आचार्य जानकी वल्लभ शास्त्री जी नहीं रहे। जब से उनके निधन का समाचार सुना रह-रह कर उन्के कहे ये बोल कानों में गूंज रहे हैं।
“आपको देख कर कैसा लगता है – डेढ दो साल और खींच दूंगा। पच्चानवे साल का हो गया हूँ मैं। पता नहीं और कितने दिन और खीचूँगा।”
आज ‘फ़ुरसत में …’ उनके साथ बिताएं पलों की झांकी उनके शब्दों में और चित्रों में बास …!
आपके सामने बैठा हूं, ९५ साल का जानकी वल्लभ शास्त्री! .. अकेला!! … एक एकड़ जमीन के प्लाट में बने आवास में अकेला!!! ये घर देख रहे हैं न आप, कोई पागल ही इतना बड़ा घर बनाएगा। मैं पाग़ल था और मैंने इतना बड़ा घर बनाया।
क्या कहूं, क्या परिचय दूं? एक पागल आदमी है, अकेले रहता है। ... यही मेरा परिचय है। विचित्र जीवन है मेरा। Different! Different होने में समय लगता है। आज के आदमी को मेरे बारे में, मेरी जीवन शैली के बारे में कहिएगा तो क्या कहेगा? .... कहेगा पागल है! मैं भाग्यशाली हूं ... इस अर्थ में कि मुझे कोई जानता ही नहीं। .... मैं आनंद से रहता हूं। जिन्हें दुनिया जानती है, उसे दुनिया नचाती रहती है, और वह नाचता रहता है।
क्या नहीं लिखा, कविता, कहानी, उपन्यास, नाटक ... सब। इतनी छोटी उम्र में इतनी किताबें लिख गए ... आज सोचता हूं तो विश्वास ही नहीं होता। मैंने अपना प्रचार नहीं किया कभी। मैं कविता से प्यार करता हूं। विचित्र जीवन है मेरा। समझा नहीं सकता। मैंने जीवन भर सरस्वती की साधना की है। इसके अलावा दूसरा कोई काम ही नहीं किया।...
मैं अकेला शख्स हूं। सब ईश्वर की मर्ज़ी, जो वह चाहता है अच्छा ही चाहता है.., भला या बुरा कुछ भी आपके साथ हो रहा है, उस पर आपकी क्या मर्जी.. कुछ है मर्जी..?
अरे कोई है। ज़रा बहू के जगाओ। बुलाओ बाहर। लोग आए हैं मिलने। दूर से। बीमार रहती हैं। बारहों मास बीमार रहने वाली बहू हैं। अच्छी हैं .... अच्छा ही है, अच्छे लोग बीमार ही रहते हैं। बीमार तो .. रहना ही चाहिए। ... इंसान अगर बीमार ज़्यादा नहीं रहेगा तो पियक्कड़ हो जाएगा!
मेरे पिताजी महापुरुष थे। पूजनीय थे। चले गए पिताजी, मैंने पिता का मंदिर बनवा लिया। वो देखो सामने। मैं कभी मंदिर में नहीं गया और न ही किसी देवता को पूजा।
.. मेरी तरह का लोग सबसे अलग। अब देखिए न एक दर्जन भर तो गउएं हैं यहां। इसके अलावा अन्य पशु-पक्षी सब! जितने में आपलोग पूरा परिवार खाइएगा-पिइएगा, उतने में हमारे यहां कुत्ते-बिल्ले सब खाते हैं। ये सब हैं हमारे परिवार के सदस्य। मैं सब से अलग हूं। निराला। ये जो कोई सुनेगा तो गाली देगा हमको। बदमाश कहेगा। कोई अच्छा थोड़े न कहेगा! इसीलिए ऐसा नाम रख लिया हमने। निराला!
निराला जो कवि थे, उन्हींने बचपन में मेरा साथ दिया। और मेरे यहां आना-जाना सब किया था। लेकिन उस निराला के अर्थ में मैंने नहीं नाम रखा था। नाम मैंने Different के अर्थ में रखा था। उनका नाम भी हो गया, यह संयोग है।’’
कवि जो निराला थे – उन्होंने यहां आना-जाना किया है। पर यह घर उस निराला के अर्थ में नहीं है। मेरी कविता पढ़कर निराला मुझसे मिलने आए। निराला का स्नेह मिलता रहा मुझे। निराला बड़े कवि थे। मैं उनका प्रिय पात्र था। मोहल्ले भर के आवारा कुत्ते यहां आते हैं। उन्हें दूध रोटी देता हूं। मैं तो कुत्ते बिल्लियों के साथ रहने वाला आदमी हूँ … कह दीजिएगा लोगों से खाली कुत्तों के साथ रहता है जानकीवल्लभ शास्त्री!
