शनिवार, 23 अप्रैल 2011

सेवा में, श्री कपिल सिबल : प्रेषक - करण समस्तीपुरी

बैंगलोर


२३-०४-२०११


आदरणीय कपिल चचा,


सादर प्रणाम !


कुशलपूर्वक रहते हुए आशा करता हूँ कि आप भी सकुशल, स्वस्थ एवं सुबुद्ध होंगे। आपका पत्र मिला। यह जानकर बड़ा हर्ष हुआ Portrait of Kapil Sibalकि आपने बिहार के अधिकारियों के प्रतिनिधिमंडल को दिल्ली आमंत्रित किया है, प्रदेश के शिक्षा-ढांचे में विकास पर चर्चा के लिये। सुना है कि आपने कुछ परियोजनाओं को मंजूरी भी दे दी है। बहुत अच्छा लगा। आपकी दरियादिली देख कर एक प्राचीन दोहा याद आ गया। वैसे आपभी तो साहित्य-प्रेमी हैं। आपको भी अच्छा लगेगा। जरा ध्यान से पढियेगा। हिन्दी का बहुत ही प्राचीन दोहा है,


“दोना पात बबूल का, वा में तनिक पिसान! राजा जी करने लगे छ्ठे-छमासे दान!!”


साथ ही साथ एक कहावत भी याद आ गयी, “हाथी चले बजार……..!” अब देखिये न आप कितनी बारीकी और समरसता के साथ पूरे भारत में शिक्षा-ढांचे के विस्तार एवं आधुनिकीकरण का प्रयास कर रहे हैं और मीडिया का एक तबका कुछ से कुछ बक रहा है। आप कितनी संजिदगी से विदेशी विश्वविद्यालयों की शाखाएं भारत में खुलवाने के लिये तत्पर हैं, भले देशी संस्थाएं जायें भांड़ में। वैसे भी घर की दाल बराबर मुर्गी को कौन पूछता है? लेकिन सुना है कि उन संस्थाओं में धन-कुबेर की संताने ही जा सकेंगी। खैर क्या होगा? जो जाने लायक होंगे वही जायेंगे न… जो नहीं होंगे वो ऐसे ही देश-प्रदेश में गालियां सुनते रहेंगे। वैसे अखबार-पत्रिका वगैरह में पढ़्ते रहते हैं कि कैंब्रिज और ओक्स्फ़ोर्ड में एडमिशन से मुश्किल यहाँ के आई.आई.एम में एडमिशन मिलना है। आपको तो पता ही होगा, एक कोई पत्रिका है ’फ़ोर्ब्स’, बराबर कोई-कोई सर्वे और आंकड़े दिया करती है। उसी को उद्धृत करते हुए किसी अखबार में पढ़े थे कि ओक्सफ़ोर्ड और कैंब्रिज के स्नातकों की तुलना में आई.आई.एम स्नातकों की औसत पैकेज भी ज्यादा है।


एक बार कहीं सुने थे कि धनबाद के ’इंडियन स्कूल आफ़ माइंस’ जैसी संस्था पश्चिमी देशों में भी नहीं है। लेकिन क्या होगा… ये लोग कूप-मंडूक हैं। इन्हे बाहरी दुनिया की आबोहवा क्या मालूम? आखिर ’इम्पार्टेड माल’ की बात हीं कुछ और है। मंगाइये… सभी विदेशी विश्वविद्यालयों की शाखाएं खुलवाइये और जिनकी शाखायें नहीं हों तो भी चूकियेगा मत। नये विश्वविद्यालय ही खुलवा दीजिये। देशी संस्थाओं की अनदेखी का आरोप लगे तो लगे। आरोपों का क्या है, समझ लीजियेगा कि हवन करते हाथ जल गया। वैसे भी आप नेता हैं और नेताओं पर तो आये दिन पता ही है, कैसे-कैसे आरोप लगते रहते हैं।


