फैली है बेले की गंध
जूड़ा क्या खोल दिया तुमने।
शीतल परिवेश हो गया
लगता है अभी-अभी टहली हो।
सपनों के पंखों पर उड़ती
धरती की तुम्हीं परी पहली हो।
एक नज़र पीकर मन मस्त
ऐसा क्या घोल दिया तुमने।
संगमर्मर साध बैठ मौन
और हो समीप धुंआधार।
व्यक्त जो कभी न हो सका
ऐसा ही अपना है प्यार।
अंतर्मन गूंज रहा है
ऐसा क्या बोल दिया तुमने।
हरी-भरी घाटियों में
संध्या सिन्दूर हो गई।
गाने को गीत प्रणय के
वाणी मज़बूर हो गई।
लगता हूं मैं बिका-बिका
ऐसा क्या मोल दिया तुमने।
सिंदूरी आभा लिये बहुत सुन्दर नवगीत्।
जवाब देंहटाएंआदरणीय मनोज कुमार जी
जवाब देंहटाएंनमस्कार !
अंतर्मन गूंज रहा है ऐसा क्या बोल दिया तुमने। हरी-भरी घाटियों में संध्या सिन्दूर हो गई।
..........दिल को छू लेने वाली प्रस्तुती
अभी-अभी टहली हो। सपनों के पंखों पर उड़ती धरती की तुम्हीं परी पहली हो...सुन्दर नवगीत् मनोज जी
जवाब देंहटाएंअंतर्मन गूंज रहा है
जवाब देंहटाएंऐसा क्या बोल दिया तुमने।
लगता हूं मैं बिका-बिका ऐसा क्या मोल दिया तुमने।
बहुत खूबसूरत नवगीत ...
श्यामनारायण मिश्र जी एवं आपको बधाई.
जवाब देंहटाएंबहुत खूबसूरत नवगीत ..
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर - हरी-भरी घाटियों में संध्या सिन्दूर हो गई।
जवाब देंहटाएंबस इतनी सी .....
शानदार, बधाई.
जवाब देंहटाएंमेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है -
मीडिया की दशा और दिशा पर आंसू बहाएं
भले को भला कहना भी पाप
श्रंगार का श्रृंग-बिन्दु।
जवाब देंहटाएंसुंदर चित्रो से सजी सुंदर रचना, धन्यवाद
जवाब देंहटाएंवाह बहुत सुन्दर गीत .अंतिम पंक्तियाँ तो कमाल हैं.
जवाब देंहटाएंहरी-भरी घाटियों में संध्या सिन्दूर हो गई। गाने को गीत प्रणय के वाणी मज़बूर हो गई। लगता हूं मैं बिका-बिका ऐसा क्या मोल दिया तुमने।
जवाब देंहटाएंबहुत सजीव सुंदर वर्णन से जीवित हो उठी है कविता ...!!
आद. मनोज जी,
जवाब देंहटाएंनए प्रतिमानों के साथ श्याम नारायण जी का नव गीत मन को छू गया !
आभार !
सिन्दूरी रंगों मे चतका महका सुन्दर नवगीत।। मिश्र जी को बधाई।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर पोस्ट
जवाब देंहटाएंशीतल परिवेश हो गया
जवाब देंहटाएंलगता है अभी-अभी टहली हो।
सपनों के पंखों पर उड़ती
धरती की तुम्हीं परी पहली हो।
एक नज़र पीकर मन मस्त
ऐसा क्या घोल दिया तुमने।
Bahut,bahut pasand aaya,poorahee geet!
मिश्रजी अपनी रचनाओं के लिए पुराने आयामों के नवीनीकरण करने में बड़े ही सिद्धहस्त थे।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर गीत!
जवाब देंहटाएंभगवान हनुमान जयंती पर आपको हार्दिक शुभकामनाएँ!
बहुत खूबसूरत और मनोमुग्धकारी कविता !
जवाब देंहटाएंमनोहारी अंतर्मन में गूंजने वाला नव गीत बधाई
जवाब देंहटाएंकोमल भावों , सुन्दर बिम्बों एवं अर्थपूर्ण शब्दचयन से सजा नवगीत ...चित्रों का संयोजन बहुत अच्छा
जवाब देंहटाएंसुरीला सुन्दर गीत ....
जवाब देंहटाएंpyar ki dhun aisi hi hoti hai ji.
जवाब देंहटाएंaabhar ham tak pahuchane ke liye.
बहुत सुन्दर नवगीत्।
जवाब देंहटाएंबिनमोल ख़रीदा जिसने , कीमत क्या हो ...
जवाब देंहटाएंखूबसूरत भाव !
बहुत सुन्दर नवगीत। मिश्र जी के गीतों की आभा ही कुछ और होती है और अंतस तक झंकृत करती है।
जवाब देंहटाएंआभार
बहुत बढ़िया पोस्ट
जवाब देंहटाएंवाह! बहुत सुन्दर!
जवाब देंहटाएंजूड़ा क्या खोल दिया तुमने, शीतल परिवेश हो गया!
कभी पढ़ा था - जूड़े में खोंस कर गुलाब, गन्दुमी शरीर खिल गया!
जूड़ा होता ही ऐसा है!