आचार्य परशुराम राय
श्रीदेव्युवाच
कथं प्राणस्थितो वायुर्देहः किं प्राणरूपकः।
तत्त्वेषु सञ्चरन्प्राणो ज्ञायते योगिभिः कथम्।।220।।
अन्वय – श्लोक अन्वित क्रम में है।
भावार्थ – माँ पार्वती भगवान शिव से पूछती हैं- प्राण की हवा में स्थिति किस प्रकार होती है, शरीर में स्थित प्राण का स्वरूप क्या है, विभिन्न तत्त्वों में प्राण (वायु) किस प्रकार कार्य करता है और योगियों को इसका ज्ञान किस प्रकार होता है?
English Translation – Goddess Parvati said to Lord Shiva, “ How does this life force exist in the air, in what form does it exist in the body, how does it work in the Tattvas and how is it known to Yogis?”
शिव उवाच
कायानगरमध्यस्थो मारुतो रक्षपालकः।
प्रवेशे दशाङ्गुलः प्रोक्तो निर्गमे द्वादशाङ्गुलः।।221।।
अन्वय – श्लोक अन्वित क्रम में है।
भावार्थ – भगवान शिव माँ पार्वती को बताते हैं- इस शरीर रूपी नगर में प्राण-वायु एक सैनिक की तरह इसकी रक्षा करता है। श्वास के रूप में शरीर में प्रवेश करते समय इसकी लम्बाई दस अंगुल और बाहर निकलने के समय बारह अंगुल होता है।
English Translation – Lord Shiva said to her, “In the city of this body breath stands like a soldier to protect it. When the breath enters the body, its length is equal to ten fingers (about seven and half inches) and twelve fingers (about nine inches) at the time of going out.”
गमने तु चतुर्विशन्नेत्रवेदास्तु धावने।
मैथुने पञ्चषष्ठिश्च शयने च शताङ्गुलम्।।222।।
अन्वय – यह श्लोक भी अन्वित क्रम में है।
भावार्थ – चलते-फिरते समय प्राण वायु (साँस) की लम्बाई चौबीस अंगुल, दौड़ते समय बयालीस अंगुल, मैथुन करते समय पैंसठ और सोते समय (नींद में) सौ अंगुल होती है।
English Translation – “At the time of walking its length is twenty four fingers (around eighteen inches), while running forty two fingers (ten and half inches), during intercourse sixty five fingers (about 16.25 inches) and during sleep it goes up to hundred fingers (about 75 inches).”
प्राणस्य तु गतिर्देविस्वभावाद्द्वादशाङ्गुलम्।
भोजने वमने चैव गतिरष्टादशाङ्गुलम्।।223।।
अन्वय – यह श्लोक भी अन्वित क्रम में है।
भावार्थ – हे देवि, साँस की स्वाभाविक लम्बाई बारह अंगुल होती है, पर भोजन और वमन करते समय इसकी लम्बाई अठारह अंगुल हो जाती है।
English Translation – “O Goddess, natural length of breath is equal to twelve fingers (about nine inches), but while eating and vomiting it becomes eighteen fingers (about sixteen and half inches).”
एकाङ्गुले कृते न्यूने प्राणे निष्कामता।
आनन्दस्तु द्वितीये स्यात्कविशक्तिस्तृतीयके।।224।।
अन्वय – यह श्लोक भी अन्वित क्रम में है।
भावार्थ – भगवान शिव अब इन श्लोकों में यह बताते हैं कि यदि प्राण की लम्बाई कम की जाय तो अलौकिक सिद्धियाँ मिलती हैं। इस श्लोक में बताया गया है कि यदि प्राण-वायु की लम्बाई एक अंगुल कम कर दी जाय, तो व्यक्ति निष्काम हो जाता है, दो अंगुल कम होने से आनन्द की प्राप्ति होती है और तीन अंगुल होने से कवित्व या लेखन शक्ति मिलती है।
English Translation – In few verses hereinafter, Lord Shiva describes the benefits of reduced breath length. In this verse it has been indicated that if the length of breath is reduced by one finger, one becomes a man of actions without any desire of gain. When it is reduced by two fingers, he becomes the man of pleasure and its reduction by three fingers makes a man a poet and writer.
वाचासिद्धिश्चतुर्थे च दूरदृष्टिस्तु पञ्चमे।
षष्ठे त्वाकाशगमनं चण्डवेगश्च सप्तमे।।225।।
अन्वय – यह श्लोक भी अन्वित क्रम में है।
भावार्थ – साँस की लम्बाई चार अंगुल कम होने से वाक्-सिद्धि, पाँच अंगुल कम होने से दूर-दृष्टि, छः अंगुल कम होने से आकाश में उड़ने की शक्ति और सात अंगुल कम होने से प्रचंड वेग से चलने की गति प्राप्त होती हैं।
English Translation – In case of reduction of breath by four fingers, one gets Vak-siddhi, i.e. what he says comes to true. By reducing five finger length of the breath, one becomes far-sighted, six fingers reduction blesses with the capacity of flying in the sky and when it is reduced by seven fingers, one gets power to move with fastest speed from one place to the other.
*****
प्राण (श्वास) के संदर्भ में तथ्यपूर्ण नूतन जानकारी प्रस्तुत करने के लिये आभार...
जवाब देंहटाएंज्ञानवर्धक तथा मन को सुकून पहुंचाती हुई अच्छी पोस्ट.
जवाब देंहटाएंज्ञानवर्धक आलेख ...आपका आभार
जवाब देंहटाएंबहुत ही सात्विक पोस्ट..... लगा की जैसे किसी परलौकिक वातावरण में आ गए हों.......!!!! सचमुच अध्यात्म जीवन को नयी दिशा दे देता है.
जवाब देंहटाएंसाधुवाद शानदार पोस्ट के लिए !
आज का शिवश्वरोदय पढ़कर प्राण वायु की लम्बाई और उसके प्रभाव के बारे में अदभुत जानकारी मिली !
जवाब देंहटाएंआभार !
bahut badiya saarthak gyanvardhan jaankari ke liye aabhar..
जवाब देंहटाएंआपकी उम्दा प्रस्तुति कल शनिवार (30.04.2011) को "चर्चा मंच" पर प्रस्तुत की गयी है।आप आये और आकर अपने विचारों से हमे अवगत कराये......"ॐ साई राम" at http://charchamanch.blogspot.com/
जवाब देंहटाएंचर्चाकार:Er. सत्यम शिवम (शनिवासरीय चर्चा)
अद्भुत जानकारी। इसके बारे में कुछ भी पता नहीं था।
जवाब देंहटाएंएक बहुत अच्छी जानकारी के लिये धन्यवाद
जवाब देंहटाएंश्वास की गहराई ध्यान का आधार है। आखिर कौन सी सिद्धि अधिक महत्वपूर्ण है?
जवाब देंहटाएंआचार्य जी की यह श्रृंखला प्राण वायु की तरह संचार करती है...
जवाब देंहटाएं