नेता तो नेता आप तो सुप्रसिद्ध वकील भी हैं। कैसे-कैसे आरोपों का चुटकियों में खंडन कर देते हैं। अभी हाल ही में तो अरबों रुपये का टू-जी स्पेक्ट्रम घोटाला करने वाले पूर्व दूर-संचार मंत्री पर भी लग रहे संगीन आरोपों को आपने प्रेस-कांफ़्रेंस में निराधार बताते हुए राजाजी को क्लीन चीट दे दिया था। लेकिन हमको लगता है, चचाजी, कि आप उस दिन कुछ हरबरी में थे। बढ़िया से रिपोर्ट वगैरह नहीं पढ़े होंगे। वरना आपके जैसे चतुर वकील से ऐसी भूल कैसे होती? सुना है कि न्यायालय ने राजा और उनके सहयो्गियों को जेल भेज दिया है। आप आरोपों को मानिये या ना मानिये मगर हमको तो लगता है कि ये राजा-मंत्री सब जरूर कुछ न कुछ गलत किये होंगे नहीं तो अदालत ऐसे ही किसी को जेल में थोड़े ठूंस देती है। आखिर अदालत में आपका भी यकीन तो है न।



वैसे तो कहने वाले आप पर भी आरोप लगाते हैं कि सिबल साहब उच्च शिक्षा का महानगरीकरण कर रहे हैं। लेकिन हम नहीं मानते हैं। अब बताइये आजादी के इतने सालों बाद आखिर बिहार जैसे पिछड़े प्रदेश को भी आई.आई.टी किसने दी…? कपिल सिबल ने। यहां तक कि उसके नये भवन की आधारशिला रखने के लिये पटना भी आये। यह पहला मौका था जब वर्तमान मंत्रीजी १९९८ में प्रदेश से पहली बार राज्यसभा के लिये चुने जाने के बाद बिहार आये थे। फिर भी कहने वालों के पास भी तर्कों की कमी नहीं है। कहते हैं, आई.आई.टी दे दिया तो क्या उन्होंने तो आई.आई.टी. में प्रवेश के लिये बारहवीं में इतने ऊंचे प्रतिशत अंक की सिफ़ारिश की थी कि बिहार जैसे प्रदेश के छात्रों को उनमें नामांकन ही नहीं मिलता। हम कहते हैं सब बकवास है। मेधा और प्रतिभा क्षेत्र विशेष पर कैसे निर्भर करेगी? मानक बदलने से हौसला थोड़े न बदल जाता है। अब हंडरेड परसेंट मार्क्स ही कर दें तो क्या…? फिर से कोई “एग्ज़ामिनी बेटर दैन एग्ज़ामिनर” निकल आयेगा। गीता में भगवान ने कहा है, “तेजस्विना वधितमस्तु”। यह वाक्यांश आपही के विभाग के अन्तर्गत आने वाला “भारतीय प्रबंधन संस्थान, बंगलुरु” का टैग-लाइन भी है। बिहार में पैदा हो या बंगाल में तुलसी तथागत जैसे तेजस्वियों को कौन रोक सकता है…? ये मीडिया वाले भी समझते-बूझते हैं नहीं, बात का बतंगर बना देते हैं। असली बात तो हम जानते हैं न…। आप जुवान के तेज जरूर हैं मगर दिल से बहुत ही भोले हैं।


लेकिन आप इतने बड़े मंत्री हैं। कानूनविद हैं। आपको थोड़ा संयत रहना चाहिये। आपको तो पत्रकार लोग वैसे ही उकसा रहे थे। आप खा-म-खा बोल दिये कि “बिहार के छात्र दिल्ली आते ही क्यों हैं पढ़ने के लिये।” हमको तो नहीं लगता है कि आपको कारण पता नहीं होगा कि बिहारी छात्र पढ़ने के लिये दिल्ली या अन्य प्रदेशों में क्यों जाते हैं। और अगर पता नहीं ही था तो हमसे पूछ लेते। घर की बात घर में ही हो जाती। इन पत्रकारों को क्या मालूम…? वैसे भी उत्तर आधुनिकतावाद की तेज हवा में पत्रकार रह कहाँ गये…? जिनके हाथ पत्र है उनके हाथ कार नहीं और कार हाथ लगा तो पत्र को तो भूल ही जाइये। वैसे हम हैं तो आपके बच्चे ही मगर जब आप पूछ ही लिये हैं तो कारण बता देते हैं।


