शुक्रवार, 15 अप्रैल 2011

शिवस्वरोदय – 39

शिवस्वरोदय – 39

आचार्य परशुराम राय

वहन्नाडीस्थितो दूतो यत्पृच्छति शुभाशुभम्।

तत्सर्वं सिद्धिमापनोति शून्ये शून्यं न संशयः।।205।।

अन्वय – यह श्लोक अन्वित क्रम में है, अतएव अन्वय की आवश्यकता नहीं है।

भावार्थ – इस श्लोक में चर्चित विवरण इसके पूर्व भी आ चुका है। यहाँ यह बताया गया है कि यदि प्रश्न पूछने वाला सक्रिय स्वर की ओर स्थित है तो उसके प्रश्न का उत्तर सकारात्मक समझना चाहिए। परन्तु यदि निष्क्रिय स्वर की ओर है तो अशुभ फल समझना चाहिए।

English Translation – The content of this verse has already been described earlier also. Here it has been stated that when a person who has come with a query and if he comes or asks his question from the side of active nostril, I.e. through which the breath is running, of the Sadhaka, positive result can be predicted. Similarly, if the questioner comes or asks question from opposite side, i.e. the side of the nostril which is empty, the negative result can be predicted.

पूर्णोSपि निर्गमश्वासे सुतत्त्वेSपि न सिद्धिदः।

सूर्यश्चन्द्रो तथा नृणां सन्देहे सर्वसिद्धिदः।।206।।

अन्वय – यह श्लोक भी अन्वित क्रम में है।

भावार्थ – दोनों स्वर सक्रिय रहने पर अनुकूल तत्त्व भी निष्फल परिणाम देते हैं। किन्तु यदि सूर्य स्वर अथवा चन्द्र स्वर प्रवाहित हो और प्रश्नकर्त्ता सक्रिय स्वर की ओर बैठा हो तो उसके प्रश्न का उत्तर वांछित फल प्रदान करनेवाला होगा।

English Translation – In case, during query both the nostrils are running, result can be predicted as neither positive nor negative even fruitful Tattva is active at the time. But when the questioner is on the side of active nostril, the positive result should always be predicted.

तत्त्वे रामो जयं प्राप्तः सुतत्त्वे च धनञ्जयः।

कौरवा निहताः सर्वे युद्धे तत्त्वविपर्ययात्।।207।।

अन्वय – यह श्लोक भी अन्वित क्रम में है।

भावार्थ – अनुकूल तत्त्वों के कारण ही भगवान राम और अर्जुन युद्ध में विजय पाए। परन्तु प्रतिकूल तत्त्वों के कारण ही सभी कौरव युद्ध में मारे गए।

English Translation – Due to selection of appropriate Tattva for the battle, Shri Rama and Arjuna became victorious and Kauravas were killed because of ignoring the selection of an appropriate Tattva for the purpose.

जन्मान्तरीयसंस्कारात्प्रसादादथवा गुरोः।

केषाञ्चिज्जायते तत्त्ववासना विमलात्मना।।208।।

अन्वय – तत्त्ववासना जन्मान्तरीयसंस्कारात् अथवा गुरोः प्रसादाद् केषाञ्चित् विमलात्मना जायते।

भावार्थ – पूर्व जन्म के संस्कार अथवा गुरु की कृपा से किसी विरले शुद्धचित्तात्मा को ही तत्त्वों का सम्यक ज्ञान मिलता है।

English Translation – Either by virtue of past Karmas of previous life or by the grace of Sadguru, rarely a fortunate person with pure mind becomes able to acquire complete knowledge of Tattvas.

लं बीजं धरणीं ध्यायेच्चतुरस्रां सुपीतभाम्।

सुगन्धां स्वर्णवर्णाभां प्राप्नुयाद्देहलाघवम्।।209।।

अन्वय – यह श्लोक अन्वित क्रम में है, अतएव अन्वय की आवश्यकता नहीं है।

भावार्थ – वर्गाकार पीले स्वर्ण वर्ण की आभा वाले पृथ्वी-तत्त्व का, जिसका बीज मंत्र लं है, ध्यान करना चाहिए। इसके द्वारा शरीर को इच्छानुसार हल्का और छोटा करने की सिद्धि प्राप्त हो जाती है।

English Translation – Here onwards (up to five verses) Yantras of five Tattvas along with their seed Mantras have been described for the purpose of meditation. Prithivi Tattva (earth) has been taken first for it. Shape of this Tattva with Lam seed Mantra is square and it has golden colour. Sadhak by meditating on this acquires capacity to make his body very light (like flower) and small according to his will.