जो गाय पहली बार पिताजी के लिए मैंने ली उसी की संतानें चल रही हैं। कितनी पीढियां आ गईं। कितने बच्चे पैदा हुए। ये सब तीसरी-चौथी पीढ़ी वाले हैं! सबने कहा कि किसी को बेच दें। किसी को दे दें। दे देना भी तो बचाव है। न हमको गाय बेचना है, न दूध बेचना है। न तो एक बूंद दूध बाहर गया और न कृष्णा की कोई संतान कभी बिकी। बेचना छोड़कर और जो काम हो सकता है वो सब होता है। बेच नहीं सकते हैं। यहां के कुत्ते बिल्लियों से लेकर इंसानों तक, सब दूध खाते हैं, दूध पीते हैं, और सब यहीं आनंद से रहते हैं। खाते हैं-पीते हैं। सारे पशु-पक्षी, कुत्ते-बिल्ली।
और कृष्णा और उसके मरी हुई संतानों की समाधियां भी इसी हाते के अंदर है। सबकी पक्की समाधियां बनी हुई हैं। निराला निकेतन में जो गायें मरतीं हैं, उन्हें यहीं समाधिस्थ कर दिया जाता है।
विचित्र जीवन मैंने जिया। कोई समझ नहीं सकता।
बांसुरी...
किसने बांसुरी बजाई ?
जनम-जनम की पहचानी-
वह तान कहां से आई?
किसने बांसुरी बजाई ?
अंग-अंग फूले कदम्ब-सम,
सांस-झकोरे झूले;
सूखी आंखों में यमुना की –
लोल लहर लहराई!
किसने बांसुरी बजाई?
जटिल कर्म-पथ पर थर-थर-थर
कांप लगे रुकने पग,
कूक सुना सोए-सोए-से
हिय में हूक जगाई!
किसने बांसुरी बजाई?
मसक-मसक रहता मर्म-स्थल,
मर्मर करते प्राण,
कैसे इतनी कठिन रागिनी
कोमल सुर में गाई!
किसने बांसुरी बजाई?
उतर गगन से एक बार-
फिर पीकर विष का प्याला,
निर्मोही मोहन से रूठी
मीरा मृदु मुसकाई!
किसने बांसुरी बजाई?
गुम हो गया बांसुरी का स्वर। हम उन्हें विनम्र श्रद्धा सुमन अर्पित करते हैं।
आचार्य जानकी वल्लभ शास्त्री जी के आकस्मिक निधन से हिंदी साहित्य जगत की अपूर्णीय क्षति और हम साहित्यकारों को असहनीय तकलीफ हुई है.उन्हें विनम्र श्रद्धांजलि.
जवाब देंहटाएंअभी तो कुछ वक्त से आपके माध्यम से उनसे परिचय हुआ था और इतनी जल्दी ऐसा होगा सोचा भी नही था………बहुत दुख हुआ जानकर्…………आचार्य श्री को विनम्र श्रद्धांजलि।
जवाब देंहटाएंमाँ शारदे के वरदपुत्र को श्रद्धांजलि देने के लिए मेरे पास तो शब्द भी नहीं है. वे तो सशरीर गोलोक में वास करते थे... ! अंतिम क्षणों में भी उन्हें गायों की ही चिंता थी.... ! उन्हें आभास हो गया था अपने महाप्रयाण का. स्वयं उस दिन कुछ नहीं खाए. सिर्फ दूध पीकर रह गए लेकिन अपने प्यारे कुत्ते 'भोलू' को कटोरा भर दूध-भात खिलाया और कहा कि यह कहीं भी रहे अंतिम समय में मेरे पास आ ही जाएगा. अपने सहायकों से कहा कि आग घर-आँगन साफ़ कर लो. शाम को बहुत सारे लोग आयेंगे. आठ बजे तक आस-पास रहने वाले छात्रों से बात करते रहे. साढ़े आठ उनका घरेलु सहायक 'नरेश' रात्री-भोजन लेकर उन्हें जगाने आया, शास्त्रीजी तब तक चिर-निंद्रा में सो गए थे. काश कुछ दिन और चल जाते.... तो एकबार पुनः उनका आशीष ले आता.
जवाब देंहटाएंआचार्य श्री को विनम्र श्रद्धांजलि।
जवाब देंहटाएंविनम्र श्रद्धांजलि.
जवाब देंहटाएंजानकी जी के लिए बहुत दुःख है ..उनकी आत्मा को शांति मिले .आँखे नम हो गयी पोस्ट पढ़ते-पढ़ते ... .
