
अबाबील का गूंज उठा संगीत।
सरपत की निब से
पानी पर किरण लिखे नवगीत।
चौक पूरने लगीं
टोलियां खेल खेल मैदानों पर।
मंडप जैसी तनी धुएं की
दुहरी पर्त मकानों पर।
डुगडुगी बजाती,
गांव – गली खोरों पर
नृत्य पर के ढ़िढोरों पर
उतरी है शाम।
सुन्दर गीत... मन गुनगुनाने लगा..
जवाब देंहटाएंक्या खूब, इन पंक्तियों में उतरी और सब ओर छलक गयी शाम!
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंप्राकृतिक सौंदर्य को समेटे सुन्दर नव गीत
जवाब देंहटाएंप्राकृतिक बिम्बों से सुसज्जित मनभावन नवगीत।
जवाब देंहटाएंधूप-छांव ने
जवाब देंहटाएंबातचीत के लिए चार पल खोजे।
गूंज उठे घाटी में
ग्वालों के वंशी – अलगोजे ...
वाह ... धूप छाँव और अल्गोज़ो की तान .... क्या खूब उतारा है प्राकृति के रंगों को इस रचना में ...
बहुत सुन्दर गीत्।
जवाब देंहटाएंअद्भुत नवगीत।
जवाब देंहटाएंउतरी है शाम......bahut khoobsurti liye hue....
जवाब देंहटाएंअच्छा लिखा है. बधाई
जवाब देंहटाएंमेरा ब्लॉग भी देखें
अब पढ़ें, महिलाओं ने पुरुषों के बारे में क्या कहा?
सुन्दर गीत....
जवाब देंहटाएंमनोभावों को खूबसूरती से पिरोया है। बधाई।
शाम उतरने पर ली है किरनों ने विदाई की आज्ञा, सुन्दर पंक्तियाँ।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर शब्दचित्र उकेरा है...बहुत सुन्दर गीत
जवाब देंहटाएंचर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर आपकी प्रस्तुति मंगलवार 05 - 04 - 2011
जवाब देंहटाएंको ली गयी है ..नीचे दिए लिंक पर कृपया अपनी प्रतिक्रिया दे कर अपने सुझावों से अवगत कराएँ ...शुक्रिया ..
http://charchamanch.blogspot.com/
बहुत स्पष्ट लेखन है ...
जवाब देंहटाएंजैसे आँखों के सामने से गुज़र रही है -सांझ......
पर्वत की छोटी से उतर रही है सांझ....
बहुत सुंदर नवगीत.
बहुत सुन्दर नवगीत!
जवाब देंहटाएं--
नवरात्र के प्रथम दिन माँ शैलपुत्री को प्रणाम करता हूँ!
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नवसम्वतसर सभी का, करे अमंगल दूर।
देश-वेश परिवेश में, खुशियाँ हों भरपूर।।
बाधाएँ सब दूर हों, हो आपस में मेल।
मन के उपवन में सदा, बढ़े प्रेम की बेल।।
एक मंच पर बैठकर, करें विचार-विमर्श।
अपने प्यारे देश का, हो प्रतिपल उत्कर्ष।।
मर्यादा के साथ में, खूब मनाएँ हर्ष।
बालक-वृद्ध-जवान को, मंगलमय हो वर्ष।।
aadarniy sir
जवाब देंहटाएंsabse pahle to main dil se aapse maffi chahti hun jo itne lambe samay ke baad aapke blog par aai hun.
gat decembar se swasthy bahut hi bigad gaya tha to us douran main net par to aa hi nahi rahi thi .
shayad pichle maah se dheere - dheere koshish karti hun ki thodea
samay de sakun .
post to shrimaan ji se karva de rahi hun .par tippni to main hi dalti hun .sach maniye idhar bar -bar dhyan aapke blog par jaata tha par lagta tha ki pahle jitne comments aaye hain to unka jawabto de dun .vah bi kabbhi ek -do ya fir kabhi char paanch hi kar pati thi kyon ki abhi bhi jyda samay ke liye
nahi baith paati hun.
aasha hai aap sach jankar mujhe dil se xhma karenge.
----- bahut dino baad bahut -bahut badhiya avam man me utar jaane wala geet padhne ko mila.
bahut hi jyada pasand aaya aapka yah geet.
पुल के नीचे
अबाबील का गूंज उठा संगीत।
सरपत की निब से
पानी पर किरण लिखे नवगीत।
bahut hi badhiya upma ,prkritik sundarta puri tarah chhalak kar aapke geet me utar aai hai.
hardik abhnandan
xhma yachna ke saath aapko sadar pranaam.
aur aapne mere blog par aakar punah mera utsaah badhaya iske liye bhi aapko bahut bahut dhanyvaad .
poonam
Shaam kaa behad manohaaree warnan hai!
जवाब देंहटाएंभाव भरा सुन्दर नवगीत !
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर नवगीत।
जवाब देंहटाएंआभार
अलगोजे, धुँए की दुहरी पर्त तथा डुगडुगी ने तो जैसे इस नवगीत में चार चाँद लगा दिए हों| रचनाकार को बहुत बहुत बधाई|
जवाब देंहटाएंhttp://samasyapoorti.blogspot.com