लघुकथा : खाली ग्लास
सत्येन्द्र झा
“सकारात्मक दृष्टिकोण का परिचय हमेशा देना चाहिये।” प्रोफेसर साहब कक्षा में कह रहे थे, “एक ग्लास में आधा पानी भरा है... सकारात्मक दृष्टिकोण वाले इस ग्लास को आधा भरा कहेंगे और जिनकी सोच नकारात्मक है वे कहेंगे कि ग्लास आधी खाली है।”
एक क्षात्र उठकर जोर से बोला, “लेकिन सर ! यह आदर्श और एक हद तक असंभव दृष्टि है। अब तो गरीबों को ऐसा चश्मा पहना दिया गया है कि उनके सामने पूरी भरी गलास भी हो तो भी उन्हे खाली ही लगती है। क्योंकि उन्हे पता है कि उस भरे ग्लास से एक बूंद पानी भी उन्हे मिलने वाला नहीं है।”
(मूलकथा मैथिली में “अहींकें कहै छी” में संकलित “खाली गिलास” से हिन्दी में केशव कर्ण द्वारा अनुदित।)
गरीबी या गरीब होना पाप नही है लेकिन आज के बदलते सामाजित आर्थिक परिप्रेक्ष्य में अभावग्रस्त लोगों की मानसिकता ही है जो कहीं न कही जीवन के प्रति उनमें नकारात्मक दृष्टिकोंण को(Pessimistic Outlook)स्थायी भाव के रूप में अपना वर्चस्व बनाए रखती है। इस लिए उनकी मानसिकता भी वैसी ही बनी रहती है।
जवाब देंहटाएंअनुवाद सटीक है।धन्यवाद।
जब ग्लास भरा हो पर मिलना न हो तो तृष्णा चरम पर होती है।
जवाब देंहटाएंक्या विडंबना है...
जवाब देंहटाएंvidambana ye bhee hai ki mehnat karna kisee ko bhata nahee........
जवाब देंहटाएंuplabdhiyo ke liye sangharsh karna hee nahee chahte.......
short cut apnate hai......
:(
asambhav kuch nahee......manobal chahiye.
प्यारी लघुकथा. रामनवमी की हार्दिक शुभकामनायें.
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंलघुकथा का मर्म स्पष्ट है। पर जिस मुहावरे का उपयोग किया गया है वह फिट नहीं बैठता। चश्मा पहनाने का अर्थ भ्रम की दुनिया में रखने या रहने से है। लेकिन यहां तो यह हकीकत ही है कि गरीब को सचमुच भरे गिलास से एक बूंद भी नहीं मिलने वाली।
जवाब देंहटाएंआज की व्यवस्था पर करारा व्यंग्य !
जवाब देंहटाएंहकीकत कहती कहानी ..
जवाब देंहटाएंयथार्थ बोध कराती सुन्दर लघुकथा।
जवाब देंहटाएंओह कैसी बिडम्बना है ..है पर मिलता नहीं .बहुत सच्ची लघुकथा.
जवाब देंहटाएंसच में बहुत बड़ी विडम्बना है
जवाब देंहटाएंCoral
किसी को भी अप्राप्य वस्तु बेमानी सी ही लगती है ।और सच भी यही है ।
जवाब देंहटाएंबढ़िया लघुकथा!
जवाब देंहटाएंइस सोच का जवाब नहीं!
रामनवमी के साथ बैशाखी और अम्बेदकर जयन्ती की भी शुभकामनाएँ!
pristhti aur soch apne najeriye ke seema tay karti hai ,ek hi vichar ka har jagah maujud hona jaroori nahi .baat man ko chhoo gayi ,sundar .
जवाब देंहटाएंbahut achchi lagi....
जवाब देंहटाएंसत्येन्द्र जी की कथा हमेशा त्रिकोण का चौथा कोण प्रसतुत करती है!!
जवाब देंहटाएंसत्येन्द्र जी के बहुत कम शब्दों में बहुत ही तीक्ष्ण व्यंजना अंतर्निहित होती है। यह उनकी विशेषता है।
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