जवाब देंहटाएंहार्दिक श्रद्धांजलि।
जवाब देंहटाएंऐसे विलक्षण मनीषी कम ही पैदा होते हैं और मर कर भी कभी नहीं मरते !
जवाब देंहटाएंईश्वर उनकी आत्मा को शांति प्रदान करे !
आपके ब्लॉग पर ही आचार्य जी से परिचय मिला ...आप भाग्यशाली हैं जो उनके साथ कुछ पल बिता पाए ...
जवाब देंहटाएंविनम्र श्रद्धांजली और नमन
आपके माध्यम से ही उनसे परिचय हुआ था.फिर से यादें ताज़ा हो गईं.आपको उनका सामीप्य मिला आप भाग्यशाली हैं.
जवाब देंहटाएंआचार्य जानकी वल्लभ शास्त्री जी को विनर्म श्रधांजलि.
मनोज जी! आहत हूँ इस समाचार से!! बहुत गहरा आघात अनुभव कर रहा हूँ.पिछली मुलाक़ात में आपने बताया था कि उनके स्वास्थ्य में सुधार है..
जवाब देंहटाएंपरमात्मा उनकी आत्मा को शान्ति दे!!
आचार्य जानकी वल्लभ शास्त्री जी के आकस्मिक निधन से हिंदी साहित्य जगत की अपूर्णीय क्षति और हम साहित्यकारों को असहनीय तकलीफ हुई है. विनम्र श्रद्धांजलि.ईश्वर उनकी आत्मा को शांति प्रदान करे !
जवाब देंहटाएंआचार्य जानकी वल्लभ शास्त्री जी को विनम्र श्रद्धांजलि ... आप भाग्यशाली हैं जो इतने अच्छे साहित्यकार का संग मिला आपको ...
जवाब देंहटाएंek bar fir shastri ji ke bare me padh kar man ki diware nam ho aayi.bahut asehneey bela hai ye.
जवाब देंहटाएंshastri ji ko vinamr shradhanjali.
दुखद, बेहद तकलीफदेह समाचार..
जवाब देंहटाएंविनम्र श्रद्धांजलि.
जवाब देंहटाएंआचार्य जानकी वल्लभ शास्त्री का आकस्मिक निधन साहित्यिक जगत की अपूर्णीय क्षति है। उन्हें भावभीनी श्रद्धांजलि।
जवाब देंहटाएंबहुत दुख हुआ जानकर आचार्य श्री को विनम्र श्रद्धांजलि।
जवाब देंहटाएंविनम्र श्रद्धांजलि।
जवाब देंहटाएंश्रद्धेय शास्त्री जी से आपके आलेखों के माध्यम से ही परिचय हुआ था और उनके विलक्षण व्यक्तित्व एवं कृतित्व ने बहुत प्रभावित किया था ! उनके देहावसान के समाचार ने स्तब्ध कर दिया है ! ईश्वर से प्रार्थना है कि उनकी आत्मा को चिर शान्ति दें और उनके समस्त प्रशंसकों को यह दुःख सहने की क्षमता प्रदान करें ! उन्हें हमारी विनम्र श्रद्धांजलि अर्पित है !
जवाब देंहटाएंआचार्य श्री को विनम्र श्रद्धांजलि। आकस्मिक निधन से हिंदी साहित्य जगत की अपूर्णीय क्षति. ईश्वर से प्रार्थना है कि उनकी आत्मा को शांति मिले ....
जवाब देंहटाएंहम उन्हें विनम्र श्रद्धा सुमन अर्पित करते हैं।
जवाब देंहटाएंमनोज जी,
जवाब देंहटाएंशायद शास्त्री जी के विषय में सम्पूर्ण जानकारी आपने हम तक इसी लिए पहुंचाई थी कि उस महान व्यक्ति के लिए हम भी कुछ श्रद्धा सुमन अर्पित कर सकें. ईश्वर उनकी आत्मा को शांति प्रदान करे और उनके परिवार कोधैर्य दे.
अरे...! सुबह इस पर निगाह ही नहीं गई। अभी तो जाना था शास्त्री जी के बारे में आपके ब्लॉग से! यह तो मानव मात्र के लिए दुःखद है। बिरले ही दिखते हैं ऐसे महामानव। ..विनम्र श्रद्धांजलि।
जवाब देंहटाएंमार्मिक वार्ता! विनम्र श्रद्धांजलि!
जवाब देंहटाएंजान कर बहुत दुःख हुवा... श्रद्ध्येय कविराज को विनम्र श्रधांजली.
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