चचा जी, वैसे तो आजादी के बाद से केंद्र (और अधिकांश राज्यों में भी) में आपके दल की ही सरकार रही मगर हमको लगता है कि आपके पूर्ववर्ती मानव-संसाधन-विकास एवं शिक्षा मंत्री आपकी तरह कार्य-कुशल नहीं रहे जो हर प्रदेश में हर स्तर की उत्कृष्ट शिक्षा की व्यवस्था कर देते। अब बताइये मद्रास में आई.आई.टी बना दिया और बंगलोर में आई.आई.एम। है तो दोनो उत्कृष्ट संस्थाएं मगर एक अभियंत्रण के लिये और दूसरी प्रबंधन के लिये। अब दोनो व्यवस्था करवा दीजिये तो एक प्रदेश के छात्र दूसरे प्रदेश में नहीं जायेंगे। लेकिन बंगाल में तो दोनो हैं… तो कया बंगालियों को शिक्षा के लिये बंगाल से बाहर नहीं जाना चाहिये? रही बात बिहार की तो आई.आई.टी., आई.आई. एम. तो दूर, इतने वर्षों में आपलोगों ने एक अदद केन्द्रीय विश्वविद्यालय तक नहीं दिया। तमाम विषमताओं के बावजूद प्रदेश के मेधावी छात्र उच्च तकनीकी शिक्षा के लिये प्रदेश से बाहर नहीं जायेंगे तो क्या करेंगे…?


पटना में युवा गणितग्य श्री आनंद कुमार एक कोचिंग संस्था चलाते हैं, “सुपर थर्टी”। वे प्रदेश के गरीब छात्रों को निःशुल्क आई.आई.टी.-ज़ी की तैय्यारी करवाते हैं। पिछले कई वर्षों से इस संस्था से प्रति वर्ष कम से कम तीस छात्र आपही के विभाग द्वारा संचालित आई.आई.टी-ज़ी की प्रवेश परीक्षा में टाप हंडरेड में जगह बनाते रहे हैं और आपके विभाग के मातहत हीं उनकी काउंसिलिंग के बाद उन्हें देश भर के विभिन्न आई.आई.टी’ज में स्थान आवंटित किया जाता रहा है। इसमें बिहारी छात्रों का क्या दोष है ? वे तो नामंकन के लिये निर्धारित प्रतिशत अंक और अन्य माणदंडों को पूरा करते हैं। फिर भी यह अगर आपको नागवार गुजरती है तो अभी तो सरकार भी आपही की है। ले आइये संसद में “बिहारी छात्र शिक्षा निषेध विधेयक”। शिक्षा ही क्यों संविधान बना दीजिये कि बिहार के लोगों को शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार अथवा किसी भी उद्देश्य से भारत के किसी अन्य प्रदेश में प्रवेश की अनुमति नहीं है।



क्या यह मुमकिन है? नहीं न…? तो आप खा-म-खा कुछ-से-कुछ बोल कर अपना छिछा-लेदर करवाते रहते हैं। अरे माना कि आप वकील हैं। बोलने की आदत रही है। लेकिन सम्प्रति आप एक जिम्मेदार केंद्रीय मंत्री हैं। सवाल सिर्फ़ जुवान फिसलने की नहीं है। इससे आप अपने मुखालिफ़ों को रूम दे देते हैं बखिया उधेरने की। अब बताइये आप स्वयं पंजाब के हैं लेकिन आपभी तो ग्रेजुएशन-पोस्ट ग्रेजुएशन और कानून की शिक्षा के लिये दिल्ली आये। दिल्ली ही क्या… आपने तो कानून में परास्नातक की उपाधि हार्वर्ड ला स्कूल से प्राप्त की है। आपके दोनो सुपुत्र अखिल एवं अमित भी विदेशों में पढ़े-लिखे हैं। स्टैनफ़ोर्ड, कैम्ब्रिज और हार्वर्ड… आपको तो याद ही होगा। राष्ट्रपिता महत्मा गांधी एवं प्रथम प्रधानमंत्री पं. नेहरु भी पढ़ने के लिये इंगलैंड गये थे। यही नहीं आपके दल के प्रथम परिवार का हर सदस्य तो विलायत में ही पढ़ा-लिखा है। कभी बिहार के नालंदा और तक्षशिला में देश-विदेश से लोग आते थे शिक्षा ग्रहण करने। आखिर आप उन सब से ही क्यों नहीं पूछ लेते हैं कि वे क्यों गये थे अपने गृह-प्रदेश के बाहर।