वं बीजं वारुणं ध्यायेदर्धचन्द्रं शशिप्रभम्।

क्षुत्तृष्णादिसहिष्णुत्वं जलमध्ये च मज्जनम्।।210।।

अन्वय – यह श्लोक भी अन्वित क्रम में है।

भावार्थ – अर्धचन्द्राकार चन्द्र-प्रभा वर्णवाले जल-तत्त्व का, जिसका बीज मंत्र वं है, ध्यान करना चाहिए। इससे भूख-प्यास आदि को सहन करने और इच्छ्नुसार जल में डूबने की क्षमता प्राप्त होती है।

English Translation – Jala Tattva (water) with Vam seed Mantra has its shape like semi-circled moon. Its colour is like moon light. One who meditate on it regularly as instructed by Guru, he acquires capacity to live without food and water and also to stay in water at his will for a log period.

रं बीजमग्निजं ध्यायेत्त्रिकोणमरुणप्रभम्।

बह्वन्नपानभोक्तृत्वमातपाग्निसहिष्णुता।।211।।

अन्वय – यह श्लोक भी अन्वित क्रम में है।

भावार्थ – त्रिकोण आकार और लाल (सूर्य के समान) वर्ण वाले अग्नि-तत्त्व का ध्यान करना चाहिए। इसका बीज मंत्र रं है। इससे बहुत अधिक भोजन पचाने और सूर्य तथा अग्नि के प्रचंड ताप को सहन करने की क्षमता प्राप्त होती है।

English Translation – Agni Tattva (fire) has triangular shape with Ram seed Mantra. Its colour is red like sun of dawn (or blood). A Sadhak by meditating on it can acquire capacity to digest food in great quantity and to bear heat of the sun or fire to any extent.

यं बीजं पवनं ध्यायेद्वर्त्तुलं श्यामलप्रभम्।

आकाशगमनाद्यं च पक्षिवद्गमनं तथा।।212।।

अन्वय – यह श्लोक भी अन्वित क्रम में है।

भावार्थ – वृत्ताकार श्याम-वर्ण (कहीं-कहीं गहरे नीले रंग का उल्लेख) की आभावाले वायु-तत्त्व का ध्यान करना चाहिए। इसका बीज-मंत्र यं है। इसका ध्यान करने से आकाश में पक्षियों के समान उड़ने की क्षमता या सिद्धि प्राप्त होती है।

English Translation – Vayu (air) Tattva has circular shape with Yam seed Mantra and dark blue colour. A man by meditating on it can fly in the sky like birds.

हं बीजं गगनं ध्यायेन्निराकारं बहुप्रभम्।

ज्ञानं त्रिकालविषयमैश्वर्यमणिमादिकम्।।213।।

अन्वय – यह श्लोक भी अन्वित क्रम में है।

भावार्थ – निराकार आलोकमय आकाश तत्त्व का हं सहित ध्यान करना चाहिए। ऐसा करने से साधक त्रिकालदर्शी हो जाता है और उसे अणिमा आदि अष्ट-सिद्धियों का ऐश्वर्य प्राप्त होता है।

English Translation – Akash Tattva (ether) is without any shape with Ham seed Mantra and colour like lightning. A man by meditating on it becomes master of yogic powers (of eight kinds) known as Ashtasiddhi.

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10 टिप्‍पणियां:

  1. स्वर विज्ञान का यदि हम अपने व्यावहारिक जीवन में उपयोग करें तो यह बेहद लाभकारी हो सकता है। इस विद्या से परिचय कराने के लिए आपको आभार,

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  2. अपनी पोस्ट यहां देखें…………
    http://tetalaa.blogspot.com/

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  3. स्वर विज्ञान की अद्भुत जानकारी के लिए आभार ..

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  4. स्वर विज्ञान की बहुत ही उपयोगी जानकारी मिली।

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  5. स्वर विज्ञान की अद्भुत जानकारी के लिए आभार .

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  6. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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  7. स्वर विज्ञान का अभिनव ज्ञान प्रदान करने के लिए आपका आभार।

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  8. राय जी आपकी लगन और मेहनत को सलाम।
    स्वर विज्ञान ब्लॉग जगत में अछूता विषय था। आपने यह चलेंज स्वीकारा। हम सब लाभान्वित हो रहे हैं।

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  9. अनमोल ज्ञान का विज्ञान है शिवस्वरोदय !
    आभार, आचार्य जी!

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