-- सत्येन्द्र झा
“बड़े दु:ख की बात है। मेरे पड़ोसी ने अपनी पतनी को डायवोर्स दे दिया।”
“डायवोर्स…. मतलब?”
“डायवोर्स मतलब तलाक…. पति-पत्नी के मध्य किसी प्रकार का संबंध नहीं। न शारीरिक ना ही वैचारिक। डायवोर्स में पति-पत्नी दोनों एक-दूसरे के बंधन से मुक्त हो जाते हैं।”
“यह तो अच्छी बात है….!”
“दूर्र…. तुम पगली हो क्या?”
“हाँ, मैं पगली हूँ… क्योंकि मैं वर्षों से देखती आ रही हूँ कि मेरा बाप सवेरे उठ कर कहीं चला जाता है। आधी रात को दारू के नशे में टुन्न होके आता है। माँ को गाली देता है। आये दिन मारता-पीटता भी है। माँ भीख-दुख से हम पाँचो भाई-बहनों का पेट भरती है लेकिन कभी अपनी माँग में सिन्दूर लगाना नहीं भूलती।
“…………………..”
आंसुओं की कई बूंदे जमीन को गीली कर देती हैं। किसके आँसू पता नहीं।
(मूल कथा मैथिली में ’अहींकेँ कहै छी’ में संकलित डायवोर्स से हिन्दी में केशव कर्ण द्वरा अनुदित।)
सार्थक लघु कथा ....समाज के सच को सामने लाती हुई ...आपका आभार
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुंदर लघु कथा।धन्यवाद।
जवाब देंहटाएंविचारोत्तेजक लघुकथा ... दासत्व से अच्छा है तलाक ...
जवाब देंहटाएंससक्त लघुकथा... देश की आधी से अधिक गृहस्थी ऐसे ही चल रही है... लेकिन कथा में दो अलग अलग सामाजिक पृष्ठभूमि की चर्चा है जिसके बीच थोडा साम्य नहीं है.. अटपटा लग रहा है..
जवाब देंहटाएंसार्थक कथा, छोटे से शब्दों में गभीर विषय को छुआ गया है.
जवाब देंहटाएंहालातों पर बहुत कुछ निर्भर करता है.अच्छी लघुकथा.
जवाब देंहटाएंबेहतरीन लघु कथा है आपकी
जवाब देंहटाएंसुन्दर सी लघुकथा..बधाई.
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जवाब देंहटाएंहोनहार
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कड़वा सच
जवाब देंहटाएंसार्थक लघु कथा ...ऐसे विवाह का क्या लाभ ?
जवाब देंहटाएंकड़वा सच
जवाब देंहटाएंअच्छी लघुकथा। आभार
जवाब देंहटाएंऐसे सम्बन्ध से तो तलाक ही अच्छा.
जवाब देंहटाएंसच्ची लघुकथा.
अच्छी लघु कथा
जवाब देंहटाएंman ko dravit kar gayee ye laghukatha.
जवाब देंहटाएंमार्मिक सच!
जवाब देंहटाएंjahan kahin koi samadhaan na ho to is kadve sach ko mazbooran apnana hi padega.
जवाब देंहटाएंacchhi laghukatha.
अच्छी कहानी।
जवाब देंहटाएंतीखा सच…… ! सार्थक और संवेदनशील लघुकथा।
जवाब देंहटाएंनि:शब्द हूं .......आभार !
जवाब देंहटाएंमिलते हे ऎसे भी जोडे जो ऎसे ही जिन्दगी भी गुजार देते हे, किसी का पति निकम्मा तो किसी की बीबी तेज, भगवान बचाये,
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंयही देशज संस्कार हैं। आम भारत का मार्मिक सच। बेहतरीन कथानक।
जवाब देंहटाएंअरुण राय जी के प्रश्न से सहमति रखता हूँ साथ ही बिलकुल अंतिम पंक्ति से सहमत नहीं।
अलग अलग पृष्ठभूमि में अलग अलग प्रक्रिया तलाक़ की!!परम्पराएं अदालत की कलम की नोक से भी टूट जाती हैं और सिन्दूर की रेखा से जुडी भी रहती हैं.. समाज का अनोखा कोंट्रास्ट!!
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी लघु कथा. विचारोत्तेजक.
जवाब देंहटाएंसमाज का दूसरा पक्ष यह भी है।
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