इस तरह तो आप आस्ट्रेलिया में भारतीय छात्रों पर जो जुल्म होते हैं उसका विरोध करने का नैतिक अधिकार भी खो देंगे। कनाडा में पंजाबियों (ये तो आपके भाई-बंधु ही हैं) के साथ हो रहे भेद-भाव के लिये आप क्या कहेंगे? “पंजाबी कनाडा जाते ही क्यों हैं?” खैर यह पत्र अब बहुत बड़ा हो रहा है। ज्यादा क्या लिखें, आपतो खुदही इतने समझदार हैं। कम लिखना ज्यादा समझना। अन्त में एकही गुहार करते हैं, “चचाजी ! आप इतने बड़े हैं, सुशिक्षित हैं, संविधानवेत्ता हैं, एक जिम्मेदार मंत्री हैं। आप जब ऐसी बातें करेंगे तो हम बच्चे क्या सीखेंगे ? फिर तो राष्ट्रीय एकता-अखंडता-समरसता के बदले क्षेत्रवाद, भाषावाद, जातिवाद और पता नहीं कौन-कौन-सी दुर्वाद की चिंगारी भड़कने लगेगी। फिर भारत की अखंडता और संप्रभुता का क्या होगा, चचा ?



PC300160शेष अगले पत्र में। प्रोमिला आंटी को मेरी तरफ़ से नमस्ते कहियेगा। पत्र लिखने में कुछ भूल-चूक हो गयी हो तो माफ़ करेंगे। पत्रोत्तर की प्रतीक्षा में,


आपका,


करण समस्तीपुरी


(नोट : जिन किसी पाठक/पाठिकाओं को यह पत्र मिले कृपया इमानदारीपूर्वक श्री कपिल सिबल तक पहुंचा देंगे। इसमें गोपनीय पारिवारिक बाते हैं।)

20 टिप्‍पणियां:

  1. कपिल सिब्‍बल जी भोले इंसान को ऐसा प्रेम-पत्र? वो बेचारे तो आप सभी लोगों के लिए आक्‍सफोर्ड आदि यहीं ला रहे हैं और आप हैं कि उन्‍हें प्रश्‍न पूछ रहे हैं। बडी नाइंसाफी है जी। अच्‍छी व्‍यंग्‍य किया है, बधाई।

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  2. ऊ का कहते हैं सब्बल ....गाँव का लोग खोदा-खादी का काम के लिए सब्बल स्तेमाल करता है ....कैसा हूँ कड़ा जमीन हो सब्बल से सब खुदा जाता है .......सारा देसी माटी खोद के फेके का काम कपिल जी कर रहे हैं ...इसमें उनका कउनो दोस नहीं है ...उनके नमवये मं सब्बल घुस गया है त का कीजिएगा . उनकए नाती-पोता-वोता के सहूलियत हो जाएगा ....हारवर्ड.....आ कैम्ब्रिज ...फैम्ब्रिज सब इहें आ जाएगा .....

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  3. ई सिब्बलवा त पच्छिमवा के फेर में पड़ी गवा बा हो
    हमही तोहही के समुझई के पड़ी

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  4. कपिल सिब्‍बल जी को लिखा पत्र बहुत भाया...
    पत्रोत्तर आए तो पढ़वाइएगा...

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  5. पत्र तो बहुत बढ़िया लिखे हैं करण बाबू.... सिब्बल चाचा को मैंने फॉरवर्ड कर दिया हिया .... कल त संडे है...संभव है पढेंगे...वैसे आजकल ऊ का कहते हैं लोकपाल में बीजी हैं... हमको त लगता है जवाब आएगा...आएगा तो जरुर हम लोगन के भी पढ़ाएंगे...
    खैर, बेहतरीन लेखनी है....वर्तमान संधर्भ को व्यंग्य का सहारा लेकर बड़ा फलक दिए हैं.... बधाई...

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  6. करण जी नांम्सूओं मे भिगो भिगो कर दिल का गुबार निकाला लगता है मगर इन नेताओं की चमडी बहुत मोटी है पत्थर की तरह सब उपर से बह जाता है।सशक्त सुन्दर पत्र। बधाई। सिब्बल जी का जावाब के इन्तजार मे रहेंगे।

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  7. hey bhai karan.....ee sasura sibbal.....aise na mani ho....kuch
    aur tarika lagaol jaya....

    sadar.

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  8. karan baaboo,
    aap to shaandaar been bajaaye hain, khaalee gadbadee ehee hai ki jis pashu ke samaksh aapakaa been kaa raag bhairavee bajaa hai usakaa naam bhains hai.. are ham sachcho kah rahe hain.. kaalaa kot pahankar oo bhains bihar ko kaalaa akshar aur bhains kaa antar bataayenge..
    likhte rahiye prem patr.. kabhee to is ret se paanee kaa dhaar footegaa!! Amen!!

