दौड़-धूप के बाद,
तुम्हारी याद
मन के इस जलते जंगल में
जैसे नदी बहे।
हारा-थका
बिछौने पर हूं
ऐसे बिछा हुआ।
जैसे
निर्जन घाट किनारे
किसी युवा लड़की का
आधा आंचल फिंचा हुआ।
यादों की
सीढ़ी पर उतरे
रानी अनबोलन का डोला,
कोई प्राणों में रहस्य के
मोहन-मंत्र कहे।
अपनी छुअन
तुम्हारे कंपन
विजन मुलाक़ातें।
कैसे लिखूं
तुम्हारे आंचल
वह कौतूहल-प्रियता
कच्चे अनुभव की बातें।
एक-एक कर
फेंक रहा है
विरह नदी में
मन धीरज के
टुकड़े रहे-सहे।
"एक दिन हम पा ही लेंगे आपको
जवाब देंहटाएंसिलसिला यूं ही अगर चलता रहा।"
कल्पना की अप्रतिम उड़ान मन को अस्थिर कर गयी।
अति सुंदर।धन्यवाद।
विरह नदी में मन धीरज के टुकड़े ...
जवाब देंहटाएंबेचैनी को शब्दों ने नए आयाम दिए ...
बहुत बढ़िया प्रस्तुति !
प्रेम के भाव से परिपूर्ण यह नव गीत अभी गुनगुना रहा हूँ.. खास तौर पर यह पंक्ति...
जवाब देंहटाएं"कैसे लिखूं
तुम्हारे आंचल
वह कौतूहल-प्रियता
कच्चे अनुभव की बातें।"
अहा, पढ़ने का आनन्द कैसे व्यक्त करूँ?
जवाब देंहटाएंसुंदर भाव-कोलाज.
जवाब देंहटाएंबहुत प्यारा नवगीत पढ़वाया है आपने.
जवाब देंहटाएंkomal bhawon ki bahut sundar kavita.......
जवाब देंहटाएंबेहतरीन!
जवाब देंहटाएंBahut hi pyara navgeet aapne post kiya..:)
जवाब देंहटाएंशब्द-शब्द कोमल संवेदनाओं से भरा सुन्दर एवं मर्मस्पर्शी नवगीत के लिए आपको हार्दिक बधाई।
जवाब देंहटाएंकोमल भावों की सुन्दर अभिव्यक्ति।
जवाब देंहटाएंसारे दिन की
जवाब देंहटाएंदौड़-धूप के बाद,
तुम्हारी याद
मन के इस जलते जंगल में
जैसे नदी बहे।
सुन्दर नव गीत !
आभार !
sunder bhavo kee behatreen abhivykti.
जवाब देंहटाएंफेंक रहा है विरह नदी में मन धीरज के
जवाब देंहटाएंटुकड़े रहे-सहे।
प्यारा नवगीत अति सुंदर,धन्यवाद.....
इस गीत में मूल भाव अद्भुत शालीनता और सहजता के साथ अभिव्यक्त हुए हैं।
जवाब देंहटाएंभावाभिव्यक्ति के लिए गीतकार ने बिम्बों इस तरह चुनाव किया है कि गीत की भाषा एकदम नवीन लग रही है।
जवाब देंहटाएंमन के इस जलते जंगल में
जवाब देंहटाएंजैसे नदी बहे।
हारा-थका बिछौने पर हूं
ऐसे बिछा हुआ।
कोई प्राणों में रहस्य के
मोहन-मंत्र कहे।
अपनी छुअन तुम्हारे कंपन
विजन मुलाक़ातें।
कैसे लिखूं तुम्हारे आंचल
वह कौतूहल-प्रियता
कच्चे अनुभव की बातें।
एक-एक कर फेंक रहा है
विरह नदी में मन धीरज के
टुकड़े रहे-सहे।
उक्त सभी बिम्ब बिलकुल नए और बहुत ही मनमोहक हैं साथ ही भाषा में ताजगी भी। लेकिन निम्न पंक्तियों में अवरोध हैं तथा ये मिश्र जी की प्रतिष्ठा के अनुरूप भी नहीं बन पाईं हैं।
सारे दिन की दौड़-धूप के बाद, तुम्हारी याद
मन के इस जलते जंगल में
जैसे नदी बहे।
व
जैसे निर्जन घाट किनारे
किसी युवा लड़की का
आधा आंचल फिंचा हुआ।
शायद यह नवगीत मिश्र जी के प्रारम्भिक नवगीतों में से रहा हो और उनकी सूक्ष्म दृष्टि उन पर न पड़ पाई हो तथापि मिश्र जी के गीतों में कुछ न कुछ नयापन अवश्य देखने को मिलता है।
आभार।
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जवाब देंहटाएंबहुत ही अच्छा लगा आपका नवगीत...बधाई...
जवाब देंहटाएंअति सुंदर कविता, धन्यवाद।
जवाब देंहटाएंmasoom bhaavo ka mala me piroya hua sunder srijan. aabhar.
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