सोमवार, 18 अप्रैल 2011

नवगीत : संध्या सिन्दूर हो गई

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Sn Mishraश्यामनारायण मिश्र

फैली है बेले की गंध

जूड़ा क्या खोल दिया तुमने।

शीतल परिवेश हो गया

लगता है अभी-अभी टहली हो।

सपनों के पंखों पर उड़ती

धरती की तुम्हीं परी पहली हो।

एक नज़र पीकर मन मस्त

ऐसा क्या घोल दिया तुमने।

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संगमर्मर साध बैठ मौन

और हो समीप धुंआधार।

व्यक्त जो कभी न हो सका

ऐसा ही अपना है प्यार।

अंतर्मन गूंज रहा है

ऐसा क्या बोल दिया तुमने।

हरी-भरी घाटियों में

संध्या सिन्दूर हो गई।

गाने को गीत प्रणय के

वाणी मज़बूर हो गई।

लगता हूं मैं बिका-बिका

ऐसा क्या मोल दिया तुमने।

28 टिप्‍पणियां:

  1. सिंदूरी आभा लिये बहुत सुन्दर नवगीत्।

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  2. आदरणीय मनोज कुमार जी
    नमस्कार !
    अंतर्मन गूंज रहा है ऐसा क्या बोल दिया तुमने। हरी-भरी घाटियों में संध्या सिन्दूर हो गई।
    ..........दिल को छू लेने वाली प्रस्तुती

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  3. अभी-अभी टहली हो। सपनों के पंखों पर उड़ती धरती की तुम्हीं परी पहली हो...सुन्दर नवगीत् मनोज जी

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  4. अंतर्मन गूंज रहा है

    ऐसा क्या बोल दिया तुमने।


    लगता हूं मैं बिका-बिका ऐसा क्या मोल दिया तुमने।

    बहुत खूबसूरत नवगीत ...

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  5. श्यामनारायण मिश्र जी एवं आपको बधाई.

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  6. बहुत ही सुन्दर - हरी-भरी घाटियों में संध्या सिन्दूर हो गई।

    बस इतनी सी .....

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  7. सुंदर चित्रो से सजी सुंदर रचना, धन्यवाद

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  8. वाह बहुत सुन्दर गीत .अंतिम पंक्तियाँ तो कमाल हैं.

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  9. हरी-भरी घाटियों में संध्या सिन्दूर हो गई। गाने को गीत प्रणय के वाणी मज़बूर हो गई। लगता हूं मैं बिका-बिका ऐसा क्या मोल दिया तुमने।

    बहुत सजीव सुंदर वर्णन से जीवित हो उठी है कविता ...!!

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  10. आद. मनोज जी,
    नए प्रतिमानों के साथ श्याम नारायण जी का नव गीत मन को छू गया !
    आभार !

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  11. सिन्दूरी रंगों मे चतका महका सुन्दर नवगीत।। मिश्र जी को बधाई।

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  12. शीतल परिवेश हो गया

    लगता है अभी-अभी टहली हो।

    सपनों के पंखों पर उड़ती

    धरती की तुम्हीं परी पहली हो।

    एक नज़र पीकर मन मस्त

    ऐसा क्या घोल दिया तुमने।
    Bahut,bahut pasand aaya,poorahee geet!

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  13. मिश्रजी अपनी रचनाओं के लिए पुराने आयामों के नवीनीकरण करने में बड़े ही सिद्धहस्त थे।

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  14. बहुत सुन्दर गीत!
    भगवान हनुमान जयंती पर आपको हार्दिक शुभकामनाएँ!

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  15. बहुत खूबसूरत और मनोमुग्धकारी कविता !

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  16. मनोहारी अंतर्मन में गूंजने वाला नव गीत बधाई

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  17. कोमल भावों , सुन्दर बिम्बों एवं अर्थपूर्ण शब्दचयन से सजा नवगीत ...चित्रों का संयोजन बहुत अच्छा

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  18. बिनमोल ख़रीदा जिसने , कीमत क्या हो ...
    खूबसूरत भाव !

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  19. बहुत सुन्दर नवगीत। मिश्र जी के गीतों की आभा ही कुछ और होती है और अंतस तक झंकृत करती है।

    आभार

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  20. वाह! बहुत सुन्दर!
    जूड़ा क्या खोल दिया तुमने, शीतल परिवेश हो गया!

    कभी पढ़ा था - जूड़े में खोंस कर गुलाब, गन्दुमी शरीर खिल गया!

    जूड़ा होता ही ऐसा है!

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