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  9. बहुत धार है तुम्हारे व्यंग्य में ठाकुर।

    करण बाबू, इस पत्र के माध्यम से आपने बिहारी जन समुदाय की पीड़ा को बड़ी शालीनता से व्यक्त किया है। ऊँची कुर्सी पर बैठे इन राजनेताओं के गैर जिम्मेदाराना बयानों से जनमानस कितना आहत होता है उसका इन्हें भान नहीं होता। इन्हें जब अपने पर आती है तभी संताप होता है। आपने ऐसे ही आहत जन-मन को वाणी दी है। आपकी सशक्त लेखनी से यह पीड़ा हम सब के मर्म तक पहुँची है। ईश्वर उन्हें सद्बुद्धि दे।

    आपको शुभकामनाएं।

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  10. सिब्बलों से भारत की शिक्षा को बचाना होगा। ये बिदेशी बाई देश को फिर गुलामी की तरफ ले जा रही है। याद कीजिये कि अंग्रेजों ने कितने तरह के चमचे पाल रखे थे।

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  11. पत्र में सटीक व्यंग है मगर ये नेता मोती खाल वाले हो चुके हैं.
    राम ही बचाए इनसे.

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  12. रुग्ण मानसिकता के चाचा को आपने अच्छी दलील दी है। और एक और चाचा (आपके) ने सही कहा कि इन भैंसों के आगे कितना भी बीन बजा लीजिए, इन्हें सिर्फ़ पगुराना ही आता है। बाक़ी सभी लोगों की तरह हमारा भी निवेदन यही है कि उत्तर मिले तो ज़रूर पढवाइएगा।
    (पर इस पत्र को पाकर उनके सारे शब्द धरे रह जाएंगे)

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  13. चाचू का जबाब आये तो उसे भी यहां चिपकाये जी, यह चाचू सुना हे बहुत भोले भाले हे, सो अब दुर विदेश जाने की जरुरत नही, घर मे ही कुआं खुदवा रहे हे जी... बधाई

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  14. चाचा गदगद हुए होंगे ..
    शानदार व्यंग्य !

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  15. पत्र में सटीक व्यंग है मगर ये नेता मोती खाल वाले हो चुके हैं.
    राम ही बचाए इनसे.

    मेरे द्वारा भेजे गए उपर्युक्त कमेन्ट में मोटी खाल की जगह मोती खाल पता नहीं कैसे छप गया.कृपया उसे मोटी खाल पढ़ें.

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  16. चचा के नाम भतीजे की पाती पढ़कर दिल बाग-बाग हो गया करन बाबू। इस चिट्ठी का राकेट सीधे चाचा के घर की ओर कर देना था। लाजबाब व्यंग्य।

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  17. बहुत सटीक पत्र लिखा है .. बढिया व्‍यंग्‍य !!

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  18. मजा आ गया चचा की पाती पढ़कर। लेकिन चचा तो ठीक से मजे भी नहीं ले पा रहे होंगे और प्रेम रस में सनी पाती पढ़कर ठीक से दुख भी न मना पा रहे होंगे।

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  19. केशव जी २ फ़रवरी १८३५ को लार्ड मकौले ने ब्रिटिश संसद में भारत दौरे की रिपोर्ट देते हुए कहा था कि अपने देश में प्राचीन और पारंपरिक शिक्षण प्रणाली के कारण इतना सेल्फ एस्टीम, स्वाभिमान है और नैतिक स्तर इतना ऊँचा है कि इस पर विजय पाना असंभव है... इसके लिए देश की पारंपरिक शिक्षण प्रणाली को पहले ध्वस्त करना होगा और सेल्फ एस्टीम को ख़त्म करना होगा अंग्रेजी के माध्यम से... आज सिब्बल चाचा वही कर रहे हैं... स्वस्थ प्रतिस्पर्धा पैदा करने की बजाय ग्रेड प्रणाली के मध्यम से प्रतिस्पर्धतामकता के ही कुचल रहे हैं... जिसका नुक्सान आप आने वाले वर्षों में देखेंगे... पढाई के प्रति गंभीर ज़ज्बा को ठेस पहुँच रहा है ... नए बच्चों से बात करके देखिये बहुत निराश हैं लोग.... सिब्बल चाचा वो कर रहे हैं जो लार्ड मकौले ने किया था... आपका व्यंग्य बहुत तीक्ष्ण है... आपको शुभकामना ! देर से पढ़ पाया इसके लिए क्षमा भी..

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